संझिप्त में हिंदुत्व

संझिप्त में हिंदुत्व....

*🔱🔱🔱शानदार जानकारी🔱🔱🔱*

■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा। 
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
*उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।*

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हिन्दुत्व के श्रैष्ठ तत्व
आगे के भाग से जारी......
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आर्थर शोपेनहॉवर (1788-1860)
जिनकी गणना जर्मनी के महानतम दार्शनिकोँ व लेखकोँ मेँ होती है, वे कहते है, कहते है कि-  वेदोँ और पुराणोँ के अध्ययन जैसा उपयोगी व उन्नतिशील कोई अध्ययन हो ही नहीँ सकता यह मेरे जीवन मेँ शांति लाने मेँ सक्षम रहा है तथा मेरी मृत्यु मेँ भी शांति लाने मेँ सक्षम रहेगा।
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ब्रिटेन के मशहूर क्वीन बैँड के अनुसार-
' हमने किसी के कहने पर एक बार इन ग्रंथोँ को पढ़कर देखा था और ये हमारी आत्मा मेँ घर कर गये कि कैसे व्यक्ति अन्य आधुनिक भाषायेँ सीखने के बावज़ूद इन अद्वितीय भारतीय ग्रंथोँ से प्रभावित हुआ है और आत्मा की गहराई तक आन्दोलित हुआ है.'
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महान अमेरिकी लेखक, निबंधकार, शिक्षक एवं यूनिटेरियन धर्म प्रचारक राल्फ वाल्डो एमरसन (1803-1882) 
श्द कमेमोटेटिव संस्कृत सुवेनरश् मेँ बताते हैँ- ष्वेद मेरे मानस मेँ बस गये हैँ उनमेँ मुझे अनंत प्राप्ति,अनादि शक्ति व अटूट शांति परिलक्षित हुई हैष्
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अमेरिकी लेखक लिँडा जॉनसन कि प्रसिद्ध पुस्तक श्द कम्पलीट गाईड टू हिन्दुईज्मश् मेँ वो लिखती हैँ-ष्मैँ एक श्रैष्ठतम दिवस हेतू भगवद् गीता के प्रति ऋणी हूँ। ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक साम्राज्य मुझसे बात कर
रहा हो इसमेँ छोटा और अनुपयोगी कुछ भी नहीँ है, बल्कि विशाल शांति का प्रदाता, सतत् चलने वाला, प्राचीन बुद्धि की वाणी जिसने किसी अन्य युग व वातावरण मेँ गहन चिन्तन- मनन किया तथा उन प्रश्नोँ के सार्थक
समाधानोँ की खोज की जो हमेँ उद्वेलित करते हैँष्

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लेखक टॉमस कार्लाइस कहते है, -  ष्भगवद्गीता ने मेरे जीवन को आराम व संतुष्टि प्रदान की है मुझे आशा है
यही कार्य यह तुम्हारे व सारी दुनिया के लिये करेगा अतः इसे पढ़ोष्ॐ

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फ्रांसीसी इतिहासकार एवं गणितज्ञ श्द यूनिवर्सल हिस्ट्री ऑफ नंबर्सश् नामक प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ज्योरजेस
इफरा कहते हैँ-
ष्यह प्राचीन वैदिक हिन्दू संस्कृति की देन है जो हम गणित और ज्योतिष मेँ इतनी प्रगति कर पा रहे हैष्

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महान क्वांटम मेकेनिकल भौतिक शास्त्री तथा दार्शनिक डेविड जे. बोह्न (1917-1992) का कथन है
-ष्चेतना व ब्रह्माण्ड की पहचान यह मेरा दावा है कि अर्थ व आशय अन्ततः एक ही है, जो सनातन हिन्दू दर्शन के वाक्य श्आत्म ब्रह्म के समकक्ष हैश् मेँ परिलक्षित होती हैष्

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जर्मन लेखक, समालोचक, दार्शनिक तथा जर्मन छायावाद के संस्थापक फ्रेडरिक वान श्लेगेल (1772-1829) कहते
हैँ-
ष्समस्त संसार मेँ ऐसी कोई भी भाषा नहीँ है जिसमेँ संस्कृत जैसी स्पष्टता और दार्शनिक सटीकता हो महान हिन्दू धर्म दर्शन मेँ न केवल समस्त तत्वोँ का उद्गम हुआ है बल्कि वह सभी मेँ श्रैष्ठ है महान यूनानी धरोहर
भी इसके सामने फीकी लगती है

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ष्प्राचीन सनातन धर्म जैसा विशुद्ध तत्व अन्यत्र मिल पाना नितांत असंभव हैष्
-फ्रांस्वा गोटियर, अराइजओ इंडिया

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बीँसवी शताब्दी के महान कवि, नाटककार व निबंधकार साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता, द टेन प्रिँसिपल ऑफ उपनिषद्स के अनुवादक विलियम बटलर येट्स(1856-1939) का कथन है
-ष्यह हिन्दू दर्शन से मेरा प्रथम साक्षात्कार था जिसने मेरे अस्पष्ट मान्यताओँ पर केन्द्रित विचारोँ को प्रमाणित किया एवं एक ही समय मेँ तार्किक व अनन्त प्रतीत हुआष्

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एनी बेसेन्ट(1847-1933) प्रसिद्ध व समाजवादी चिन्तक कहती हैँ-
ष्इकतालीस वर्षोँ तक विश्व के विभिन्न धर्मोँ के अध्ययन के आधार पर मैँने पाया कि महान हिन्दू धर्म के समान कोई भी अन्य धर्म इतना त्रुटिविहीन,इतना वैज्ञानिक, इतना दार्शनिक और इतना आध्यात्मिक नहीँ हैष् स्त्रौतरूएनी बेसेन्ट, इंडिया एक्सेस
एण्ड लेक्चर्स

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स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक, प्रभावशाली चिन्तक तथा युंगियन मनोविज्ञान नामक विश्लेषणात्मक
मनोविज्ञान के संस्थापक कार्ल युंग (1875-1961) कहते हैँ
-ष्विश्व की समस्त समस्याओँ का समाधान वैदिक सनातन धर्म और योग मेँ छिपा हैष्
-स्त्रौतरू लेट्स रिगेन अवर लोस्ट सोल

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12 जुलाई, 2007 को हिन्दू पुजारी राजन जेड को अमेरिकी यू. एस. सीनेट का सबसे पहला नवीन सत्र करते समय वैदिक मंत्रोँ के पाठ के लिये बुलाया गया ताकि सभी कार्य सुचारू रूप से चल सकेँ

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चीन के पूर्व प्रधानमंत्री वेन जीआवाओ जब भारत यात्रा पर आये तो चीन के शासकीय पत्र ने भारत के साथ एकता का आह्वान करते हुये जो आलेख लिखा उसका शीर्षक था-ष्ॐ सहनाववतु सहनो भुन्क्तु सहवीर्यँ करवावहैष् यह मंत्र भोजन मंत्र का पहला श्लोक है पहले पहल भाजपा की वाजपेयी केन्द्र सरकार ने इसे बढ़ावा दिया था, जरा सोचिये कि आज की खान्ग्रेस ऐसा कोई फैसला कर सकती है?

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सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष मेँ रहने का विश्व रिकॉर्ड बनाकर लौटी तो एक अमेरिकी पत्रकार ने उनसे पूछा कि वे
अंतरिक्ष मेँ अपने मन को स्थिर कैसे रख पाईँ? सुनीता ने कहा मैँ अपने साथ शिव- पार्वती-गणेश जी की एक मूर्ति, एक भगवद्गीता, और अपने पिताजी के हाथ का लिखा एक पत्र ले गई थी, ये तीन चीजेँ मुझे आत्मविश्वास देती थीँ
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6 सितंबर 2003 को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थबो मबेकी ने डर्बन विश्वविद्यालय मेँ आयोजित प्रेरणा व्याख्यान का प्रारंभ करते हुए कहा-ष्संगच्छध्वं, संवदध्वं संवोमनासि जानताम्ष्

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टिप्पणियाँ

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