भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो
संगठन गढ़े चलो सुपंथ पर बढे चलो यह कविता हमारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की एक बार का मासिक गान है । संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो । भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥ध्रु॥ युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो । एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो । भूल कर भी मुख में जाति-पंथ की न बात हो । भाषा-प्रांत के लिए कभी ना रक्तपात हो । फूट का भरा घड़ा है फोड़ कर बढ़े चलो ॥१॥ आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार । हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार । कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुरा के सब सहेंगे हम । देश के लिए सदा जिएंगे और मरेंगे हम । देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो ॥२॥ संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो । भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किये चलो ॥