दंदरौआ धाम , जहां हनुमानजी करते हैं इलाज dandrauasarkar doctor-hanuman Ji
दंदरौआ धाम , जहां हनुमानजी की प्रतिमा करती है इलाज
Dandraua Dham, where Hanumanji's statue treats
दंदरौआ धाम , जहां हनुमानजी करते हैं इलाज
Dandraua Dham, where Hanumanji treats
''नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा''
सैंकड़ों साल पुराना सिद्ध मंदिर है दंदरौआ धाम
भिंड जिले के सुप्रसिद्ध दंदरौआ धाम स्थित हनुमान जी के स्वरूप के दर्शन करने के लिए बढ़ी तादाद में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे। मंदिर के महंत महामंडलेश्वर रामदास महाराज का कहना कि यहांं हनुमान जी के दर्शन मात्र से रोगों से मुक्ति मिलती है। इसलिए श्रद्धालु, डॉक्टर हनुमान के नाम से भी बुलाते हैं। दंदरौआ धाम स्थित हनुमान मंदिर पर विशेष पूजा-अर्चना होती आ रही है। यहां रोगों से मुक्ति के लिए हवन, पूजन व सुंदरकांड का भी आयोजन किया गया।
दूर-दूर तक मंदिर की है ख्याति, दर्शन करने से रोगों से मिलती है मुक्ति
भिंड जिले के मौ कस्बे के नजदीक दंदरौआ धाम वाले हनुमानजी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान प्रांत के कई जिलों में डाॅक्टर वाले हनुमानजी के नाम से सुप्रसिद्ध है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु मंगलवार और शनिवार को रोगों से मुक्ति की कामना को लेकर आते हैं। श्रद्धालुओं के मुताबिक यहां पर हनुमानजी के पांच, सात, ग्याहर मंगलवार या शनिवार दर्शन करने मात्र से कई असाध्य रोगों से मुक्ति मिल रही है। यह स्थान सैंकडों साल पुराना है। स्थानीय लोगों के मुताबिक दंदरौआ धाम स्थान पर करीब छह सौ साल पहले एक तालाब के किनारे पीपल के पेड़ की जड़ के पास हनुमानजी की प्रतिमा मिली थी।
मंदिर से जुड़े कई चमत्कार बताते हैं श्रद्धालु
इस मंदिर से जुड़े चमत्कार के किस्से क्षेत्रीय लोगों की जुबानी सुनने को मिलते हैं। यहां के महंत महामंडलेश्वर रामदास महाराज का कहना है कि यहां सबसे पहले 2001 में कैंसर जैसे असाध्य रोग को लेकर मंदिर के ही एक साधक द्वारा अर्जी लगाई गई थी। वह साधक को हनुमान जी के चरणों के जल से कैंसर जैसे रोग से मुक्ति मिली थी। वह साधक आज भी हनुमान जी की सेवा में उपस्थित रहता है। यहां हर मंगलवार और शनिवार को दर्शनों के बाद रोगों से मुक्ति मिलने पर पूजा-अनुष्ठान व धार्मिक आयोजन, श्रद्धालुओं द्वारा कराए जाते हैं।
डॉ. हनुमान के नाम से ख्यातिलब्ध ''गोपी वेश धारी ''श्री हनुमान जी की प्रस्तर मूर्ति यहाँ लोगों के दर्द के हरण के लिए जानी जाती है !
लाखो श्रद्धालु यहाँ अपने शारीरिक व मानसिक ब्याधियों से निजात पाने के लिए आते है और श्री हनुमान जी की शूछम किन्तु दिब्य कृपा से रोग मुक्त हो जाते है !
''नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा'' इसी अवधारणा को साकार करते श्री हनुमान जी यहाँ छोटे से गांव ''दंदरौआ'' में लोगों के आस्था के केंद्र बिंदु बने है !
दंदरौआ ग्राम जिला भिंड, तहसील मेंहगांव के ग्राम धमूरी और चिरोल के मध्य स्थित है ! ये चारो ओर से सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है ! भिंड शहर से जाने वाले श्रद्धालु में गांव से पूरब की ओर घूम कर मऊ मार्ग से दंदरौआ धाम पहुंचते है ! ग्वालियर शहर से जानेवाले श्रद्धालु ग्वालियर भिंड मार्ग से गोहद अथवा मेंहगांव से पूर्व दिशा के सड़क मार्ग से अथवा ग्वालियर से बड़ा गांव के रास्ते अथवा ग्वालियर डबरा-मौ मार्ग से ६५ -७० किलोमीटर की यात्रा तय कर के श्री डॉ हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम पहुंच सकते है !
यह धाम ब्रह्मलीन गुरुबाबा श्री श्री १०८ बाबा लछमन दस जी महाराज के शिस्य ब्रह्मलीन महंत बाबा पुरुषोत्तमदास जी महाराज की साधना स्थली है और वर्तमान में उनके शिष्य श्री श्री १००८ महामंडलेश्वर संत रामदास जी महाराज की महंती में है ! हमारी धर्म संस्कृति में ''मन्त्र '' विज्ञानं का महत्त्व पौराणिक ग्रंथों में देखने को मिलता है ! गोस्वामी तुलशीदास जी ने अपनी बात ब्याधि से मुक्ति के लिए ''श्री हनुमनबाहुक ''की रचना की थी और वे बात ब्याधि से मुक्त हो गए थे ! श्री दंदरौआ हनुमान जी का ये मन्त्र -''ओम श्री दंदरौआ हनुमंते नमः '' भी ब्याधियों के निवारण में संजीवनी सामान है जिसका शाब्दिक विश्लेसण इस प्रकार है ----ओम --आयं,-सतोगुण -रजोगुण -तमोगुण सक्तियों में संतुलन का कार्य करता है !इसमे ब्रह्मा -विष्णु -महेश त्रिदेव शक्ति समाहित है ,जो वात -पित्त -कफ को संतुलित करने की छमता रखता है ! श्री --ये माँ लक्ष्मी है ,जिनकी कृपा से सुख समृद्धि व वैभव प्राप्त होता है ! ''दं''--ये दर्द का निवारण और अपने ईस्ट के समछ दया का भाव प्रकट करता है ! ''द '' --दान की प्रेरणा देता है ,जो धर्म और मोछ का मार्ग प्रसस्थ करता है ! ''रौ ''--संताप ,रोग ,पीड़ा ब्याधित ब्यक्तियों की प्रसन्नता का कारक है! और ''आ ''--आने वाला पीड़ित प्रसन्न हो वपाश जाता है ! यैसे हमारे '' डॉ हनुमान'' जातकों की पीड़ा का सदैव हरण करते रहे !
*द्वंद -रउआ का अपभृंश है ''दंदरौआ '' *
भारतवर्ष में स्थानो, ग्रामों के नाम किसी न किसी ऐतिहाषिक, पौराणिक, या छेत्रीय घटनावों के आधार पर रखने की परम्परा रही है! इस छेत्र में अनेक स्थानो के नाम भी इसी आधार पर रखे गए है! जो अपभृंष हो चुके है! जैसे भगवान कृष्ण की गौएँ चराने की जहाँ तक हद (सीमा )थी उसे अब गोहद कहा जाता है! पांडवो को जन्म देने वाली कुंती के जन्म स्थान को कुंतल पुर कहा जाता था जो अब अपभृंश हो कुतवार कहा जाता है! शोडित पुर को शिहोनिया के नाम से पुकारा जाता है! महिष्मति का अपभृंश हो अब'' मौ '' कहा जाता है! इसी प्रकार द्वन्द -रउआ का अपभ्रंश ""दंदरौआ "" हो गया है!
यहाँ के डॉ हनुमान जी का अर्चाविग्रह ५०० वर्ष पुराना है !ये इस छेत्र के मुख्य देवता है! स्थानीय लोग चिकित्सीय सुविधाओं के आभाव में आस्था और विश्वास के सहारे इनके दरबार में जाते थे! श्री हनुमान जी के दिब्य प्रभाव से वे अपनी आधि -ब्याधि, दुःख -दर्द, मानसिक व शारीरिक पीड़ा से निजात पाते रहे है! इस लिए ही यहां विराजे हनुमान जी फोड़ा, फुन्शी, अनेक चर्म रोगो सहित सभी शारीरिक ब्याधियों से निजात दिलाने वाले देवता के रूप में प्रशिद्ध हुए और उन्हें द्वन्द -रउआ अर्थात दर्द के निवारण करने वाले के रूप में नाम मिला ! जब उनके इस प्रताप से इनके आसपास लोगो ने अपना निवासः बनाया तो उस ग्राम का नाम द्वंदरौआ रखा जो कालांतर में अपभृंश हो ''दंदरौआ '' के नाम से जाना जाता है! हिंदी भाषी ग्रामीण लोग आज भी द्वन्द को'' दंद'' और दर्द को'' दद्द'' बोलते है !
दंदरौआ सब्द जो द्वन्द -रउआ का अपभ्रंश है, रीयते छीयते इति र 'इस ब्याकरण ब्युत्पत्ति के अनुसार रीढ़ छ्ये धातु से अप प्रत्यय हो कर ''र '' सब्द बनता है, जिसका अर्थ है नस्ट होने वाला! ''द्वन्द छीयते यत्र सः'' अथवा ''दर्द छीयते यत्र सः '' दर्दराः एतदृशः ''! द्वन्दरः अथवा दरदर का अर्थ भी द्वन्द अथवा दर्द को छीन करने वाला है! इस प्रकार निश्चित है की यहाँ स्थित श्री हनुमान जी ग्राम स्थापित काल के पूर्व से ही आधि, ब्याधि, रोगों का निवारण करते रहे है! ऐसे डॉ हनुमान सदैव जातकों के दुःख, दर्दों का निवारण करते रहे!
दंदरौआ धाम
श्री दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान के अर्चाविग्रह में श्री हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है ! यह न्रत्य मुद्रा है ! उनका श्री मुख भी बानर के स्थान पर बाला के रूप में है !
Doctor Hanuman Ji
ओम दंदरौआ हनुमंते नमः दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान जी Doctor Hanuman Ji का अर्चाविग्रह श्री दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान के अर्चाविग्रह में श्री हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है! यह न्रत्य मुद्रा है! उनका श्री मुख भी बानर के स्थान पर बाला के रूप मंप है! उनकी गदा उनके हाथ के बजाय उनके बगल में रखी है! उनका स्वरुप विग्रह वात्सल्य भाव को दर्शाता है! ये बाबा तुलशी की रामचरित मानष की इस चौपाई से मेल कहती है -''एक सखी सिय संग विहाई ,गई रही देखन फुलवाई '' ये प्रसंग बाबा तुलसी ने पुष्प वाटिका के प्रसंग में भगवन श्री राम से माता जानकी को मिलाने के लिए श्री हनुमान जी को भेष बदल कर जानकी की सखियो में सखी चारुबाला के रूप में बताया है! ज्ञात हो जानकी की आठ सखियों में सखी चारुबाला प्रमुख सखी थी! इनने ही सर्व प्रथम माता जानकी का परिचय भगवन राम से कराया! इस प्रकार राम सीता विवाह का मार्ग परास्त हुआ था!दंदरौआ धाम में श्री हनुमान जी का अर्चा विग्रह इसी अवधारणा का द्योतक है! दंदरौआ धाम के अनुयाई संत भी सखी सम्प्रदाय के है ! वे बदन में सफ़ेद धोती धारण करते है और उसी को ओढ़ते है !
दंदरौआ ग्राम ९०० बीघा कृषि एवं ९०० बीघा रकबा की भूमि रखनेवाला छोटा गुर्जर बाहुल्य ग्राम है जो एक समय में राणा धौलपुर (राजस्थान) के आधिपत्य में था ! जब राणा यहाँ से धौलपुर वापस जाने लगे तो गुर्जर छत्रिय वंश के चंदेल राजावों के वंसज जिला ग्वालियर के रौरा ग्राम के निवासी कुंवर अमृत सिंह ने खरीद लिया! जनश्रुति है कि कुंवर अमृत सिंह (मितबाबा ) के आने के समय श्री हनुमान जी का यह अर्चाविग्रह नीम के बृच्छ के अंदर छिपी थी! जब किसी निर्माणकार्य के प्रयोजन से इस नीम को कटाने का प्रयोजन किया गया तो उस दौरान कटाने में ऐसे नाद ध्वनि आई जैसे की कोई अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहा हो ! सावधानी से पेड़ को कटाने पर गोपी वेषधारी श्री हनुमान जी का अर्चाविग्रह प्राप्त हुआ तब सम्मानपूर्वक उन्हें वाही मिटटी के चबूतरे पर स्थापित करवादिया !
ओम दंदरौआ हनुमंते नमः
***** डॉ हनुमान स्तुति *****
दंदरौआ श्री धाम के ,डॉ श्री हनुमान ।
प्रभू राम की कृपा से, करें सदा कल्याण ॥
गुरुबबा के शिष्य थे,पुरुसोत्तम महराज ।
जन्म भूमि को कर गए ,तपो भूमि वो आज ॥
शिष्य उन्ही की कृपा के ,रामदास महराज ।
धर्म -ध्वजा ले हाथ में ,निकल पड़े है आज ॥
राग द्वैष मद लोभ से ,परे सदा ये संत|
रामदास रख नाम गुरु ,विधिवत किया महंत ॥
सरल सहज सु -विचार से ,उनकी कृपा अनंत ।
महामंडलेश्वर कहें ,सन्याशी गुरु संत ॥
यहाँ विराजे देवगण,देखें हनुमत रूप ।
नृत्य करत हनुमान जी ,ऐसो दिब्य स्वरुप ॥
छोटा सा है गांव पर ,बहुत बड़ा है नाम ।
राजा रंक फ़क़ीर सब, करते इन्हे प्रणाम||
मित बाबा ने क्रय किया ,गुर्जर का ये ग्राम ।
डॉ श्री हनुमान ने ,तीर्थ कर दिया धाम ॥
मार्ग सरल है यहाँ का ,हो श्रद्धा विश्वाश ।
सुमिरत ही सिध होत है ,जन,गण,मन,के काम ॥
तन मन ब्यापे ब्याधि जो ,या निर्धन के योग ।
डॉ श्री हनुमान का ,सुमिरन करे सुयोग ।|
अभिमंत्रित वातावरण ,रोग निवारण योग ।
यज्ञ हवन की भभूति से ,ब्याधि मिटायें लोग ॥
जनमुख से सुनते रहे, उनकी कृपा अपार ।
संकट उनके कवच से, सदा मानता हार||
ऐसे अंजनि सुत प्रभू , केसरी के हे ! लाल ।
कुलदीपक की लेखनी ,कर दो आज निहाल ॥
कुलदीपक मै नाम का ,प्रभु दीपक तो आप ।
बाती बन प्रभु मै जलूं,आप हरें संताप ॥
राम नाम मणि दीप के ,आप जगावन हार ।
ऐसो उजियारो करो ,जगमग हो संसार ॥।
विनयवत ***कुलदीप सेंगर *** संपादक ****,
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