हिंदु कालगणना के विश्वगुरु खगोलशास्त्री "आर्य भट "

Hindu Calculus Vishwaguru Astronomer Arya Bhat
 
 Vishwa Guru Astronomer Arya Bhat
विश्व गुरु खगोलशास्त्री आर्य भट
vishv guru khagolashaastree aary bhat
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आर्यभट  
(जानकारी गूगल एवं कुछ लेखों से साभार)
-डॉ. हरिओम पंवार
 
उन व्यक्तित्वों में से एक जिनके कारण भारत विश्वगुरु कहलाया (संक्षिप्त परिचय)।
 
    आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और ज्योतिषविद थे। उनके द्वारा की गयी खोज आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। 'कॉपरनिकस' से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और वह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
आर्यभट्ट ने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है। जिसके कारण आकाश में नक्षत्रों की स्थिति में परिवर्तन होता है। उन्होंने अपने ग्रंथो में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारणों को बताया है। उन्होंने यह भी लिखा है कि चंद्रमा और अन्य ग्रहों का अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता बल्कि वे सूर्य के परावर्तित प्रकाश से प्रकाशमान होते हैं।
 
आर्यभट्ट ने यह भी बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करने में 23 घण्टे, 56 मिनट और 1 सेकेण्ड का समय लेती है और एक साल ने 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट और 30 सेकेंड होते हैं।
 
इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर ,(पाटलिपुत्र) और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है (ईस्वी सन् 476)। उनके पिताश्री का नाम मातुका और माता का नाम रोचना देवी था ।
आर्यभट्ट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की और मात्र 23 वर्ष की आयु में 'आर्यभट्टीय' नामक ग्रंथ लिखा। उनके इस ग्रंथ की प्रसिद्धि और स्वीकृति देखकर राजा बुद्धगुप्त ने उनको नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया। 
 
आर्यभट्ट ने कई ग्रंथों की रचना की लेकिन वर्तमान समय में उनकी चार पुस्तकें ही उपलब्ध हैं। जिनके नाम – आर्यभटीय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत हैं। आर्यभट्ट सिद्धांत ग्रन्थ पूरा नहीं है इसके सिर्फ 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इनकी बहुत सी रचनाएँ विलुप्त हो चुकी हैं।
आर्यभटीय ग्रन्थ में कुल 121 श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक की पंक्ति बहुत ही सार गर्भित और उनके सिद्धांतों को प्रतिपादित करती है। जिन्हें अलग-अलग विषयों के आधार पर चार भागों में विभक्त किया गया है जो निम्न अनुसार हैं-

गीतिकापद (13 श्लोक) : इनमें सूर्य, चन्द्रमा समेत पहले पांच ग्रहों, हिंदु कालगणना और त्रिकोणमिती जैसे विषयों की व्याख्या की गई हैं।
गणितपद (33 श्लोक) : ग्रन्थ के इस भाग में अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित पर संक्षिप्त जानकारी दी गयी हैं।

कालक्रियापद (25श्लोक) :  ग्रन्थ के इस भाग में हिंदुकाल गणना समेत ग्रहों और ज्योतिष की गतियों पर जानकारी दी गई है

गोलपद (50 श्लोक) : आर्यभट्टीय ग्रन्थ के इस भाग में खगोल विज्ञान, ग्रहों की गतियों, सूर्य से दूरी, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी हैं।

  सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने ही सैद्धांतिक रूप से यह सिद्ध किया था कि पृथ्वी गोल है और उसकी परिधि अनुमानत: 24,835 मील है और यह अपनी धुरी पर घूमती है जिसके कारण रात और दिन होते हैं। इसी तरह अन्य ग्रह भी अपनी धुरी पर घूमते हैं जिनके कारण सूर्य और चंद्रग्रहण होते हैं।
 
आर्यभट्ट के प्रयासों द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका।
 
बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार किया, दशमलव प्रणाली का विकास किया। उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्धति का आविष्कार किया। उन्होंने अपने ग्रन्थ में एक श्लोक में लिखा है कि-

एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम्।
कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥ 

अर्थात 'एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है। सरल शब्दों में कहे तो किसी संख्या के आगे शून्य लगाते ही उसका मान 10 गुना बढ़ जाता है।'

बीजगणित में उन्होंने कई संशोधन, संवर्धन किए और गणित ज्योतिष का 'आर्य सिद्धांत' प्रचलित किया।वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने 'आर्यभट्ट सिद्धांत' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में रेखागणित, वर्गमूल, घनमूल जैसी गणित की कई बातों के अलावा खगोल शास्त्र की गणनाएं और अंतरिक्ष से संबंधित बातों का भी समावेश है। आज भी 'हिन्दू पंचांग' तैयार करने में इस ग्रंथ की मदद ली जाती है।

प्रसिद्ध खगोलविद वराह मिहिर इनके शिष्य थे। 
 
आर्यभट्ट के सिद्धांत पर महान विद्वान 'भास्कर प्रथम' ने टीका लिखी। भास्कर के 3 अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं- 'महाभास्कर्य', 'लघुभास्कर्य' एवं 'भाष्य'। खगोल और गणितशास्त्र- इन दोनों क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के स्मरणार्थ भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था।
 
आर्यभट्ट ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है। वह आजकल के माप से बिल्कुल मिलता-जुलता है। आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है। इसे AU ( Astronomical unit) कहा जाता है। 

 भारत सरकार द्वारा अपना पहला उपग्रह 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया था और उसका  नाम महान वैज्ञानिक के नाम पर आर्यभट्ट रखा गया। वर्ष 1976 में अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को द्वारा आर्यभट्ट की 1500वीं जयंती का आयोजन किया गया। (ISRO) इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन द्वारा वायुमंडल के संताप मंडल में जीवाणुओं की खोज की थी. जिनमे से एक प्रजाति का नाम बैसिलस आर्यभट्ट रखा गया है। भारत के नैनीताल में एक वैज्ञानिक संस्थान का नाम 'आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान' रखा गया है।

अपनी खोजों से विश्व विज्ञान, गणित और ज्योतिष को समृद्ध करने वाले महान आर्यभट की मृत्यु 74 वर्ष की आयु में हुई थी। 
 

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