किसी भी रिश्वतखोरी को कानूनी कार्रवाई से बचने का विशेषाधिकार नहीं है - सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय नें दो महान निर्णय अपने ही पूर्व में दी गई व्यवस्था को बदलते हुये दिये हैं कि एक तो उच्च न्यायालयों के द्वारा दिये गये स्टे आर्डर 6 महीनें बाद स्वतः समाप्त नहीं होंगे। 2018 में सर्वोच्च न्यायालय से इस तरह का निर्णय आया था कि ऊपरी न्यायालयों के द्वारा दिये गये स्टे आर्डर स्वतः 6 माह में समाप्त हो जायेंगे । इस आदेश के पश्चात कोर्ट में चल रहे मुकदमों के निर्णयों में विसंगतियां उत्पन्न होनें लगीं थीं। अब यह निर्णय आया है कि स्टे आर्डर स्वतः समाप्त नहीं होगा ।
इसी तरह संसद के अन्दर की कार्यवाही में अपराध होत है तो वह अभियोजन से मुक्त होगा, इस तरह का निर्णय लगभग 27 साल पहले सर्वोच्च न्यायालय से ही आया था। प्रधानमंत्री नरसिंहाराव की सरकार बचानें के लिए वोट के बदले झामुमो के लोकसभा सांसदों नें धन लिया था। यह निर्णय इसलिये गलत था कि संविधान की भावना अपराध के संरक्षण की नहीं है। अब सर्वोच्च न्यायालय नें इसमें सुधार करते हुये निर्णय लिया है कि सदनों के अन्दर भी यदि रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार हुआ है तो उसके खिलाफ अभियोजन चलाया जा सकता है।
ये निर्णय न्याय के पक्ष में इसलिए इनका स्वागत किया जाना चाहिये।
झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट की 7 जजों की खंडपीठ ने अपने पुराने फैसले को भी ओवर रूल कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि रिश्वत लेकर सदन में वोट या भाषण देने वाले सांसदों-विधायकों को मुकदमे से छूट नहीं मिल सकती। यह विशेषाधिकार के तहत नहीं आता।
रिश्वत कांड और 1998 का 'सुप्रीम' फैसला, SC ने अब क्यों पलटा अपना ही 26 साल पुराना निर्णय
Cash For Vote Case सुप्रीम कोर्ट ने नरसिम्हा राव मामले को आज पलटते हुए कहा कि अगर कोई विधायक या सांसद नोट लेकर वोट या भाषण देता है तो उसपर कार्रवाई होगी। कोर्ट ने रिश्वत लेने पर सांसद या विधायक को अभियोजन से छूट देने के 1998 के फैसले को पलट दिया। आखिर ये मामला क्या है और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था आइए जानते हैं...
04 Mar 2024
Cash For Vote Case: क्या था रिश्वत कांड और 1998 का 'सुप्रीम' फैसला, SC ने अब क्यों पलटा अपना ही 26 साल पुराना निर्णय
*- Cash For Vote Case वोट के बदले नोट मामला क्या है।
*- वोट के बदले नोट केस में सु्प्रीम कोर्ट ने अपना फैसला पलटा।
*- क्या है नरसिम्हा राव वोट के बदले नोट केस।
Cash For Vote Case सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वोट के बदले नोट मामले में अपना ही फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने नरसिम्हा राव मामले में कहा कि अगर कोई विधायक या सांसद नोट लेकर वोट या भाषण देता है तो उसपर कार्रवाई होगी।
शीर्ष कोर्ट की सात सदसीय पीठ ने रिश्वत लेने पर सांसद या विधायक को अभियोजन से छूट देने के 1998 के फैसले को पलट दिया।
नरसिम्हा राव मामला आखिर क्या है और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था, आइए जानते हैं...
क्या था 1993 का रिश्वत कांड?
ये नरसिम्हा राव मामला झारखंड मुक्ति मोर्चा घूसकांड से जुड़ा है। इसी मामले ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। दरअसल, साल 1991 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन वो बहुमत से चूक गई।
तमिलनाडु में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर से कांग्रेस को 487 सीटों में से 232 सीटें मिली, लेकिन बहुमत का आंकड़ा 272 का था।
इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री चुना गया। हालांकि, राव का कार्यकाल बहुत ही कठिनाइओं भरा था। एक तरफ देश में आर्थिक संकट था तो दूसरी तरफ राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ लिया था। 1992 में बाबरी मस्जिद कांड के बाद माहौल काफी बिगड़ा।
1993 में राव सरकार के खिलाफ सीपीआई (एम) के एक सांसद अविश्वास प्रस्ताव ले आए। उस समय कांग्रेस की गठबंधन सरकार के पास 252 सीटें थी, लेकिन बहुमत के लिए 13 सीटें कम थीं।
इसके बाद 28 जुलाई 1993 को जब अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो उसके पक्ष में 251 वोट तो विरोध में 265 वोट पड़े। राव सरकार उस समय गिरने से बच गई, लेकिन तीन साल बाद वोट के बदले नोट का मामला सामने आ गया।
क्या था झारखंड मुक्ति मोर्चा घूसकांड से लिंक
जब वोट के बदले नोट का मामला सामने आया तब पता चला कि 1993 के अविश्वास प्रस्ताव में जेएमएम और जनता दल के 10 सांसदों ने इसके खिलाफ वोट डाले थे। इसके बाद सीबीआई ने आरोप लगाया कि सूरज मंडल, शिबू सोरेन समेत जेएमएम के 6 सांसदों ने वोट के बदले रिश्वत ली थी।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का 1998 का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने पर कोर्ट की पांच सदसीय पीठ ने 1998 में फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद में दिए वोट के लिए किसी भी सांसद को अदालती कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसके बाद सभी मामले को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अब पलटा अपना फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अब अपना ही फैसला पलटते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों की रिश्वतखोरी लोकतंत्र को नष्ट करने का काम करेगी। किसी को भी रिश्वतखोरी करने के बाद कानूनी कार्रवाई से बचने का विशेषाधिकार नहीं है, चाहे वो सांसद हो या विधायक।
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नोट फोर वोट मामले का इतिहास...
रिश्वत लेकर सदन में वोट देना या भाषण देने का मुद्दा काफी पुराना है. सीता सोरेन से जुड़ा मामले में भी ये मुद्दा उठा था. तब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान नोट फोर कैश का मामला उठा था. साल 2012 में मांग की गई थी कि सीता सोरेन के खिलाफ सीबीआई जांच होनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने वोट डालने के लिए रिश्वत ली है. हालांकि, 2014 में झारखंड हाईकोर्ट ने इस केस को रद्द कर दिया था. कोर्ट ने तब कहा था कि सीता सोरेन ने उनके पक्ष में वोट नहीं दिया, जिनसे रिश्वत ली थी, इसलिए वह दोषी नहीं हैं, साथ ही सदन का सदस्य होने के कारण विशेषाधिकार भी है.
साल 1998 में इसी तरह के मुद्दे को जांचने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ बैठी, जिसे हम झारखंड मुक्ति मोर्चा केस या पीवी नरसिम्हा राव केस कहते हैं. तब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बड़ा फैसला 3-2 के बहुमत से दिया था कि अगर कोई सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में वोट डालता है या भाषण देता है, तो उन्हें कानूनी रूप से संरक्षण रहेगा, ऐसे माननीयों पर मुकदमा नहीं चलेगा.
26 साल बाद फिर उठा मुद्दा
26 साल बाद 2023 में एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई कि इस मुद्दे पर फिर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र में इस तरह की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोई रिश्वत लेता है, तो वो अपने आप में अपराध है. ऐसे में किसी माननीय को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए.
इस फैसले के यह सीधे-सीधे मायने हैं कि अगर कोई सांसद या विधायक सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेता है, तो उसके खिलाफ भी किसी पब्लिक सर्वेंट की तरह कानूनी कार्रवाई होगी. उन्हें भी कानून के कठघरे में खड़ा होना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है, जिसका असर भी दूर तक देखने को मिलेगा.
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