सत्यनारायण नडेला -माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ चुने गए !



अनुशासन, अभ्यास, अनुभूति और अनुभव आधारित अलख
 - कल्पेश याग्निक
(लेखक दैनिक भास्कर समूह के नेशनल एडिटर हैं।)

'जी, नहीं; न तो मैं आपको चुन रहा हूं, न उसे। मैं तो अपने आप को ही चुन रहा हूं।'
-प्रसिद्ध अमेरिकी पुस्तक 'द सिलेक्शन' से।
क्या देखा जाता है किसी को सर्वोच्च पद देते समय ?
क्यों सत्य नारायण नडेला - सत्या -माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ चुने गए? हर युवा भारतीय, हर महत्वाकांक्षी प्रोफेशनल, हर बिजनेस लीडर इस हफ्ते यही बात कर रहा है।
निश्चित ही यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके वास्तविक उ?ार से करोड़ों लोगों को लाभ होगा। उन्हें पता चलेगा कारण। लाखों को प्रेरणा मिलेगी। ताकि वे भी अपने-आप से यह पूछ सकें कि क्या उनके भीतर भी 'वो' है? डू आय हैव इट इन मी?
सत्या से अधिक लोग इसलिए स्वयं को जोड़ कर देख सकेंगे - चूंकि वे संभवत: पहले ऐसे भारतीय हैं जो गैऱ-आईआईटी, गैऱ-आईआईएम होने के बावजूद विश्व की सबसे बड़ी, सर्वाधिक प्रतिष्ठित सॉफ्टवेयर कंपनी के सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं। यही नहीं, जिस मणिपाल इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने साधारण इंजीनियरिंंग की - वो आज जिस रूप में है - भारी-भरकम मणिपाल यूनिवर्सिटी - वैसा बिल्कुल नहीं था। हम गैऱ-दक्षिण भारतीय तो उसे 'किसी अजीब सुदूर जगह बसे' प्राइवेट कॉलेज की तरह देखते थे। मुझे बखूबी याद है, जिन दिनों मैं बार-बार फेल होने के बाद कॉलेज में बमुश्किल पास होते हुए छात्रसंघ चुनाव लड़ता था - उन दिनों एक भयावह रैगिंग हादसे में कलुषित होने के कारण मणिपाल कॉलेज चर्चा में आया था। मैंं उदाहरण देता था कि मणिपाल जैसा हमारे यहां नहीं होने दिया जाएगा।
यानी, इस तरह के कॉलेज से पढ़े, क्रिकेट खेलते बढ़े, स्कूल से ही प्रेम प्रसंग में पड़े, कविताएं सुनकर गढ़े - एक साधारण से लगने वाले व्यक्ति की असाधारण सफलता से हर कोई जुड़ सकता है। सीख सकता है। उनके कुछ तरीके अपना सकता है। बजाए कि बाकी से जो शीर्ष संस्थानों से पढ़कर शीर्ष स्थानों पर पहुंचे हैं। पहुंचना ही चाहिए।
एक और बात। अति सफलता की एक समस्या है। मूलभूत समस्या। या तो नितांत निर्धन, अभावग्रस्त, एकदम कमजोर ही संसार की बड़ी उपल?िध पा सकता है। या फिर पूर्णत: समर्थ, सक्षम और समृद्ध। पहले के पास खोने को कुछ नहीं। दूसरे को खोने से कुछ नहीं! इसलिए, दोनों 'अदर एक्स्ट्रीम' होकर शीर्ष पर पहुंचते हैं।
ऐसे में अधिकांश संसार दोनों श्रेणियों में ही नहीं होता। बीच का होता है। सत्या ऐसे ही मध्यम थे। इसलिए माध्यम बन रहे हैं। प्रेरणा के।
क्यों चुना गया उन्हें? कोई आसानी से नहीं बता सकता। सारे विश्लेषण आ रहे हैं उन्हें लेकर। कि कैसे वे माइक्रोसॉफ्ट के 'एंटरप्राइज़' बिजनेस को कुशल नेतृत्व दे चुके थे। कैसे वो एकदम आधुनिक 'क्लाउड' पद्धति पर काम कर रहे थे। कै से वो बिल गेट्स के हर सपने को निकट से देख कर, उतार-चढ़ाव में डटे रहते थे। कैसे गेट्स के बाद पॉल बॉल्मर के नेतृत्व में उन्होंने एक बदलते दौर में नई पारी खेली। इसलिए। इतने कारणों से। शांत रहते हैं। हाईप्रोफाइल नहीं हैं। हमेशा कुछ नया करते हैं- किंतु प्रचार से परे रहकर वगैरह।
किंतु ऐसा तो करोड़ों प्रोफेशनल्स करते हैं। उनका सत्य, नारायण नहीं हो पाता।
तो क्या है? इसे यदि केवल 'सत्या क्यों सर्वोच्च चुने गए' के स्थान पर 'कोई भी व्यक्ति-विशेष सर्वोच्च पद पर क्यों चुना जाता है', ऐसे देखें, तो भी अच्छा उ?ार मिल सकता है।
सबसे बड़ी जिम्मेदारी देने वाले चाहे जितना, जो कुछ कहें - सोचते एक जैसा ही हैं। वे आपको, उसे, इसे या किसी को नहीं चुनते। वे वास्तव में स्वयं को ही चुनते हैं। यानी, वे अपने जैसे गुण वालों को ढंूढते हैं। जो उनके श?द, शैली और सपनों को समझे, और लागू कर सके। बड़ा गुण है यह।
सीधे अर्थों में दो 'सी' तय करते हैं सर्वोच्च पद पर चयन :
1. कम्पीटेंस यानी आपकी निजी योग्यता
2. कम्फर्ट यानी नियुक्त करने वाला आपके साथ आसानी से काम कर सके।
कहने के लिए पहली शर्त पहले क्रम पर रखी गई है। जो सही भी है। कि न्तु व्यावहारिक रूप से दूसरी शर्त, पहली है। प्रमुख है। इसके बिना आपकी योग्यता महत्वपूर्ण तो सर्वाधिक है किन्तु उस व्यक्ति के कतई काम की नहीं जो आपको नियुक्त कर रहा है।
इससे पहले का सर्वाधिक चर्चित और लम्बी-चौड़ी चन प्रक्रिया से गुजरा एक अन्य $खास मामला ले लीजिए। पौने चार लाख करोड़ के टाटा समूह के नेतृत्व का प्रसिद्ध किस्सा। रतन टाटा ने उत्तराधिकारी चुनने के लिए जो समिति बनाई थी उसने पेप्सी, वोडाफोन, सिटी ग्रुप जैसी कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के विदेशी और भारतीय मूल दोनों तरह के प्रोफेशनल्स जांचे थे। टाटा के टेकओवर किए कोरस और जेगुआर के बड़े नाम यूं हीं सामने रखे थे। किंतु चुना कि से? साइरस मिस्त्री को। योग्य सौ फीसदी। किंतु टाटा के साथ सहज हजार फीसदी। टाटा समूह के गैऱ-टाटा सर्वाधिक शेयर होल्डर पल्लोनजी के पुत्र। भारतीय। टाटा की भाषा, शैली, सपने समझने वाले। यही तो चाहिए। कम्फर्ट।
बिल गेट्स को सत्या से यही सहजता है। इसलिए चुना। देखिए, सिद्ध भी एक घंटे के भीतर हो गया। सत्या ने कहा- मैं चाहता हूं आप मुझे समय दें। गाइड करें। बाकायदा सलाहकार बनकर। आपके सानिध्य की, विचारों की, मार्गदर्शन की जरूरत है। गेट्स राजी भी हो गए। खुशी-खुशी। उनके सपने जो पूरे हो सकेंगे।
माइक्रोसॉफ्ट संसार की अनूठी कंपनी है। गेट्स ने बनाई ही ऐसी है। किन्तु 54 साल की कम उम्र में ही सक्रिय पद से हट कर, संन्यास लेकर अपने करीबी पॉल बॉल्मर को सौंपकर उन्होंने कभी चैन की सांस नहीं ली। वे दुनिया की चैरिटी में लगे हुए हैं - अपनी खरबों डॉलर की संप?िा $गरीबों के लिए लगा चुके हैं - किंतु माइक्रोसॉफ्ट को एपल/गूगल से पिछड़ते नहीं देख पा रहे। गेट्स के हटने के बाद माइक्रोसॉफ्ट की पूंजी, आय-फायदा सबकुछ दो गुना बढ़ चुका है - किन्तु कंपनी की वैल्यू 17 गुना गिर चुकी है।
सत्या के बारे में 5 करोड़ लोगों ने गूगल पर सर्च किया - कि वे कौन हैं? बस, गेट्स यही चुनौती सत्या के लिए बता सकते हैं। 5 करोड़ न सही, कुछ तो 'बिंग' से सर्च करते सत्या के बारे में! 'बिंग' क्या है? यही तो गेट्स का दु:ख है। माइक्रोसॉफ्ट के सर्च इंजन को कोई जानता ही नहीं। गेट्स आंखें बंद करके जीने वालों में नहीं है। सर्च में न सही, मोबाइल प्लेटफॉर्म में ही सही। कहीं तो माइक्रोसॉफ्ट फिर से सर्वोच्च बने। इसीलिए चुना सत्या को।
जो सर्वोच्च के लिए चुनते हैं - वे चाहते हैं कि निम्न विशेषताएं होनी आवश्यक हैं किन्तु कम्पीटेंस और कम्फर्ट के बाद :
ईमानदार हो
अनंत संघर्ष-अथक परिश्रम करने वाला हो
गांभीर्य हो-गहराई हो
लोगों के बीच रहे, जुड़ा रहे
स्वयं कुछ कर गुजरना चाहता हो
और भी कई, विषय-विशेष बातें हो सकती हैं जो देखी जाएंगी किन्तु यह सामान्य तौर पर देखी जाने वाली बातें हैं।
कोई भी, कि न्तु कम्फर्ट सबसे पहले और सबसे अधिक देखेगा।
जब सोनिया गांधी ने तय किया कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी तो उन्होंने योग्यता तो कई में देखी - प्रणब मुखर्जी, डॉ. मनमोहन सिंह से कि न्तु 'कम्फर्ट' में पिछड़ गए। कोई भी हो। चाहे पसंद-नापसंद न जताता हो। चुप ही रहता हो। डॉ. मनमोहन सिंह को जब योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद के लिए दस-दस साल मुख्यमंत्री रहे नेताओं के नाम दिए गए - तो उन्होंने ठुकरा दिए। मोंटेक सिंह अहलूवालिया को चुना। कम्फर्ट।
हाल ही में मैरी बारा जबर्दस्त चर्चा में आईं। जब जनरल मोटर्स (जीएम) ने उन्हें सीईओ बनाया तो वो अमेरिकी इतिहास की पहली महिला बन गईं जो किसी ऑटो कंपनी की प्रमुख बनीं। 33 वर्षों से थीं वे जीएम के साथ। जैसे सत्या 22 वर्षों से माइक्रोसॉफ्ट के साथ। यह भी बाकी लोगों को सहजता देता है। महत्वपूर्ण है। एकदम क, ख, ग, घ से शुरू न करना पड़े। लिंक्डइन ने जब जैफ वाइनर को सर्वोच्च बनाया तो 'कुछ कर गुजरने' की इच्छा देखी। जैसा कि नरेंद्र मोदी अमित शाह में देखते हैं। कुछ कर गुजरने की इच्छा - $खासकर मोदी के लिए - और सहजता तो है ही। क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भी जब सचिन तेंडुलकर से असहज होता है तो नैसर्गिक सर्वोच्च होते हुए भी उन्हें अलग कर देता है - जबकि महेन्द्र सिंह धोनी को विपरीत परिस्थितियों में भी जोड़कर रखता है। श्रीनिवासन का कम्फर्ट!
हम सब पर सर्वोच्च पहुंचें, असंभव है। किन्तु पहुंचना ही होगा। सर्वोच्च पद कोई लक्ष्य नहीं है। न सर्वोच्च होना लक्ष्य है। किसी के दु:ख में शामिल होकर, यदि हमारी योग्यता उसके दु:ख को एक पल के लिए भी कम कर सके - तो हमें उस पल सर्वोच्च होने का गौरव मिल सकेगा। हम सभी का सत्य तब नारायण हो जाएगा।
सत्यमेव जयते।
(लेखक दैनिक भास्कर समूह के नेशनल एडिटर हैं।)
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