लोकतंत्र का गंगा स्नान




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लोकतंत्र का गंगा स्नान
तारीख  17 May 2014
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बनारस के घाट पर गंगा की एक डुबकी भारतीय लोकतंत्र को इतना पावनए ऐसा सशक्त कर देगी किसने सोचा था! इस चुनाव के नतीजे सिर्फ नतीजे नहीं हैं। तीसरे मोर्चे का बंधा बंडलए वंचितों को महज वोट बैंक मानने वाले मंसूबों का ढेर और कुनबापरस्ती की उखड़ी हुई सांसें बता रही हैं कि देश में लोकतांत्रिक परिवर्तन का ऐसा तूफान गुजरा है जिसमें जाति और मजहब की राजनीति पर टिकी सत्ता के तमाम किले ढह गए।

देश की नब्ज पर हाथ रखना, लोगों की चिंताओं को समझना और सामने रखना मीडिया का धर्म है। यही धर्म निभाते हुए पाञ्चजन्य ने देशव्यापी रायशुमारी पर आधारित अनूठा सर्वेक्षण किया था और वह मुद्दे सामने रखे थे जो देशभर के लोगों की चिंताओं में सबसे ऊपर थे। देश की राजनीति बदल रही है। समाज एकजुट हो रहा है, जनता विकास चाहती है। जनता को भरमाने, कुनबे की डुग्गी बजाने से काम नहीं चलेगा यह बात विमर्श के तौर पर सबके सामने थी। परंतु सेकुलर लबादा ओढ़े राजनीति करने वाली जमात भ्रष्टाचार ढंकने, राजनीतिक शत्रुओं का उत्पीड़न करने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के पासे फेंकने में ही लगी रही। परिणाम! जनता ने उन सभी को बुहारकर लोकतंत्र के घूरे पर रख दिया जिनके लिए देश की चिंता गौण, और क्षुद्र हित अहम थे।

वंशपूजा को लोकतंत्र का पर्याय बना देने वाले भूल गए कि समय का चक्र पूरा होने पर चीजें उलट जाती हैं। इतिहास पलटिए। अप्रैल 1955 में 13 सीटों पर जनसंघ की जमानत जब्त हो गई थी, मई 2014 में 21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कांग्रेस का बही खाता ही जब्त हो गया है। मनमोहन सिंह का moun उलटकर नमो हो गया? जनता परिवर्तन पर झूम रही है।

जनसंघ अथवा बाकी राजनैतिक दलों के संघर्ष को याद करते हुए यह बात उल्लेखनीय है कि कांग्रेस राज का तख्ता पलट तो पहले भी हुआ लेकिन कभी भी कोई ऐसी सरकार नहीं बनी जिसके अगुआ या फिर घटक कांग्रेस से ही छिटककर खड़े हुए ना हों।
देश की सबसे पुरानी पार्टी को, पुराने-नाकारा सामान की तरह सिर्फ ह्यकुछह्ण राज्यों में समेट देने वाली यह केसरिया सुनामी इस मामले में खास है कि नई सरकार और इसके घटक कांग्रेसी गुणसूत्र से मुक्त हैं।
वैसे, कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब पार्टी को समेट देना नहीं बल्कि उस सोच को खत्म करना होना चाहिए जो ह्यउपनामह्ण की चमक में लोकतांत्रिक परंपराओं को ही गिरवी रख देती है।
तीन दशक बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत का गौरव लौटाने वाली जनता का स्वागत किया तो किया ही जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी को कश्मीर से कन्याकुमारी तक राष्ट्रीय व्याप देने वाली यह परिघटना सिर्फ वंशवाद पर फौरी राजनैतिक जीत नहीं ही बल्कि भारतीयता के उस मूल विचार की जीत है जहां ईमानदारी, मेहनत और समर्पण जीवन के मूल्य हैं और राष्ट्र सर्वोपरि माना जाता है।
बहरहाल, राजनीतिक शत्रुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाती, भ्रष्टाचार में डूबी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने परिवर्तन को टालने के लिए अपने अंतिम दिनों तक हरसंभव कोशिश की मगर जैसे कि कहा जाता है, ह्यआप बगीचे का हर फूल नोंच सकते है मगर वसंत को आने से नहीं रोक सकते।ह्ण
सो, वसंत आ गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का भरा-पूरा कुनबा लिए पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा का पूर्ण बहुमत शुभ-शगुन है। भारत के, यहां के लोगों के, इस पूरे लोकतंत्र के अच्छे दिन आ गए हैं नई सरकार से यह उम्मीद की जानी चाहिए।

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