देश को राजा नहीं, सेवक मिला : नरेंद्र मोदी




देश को राजा नहीं, सेवक मिला : नरेंद्र दामोदरदास मोदी 
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वह राजनीतिक नहीं हो सकता! गंगा आरती के जरिए काशी की समस्त जनता का कृतज्ञता ज्ञापन। संसद में प्रवेश से पूर्व सीढि़यों पर मस्तक नवाना। सेंट्रल हॉल में संबोधन के वक्त गले का रुंध जाना!! चूंकि इनमें से कोई भंगिमा विशुद्ध राजनीतिक नहीं इसीलिए राजनेता ज्यादा बौखलाए हुए हैं। राजनीति के बारे में सबसे दिलचस्प बात यही है कि यहां कहे से ज्यादा अनकहे की कीमत होती है। लोग वह समझना चाहते हैं जो बोला ही नहीं गया। खूब बोलने वाले का मौन पढ़ा जा रहा है। संस्कारों का सहज प्रकटीकरणए अपनी सांस्कृतिक पहचान को बेहिचक गले लगाना और भावनात्मक पक्ष की अकस्मात झलक यकीनन यह सब राजनीतिक नहीं हो सकता! और इसी वजह से राजनीतिज्ञ डरे हुए हैं।
स्थापित छवि से एकदम उलट। सौम्य, मृदुल, निर्भीक। नरेंद्र दामोदरदास मोदी के व्यक्तित्व का यह पक्ष राजनेताओं की नींद हराम किए है। जो खुलकर भारतीयता को गले लगाता होए अपनी पहचान ना छिपाता हो उसे जनता का ऐसा प्यार-दुलार मिल सकता है! राजनीति के सेकुलर अथवा वामपंथी खेमों ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी।
खासबात यह कि सरकार के नए अगुआ की उपरोक्त हर मुद्रा विरोधियों द्वारा प्रवर्तित उस खांचे को तोड़ती है जो कल तक उन्हें संवेदनहीन, शुष्क और निष्ठुर ठहराती थी। शायद हार से भी ज्यादा इस खांचे का टूटना वर्तमान विपक्षी दलों की हताशा की वजह है। सेकुलर से सर्वहारा तक, गढ़ी हुई परिभाषाएं बिखर गई हैं।
सेकुलर कैंची इस बार समाज को काट नहीं पाईए एक चाय वाले ने वामपंथ को उसकी जगह दिखा दी है। समाज एक ना हो। एक राष्ट्रीय समाज की सोच ना हो। वर्गीय वैमनस्य की दरारें चौड़ी की जाएं। जातियों में संगठित समाज सिर्फ विभाजन को देखे और राजनैतिक अधिकारों की ही बात करे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले से अब तक सोच.समझकर बैठाई ऐसी हर जुगत भारतीय लोकतंत्र के इस मोड़ पर आकर विफल हो गई है।
16 वीं लोकसभा के चुनाव नतीजों में भारतीय जनता पार्टी का चमत्कारी उभार वह घटना है जिसने और भी कई आरोपित मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है। भाजपा की वर्गीय पहचानए कांग्रेस का राष्ट्रीय रुतबाए बहुजन समाज पार्टी का निष्ठावान वोट बैंकए समाजवादी पार्टी की मुस्लिम स्वीकार्यताण्ण्ण् मतदाता की मुहर ने वह हर मान्यता खारिज कर दी जो राजनीतिक सुविधाओं के हिसाब से तैयार की गई थी। लेकिन इस मतपर्व से जो बात सबसे मजबूत होकर निकली वह है संस्कारों में पगे समाज की सज्जन शक्ति का जागरण।
बात ठीक हो तो समाज आगे आता हैए साथ देता है। सबका साथए सबका विकास। इस नारे में वयम् राष्ट्रे जाग्रयाम् का राष्ट्रीय भाव भी है और वैश्विक सौमनस्य की वसुधैव कुटुंबकम् जैसी गूंज भी। नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा को प्राप्त हुआ जनसमर्थन बताता है कि पूर्वाग्रह से मुक्त होकर संपूर्ण भारतीय समाज इस देश की बात करने वाले को अपना प्यार देता है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की अपार सफलता और भाजपा का पूर्ण बहुमत शुभ संकेत तो है किन्तु इस प्यार में भावी सरकार के लिए जनाकांक्षाओं का भारी ज्वार भी है। 67 साल में जो कुछ नहीं हुआ अथवा व्यापक अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुआ लोगों ने ऐसे विषयों की सूचियां बनानी शुरू कर दी हैं। नई सरकार से एकाएक चमत्कार की उम्मीद करना ज्यादती है। मगर प्यार जताने वाले यह ज्यादती तो जरूर करेंगे। ऐसा नहीं है कि जिसे यह बात समझनी है वह अनभिज्ञ है। देश को ह्यराजाह्ण नहीं सेवक चाहिएए यह बात समझने वाले नरेंद्र मोदी ने शीर्ष पद की ओर कदम रखने के साथ ही खुद को मजदूर नंबर-1 के तौर पर प्रस्तुत कर दिया है।
वैसेए शपथ ग्रहण से पूर्व के उद्बोधन में भावी प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़कर जिस विनम्रता से परिश्रम की पराकाष्ठा दिखाने का संकल्प जताया है उससे लगता है कि उनके पास साफ सोच है और नीयत भी।
सरकार के पास निश्चित ही अपना दृष्किोण और प्राथमिकताएं होंगी। परंतु पाञ्चजन्य के इस अंक में हमने भी जनता की अपेक्षाओं और विशेषज्ञों की राय के अनुरूप शासन की कार्यसूची के महत्वपूर्ण बिंदुओं को उठाने का प्रयास किया है।
भ्रष्टाचारी कथाओं के अंबार और अधूरे कामों के ढेर पर खड़े मजदूर नंबर-1 के लिए काम काफी है। हम और हमारे पाठक निश्चित ही उस मजदूर के साथ खड़े हैं जिसकी भंगिमा पढ़ी जा रही है और जिसे निश्चित ही कुछ कर दिखाना है।

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