भारतीय मूलतत्व “ एकात्म मानव दर्शन ” : परमपूज्य डॉ. मोहन भागवत जी
भारतीय मनीषियों के चिंतन का मूल तत्व है “एकात्म मानव दर्शन” – परम पूज्य डॉ. मोहन भागवत जी
नागपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हृदय की करुणा और तपस्वी जीवन यही पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का परिचय है. उनके द्वारा प्रतिपादित एकात्म-मानव दर्शन का रूप नया है, पर वह है पुराना ही. भारतीय मनीषियों के चिंतन का मूल तत्व है “एकात्म-मानव दर्शन”. सरसंघचालक जी डॉ. कुमार शास्त्री द्वारा लिखित “कारुण्य ऋषि” नामक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे. सरसंघचालक जी ने कहा कि एकात्म-मानव दर्शन यह एक दर्शन है, यह कोई ‘इज्म’ या ‘वाद’ नहीं. इज्म संकुचित शब्द है. आप इज्म के दायरे को लांघ नहीं सकते, आपको इज्म के चौखट में रहकर ही अपना काम करना होता है, जबकि दर्शन व्यापक होता है. दर्शन हर काल में विस्तारित होता है और वह युगानुकूल स्वरूप धारण करता है. लेकिन हम दर्शन के मार्गदर्शन को छोड़कर पाश्चात्य विचारों का अनुकरण कर रहे हैं. इस कारण हमारे जीवन में विडम्बना दिखाई देती है.
भारतीय विचार मंच, नागपुर द्वारा शंकर नगर स्थित “साई सभागृह” में आयोजित लोकार्पण समारोह के दौरान मंच पर वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक मा.गो. वैद्य, मराठी साहित्यकार आशा बगे, गिरीश गांधी, लेखक कुमार शास्त्री तथा भारतीय विचार मंच नागपुर के संयोजक उमेश अंधारे उपस्थित थे. पंडित दीनदयाल उपाध्या जी की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में पुस्तक प्रकाशित रचना की गई. डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारे देश में चाणक्य नीति, विदुर नीति, शुक्र नीति बहुत पहले लिखी गई है, जो समाज का मार्गदर्शन करती आई है. लेकिन भारत का अपना कोई विचार था ही नहीं, हम जंगली थे, हम अंग्रेजों की वजह से सभ्य बने, ऐसा हमें बताया गया और हमने गर्दन हिलाकर उसे स्वीकार भी कर लिया और उसके बाद पाश्चात्य विचारों के अनुकरण का सिलसिला शुरू हो गया. स्वतंत्रता के पश्चात् इसमें कुछ बदलाव आएगा ऐसा लगा था, पर ऐसा हुआ नहीं. ऐसे समय में दीनदयाल जी ने एकात्म-मानव दर्शन देश के सामने प्रस्तुत किया. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश का यह एकमात्र दर्शन है.
सरसंघचालक जी ने कहा कि सृष्टि के प्रत्येक घटक से हमारा सम्बन्ध है. इसलिए हम सबके कल्याण की कामना करते हैं, हम किसी के नाश की बात नहीं सोचते. हमारी अवधारणा है कि मूल तत्व एक है, पर उसकी अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न है. बाहर से दिखने वाली विविधता को स्वीकारते हुए भी हम सबमें एकात्म को निहारते हैं. यह हमारी विशेषता है. यह सनातन विचार युगानुकूल होता गया. इस सनातन विचार को हमारे मनीषियों ने समय-समय पर जन-जन तक पहुंचाया. स्वामी विवेकानन्द, रविंद्रनाथ टैगोर, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और योगी अरविन्द ने इस विचार को जन सामान्य तक पहुंचाने का कार्य किया.
उन्होंने कहा कि शरीर, मन, बुद्धि या व्यक्ति, समाज, सृष्टि अथवा अर्थ, काम, मोक्ष अलग-अलग नहीं है, वरन सबका एक-दूसरे से सम्बन्ध, सब एक-दूसरे के पूरक हैं. इन सबको जोड़ने वाला तत्व है परमेष्ठी. मनुष्य के विकास के साथ ही समाज और सृष्टि का विकास अपने आप होता है, यह अपना विचार है. धर्म सभी विचारों का चिति (आत्म तत्व) है. अर्थ, काम और मोक्ष में समन्वय साधने का कार्य धर्म करता है. धर्म सबको अनुशासित करता है और सबका मार्गदर्शन भी करता है. इसलिए स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भारत की चित्ति धर्म है, जब तक भारत में धर्म है, दुनिया की कोई ताकत भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकती. आज साधन बढ़ गए हैं, पर मनुष्य के जीवन से सुख, शांति और आराम खो गया है. इसका कारण है संकुचितता. हम संकुचितता को छोड़कर अपने साथ परिवार, समाज, राष्ट्र और सृष्टि के कल्याण का भी विचार करें. समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के प्रति गहन आत्मीयता को लेकर उसके विकास के लिए भी आगे आएं. यही पंडित दीनदयाल जी के एकात्म-मानव दर्शन का मूल है. पंडित जी ने केवल दर्शन ही नहीं दिया, वरन इस दर्शन को स्वयं जी कर दिखाया. उनके दर्शन से हमारे हृदय में भी समाज के अभावग्रस्त जनमानस के प्रति आत्मीयता जगे, यह आवश्यक है.
मा.गो. वैद्य जी ने कहा कि समाजवाद और कम्युनिज्म के दौर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने एकात्म-मानव दर्शन देश के सम्मुख रखा. समाजवाद अर्थ के उत्पादन और वितरण का साधन मात्र है, जबकि दीनदयाल जी का दर्शन व्यष्टि से समष्टि को जोड़ता है. वह समाज के अभावग्रस्त व वंचितों के प्रति आत्मीयता को जगाता है. जाति गरीब नहीं होती, मनुष्य गरीब होता है. इसलिए आरक्षण की समीक्षा आज समय की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि जिनकी दो पीढ़ियों को आरक्षण का लाभ मिल चुका है, उन्हें अपना आरक्षण छोड़ देना चाहिए. समृद्ध लोग लाभ न लें तो उसका फायदा वास्तविक पिछड़े लोगों को मिल सकेगा. अगर एक जिलाधिकारी का बेटा आरक्षण का लाभ ले रहा हो तो उस स्थिति में समाज का कल्याण कैसे हो सकता है ? वैद्य जी ने कहा कि सरसंघचालक डॉ. भागवत जी ने जब आरक्षण की समीक्षा की बात कही, तब उस पर बड़ा बवाल मचा. मगर वह बवाल सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए था. लेकिन आरक्षण की समीक्षा आज की आवश्यकता है.
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