अन्ना हजारे कौन है ..?
- अरविन्द सिसोदिया
* अन्ना हजारे कौन है यह प्रश्न हर शख्स के मन में गूँज सकता है , ये छोटे महात्मा गांधी के नाम से जाने जाते हैं , इनका नाम महाराष्ट्र में बहुत है !इन पर प्रकाशित सामग्री के आधार पर एज परिचय., प्रस्तुत है ..!!
(आज तक के साभार से ....) अन्ना हजारे का वास्तविक नाम किसन बाबूराव हजारे है.15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना हजारे का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा. पिता मजदूर थे, दादा फौज में थे. दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी. अन्ना के पुश्तैनी गांव अहमद नगर जिले में स्थित रालेगन सिद्धि में था. दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया. अन्ना के 6 भाई हैं.
परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं. वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की. परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे. इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया.
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए. उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई. यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे. इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक पुस्तक 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी. उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा.
1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया. मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे. जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए. उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी. उन्होंने अपनी जमीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी.
आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है. वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं. आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है. आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है. गांव में एक तरह का रामराज है. गांव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है. अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं.
(आज तक के साभार से ....)
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अन्ना हजारे ने 1975 से सूखा प्रभावित रालेगांव सिद्धि में काम शुरू किया। वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायो गैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गांव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गांव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है।
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* सन् १९९२ में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
* इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार (१९८६)
* महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार (१९८९)
* पद्मश्री (१९९०)
* विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार' (२००८)
* सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे।
* वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई करने के लिये भी प्रसिद्ध हैं।
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अन्ना हजारे ... बेचारे ..!
By 06/04/2011
अन्ना हजारे ने अपने पूर्व घोषित निर्णय के अनुसार जन लोकपाल विधेयक लाने हेतु सरकार पर दबाव बनाने और जन समर्थन को जुटाने के लिए 5 अप्रैल से दिल्ली के जंतर मंतर पर आमरण अनशन शुरू कर दिया। उनके बैनरों पर लिख हुआ है- भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनयुद्ध। अन्ना हजारे ने इससे पहले भी महाराष्ट्र राज्य में भ्रष्टाचार के विरोध में इस गान्धीवादी तरीके का सफल प्रयोग किया है और उस राज्य के कई मंत्रियों को उनके पद से हटने के लिए मजबूर किया है। श्री हजारे सत्ता की राजनीति नहीं करते और उनका साफ सुथरा जीवन इतिहास उनको गान्धीवाद का सच्चा प्रतिनिधि दर्शाता है। लेकिन पता नहीं कि उनके अहिंसक आन्दोलन के बैनरों पर जनयुद्ध लिखवाने वाले कौन हैं और क्या चाहते हैं?
पिछले अभियानों के विपरीत, इस बार अन्ना हजारे का उक्त अनशन किसी व्यक्ति विशेष के भ्रष्टाचार या किसी काण्ड विशेष के खिलाफ नहीं है, अपितु यह अनशन भ्रष्टाचार के पहचाने गये आरोपियों को सजा सुनिश्चित करने के लिए है। उनकी माँगों के मुख्य बिन्दु हैं– (1) निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन जो किसी भी मुकदमे की जाँच को एक साल में पूरी करके दो साल के अन्दर सम्बन्धित को जेल भेजना सुनिश्चित करे। इनके सदस्यों की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से नागरिकों और संवैधानिक संस्थाओं द्वारा की जाये। वर्तमान की संस्थाएं जैसे सीवीसी, सीबीआई, भ्रष्टाचार निरोधक विभाग, आदि का विलय भी लोकपाल में कर दिया जाये। (2) अपराध सिद्ध होने पर सरकार को हुए घाटे को सम्बन्धित से वसूल किया जाये। और (3) किसी सरकारी कार्यालय से अगर किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं हो तो दोषी पर जुर्माना लगाया जाये जो पीड़ित को मुआवजे के रूप में मिले।दरअसल अन्ना हजारे की ये माँगें ऐसी जरूर हैं जिनके पूरे होने की इच्छा आज देश के सभी नागरिकों के मन में है किंतु ये माँगें एक शुभेक्षा से अधिक कुछ भी सिद्ध नहीं होने जा रही हैं, क्योंकि ये भ्रष्टाचार की जड़ पर कोई विचार नहीं करतीं अपितु हो चुके भ्रष्टाचार के पकड़ में आये अपराधियों को सजा दिलाने के लिए एक नया कानून और एक नयी संस्था के गठन से आगे नहीं जातीं। ऐसा लगता है कि वे मानते हैं कि जाँच एजेंसियों के काम करने के सुस्त तरीके और दण्ड प्रक्रिया की त्रुटियों के कारण भ्रष्टाचार हो रहा है, जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने महाराष्ट्र राज्य में कतिपय मंत्रियों को पद त्याग का जो दण्ड दिलवाया क्या उससे महाराष्ट्र में मंत्री स्तर का भ्रष्टाचार रुक गया? सूचनाएं बताती हैं कि उसके बाद भी भ्रष्टाचार यथावत रहा अपितु कई मामलों में तो और बढ गया। सीबीआई जैसी जाँच एजेंसी के बारे में भी आरोप लगता है कि वो केन्द्र सरकार के हाथ का खिलोना होकर रह गयी है। परमाणु विधेयक पास होने के दौरान सदन में जो नोटों के बण्डल दिखाये जाने की शर्मनाक घटना हुयी थी उसकी जाँच के लिए संसदीय जाँच समिति बनी थी जो किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सकी थी।
किसी भी लोकतंत्र में कानून बनाने और उन कानूनों को पालन कराने के लिए सरकार के गठन का काम जनता से चुने हुए जनप्रतिनिधि करते हैं, और जब तक जनता सही और ईमानदार प्रतिनिधि चुनने के लिए सुशिक्षित, संकल्पित और सक्षम नहीं होती तब तक न तो सही कानून बन सकते हैं और ना ही उनको पालन कराने वाली संस्थाएं ही सही काम कर सकती हैं। अदालत में वकीलों के द्वारा प्रत्येक घटना की व्याख्या अपने मुवक्किल के हितानुसार की जा सकती है, और न्यायालय एक पसंदीदा बहस के पक्ष में फैसला सुना सकता है। सबूत तो सरकार की एजेंसियाँ ही जुटाती और प्रस्तुत करती हैं तथा गवाहों को किसी भी स्तर पर अपने बयानों से मुकरने की सुविधा उपलब्ध है। लाखों मुकदमों में गवाहों ने कहा होगा कि जो बयान पुलिस ने प्रस्तुत किया है वह उसने दिया ही नहीं या पुलिस ने उससे दबाव डालकर जबरदस्ती दिलवा दिया था। रोचक यह होता है कि गवाह की बात को स्वीकार करने वाली अदालतें सम्बन्धित पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई आदेश पारित नहीं करतीं जिसके द्वारा ऐसा गैर कानूनी काम अगर किया गया है तो एक गम्भीर अपराध है। पिछले दिनों एक सच्ची घटना पर बनी फिल्म का नाम अदालती व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करने वाला था। फिल्म का नाम था- नो वन किल्लड् जेसिका। देश की राजधानी में सैकड़ों सम्भ्रांत लोगों के बीच एक काम करने वाली लड़की की हत्या हो जाती है। हत्यारे के प्रभाव के कारण उपस्थित सम्भ्रांत लोग गवाही नहीं देते और जिन साधरण लोगों ने दी होती है वे बदल जाते हैं, परिणामस्वरूप अदालत किसी को भी जिम्मेवार नहीं ठहरा पाती। इसलिए फिल्मकार उसका नाम देता है, नो वन किल्ल्ड जेसिका।
हमारी अदालतों में एक नहीं अपितु किसी को भी जिम्मेवार न ठहराने वाले हजारों फैसले प्रति माह होते हैं। गुजरात में सरे आम हजारों मुसलमानों का नरसंहार कर दिया गया किंतु अदालत से किसी को भी सजा नहीं मिल सकी। मध्य प्रदेश में टीवी कैमरों के सामने हुए सव्वरवाल हत्याकाण्ड के प्रकरण में मुकदमे को प्रदेश से बाहर ले जाकर भी न्याय नहीं हो सका क्योंकि प्रकरण को प्रस्तुत करने वाले सजा दिलाना ही नहीं चाहते थे। इसलिए सवाल एक नये कानून के बनने या नई जाँच एजेंसी खड़ी करने भर का नहीं है अपितु एक जन चेतना पैदा करने और उस चेतना के लोकतांत्रिक प्रभाव को सफल बनाने का भी है। अन्ना हजारे का उक्त अभियान उस दिशा में कुछ नहीं कर रहा। सत्त्ता और विपक्ष दोनों ही अपने चुनावी मुद्दे के रूप में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं किंतु सरकार बदलने के बाद नई सरकार पिछली सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं करती। पूर्व सता पक्ष जो अब विपक्ष में आ चुका होता है तत्कालीन सत्तापक्ष पर वैसे ही आरोप दुहराने लगता है। वे सत्ता में रहते हुए एक जैसे काम करते हैं। विपक्ष में बैठे हुए जो लोग भी अन्ना हजारे के पक्ष में दिखने की कोशिश कर रहे हैं। वे भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए नहीं अपितु उसके नाम पर अपने लिए सत्ता का रास्ता सुगम करने के लिए ऐसा कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार इस व्यवस्था का सहज उत्पादन है और जब तक व्यवस्था को आमूलचूल बदलने का अभियान नहीं छेड़ा जायेगा तब तक भ्रष्टाचार का कुछ नहीं बिगड़ने वाला। अन्ना हजारे का यह अभियान भले ही वह लक्ष्य न प्राप्त कर सके जिसके लिए यह छेड़ा गया है किंतु व्यवस्था परिवर्तन के लिए होने वाले भावी आन्दोलन की पहली सीड़ी तो बन ही सकता है। इसकी असफलता यदि उत्साह को कम नहीं करे तो अगले अभियान का सूत्रपात करेगी। अभी यह जनयुद्ध नहीं है किंतु जनयुद्ध की शुरुआत ऐसे भी हो सकती है।
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BAHUT ACHHA LEKH HA
जवाब देंहटाएंKRIPYA AUR IS VISHAY PAR OR LAKH LIKHE
desh ke sabhi nagriko ke man me 1 kuntha hai, dilo me chingari bhi hai bus use sulgane ki deri hai
जवाब देंहटाएंmai bhi annaji sath hoo ,
जवाब देंहटाएंanna ji hum aap ke sath hai
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