राष्ट्रीयता से समझौता नहीं : प्रो. राकेश सिन्हा





भोपाल (विसंकें). दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक एवं नीति प्रतिष्ठान के संचालक प्रो राकेश सिन्हा ने कहा कि जब-जब चिंतन और विमर्श की बात हुई तो एक तरफा चिंतन हुआ, जबकि डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार ने जो बीज बोया था, वह अब पेड़ बन गया है, क्योंकि उन्होंने कभी भी संबंधों के नाम पर राष्ट्रीय विचारधारा से समझौता नहीं किया.

वह समन्वय भवन में आयोजित व्याख्यानमाला के दूसरे एवं समापन दिवस पर संबोधित कर रहे थे. श्री उत्तमचंद इसराणी स्मृति न्यास द्वारा डॉ हेडगेवार: एक शाश्वत विचार विषय पर आयोजित व्याख्यान की श्रृंखला में प्रो सिन्हा ने अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया और डॉ हेडगेवार की राष्ट्रवादी आत्मा को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन है, जिसके बारे में लोग सुनीसुनाई बातें कहते हैं, लेकिन संघ को वास्तव में समझना है तो संघ में आना होगा.

उन्होंने वर्धा कैंप का उदाहरण देते हुए बताया कि जब देश में आंदोलन चल था, और गांधीजी अपना हरिजन आंदोलन चला रहे थे, उसी दौरान वर्धा कैंप में वे जमनालाल बजाज के साथ पहुंचे. जब उन्होंने किसी एक से उसकी जाति पूछी तो उसने केवल हिन्दू बताया, इस तरह से कई लोगों से उन्होंने पूछा तो यही उत्तर मिला. इस पर गांधी जी ने पदाधिकारी से पूछकर जाति बताने का आग्रह किया तो डॉ हेडगेवार ने जाति बताने की उन्हें अनुमति दे दी.

वहां पर खड़े एक व्यक्ति ने अपने आप को ब्राह्मण बताया तो दूसरे ने महार जाति बताई. बस यहीं पर गांधीजी सन्न रह गए कि जिस स्वयंसेवक संघ को लोग कुछ और ही समझ रहे थे उसमें ब्राह्मण और महार दोनों एक साथ उठ-बैठ रहे, सो रहे, खा रहे. यहीं से स्वयंसेवक संघ की गंभीरता सामने आई. डॉ हेडगेवार को एक युगदृष्टा निरूपित करते हुए कहा कि उन्होंने एक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना की. कार्यक्रम में विशेष अतिथि सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक एसके राउत थे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता न्यास के अध्यक्ष कांतिलाल चतर ने की.

संभावनाओं को मत मारो
प्रो सिन्हा ने डॉ हेडगेवार के भविष्य के प्रति दूरदर्शिता को निरूपित करते  कहा कि भारतवर्ष एक चौहद्दी भर नहीं है, बल्कि यह तो एक सभ्यता है, जिसकी छाया जगह-जगह दिखाई देती है. इसके आंगन में अनेक लोग थे, और रहे हैं जो आपस में लड़ते हैं, मरते हैं, विरोध करते हैं, लेकिन भारतीयता के नाम पर सब एक हैं. इसलिए भविष्य की संभावनाओं को मत मारो और उसे अनवरत बढऩे दो. जिस सभ्यता के शब्दकोष में विराम नहीं है वह भारतीय सभ्यता है, विचारों को अनवरत बढऩे देती है. अन्यथा वह रोम की तरह होगी, जिसका परिणाम हम सभी जानते हैं.

स्वाधीनता में संघ का योगदान
प्रो सिन्हा ने कहा कि लोग सवाल उठाते हैं कि स्वाधीनता आंदोलन में संघ ने क्या योगदान किया, तो उनको बता दें कि जब असहयोग आंदोलन चल रहा था, तो डॉ हेडगेवार मध्य भारत प्रांत के सचिव थे. इसीलिए अंग्रेजों ने उनपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा भी चलाया था. उन्होंने जंगल सत्याग्रह की शुरूआत की और तीन किलोमीटर की यात्रा पूरी करने में पांच घंटे लगे. क्योंकि उस यात्रा में दस हजार से भी अधिक लोग थे. यह संघ का ही काम था कि जिसके प्रमाण भारतीय अभिलेखागार में सुरक्षित हैं, संघ के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रो सिन्हा ने कहा कि संघ में दो चीजें अहम हैं, एक विचार और दूसरी मूल्य. संघ कभी विचारों के लिए अपने मूल्यों से समझौता नहीं करता. यही कारण था कि डॉ हेडगेवार ने मूल्य बचाने के लिए अपने अखबार की तिलांजलि दे दी.
साभार:: vskbharat.com

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