भारत का इस्लामीकरण Islamization of India


यह एक आलेख हैं, एक है 2013 का, जो शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित हुआ था। दूसरी रिपोर्ट है जो 2021 की है। जो असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा की है। भारत में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि कर इसे नया पाकिस्तान बनानें में लगी ताकतों के सच को समझना होगा।
 
 
 
भारत इस्लामिस्तान बनने की कगार पर
[लेख साभार प्रेम शुक्ल सम्पादक सामना / 2013]
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह दत्ता होसबोले शायद होश में ही बोले होंगे लेकिन मनोरंजन को मुख्यधारा बनाने वाले मीडिया ने उन्हें बेहोश कर दिया। संघ की किसी बैठक से निकलते समय कुछ पत्रकारों ने दत्ता होसबोले से सनसनीखेज समाचार पैदा करने की कवायद में कोई सवाल पूछा। उस सवाल के जवाब में संभवत: होसबोले यह बोल बैठे कि हिंदुओं को भी अब जनसंख्या में अपनी हिस्सेदारी टिकाए रखने के लिए ‘हम दो हमारे दो!’ के परिवार नियोजन वाले नारे से आगे बढ़ कर तीन संतानें कम से कम पैदा करनी चाहिए। बात बेबात नहीं थी लेकिन नासमझ मीडिया और सेकुलर बिरादरी ने महत्वपूर्ण मुद्दे को मजाक में तब्दील कर दिया। सेकुलर बिरादरी शायद जानती है लेकिन मानती नहीं और मीडिया तो शायद जानता भी नहीं कि होशबोले आखिर बोल क्या रहे थे। 
 
 होशबोले की बात को अगर एक साधारण से पैमाने पर परख लें तो मजाक उड़ानेवालों के होश ठिकाने आ जाएंगे। और वह पैमाना यह कि देश की प्रजनन दर में हिन्दुओं के बढ़त की हिस्सेदारी अगर 15.60% है मुसलमान हिन्दुओं से करीब तीन प्रतिशत अधिक 18.70% की दर से बच्चे पैदा कर रहा है। हिन्दुस्तान को इस्लामिस्तान में तब्दील करने की यह तीन प्रतिशत सालाना वृद्धिदर भले ही बहुत छोटी लगे लेकिन इसका लक्ष्य बहुत बड़ा है। 
 
 भारतीय उपमहाद्वीप की जनसंख्या में जो डेमोग्रेफिक (जनसांख्यिकीय) परिवर्तन आया है उसको तो अस्वीकार नहीं किया जा सकता। आज जो वर्तमान पाकिस्तान है वहां १९०१ में कुल आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी ८३.८७% थी जो अब ९६.७९% हो चुकी है जबकि वहां तब हिंदुओं की आबादी १५.९३% थी जो अब १.४४% रह गई है। बांग्लादेश आज जहां है वहां १९०१ में हिंदुओं की आबादी ३३.९९% थी जो आज ९.७% रह गई है। जब हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ था तब यहां हिंदुओं की आबादी ८७% थी जो अब ८०.५% रह गई है। जबकि १९५१ में हिंदुस्तान में १०.४३% मुस्लिम आबादी थी जो २००१ में १३.४०% हुई और २०११ की जनगणना में १५% का आंकड़ा पार कर चुकी है। प्रतिशत से तस्वीर उतनी साफ नहीं नजर आएगी। विभाजन के समय हिंदुस्तान में लगभग ३.५ करोड़ मुसलमान थे जो २००१ में १३.८ करोड़ और अब १५ करोड़ से ज्यादा हो चुके हैं। इसका राजनीतिक परिणाम सामने है। उत्तर प्रदेश और बिहार में हिंदुओं की आबादी की वृद्धि में मुस्लिमों की आबादी की वृद्धि दर की तुलना में गिरावट है। २०११ की जनगणना के धार्मिक भाषाई वर्गीकरण अध्ययन के आंकड़े अभी तक उपलब्ध नहीं। २००१ की जनगणना के अनुसार १९५०-२००१ के बीच में उत्तर प्रदेश की आबादी बौद्ध, सिख, जैन, एवं हिंदू समुदाय की हिस्सेदारी ८५.५२% से नीचे सरक कर ८१.३०% तक आ चुकी है। जबकि इसी अवधि में मुसलमानों की हिस्सेदारी १४.२८% से बढ़कर १८.५% हो गई। बिहार में इसी अवधि में हिंदुओं की आबादी में ४ फीसदी अंक की गिरावट तो मुस्लिमों की आबादी में ४ फीसदी अंक बढ़ोत्तरी दर्ज है। मुस्लिम परस्ती में अंधी, कांग्रेस-सपा-बसपा उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक के लिए किसी भी हद तक हिंदूद्रोही फैसला लेने में न कांग्रेस को संकोच है, न समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी को। 
 
 यदि भारतीय जनता पार्टी ने १९९० के दशक में उत्तर प्रदेश में ‘जय श्रीराम’ के नारे को स्थगित कर ‘जय कांशीराम!’ के नारे का दामन नहीं थामा होता तो १९९१ में पहली बार ‘हिंदू हुंकार’ ने राजनीतिक प्रभाव दिखाया था। उत्तर प्रदेश में संगठनविहीन भाजपा ‘जय श्रीराम’ के नारे से ही अकेले के बूते बहुमत हासिल करने में सफल हुई थी। कल्याण सिंह करने लगे सोशल इंजीनियरिंग यानी जाति का गठित तो फिर ‘राम’ से प्यारे लगने लगे ‘कांशीराम’! अब हिंदू कल्याण सिंह आदि की जातीय राजनीति में इतना विभाजित हुआ है कि जब चुनाव ८ से ४०% मतदान के हिस्से पर जीते जाने का ट्रेंड चल रहा हो तब ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, कायस्थ, यादव, कुर्मी, दलित में विभाजित किसी भी जाति के वोटबैंक का दोगुना दम १८.५% मुस्लिम वोटबैंक में है। मायावती या मुलायम सिंह यादव जैसे ही २०³ वोटबैंक वाली जातियों का समर्थन प्राप्त करते हैं वे तत्काल मुस्लिम वोटबैंक के ठेकेदारों से सौदे कर लेते हैं। कांग्रेस भी इसी फिराक में है। सत्तासमीकरण मुसलमानों के हाथों पश्चिम बंगाल और असम की राजनीति का सत्तासमीकरण सिर्पâ मुसलमानों के हाथ आ चुका है, क्यों? पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की आबादी ६.७५% घटी है तो मुसलमानों की आबादी में ५.७५% का इजाफा हुआ है। ममता बनर्जी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के आला नेता तमाम मुद्दों पर एक-दूसरे के खून के प्यासे होने की हद तक वैमन
 
 
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