जयप्रकाश नारायण :JP: सम्पूर्ण क्रांति के जनक
कांग्रेस को केंद्र की सत्ता से विदा करने वाले प्रथम राजनेता : जयप्रकाश नारायण,सन १९७७ में जनता पार्टी सरकार बनवाने के नायक जयप्रकाश ही थे ........,जन्मदिवस पर शत शत नमन..!
जयप्रकाश नारायण (11 अक्तूबर, 1902 - 8 अक्तूबर, 1979) (संक्षेप में जेपी ) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें लोकनायक के नाम से भी जाना जाता है। 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मनित किया गया।
पांच जून के पहले छात्रें-युवकों की कुछ तात्कालिक मांगें थीं, जिन्हें कोई भी सरकार जिद न करती तो आसानी से मान सकती थी। लेकिन पांच जून को जे. पी. ने घोषणा की:-
"भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए। और, सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति, ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।"
सम्पूर्ण क्रान्ति के आह्वान उन्होने श्रीमती इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था।
लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है - राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।
सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जय प्रकाश नारायण जिनकी हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।
जय प्रकाश नारायण : संपूर्ण क्रांति के जनक
अकेला चना क्या भाड़ फोड सकता है? यह सवाल हमेशा दिमाग में उठता है जब हम सरकारी सिस्टम की मार खाते हैं. लेकिन लोकतंत्र में ऐसे कई चने हुए जिन्होंने अकेले ही घड़े रूपी सरकार को तोड़ दिया. जयप्रकाश नारायण एक ऐसे ही शख्स थे जिन्होंने अपनी जिंदगी देश के नाम कर दी और अकेले दम पर तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में तारे दिखला दिए.
जयप्रकाश नारायण का नाम जब भी जुबां पर आता है तो यादों में रामलीला मैदान की वह तस्वीर उभरती है जब पुलिस जयप्रकाश को पकड़ कर ले जाती है और वह हाथ ऊपर उठाकर लोगों को क्रांति आगे बढ़ाए रखने की अपील करते हैं. जयप्रकाश नारायण ही वह शख्स थे जिनको गुरू मानकर आज के अधिकतर नेताओं ने मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा की है. लालू यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, जार्ज फर्नांडिस, सुशील कुमार मोदी जैसे तमाम नेता कभी जयप्रकाश नारायण के चेले माने जाते थे लेकिन सत्ता के लोभ ने उन्हें जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से बिलकुल अलग कर दिया.
यह जयप्रकाश नारायण ही थे जिन्होंने उस समय की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी से लोहा लेने की ठानी और उनके शासन को हिला भी दिया. लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आज उनके आदर्शों की उनकी ही पार्टी में कोई पूछ नहीं है. सभी जानते हैं अगर इतिहास में जयप्रकाश नारायण नाम का इंसान नहीं होता तो भारतीय जनता पार्टी का कोई भविष्य ही नहीं होता.
Jayprakash Narayan
जयप्रकाश नारायण का जीवन
जेपी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री ‘देवकी बाबू’ था, माता ‘फूलरानी देवी’ थीं. 1920 में जय प्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ. प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं. उन्होंने ही अपने पति जयप्रकाश नारायण को गांधी जी से मिलने की सलाह दी थी.
पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए, हालांकि उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी. यही वजह रही कि वह स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए.
जयप्रकाश और नेहरू जी
अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद जेपी 1929 में स्वदेश लौटे. उस वक्त वह घोर मार्क्सवादी हुआ करते थे. वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया.
आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण
नेहरू के कहने पर जेपी कांग्रेस के साथ जुड़े, हालांकि आजादी के बाद वह आचार्य विनोबाभा भावे से प्रभावित हुए और उनके ‘सर्वोदय आंदोलन’ से जुड़े. उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया. उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया.
जेपी ने 1950 के दशक में ‘राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना’ नामक एक पुस्तक लिखी. कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया. इससे लगता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी ने उठाई थी.
लोकनायक के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था, शायद यही कारण है कि नेहरू की कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. वह सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे.
संपूर्ण क्रांति : सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
पांच जून, 1975 को अपने प्रसिद्ध भाषण में जयप्रकाश ने कहा था कि “भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति-’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है.” पांच जून, 1975 की विशाल सभा में जे. पी. ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया. उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा.
यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की. बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला.
JP revolution
जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफ़े की मांग की. इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया.
जय प्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था. बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी. जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे. लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे.
दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी तब आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी. उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”
जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. इसके बाद भी जेपी का सपना पूरा नहीं हुआ. इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था. वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी. यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था.
जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. जेपी ने आठ अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली.
अकेला चना क्या भाड़ फोड सकता है? यह सवाल हमेशा दिमाग में उठता है जब हम सरकारी सिस्टम की मार खाते हैं. लेकिन लोकतंत्र में ऐसे कई चने हुए जिन्होंने अकेले ही घड़े रूपी सरकार को तोड़ दिया. जयप्रकाश नारायण एक ऐसे ही शख्स थे जिन्होंने अपनी जिंदगी देश के नाम कर दी और अकेले दम पर तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में तारे दिखला दिए.
जयप्रकाश नारायण का नाम जब भी जुबां पर आता है तो यादों में रामलीला मैदान की वह तस्वीर उभरती है जब पुलिस जयप्रकाश को पकड़ कर ले जाती है और वह हाथ ऊपर उठाकर लोगों को क्रांति आगे बढ़ाए रखने की अपील करते हैं. जयप्रकाश नारायण ही वह शख्स थे जिनको गुरू मानकर आज के अधिकतर नेताओं ने मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा की है. लालू यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, जार्ज फर्नांडिस, सुशील कुमार मोदी जैसे तमाम नेता कभी जयप्रकाश नारायण के चेले माने जाते थे लेकिन सत्ता के लोभ ने उन्हें जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से बिलकुल अलग कर दिया.
यह जयप्रकाश नारायण ही थे जिन्होंने उस समय की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी से लोहा लेने की ठानी और उनके शासन को हिला भी दिया. लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आज उनके आदर्शों की उनकी ही पार्टी में कोई पूछ नहीं है. सभी जानते हैं अगर इतिहास में जयप्रकाश नारायण नाम का इंसान नहीं होता तो भारतीय जनता पार्टी का कोई भविष्य ही नहीं होता.
Jayprakash Narayan
जयप्रकाश नारायण का जीवन
जेपी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री ‘देवकी बाबू’ था, माता ‘फूलरानी देवी’ थीं. 1920 में जय प्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ. प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं. उन्होंने ही अपने पति जयप्रकाश नारायण को गांधी जी से मिलने की सलाह दी थी.
पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए, हालांकि उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी. यही वजह रही कि वह स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए.
जयप्रकाश और नेहरू जी
अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद जेपी 1929 में स्वदेश लौटे. उस वक्त वह घोर मार्क्सवादी हुआ करते थे. वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया.
आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण
नेहरू के कहने पर जेपी कांग्रेस के साथ जुड़े, हालांकि आजादी के बाद वह आचार्य विनोबाभा भावे से प्रभावित हुए और उनके ‘सर्वोदय आंदोलन’ से जुड़े. उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया. उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया.
जेपी ने 1950 के दशक में ‘राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना’ नामक एक पुस्तक लिखी. कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया. इससे लगता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी ने उठाई थी.
लोकनायक के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था, शायद यही कारण है कि नेहरू की कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. वह सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे.
संपूर्ण क्रांति : सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
पांच जून, 1975 को अपने प्रसिद्ध भाषण में जयप्रकाश ने कहा था कि “भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति-’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है.” पांच जून, 1975 की विशाल सभा में जे. पी. ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया. उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा.
यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की. बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला.
JP revolution
जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफ़े की मांग की. इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया.
जय प्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था. बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी. जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे. लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे.
दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी तब आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी. उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”
जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. इसके बाद भी जेपी का सपना पूरा नहीं हुआ. इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था. वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी. यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था.
जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. जेपी ने आठ अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली.
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