होली : नरसिंह अवतार, भक्त प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप और होलिका.....


होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएं और बधाई ..!
रंगों के इस त्यौहार का सन्देश स्पष्ट है 
कि जिन्दगी बहुरंगी होनी चाहिए ..!
एक रंग नीरसता को लाता है ..
तो बहुरंगता विविधता के द्वारा नीरसता को तोड़ता है ..!
जीवन को बहु रंगी बनायें ..
जम कर होली मनाएं ..! 
- अरविन्द सिसोदिया , कोटा , राजस्थान , भारत |
09414180151  

Blog - arvindsisodiakota.blogspot.com

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संझिप्त  में होली की कथा ..... 
होली के प्रचलन की अनेक कथाओं में प्रमुख है भक्त प्रहलाद , उसके पिता , बुआ और भगवान की कथा। कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक असुर था जिसका नाम था हिरण्यकश्यप। अपने बल और सामर्थ्य के अभिमान में वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसका पुत्र प्रह्लाद बड़ा ईश्वर भक्त था।  हिरण्यकश्यप की  भारी व्यथा यह थी कि उसके घर में ही उसे विद्रोह के स्वर (धर्म-पालन और ईश्वर-भक्ति के वचन) सुनाई दे रहे थे। अर्थात प्रह्लाद की ईश्वर-भक्ति और धर्मपरायणता उसके ढोंग को नकार देते थे ..! जिससे  नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने  प्रह्लाद को  विभिन्न प्रकार से दंड दिए । परंतु पुत्र भी अडिग हो धर्म का मार्ग न छोड़ने को प्रतिबद्ध था।  उस असुर पिता की एक असुरा बहन भी थी , जिसका नाम था होलिका । उसको वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती ( फायर फ्रूफ लेडी )। अत: कोई अन्य मार्ग न पाकर एक पिता ने अपने पुत्र की हत्या करने कि सोची। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। उसको उम्मीद थी कि अग्नि में उसके अशक्त पुत्र कि इहलीला समाप्त हो जायेगी। परन्तु हुआ कुछ अलग ही। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई और प्रह्लाद बच गया। यह देख हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से और अधिक नाराज हो गया और पुत्र पर उसका अत्याचार बढ़ता चला गया। बुरी प्रवृत्ति के लोग भी अत्यंत कठोर तपस्या कर अपने स्वार्थ साधने के लिए उपयोगी वरदान भगवान से येन-केन प्रकारेण पा ही लेते थे। जाहिर  है ऐसा ही हिरण्यकश्यप के साथ भी हुआ। वैसे तो वह अमरता का वरदान प्राप्त करना चाहता था ,किन्तु भगवान ने कहा कि यह वरदान वे नहीं दे सकते। इस पर उसने भी चालाकी से बाजी मारने कि कोशिश की। काफी जद्दोजहद के बाद उस असुर को यह वरदान मिला कि वह न दिन में मर सकता है न रात में , न जमीन पर मर सकता है और न आकाश या पाताल में , न मनुष्य उसे मार सकता है और न जानवर या पशु- पक्षी , इसीलिए भगवान उसे मारने का समय संध्या चुना और आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य का- नरसिंह अवतार। नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध न जमीन पर की न आसमान पर , बल्कि अपनी गोद में लेकर की। 
  
 राजा ने उसे खंभे से बांधकर मारना चाहा; पर तभी खंभे से नरसिंह भगवान प्रकट हुए। उनका आधा शरीर मनुष्य और आधा शेर का था। वे राजा को घसीटकर महल के दरवाजे पर ले आये और अपनी जंघाओं पर लिटाकर नाखूनों से उसका पेट फाड़ दिया। इस प्रकार भगवान के वरदान की भी रक्षा हुई और अत्याचारी राजा का नाश भी। उसी के स्मरण में आज तक होली मनाने की प्रथा है।


टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक होली प्रस्तुति
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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