26/11 , सच्ची श्रृद्धांजली : चाहिये अपराधी की फांसी
- अरविन्द सिसोदिया
26/11 , सच्ची श्रृद्धांजली : चाहिये अपराधी की फांसी
26 नवम्बर 2008 , आज की ही दिन में, मुम्बई में 10 पाक आतंकवादी हमलावर एके 47 हाथों में लिये हुये, कई घातक हथियारों के साथ घुसे और खून की होली खेली। जिसमें 164 लोगों की नृशंस हत्या हुई और 308 लोग घायल हुये। जबावी कार्यवाही में 9 आतंकवादी मारे गये एक जिंदा पकडा गया कसाव......!!! मगर तीन साल गुजरने के बाद भी अपराधी को सजा नहीं दे पाई सरकार !!!!! यह उन शहीदों के साथ अन्याय है जिन्होने प्राणों की बाजी लगाई थी। हलांकी श्रृद्धांजली की रश्म तो पूरी तरह निभाई गई मगर सच्ची श्रृद्धांजली के इंतजार में आंखे तरस रहीं है। जिन्हे चाहिये अपराधी की फांसी................
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मुंबई हमलाः मुआवजा कसाब के खर्च से भी कम, विरोध करने पर पीड़ित हिरासत में
मुंबई. मुंबई हमले के तीन साल पूरे होने पर कम मुआवजे के विरोध में मार्च कर रहे करीब 50 हमला पीड़ितों को हिरासत में लिया गया है। ये लोग बीजेपी ऑफिस से मार्च पर निकले थे। हिरासत में लिए गए लोग कम मुआवजा मिलने के विरोध में शांति मार्च कर रहे थे।
गौरतलब है कि मुंबई हमले के एकमात्र जिंदा बचे आतंकी अजमल आमिर कसाब की सुरक्षा और अन्य व्यवस्थाओं पर 16 करोड़ रुपए से 100 करोड़ रुपए तक खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई हमलों में मारे गए 175 लोगों के परिवारों को मुआवजों के तौर पर कुल 13.73 करोड़ रुपए दिए हैं। यह अकेले कसाब पर खर्च हुई रकम से काफी कम है। इसी के लेकर हमला पीड़ितों में रोष व्याप्त है।
मुंबई हमले को तीन साल पूरे, धोनी-तेंडुलकर की शहीदों को श्रद्धांजलि
मुंबई हमले को आज तीन साल पूरे हो गए। इन हमलों में शहीद हुए सुरक्षाकर्मियों को श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा है। महाराष्ट्र के सीएम पृथ्वीराज चव्हाण, उनकी सरकार के कई नेताओं, क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर और टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी है।
विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने कहा है कि पाकिस्तान 26/11 के दोषियों पर जल्द कार्रवाई करे। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया है, ‘26/11 की बरसी पर मुंबई हमले में मारे गए लोगों को हमें याद करना चाहिए और उग्र धार्मिक संगठनों के खिलाफ लड़ाई के लिए संकल्प लेना चाहिए।’
सबूतों को लेकर जारी है तकरार
देश की आर्थिक राजधानी पर हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमलों को तीन साल बीत गए लेकिन इन हमलों से जुड़े सबूतों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तकरार अब भी जारी है। भारत का दावा है कि उसने इस बात के पर्याप्त सबूत पड़ोसी मुल्क को सौंप दिए हैं जिसमें यह साफ है कि हमले की साजिश पाकिस्तान की जमीन पर ही रची गई और वहीं से आए आतंकवादियों ने इन हमलों को अंजाम दिया। जबकि पाकिस्तान ने मुंबई हमले के आरोपियों के खिलाफ भरोसेमंद सबूत पेश करने को कहा है कि ताकि आरोपी अदालत से अपनी रिहाई हासिल नहीं कर सकें।
पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने 26/11 की तीसरी बरसी से एक दिन पहले शुक्रवार को कहा, ‘भारत ने पाकिस्तान को जो सबूत उपलब्ध कराए थे उसके आधार पर जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज मोहम्मद सईद और मुंबई हमले के दूसरे आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की गई, लेकिन संदिग्ध छूट गए क्योंकि भारत ने जो जानकारी दी वह अस्पष्ट और नाकाफी थी।'
मलिक के मुताबिक, 'भारत की सूचना के आधार पर पाकिस्तान कार्रवाई करने को तैयार है और ये सूचनाएं अदालत में भी जरूरी हैं।'
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26/11: ख़ौफ़ और ख़ून के वे 60 घंटे
मुंबई पर 26 नवंबर 2008 के हमलों को भला कौन भूल सकता है. किस तरह 10 हमलावरों ने मुंबई को ख़ून से रंग दिया था. हमलों में 160 से ज़्यादा लोग मारे गए थे, कई घायल हुए थे. क्या हैं सबक और अदालती कार्रवाई का ताज़ा हाल.
मुंबई हमलों की छानबीन से जो कुछ सामने आया है, वह बताता है कि 10 हमलावर कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे. इस नाव पर चार भारतीय सवार थे जिन्हें किनारे तक पहुंचते पहुंचते ख़त्म कर दिया गया. रात के तक़रीबन आठ बजे थे, जब ये हमलावर कोलाबा के पास कफ़ परेड के मछली बाज़ार पर उतरे. वहां से वे चार ग्रुपों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी मंज़िलों का रूख किया. कहते हैं कि इन लोगों की आपाधापी को देखकर कुछ मछुवारों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी. लेकिन इलाक़े की पुलिस ने इस पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी और न ही आगे बड़े अधिकारियों या खुफिया बलों को जानकारी दी.
रात के तक़रीबन साढ़े नौ बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर गोलीबारी की ख़बर मिली. मुंबई के इस ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन के मेन हॉल में दो हमलावर घुसे और अंधाधुंध फ़ायरिंग शुरू कर दी. इनमें एक मुहम्मद अजमल क़साब था जो हमलों के दौरान गिरफ्तार इकलौता हमलावर है. दोनों के हाथ में एके47 राइफ़लें थीं और पंद्रह मिनट में ही उन्होंने 52 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और 109 को ज़ख़्मी कर दिया.
लेकिन आतंक का यह खेल सिर्फ़ शिवाजी टर्मिनस तक सीमित न था. दक्षिणी मुंबई का लियोपोल्ड कैफ़े भी उन चंद जगहों में था जो तीन दिन तक चले इस हमले के शुरुआती निशाने थे. यह मुंबई के नामचीन रेस्त्रांओं में से एक है, इसलिए वहां हुई गोलीबारी में मारे गए 10 लोगों में कई विदेशी भी शामिल थे जबकि बहुत से घायल भी हुए. 1871 से मेहमानों की ख़ातिरदारी कर रहे लियोपोल्ड कैफ़े की दीवारों में धंसी गोलियां हमले के निशान छोड़ गईं. 10 :40 बजे विले पारले इलाक़े में एक टैक्सी को बम से उड़ाने की ख़बर मिली जिसमें ड्राइवर और एक यात्री मारा गया, तो इससे पंद्रह बीस मिनट पहले बोरीबंदर में इसी तरह के धमाके में एक टैक्सी ड्राइवर और दो यात्रियों की जानें जा चुकी थीं. तकरीबन 15 घायल भी हुए.
लेकिन आतंक की कहानी यही ख़त्म हो जाती तो शायद दुनिया मुंबई हमलों से उतना न दहलती. 26/11 के तीन बड़े मोर्चे थे मुंबई का ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस. जब हमला हुआ तो ताज में 450 और ओबेरॉय में 380 मेहमान मौजूद थे. ख़ासतौर से ताज होटेल की इमारत से निकलता धुंआ तो बाद में हमलों की पहचान बन गया.
हमलों की अगली सुबह यानी 27 नवंबर को ख़बर आई कि ताज से सभी बंधकों को छुड़ा लिया गया है, लेकिन जैसे जैसे दिन चढ़ा तो पता चला हमलावरों ने कुछ और लोगों को अभी बंधक बना रखा है जिनमें कई विदेशी भी शामिल हैं. हमलों के दौरान दोनों ही होटल रैपिड एक्शन फोर्ड (आरपीएफ़), मैरीन कमांडो और नैशनल सिक्युरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो से घिरे रहे. एक तो एनएसजी कमांडो के देर से पहुंचने के लिए सुरक्षा तंत्र की खिंचाई हुई तो हमलों की लाइव मीडिया कवरेज ने भी आतंकवादियों की ख़ासी मदद की. कहां क्या हो रहा है, सब उन्हें अंदर टीवी पर दिख रहा था.
तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे. इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड़ती रही और न सिर्फ़ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नज़रें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी रहीं.
हमले के वक्त ताज में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर यूरोपीय संघ की संसदीय समिति के कई सदस्य भी शामिल थे, हालांकि इनमें से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. हमलों की जब शुरुआत हुई तो यूरोपीय संसद के ब्रिटिश सदस्य सज्जाद करीम ताज की लॉबी में थे तो जर्मन सांसद एरिका मान को अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर छिपना पड़ा. ओबेरॉय में मौजूद लोगों में भी कई जाने माने लोग थे. इनमें भारतीय सांसद एनएन कृष्णादास भी शामिल थे जो ब्रिटेन के जाने माने कारोबारी सर गुलाम नून के साथ डिनर कर रहे थे.
उधर, दो हमलावरों ने मुंबई में यहूदियों के मुख्य केंद्र नरीमन पॉइंट को भी कब्ज़े में ले रखा था. कई लोगों को बंधक बनाया गया. फिर एनएसजी के कमांडोज़ ने नरीमन हाउस पर धावा बोला और घंटों चली लड़ाई के बाद हमलावरों का सफ़ाया किया गया लेकिन एक एनएसजी कमांडो की भी जान गई. हमलावरों ने इससे पहले ही रब्बी गैव्रिएल होल्ट्जबर्ग और छह महीने की उनकी गर्भवती पत्नी रिवकाह होल्ट्जबर्ग समेत कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया. बाद में सुरक्षा बलों को वहां से कुल छह बंधकों की लाशें मिली.
29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावरों का सफाया हो चुका था और अजमल क़साब के तौर पर एक हमलावर पुलिस की गिरफ्त में था. स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ चुकी थी लेकिन लगभग 170 की बलि लेकर. जिंदगी कभी नही रुकती वाली बात की खातिर मुंबई 26 /11 के बाद भी चल रही है, लेकिन इस हमले के ज़ख्मों को भूल तो कतई नहीं सकती.
अशोक कुमार (संपादनः महेश झा)
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