होली संपूर्ण holi festival
****************
होली चिन्तन
holi festival
***************
होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है, भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सद्भाव प्रकट करने का एक अवसर है. अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारों की आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व को, आनंद को, सहजता को, निरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है.
यह रंगोत्सव हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व का संचार करता है. होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखद अनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रक्खा जाये तो ये ही रंग दु:खद भी हो जाते हैं. अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है.
प्राचीन समय में लोग पलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलाल, कुम -कुम- हल्दी से होली खेलते थे. किन्तु वर्त्तमान समय में रासायनिक तत्त्वों से बने रंगों का उपयोग किया जाता है. निरापद रंगों से होली खेलना चाहिए, कई वार रासायनिक रंग त्वचा को नुकसान पंहुचा सकते हैं। समान्यतौर पर रंग खेलेनें से पहले यदी शरीर पर तेल लगा लिया जाये तो रंगों का असर कम होता है।
ये रंग त्वचा पे चक्तों के रूप में जम जाते हैं. अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये. यदि किसी ने आप पर ऐसा रंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये. यदि उबटन करने से पूर्व उस स्थान को निंबू से रगड़कर साफ कर लिया जाए तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता आ जाती है.
रंग खेलने से पहले अपने शरीर को नारियल अथवा सरसों के तेल से अच्छी प्रकार मल लेना चाहिए. ताकि तेलयुक्त त्वचा पर रंग का दुष्प्रभाव न पड़े और साबुन लगाने मात्र से ही शरीर पर से रंग छूट जाये. रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए.
वर्त्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भंग पीने की कुप्रथा है. ऐसे लोग स्वयं तो अपवित्र बनते ही हैं दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं. नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं. अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये.
आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तता का दौर चल पड़ा है. पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीय समाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है.
जो अपनी संस्कृति का सम्मान करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयम विशेषरूप से होना चाहिये. स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताँकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों कि कुदृष्टि से बच सकें.
होली केवल लकड़ी एवं उपले के ढ़ेर जलाने का त्योहार नहीं है. यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है. अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराईओं को जलाने का पर्व है होली. अच्छाईयाँ ग्रहण करने का पर्व है होली. समाज में स्नेह का सन्देश फैलाने का पर्व है होली.
होली नवसस्येष्टि है. *नव यानी नई, सस्य यानी फसल, इष्टि यानी यज्ञ* अर्थात् नई फसल के आगमन पर किया जाने वाला यज्ञ है. इस समय आषाढ़ी की फसल में गेहूँ, जौ, चना आदि का आगमन होता है.
इनके अधभुने दाने को संस्कृत में *होलक* और हिन्दी में *होला* कहते हैं. इस समय वृक्षों पर नये पत्ते आते हैं. पशुओं की रोमावलि नयी होने लगती है. पक्षियों के नये *पर* निकलते हैं. इतनी नवीनताओं के साथ आने वाला नयावर्ष ही तो वास्तविक नववर्ष है, जो होली के दो सप्ताह के पश्चात् आता है.
इस प्रकार होलकोत्सव या होली नयी फसल, नयी ऋतु एवं नववर्ष के आगमन का उत्सव है.
आज के दिन से विलासी वासनाओं का त्याग करके परमात्म प्रेम, सद्भावना, सहानुभूति, इष्टनिष्ठा, जपनिष्ठा, स्मरणनिष्ठा, सत्संगनिष्ठा, स्वधर्म पालन , करुणा दया आदि दैवी गुणों का अपने जीवन में विकास करना चाहिये. भक्त प्रह्लाद जैसी दृढ़ ईश्वर निष्ठा, प्रभुप्रेम, सहनशीलता, व समता का आह्वान करना चाहिये.
सत्य, शान्ति, प्रेम, दृढ़ता की विजय होती है इसकी याद दिलाता है आज का दिन. हिरण्यकश्यपु रूपी आसुरी वृत्ति तथा होलिका रूपी कपट की पराजय का दिन है होली. यह अधर्म के अंत का पर्व है। अधर्म पर धर्म की विजय है।
यह पवित्र पर्व परमात्मा में दृढ़ निष्ठावान के आगे प्रकृति द्वारा अपने नियमों को बदल देने की याद दिलाता है. मानव को भक्त प्रह्लाद की तरह विघ्न बाधाओं के बीच भी भगवदनिष्ठा टिकाए रखकर संसार सागर से पार होने का सन्देश देने वाला पर्व है.
*होली.*
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें