करोडों देशवासियों के अपरोक्ष हत्यारे......
कोटा, राजस्थान
बुरा न मानें , इस देश की दो अर्थशास्त्रीयों , मोंटेक सिंह और मनमोहनसिंह ने बारा बजा कर रखदी है। गरीबी की परिभाषा का जो सच सामनें आया वह बताता है कि भारत सरकार और योजना आयोग में भारतवासीयों के प्रति कितनी हमदर्दी है या कितनी बेदर्दी है। इतनी शत्रुता तो शायद शत्रु भी नहीं करता। गरीब ही नहीं आम व्यक्ति के मुंह से निवाला छीनने में लगे इन दोनों सुख हन्ता व्यक्तियों के कृत्यों की समीक्षा किसी हत्यारे के रूप में ही इतिहास करेगा। करोडों लोगों को मंहगाई रूपी सुरसा के मंुह में डाल कर देशवासियों को धीमी मौत मारने के लिये , ये दोनों इतिहास में हिटलर और मुसोलिनी की तरह ही दोषी ठहराये जायेंगें।
बुरा न मानें , इस देश की दो अर्थशास्त्रीयों , मोंटेक सिंह और मनमोहनसिंह ने बारा बजा कर रखदी है। गरीबी की परिभाषा का जो सच सामनें आया वह बताता है कि भारत सरकार और योजना आयोग में भारतवासीयों के प्रति कितनी हमदर्दी है या कितनी बेदर्दी है। इतनी शत्रुता तो शायद शत्रु भी नहीं करता। गरीब ही नहीं आम व्यक्ति के मुंह से निवाला छीनने में लगे इन दोनों सुख हन्ता व्यक्तियों के कृत्यों की समीक्षा किसी हत्यारे के रूप में ही इतिहास करेगा। करोडों लोगों को मंहगाई रूपी सुरसा के मंुह में डाल कर देशवासियों को धीमी मौत मारने के लिये , ये दोनों इतिहास में हिटलर और मुसोलिनी की तरह ही दोषी ठहराये जायेंगें।
हलांकी सोमवार को योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह ने एक प्रेस वार्ता में एक मंत्री के साथ बताया कि सर्वे आने के बाद पुनः इस परिभाषा पर विचार होगा । पर यह देखने वाली बात है कि इस योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह है। यह आयोग सारे मंत्रालयों की सलाह पर देश के विकास की भावी पंच वर्षीय योजना बनाता है। जिस देश के प्रधानमंत्री को उन तमाम मंत्रालयों को एक गरीब को जीवन जीने की जरूरतों का ज्ञान न हो, वे देश का क्या विकास और क्या जीवनसुख दे सकेगें। यह सामने आई गरीवों की परिभाषा से ही स्पष्ट है। जब ये नई परिभाषा बनायेंगें तब ताज्जुब नहीं कि 32 को 22 और 26 को 16 करदें। क्यों कि दिमाग उल्टा है यह तो सामनें आही चुका है।
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