संदेश

2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऋषि परंपरा का आधुनिक आविष्कार है प्रचारक जीवन : सरसंघचालक माननीय मोहनराव भागवत RSS

ऋषि परंपरा का आधुनिक आविष्कार है प्रचारक जीवन : सरसंघचालक माननीय मोहनराव भागवत RSS  रा.स्व. संघ में प्रचारक ऋषि-सम साधक माने जाते हैं। पाञ्चजन्य के 22 अक्तूबर, 2006 को प्रकाशित नव दधीचि अंक के लिए संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह (वर्तमान में सरसंघचालक) श्री मोहनराव भागवत ने कुछ तपोनिष्ठ प्रचारकों के जीवन की चर्चा करते हुए प्रचारक पद्धति का सुंदर विश्लेषण किया था। शकराचार्य जी का प्रसिद्ध वचन है—‘मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रया:।’ ये बातें ईश्वर की कृपा से ही मिलती हैं। पर ऐसा लगता है कि महापुरुष संश्रय हमें संघ के कारण प्राप्त हुआ है। ऐसे एक नहीं अनेकानेक उदाहरण हैं। जब मैं विदर्भ में प्रांत प्रचारक था उन दिनों श्री लक्ष्मण राव भिड़े जी हमारे क्षेत्रीय प्रचारक थे। मैंने अकोला जिले के भांवेरी गांव में उनके प्रवास का आए दिन का कार्यक्रम बनाया। अकोला के जिला संघचालक का भांवेरी में घर था। उन्हीं के यहां भिड़े जी ठहरे। वहां उनकी गांव के अन्य प्रमुख लोगों से भी बातचीत हुई। बातचीत के बाद हम लोग ग्राम भ्रमण के लिए निकले। सिर्फ दो-तीन लोग समान्य रूप से चले जा रहे थे। किन्तु भिड़े जी आगे बढ़े...

अपने जीवन के पीछ समाजोपयोगी विरासत छोड़ें - अरविन्द सिसोदिया jeevan he Anmol

चित्र
  Arvind Sisodia: 9414180151 विचार - अपने शरीर को कर्म से इतना प्रखर बनाओ कि उसके न रहने पर भी समाज याद रखे, वरना इस धरा पर मानव शरीर में आनें का कोई अर्थ नहीं .....! ----- बहुत ही प्रेरक और गहरा अर्थ वाला वाक्य है! यह वाक्य हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन को इस तरह से जीना चाहिए कि हमारी मौजूदगी से समाज को कुछ सकारात्मकता मिले और हमारे जाने के बाद भी हमारी यादें समाज में जीवित रहें। भगवान राम और सीता जी का, हनुमान जी का जीवन सार्थक हुआ, वे अभी 17.5 लाख वर्ष से लगातार जीवंत हैँ। - यह वाक्य हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने शरीर को कर्म से प्रखर बनाना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन को सार्थक बना सकें और समाज में कुछ सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। इस वाक्य में एक और महत्वपूर्ण बात कही गई है कि अगर हम अपने जीवन को इस तरह से नहीं जीते हैं कि समाज हमें याद रखे, तो फिर इस धरा पर मानव शरीर में आने का क्या अर्थ है? यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने जीवन को कैसे जी रहे हैं और क्या हम समाज में कुछ सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम हो रहे हैं या नहीं। इसलिए हमें यह प्रयत्न क...

शिक्षा वही जो जीवन जीने का सामर्थ्य प्रदान करे - अरविन्द सिसोदिया Education India

चित्र
Arvind Sisodia: 9414180151 विचार - शिक्षा का अर्थ सिर्फ (कोरा) ज्ञान पढ़ना नहीं है बल्कि उसे सफल जीवन जीने का तरीका सीखना है। जब तक शिक्षा अपने इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं करेगी, तब तक वह अधूरी और असमर्थ रहेगी। ---  बिल्कुल सही कहा ! शिक्षा का अर्थ सिर्फ ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें सफल जीवन जीने का तरीका सिखाती है। शिक्षा हमें न केवल ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि यह हमें सोच, समझ और समस्या-समाधान कौशल भी विकसित करने में मदद करती है। भारतीय संस्कृति में सीख शब्द से शिक्षा शब्द बना है। शिक्षा और ज्ञान में मामूली अंतर यही है, कि जीवनपयोगी बहुअयामी ज्ञान शिक्षा है। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य यह होना चाहिए कि यह हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में सफल होने के लिए तैयार करे। यह हमें न केवल अपने जीवन उद्देश्य (करियर ) में सफल होने में मदद करती है, बल्कि यह हमें एक अच्छा नागरिक, एक अच्छा परिवार का सदस्य और एक अच्छा समाज का सदस्य बनने में भी मदद करती है। व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाती है। जैसा कि आप कह रहे हैं, जब तक शिक्षा अपने इस लक्ष्य को प्राप्त न...

अमेरिका की अमानवीय तानाशाही की निंदा होनी चाहिये - अरविन्द सिसौदिया US deportation

चित्र
  अमेरिका की अमानवीय तानाशाही की निंदा होनी चाहिये - अरविन्द सिसौदिया अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 4 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद यानी UNHRC से अमेरिका को बाहर करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर साइन किए। और इसके तुरंत बाद उसने मानवीय व्यवहार से पल्ला छाड़ लिया और उसका क्रूर तानाशाह चेहरा सबके सामने बेनक़ाब हुआ।  भारत में करोड़ों बांग्लादेशियों सहित गैरकानूनी तरीके से विदेशी रह रहे हैँ, किन्तु भारत नें कभी भी अमेरिका जैसी क्रूरता नहीं बर्ती है। यह भारत का मानवीय चेहरा है, वहीं अमेरिका नें अपने ही मानवाधिकारों के व्याख्यानों की धज्जियाँ उड़ाते हुये, अत्यंत क्रूर और शर्मनाक व्यवहार प्रस्तुत किया है। जो सिर्फ तानाशाही ही कही जाएगी।  यह सच है कि भारत सरकार बातचीत के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में घुसे नागरिक वहाँ के अपराधी ही हैँ। जब चोरी करते बेटा पकड़ा जाता है तो बाप का सिर शर्म से झुक जाता है। वही स्थिति भारत की है। तमाम दुनिया को मानवता के तमाम संदेश देनें वाला अमेरिका के द्वारा ,अमेरिका से डिपोर्ट हुए ‘भारतीयों के साथ अमान...

कुंभ मेला , संपूर्ण मानव सभ्यता को संग्रहीत करने के सामर्थ्य की व्यवस्था - अरविन्द सिसोदिया Kunbh Mela

चित्र
  Arvind Sisodia - 9414180151 कुंभ, वह पात्र जो सबको भर लेता हो, सबको अपने में समाहित कर लेता हो, जिस में सब समाहित हो जायें, उसे कुंभ कहते है, मानव सभ्यता का सब कुछ जिसमें समाहित है, वही कुंभ स्नान हिंदुत्व  है। मेला शब्द उस व्यवस्था का परिचय हैँ जहाँ सभी लोग विधि सम्मत तरीके से, आपस में मिल कर अपनी - अपनी जरूरत की पूर्ति करते हैँ। कुछ देते हैँ कुछ लेते हैँ। धर्म भी, कर्म भी, पवित्रता भी और पुरषार्थ भी   ! सनातन में मेलजोल को ही मेला कहा जाता है, यही कुंभ मेले में भी है। -  बहुत ही सुंदर और गहरा अर्थ आप ने कुंभ का बताया है। कुंभ वास्तव में एक पात्र है जो सबको भरता है और सबको समाहित करता है। यह एक शब्द प्रतीक है जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अंदर सबको समाहित करनें का सामर्थ्य अर्जित करना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, या समुदाय से हो। हिंदुत्व संपूर्ण मानव सभ्यता को एकात्म मानकर चलता है और विश्वकल्याण की शक्ति रखता है। कुंभ स्नान सनातन जीवन पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें बिना किसी भेदभाव के सभी सम्मिलित होते हैँ। जो सभी भेदों की सम...

Brother Demanded Half Body Of Father

चित्र
संपादकीय / राजस्थान पत्रिका  शव के अवशेष की मांग नैतिक पतन की पराकाष्ठा 05/02/2025   विभिन्न सामाजिक परिवेश में रिश्तों को तार-तार करती खबरें दिन-दिन सामने आती रहती हैं। ऐसा इसलिए भी है कि भौतिकवादी दौर में व्यक्ति स्वार्थी होता जा रहा है। लेकिन मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में उनके पिता के शव का आधा हिस्सा मांग लेने की घटना समूची मानवता को झकझोरने वाली है। ऐसी खबर जो किसी के इंसान होने पर भी सवाल उठाती है। ख़ून के रिश्ते में ऐसे 'कड़वाहट' की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। टीकमगढ़ में पिता की मृत्यु पर दो भाइयों ने ऐसा नजारा पेश किया कि गमी में आए बुजुर्गों तक के चेहरे से हवाईयां उड़ गईं । दोनों में पिता के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद इस हद तक पहुंच गया कि बड़े ने शव के दो हिस्से करने की मांग उठा दी। परिवार विवादों की वजहें आम तौर पर एक जैसी होती हैं। कहीं संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद तो कहीं ईर्ष्या का भाव । आपस की ये लड़ाईयाँ किसी भी घर की दीवारों को तोड़ने के लिए काफी है। पुलिस के दखल से शव का बंटवारा बिना अंतिम संस्कार तो हो गया , लेकिन इस घटना नें सेंकड़ों सवालों को पीछे गई । सबसे...