चमत्कार : रोज एक-दूसरे से मिलती हैं रेल पटरियां




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प्रकृति का अजूबा विज्ञानं की समझ से बाहर.....


हजारीबाग. झारखंड के एक गांव में रेल पटरियों की हरकत ने विज्ञान को अचंभे में डाल दिया है। रोज सुबह 8 बजते ही पटरियां आपस में सटने लगती हैं, जो तीन घंटे के भीतर पूरी तरह चिपक जाती हैं। फिर दोपहर 3 बजे बाद स्वत: ही अलग भी होने लगती हैं। ग्रामीण इसे चमत्कार मान पूज रहे हैं तो विज्ञानी सिर खुजा रहे हैं।

अजीब तरह का ये मामला है हजारीबाग-बरकाकाना रूट पर बसे लोहरियाटांड का। अभी इस रूट पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू नहीं हुई है। ग्रामीणों और रेल पटरियों की हिफाजत करने वालों ने बताया कि हमने कई बार ऐसी हरकत होते देखी है। खूब छानबीन की, लेकिन कारण समझ नहीं आया।
पटरियों के चिपकने की प्रक्रिया को हमने मोटी लकड़ी अड़ाकर रोकने की कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रहे। खिंचाव इतना शक्तिशाली था कि सीमेंट के प्लेटफॉर्म में मोटे लोहे के क्लिप से कसी पटरियां क्लिप तोड़कर चिपक जाती हैं। ऐसा 15-20 फीट की लंबाई में ही हो रहा है। इस बारे में साइंटिस्ट डाॅ. बीके मिश्रा ने कहा कि वाकई, ये हैरान करने वाली बात है। वैसे, ये मैग्नेटिक फील्ड इफेक्ट भी हो सकता है। ड्रिलींग से ही पता चल पाएगा कि जमीन के अंदर क्या हो रहा है। जूलॉजी विभाग के प्रमुख डाॅ. डीएन साधु ने बताया कि देखना होगा कि जिस चट्टान के ऊपर से पटरी गुजरी है, वह कौन सा स्टोन है।

दूसरी ओर, रेलवे इंजीनियर एसके पाठक ने बताया कि टेंपरेचर ऑब्जर्व करने के लिए लाइन में बीच-बीच में एसएजे (स्वीच एक्सपेंशन ज्वाइंट) लगाया जाता है। जिसे हजारीबाग-कोडरमा रेलखंड में तीन जगहों पर लगाया गया है। हो सकता है कि जहां पर यह हरकत हो रही है, वहां अभी एसएजे सिस्टम नहीं लगाया गया हो। असल कारण तो जांच के बाद ही पता चलेगा।

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 यहां रोज एक-दूसरे से मिलती हैं पटरियां, सुबह पास तो दोपहर में हो जाती हैं दूर


    उमेश राणा     Mar 22, 2015
हजारीबाग. झारखंड के एक गांव में रेल पटरियों की हरकत ने विज्ञान को अचंभे में डाल दिया है। रोज सुबह 8 बजते ही पटरियां आपस में सटने लगती हैं, जो तीन घंटे के भीतर पूरी तरह चिपक जाती हैं। फिर दोपहर 3 बजे बाद स्वत: ही अलग भी होने लगती हैं। ग्रामीण इसे चमत्कार मान पूज रहे हैं तो विज्ञानी सिर खुजा रहे हैं।

अजीब तरह का ये मामला है हजारीबाग-बरकाकाना रूट पर बसे लोहरियाटांड का। अभी इस रूट पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू नहीं हुई है। ग्रामीणों और रेल पटरियों की हिफाजत करने वालों ने बताया कि हमने कई बार ऐसी हरकत होते देखी है। खूब छानबीन की, लेकिन कारण समझ नहीं आया।
पटरियों के चिपकने की प्रक्रिया को हमने मोटी लकड़ी अड़ाकर रोकने की कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रहे। खिंचाव इतना शक्तिशाली था कि सीमेंट के प्लेटफॉर्म में मोटे लोहे के क्लिप से कसी पटरियां क्लिप तोड़कर चिपक जाती हैं। ऐसा 15-20 फीट की लंबाई में ही हो रहा है। इस बारे में साइंटिस्ट डाॅ. बीके मिश्रा ने कहा कि वाकई, ये हैरान करने वाली बात है। वैसे, ये मैग्नेटिक फील्ड इफेक्ट भी हो सकता है। ड्रिलींग से ही पता चल पाएगा कि जमीन के अंदर क्या हो रहा है। जूलॉजी विभाग के प्रमुख डाॅ. डीएन साधु ने बताया कि देखना होगा कि जिस चट्टान के ऊपर से पटरी गुजरी है, वह कौन सा स्टोन है।

दूसरी ओर, रेलवे इंजीनियर एसके पाठक ने बताया कि टेंपरेचर ऑब्जर्व करने के लिए लाइन में बीच-बीच में एसएजे (स्वीच एक्सपेंशन ज्वाइंट) लगाया जाता है। जिसे हजारीबाग-कोडरमा रेलखंड में तीन जगहों पर लगाया गया है। हो सकता है कि जहां पर यह हरकत हो रही है, वहां अभी एसएजे सिस्टम नहीं लगाया गया हो। असल कारण तो जांच के बाद ही पता चलेगा।

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