ऋषि परंपरा का आधुनिक आविष्कार है प्रचारक जीवन : सरसंघचालक माननीय मोहनराव भागवत RSS
ऋषि परंपरा का आधुनिक आविष्कार है प्रचारक जीवन : सरसंघचालक माननीय मोहनराव भागवत RSS रा.स्व. संघ में प्रचारक ऋषि-सम साधक माने जाते हैं। पाञ्चजन्य के 22 अक्तूबर, 2006 को प्रकाशित नव दधीचि अंक के लिए संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह (वर्तमान में सरसंघचालक) श्री मोहनराव भागवत ने कुछ तपोनिष्ठ प्रचारकों के जीवन की चर्चा करते हुए प्रचारक पद्धति का सुंदर विश्लेषण किया था। शकराचार्य जी का प्रसिद्ध वचन है—‘मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रया:।’ ये बातें ईश्वर की कृपा से ही मिलती हैं। पर ऐसा लगता है कि महापुरुष संश्रय हमें संघ के कारण प्राप्त हुआ है। ऐसे एक नहीं अनेकानेक उदाहरण हैं। जब मैं विदर्भ में प्रांत प्रचारक था उन दिनों श्री लक्ष्मण राव भिड़े जी हमारे क्षेत्रीय प्रचारक थे। मैंने अकोला जिले के भांवेरी गांव में उनके प्रवास का आए दिन का कार्यक्रम बनाया। अकोला के जिला संघचालक का भांवेरी में घर था। उन्हीं के यहां भिड़े जी ठहरे। वहां उनकी गांव के अन्य प्रमुख लोगों से भी बातचीत हुई। बातचीत के बाद हम लोग ग्राम भ्रमण के लिए निकले। सिर्फ दो-तीन लोग समान्य रूप से चले जा रहे थे। किन्तु भिड़े जी आगे बढ़े...