क्या बन पायेगा सख्त लोकपाल कानून ....?
- अरविन्द सिसोदिया
मुझे नहीं लगता की जिस सख्त लोकपाल विधेयक की बात अन्ना और उनके हमसाया कर रहे थे वह बन पायेगा...! क्यों कि शांति भूषण और प्रशांत भूषण टिकाऊ व्यक्ति नहीं हैं .., ये विधेयक बनाने वाली कमेटी में वह सख्त रुख रख ही नहीं पाएंगे.., जिसकी चिल्लाचोंट बहार मचा रहे थे ..., पहली ही बैठक में आगया की संविधान संशोधन से बचेंगे ...? जिसका सीधा - सीधा अर्थ है कि हम उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार को बनाये रखेंगे ! जबकि जरुरत है लोकतंत्र के चारों पायदानों में व्याप्त भ्रष्टाचार के नियन्त्रण की.., केंद्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार पर पूरा देश आक्रोशित है , इस भ्रष्टाचार में मीडिया की भागेदारी से पर्दा उठा चुका है .., बड़े मीडिया घरानें अब किस हद तक अपनी ताकत का बेजा फायदा उठा रहे हैं .., आज आधा मीडिया पेड न्यूज पर परोक्ष / अपरोक्ष आ चुका है ! मुख्य पृष्ठ ही पेड़ न्यूज बनजाता है !!! यह किसी से छुपा नहीं है ..!! आनेवाले पांच साल में सही न्यूज के लिए समाज तरसा जाएगा | दूसरी तरफ नेताजी भ्रष्ट हैं इसी का फायदा तो अफसरशाही या नौकरशाही उठा रही है ..., नेता जी दो गलत कम करवाते हैं तो उसकी ओट से आठ गलत काम यह प्रशासनिक वर्ग करता है | जो भी जन प्रतिनिधि चुन जाता है वही सात पीडी के इंतजाम में लग जाता है ...! जहाँ तक सवाल न्यायपालिका का है तो वह अंग्रेजों के जमानें से ही घोर भ्रष्ट और गैर जिम्मेवार है .., न्याय पालिका की चौखट चढ़ना ही अन्याय्पालिका में गृह प्रवेश है .., चंद मामले सम्पूर्ण न्यायपालिका के दर्शन नहीं है .., जो आम व्यक्ती इस संस्थान में भुगत रहा है .., वही उसका असली दर्शन है ..!! जब तक जन लोकपाल के दायरे में जनप्रतिनिधित्व , सरकारें , कार्यपालिका , न्यायपालिका और मीडिया और जहाँ तक सम्पन्न तवका नहीं आयेगा .., हर तरह कि अनैतिक गतिविधि नहीं आयेगी , तब तक भ्रष्टाचार नियंत्रण संभव ही नहीं है | रिश्वत देना या लेना आज और अभी भी अपराध है .., हर बड़े दफ्तर में बड़े बड़े बोर्ड लगे हैं .., बोर्ड लगानें वाले ही सबसे पहले लेते हैं ...! कानून बनें यह पहली जरूरत है और सही तरीके से कोई लागू भी करे यह उससे बड़ी जरूरत है ..!! मुझस तो लगता है कि जन लोकपाल विधेयक की चीख पुकार देश का ध्यान बड़े बड़े भ्रष्टाचारों से हटानें की साजिस है ताकि केंद्र सरकार से ध्यान हट जाये और वर्तमान मुद्दों को हिंद महासागर में दफन किया जा सके ......!!!!
नीचे दो रिपोर्टें हैं जो आम मीडिया कि है ....., यह इस बात का संकेत करती हैं ........
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पीएम और जज भी हों लोकपाल के दायरे में
लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए केंद्र के मंत्रियों और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच शनिवार को हुई संयुक्त समिति की पहली बैठक में दोनों पक्षों के बीच यह सहमति बनी कि संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने से पहले एक ‘पुख्ता विधेयक’ तैयार कर लिया जाएगा।
सरकार की ओर से वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता और समाज की ओर से पूर्व विधि मंत्री तथा वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण की सह-अध्यक्षता में यह बैठक 90 मिनट चली। 10 सदस्यीय संयुक्त समिति में शामिल सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बैठक की वीडियोग्राफी कराने की मांग रखी, लेकिन बाद में दोनों पक्ष हर बैठक की ऑडियोग्राफी कराने पर राजी हो गए।
बैठक में महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार जन लोकपाल विधेयक को पेश किया गया। समिति में शामिल मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बैठक को ऐतिहासिक कदम करार दिया।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, दोनों पक्षों ने लोकपाल विधेयक के बारे में अपने विचार और अपना दृष्टिकोण रखा। मसौदा विधेयक का ताजा संस्करण (जन लोकपाल विधेयक) अध्यक्ष को दिया गया और उन्होंने उस पर गौर भी किया।
उन्होंने कहा, लेकिन दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी है कि स्थायी समिति की ओर से तैयार मसौदा विधेयक पर भी आगे होने वाली बैठकों में चर्चा की जाएगी। समिति के सभी सदस्य चाहते हैं कि एक पुख्ता विधेयक तैयार हो, जिसे संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाए। समिति की अगली बैठक 2 मई को होगी।
बैठक में गैर-सरकारी नुमाइंदों के तौर पर अन्ना हजारे, पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल मौजूद रहे,, जबकि सरकार की ओर से समिति के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी के साथ-साथ गृहमंत्री पी चिदंबरम, मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल, कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और सलमान खुर्शीद ने हिस्सा लिया।
इसी विधेयक को लेकर अन्ना हजारे ने अपने साथियों के साथ मिलकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर पांच दिन तक मुहिम चलाई, जिसके बाद सरकार को मांगें मानने के लिए मजबूर होना पड़ा।
आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर लोकपाल बिल के ऐसे कौन से मुद्दे हैं, जिन पर सरकार और अन्ना के बीच विवाद हो सकता है। :-
सरकार की ओर से वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता और समाज की ओर से पूर्व विधि मंत्री तथा वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण की सह-अध्यक्षता में यह बैठक 90 मिनट चली। 10 सदस्यीय संयुक्त समिति में शामिल सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बैठक की वीडियोग्राफी कराने की मांग रखी, लेकिन बाद में दोनों पक्ष हर बैठक की ऑडियोग्राफी कराने पर राजी हो गए।
बैठक में महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा तैयार जन लोकपाल विधेयक को पेश किया गया। समिति में शामिल मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बैठक को ऐतिहासिक कदम करार दिया।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, दोनों पक्षों ने लोकपाल विधेयक के बारे में अपने विचार और अपना दृष्टिकोण रखा। मसौदा विधेयक का ताजा संस्करण (जन लोकपाल विधेयक) अध्यक्ष को दिया गया और उन्होंने उस पर गौर भी किया।
उन्होंने कहा, लेकिन दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी है कि स्थायी समिति की ओर से तैयार मसौदा विधेयक पर भी आगे होने वाली बैठकों में चर्चा की जाएगी। समिति के सभी सदस्य चाहते हैं कि एक पुख्ता विधेयक तैयार हो, जिसे संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाए। समिति की अगली बैठक 2 मई को होगी।
बैठक में गैर-सरकारी नुमाइंदों के तौर पर अन्ना हजारे, पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल मौजूद रहे,, जबकि सरकार की ओर से समिति के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी के साथ-साथ गृहमंत्री पी चिदंबरम, मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल, कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और सलमान खुर्शीद ने हिस्सा लिया।
इसी विधेयक को लेकर अन्ना हजारे ने अपने साथियों के साथ मिलकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर पांच दिन तक मुहिम चलाई, जिसके बाद सरकार को मांगें मानने के लिए मजबूर होना पड़ा।
आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर लोकपाल बिल के ऐसे कौन से मुद्दे हैं, जिन पर सरकार और अन्ना के बीच विवाद हो सकता है। :-
पहला है ..., न्यायपालिका का मुद्दा। अन्ना और उनके समर्थक चाहते हैं कि इस बिल में न्यायपालिका को भी शामिल किया जाए। लेकिन सरकार के मुताबिक संविधान इस बात की अनुमति नहीं देता।
दूसरा है .., हजारे समर्थक चाहते हैं कि लोकपाल सबसे ऊपर हो। उसके पास प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को भी पद से हटाने की ताकत हो। लेकिन संविधान के मुताबिक प्रधानमंत्री को सिर्फ राष्ट्रपति ही बहुमत न होने पर हटा सकते हैं और चीफ जस्टिस को पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग लाना पड़ता है।
तीसरा मुद्दा है .., लोकपाल फंड का। हजारे चाहते हैं कि जुर्माने की राशि लोकपाल फंड में जमा हो, जबकि जब्त हुए सारा पैसा एक ही सरकारी फंड में जाता है। सरकार का दावा है कि ऐसे में हर समिति हर संस्था अपना खुद का फंड मांगने लगेगी।
चौथा मुद्दा है..., शिकायतकर्ता की जवाबदेही का। हजारे समर्थक चाहते हैं कि शिकायत गलत पाई जाने के बावजूद शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो, लेकिन सरकार चाहती है कि शिकायतकर्ता की कोई न कोई जवाबदेही हो।
दूसरा है .., हजारे समर्थक चाहते हैं कि लोकपाल सबसे ऊपर हो। उसके पास प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को भी पद से हटाने की ताकत हो। लेकिन संविधान के मुताबिक प्रधानमंत्री को सिर्फ राष्ट्रपति ही बहुमत न होने पर हटा सकते हैं और चीफ जस्टिस को पद से हटाने के लिए संसद में महाभियोग लाना पड़ता है।
तीसरा मुद्दा है .., लोकपाल फंड का। हजारे चाहते हैं कि जुर्माने की राशि लोकपाल फंड में जमा हो, जबकि जब्त हुए सारा पैसा एक ही सरकारी फंड में जाता है। सरकार का दावा है कि ऐसे में हर समिति हर संस्था अपना खुद का फंड मांगने लगेगी।
चौथा मुद्दा है..., शिकायतकर्ता की जवाबदेही का। हजारे समर्थक चाहते हैं कि शिकायत गलत पाई जाने के बावजूद शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो, लेकिन सरकार चाहती है कि शिकायतकर्ता की कोई न कोई जवाबदेही हो।
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लोकपाल विधेयक सिर्फ केंद्र के लिए - संतोष हेगड़े
बैंगलोर। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संतोष एन. हेगड़े का कहना है कि लोकपाल विधेयक केवल केंद्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ने में सहायक होगा, न कि राज्यों में जहां कि भ्रष्टाचार का स्तर चिंताजनक स्थिति में है।मालूम हो कि हेगड़े कर्नाटक के लोकायुक्त हैं और लोकपाल विधेयक तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित 10 सदस्यीय समिति के सदस्य भी हैं।
हेगड़े ने कहा कि लोकपाल प्रधानमंत्री सहित केंद्रीय मंत्रियों, केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले कथित भ्रष्टाचार से तो निपटेगा। लेकिन राज्यों में स्थानीय स्तर पर बहुत अधिक भ्रष्टाचार है, जिससे निपटने की जिम्मेदारी लोकायुक्त (राज्यस्तरीय लोकायुक्त) पर है।
जन लोकपाल विधेयक के विभिन्न प्रावधानों को तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभा चुके हेगड़े को उम्मीद है कि भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के खिलाफ लड़ाई न केवल केंद्र के स्तर पर तेज होगी, बल्कि राज्यों में भी।
हेगड़े ने कहा कि केंद्र में लोकपाल का मामला काफी दिनों से लम्बित है। कर्नाटक और कुछ अन्य राज्यों, जहां लोकायुक्त की व्यवस्था है और वे अपना काम कर रहे हैं, के विपरीत केंद्र के स्तर पर इस तरह की कोई संस्था नहीं है, जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे लोग अपनी फरियाद कर सकें। यह बहुत जरूरी है, क्योंकि केंद्र में भी भ्रष्टाचार बढ़ गया है और हाल में कई घोटाले सामने आए हैं।
हेगड़े ने कहा कि चूंकि लोकपाल राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार के मामलों और अन्य शिकायतों को सीधे नहीं निपटा सकता, लिहाजा संयुक्त समिति में शामिल सामाजिक प्रतिनिधि यह सुनिश्चित कराने की कोशिश करेंगे कि अधिनियम एकरूप हो और उसके अधिकार लोकायुक्तों के जरिए सभी राज्यों में भी लागू हों।
हेगड़े ने कहा कि मैंने एक सुझाव यह दिया है कि लोकपाल अधिनियम को एकरूप होना चाहिए और इसके अधिकार सभी राज्यों में लागू होने चाहिए ताकि लोकायुक्त के पास भी भ्रष्टाचार से निपटने के लिए समान अधिकार हो। क्योंकि लगभग 90 फीसीद भ्रष्टाचार की घटनाएं जमीनी स्तर पर घटती हैं, चाहे वह स्थानीय निकाय हों, जिला कार्यालय हों या राज्य की राजधानियां।
हेगड़े ने कहा कि यद्यपि लोकपाल के फैसले को अंतिम रूप में स्वीकार करना, त्वरित न्याय के हित में होगा, लेकिन आरोपी या दोषी व्यक्ति को कानूनी तौर पर सर्वोच्च न्यायालय जाने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि उसे देश के कानून के तहत इसका अधिकार होगा, खासतौर से वहां, जहां मौलिक अधिकार का मामला शामिल होगा।
हेगड़े के मुताबिक, भले ही कोई व्यक्ति लोकपाल द्वारा दोषी ठहराया जा चुका हो, हम उसे लोकपाल के फैसले के विरुद्ध कानूनी प्रक्रिया अपनाने से नहीं रोक सकते। क्योंकि हम संविधान के अधीन हैं, जो हर नागरिक को अपना बचाव करने का अधिकार देता है।
हेगड़े ने बताया कि केंद्रीय अधिनियम के रूप में लोकपाल कर्नाटक लोकायुक्त अधिनियम की तर्ज पर हर राज्यों में समान कानून के साथ लोकायुक्त का गठन करेगा। कर्नाटक लोकायुक्त अधिनियम देश का एक सर्वश्रेष्ठ अधिनियम है। लेकिन पिछले चार सालों से लोकायुक्त पद पर होने के बावजूद मैं उपयुक्त अधिकारों के अभाव में भ्रष्टाचार व कुप्रशासन के खिलाफ कुछ नहीं कर पाया हूं।
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एक लेख यह भी है , जिसमें कुछ बात कहनें की है ....
http://hastakshep.com/?p=5733
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