तो महात्मा गांधी साम्प्रदायिक होते...


महात्मा गांधी ने अपने स्वतंत्रता आन्दोलन में, वन्दे मातरम....., रघुपति राघव राजा राम .., वैष्णव जन तो तेने कहिये--- जैसे हिन्दू शब्दों का उपयोग किया ....मगर वह वीर थे उन्होंने सत्य को ही अपनाया ...उन्होंने ढोंग  नहीं किया... आज की कांग्रेस सिर्फ ढोंगी है...

गाँधी जी -
मैं तो बस प्रार्थना कर रहा हूं और आशा लगाए हूं कि एक नये और मजबूत भारत का उदय होगा। यह भारत पश्चिम की तमाम बीभत्स चीजों का घटिया अनुकरण करने वाला युद्धप्रिय राष्टं नहीं होगा। बल्कि एक ऐसा नूतन भारत होगा जो पश्चिम की अच्छी बातों को सीखने के लिए तत्पर होगा और केवल एशिया तथा अफ्रीका ही नहीं बल्कि समस्त पीडित संसार उसकी ओर आशा की दृष्टि से देखेगा...लेकिन, पश्चिम की तडक-भडक की झूठी नकल और पागलपन के बावजूद, मेरे और मेरे जैसे बहुत-से लोगों के मन में यह आशा बंधी हुई है कि भारत इस सांघातिक नृत्य से उबर जाएगा, और 1915 से लेकर निरंतर अहिंसा का जो प्रशिक्षण लिया है, चाहे वह कितना ही अपरिपक्व हो, उसके बाद वह जिस नैतिक ऊँचाई पर बैठने का अधिकारी है, उस स्थान पर आसीन होगा.......
गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचा ये भजन गाँधी जी को बहुत प्रिय था. आज आवाज़ पर सुनिए उसी भजन को एक बार फ़िर और याद करें उस महात्मा के अनमोल वचनों को,जो आज के इस मुश्किल दौर में भी हमें राह दिखा रहे हैं.

वैष्णव जन तो... (लता मंगेशकर के स्वर में)


वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड पराई जाणे रे।।

पर दृखे उपकार करे तोये,
मन अभिमान न आणे रे।।

सकल लोकमां सहुने वंदे,
निंदा न करे केनी रे।।

वाच काछ मन निश्चल राखे,
धन-धन जननी तेनी रे।।

समदृष्टी ने तृष्णा त्यागी,
परत्री जेने ताम रे।।

जिहृवा थकी असत्य न बोले,
पर धन नव झाले हाथ रे।।

मोह माया व्यापे नहि जेने,
दृढ वैराग्य जेना मनमां रे।।

रामनाम शुं ताली लागी,
सकल तीरथ तेना तनमां रे।।

वणलोभी ने कपटरहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे।।
भणे नरसैयों तेनु दरसन करतां,
कुळ एकोतेर तार्या रे।।




टिप्पणियाँ

  1. कोई भी धर्म इंसान या समाज को बांटने की शिक्षा नहीं देता । बल्क्‍ि वह तो अपासी बैरभाव भुला कर मिलजुलकर रहने की शिक्षा देता है । पर अंग्रेजों की नीति के कारण साम्प्रादायिक दंगों ने विभत्‍स रूप ले लिया था । गांधी जी ने माना कि एक स्‍वस्‍थ, ईमानदार सहिष्‍णु, धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए सच्‍ची कोशिशें तभी हो सकती हैं जब अभय और अकर्म के आदर्श को अपनाया जाए । अपने धर्म, अपने सम्‍प्रदाय और अपनी आस्‍था में आत्‍मविश्‍वास रखते हुए अभय से ही ईमानदार अकर्म का रास्‍ता निकलता है ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

मेरी कवितायें My poems - Arvind Sisodia

कविता "कोटि कोटि धन्यवाद मोदीजी,देश के उत्थान के लिए "

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

कविता - युग परिवर्तन करता हिंदुस्तान देखा है Have seen India changing era

आत्मा की इच्छा पूर्ति का साधन होता है शरीर - अरविन्द सिसोदिया

वक़्फ़ पर बहस में चुप रहा गाँधी परिवार, कांग्रेस से ईसाई - मुस्लिम दोनों नाराज

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग