उत्सव और त्यौहार : ईश्वर और उनकी व्यवस्था के प्रति कृतज्ञता का भाव भाव है - अरविन्द सिसोदिया
उत्सव और त्यौहार : ईश्वर और उसकी व्यवस्था के प्रति कृतज्ञता का भाव सनातन है — अरविन्द सिसोदिया 9414180151 मानव जीवन का सबसे पवित्र और शाश्वत भाव है — कृतज्ञता, धन्यवाद और आभार। यही भाव हमारे जीवन को अर्थ देता है, यही भाव हमें ईश्वर, प्रकृति और समस्त सृष्टि से जोड़ता है। इसी कृतज्ञता को व्यक्त करने के असंख्य मार्ग भारतभूमि की सनातन सभ्यता नें खोजे और सामाजिक परंपराओं से मानवता को प्रदान किए हैं। ईश्वर और उसकी व्यवस्था का आभार व्यक्त करने और धन्यवाद देने के हजारों उपाय जिस मानव सभ्यता ने खोजे, वही सनातन सभ्यता है। पूजा कोई भी हो, प्रार्थना कोई भी हो, आराधना कोई भी हो, भजन संध्या, सबका मूल भाव एक ही है। यह सब एक ईश्वर के लिए करें, ईश्वर की व्यवस्था के बहुदेवों के लिए करें एक तरह से करें या विविध स्वरूपों की उपासना के रूप में करें, सारा भाव कृत्यज्ञता ज्ञापित करना है। इन्हीं आराधनाओं को हम व्रत, उपवास, तीज और त्यौहार के रूप में पहचानते हैं और अपनाते हैँ। जब मनुष्य ईश्वर के स्वरूपों की आराधना करता है, तो वह स्वयं भी आनंद और...