कांग्रेस गुंडागर्दी का बेनकाव चेहरा : पीएसी में उपद्रव

- अरविन्द सिसोदिया 
      २८ अप्रेल २०११ को एक सुनियोजित तरीके से , निहित स्वार्थ हेतु ,संसद की गरिमा पर ,कांग्रेस के नेतृत्व में यू पी ए ने हमला किया ..! प्रधान मंत्री अपने को लाख पाक साफ बताते हों .., असल में ये ही  देश के लुटेरों का दलाल है ! चाहे २ जी का मामला हो ,चाहे  एस बैंड स्पेक्ट्रम का मामला हो ,  चाहे सुरेश कलमाड़ी की लूट में मणिशंकर अय्यर का प्रधानमंत्री को पत्र द्वारा सचेत करने का मामला हो या थामस साहब की गलत नियुक्त का मामला हो ..!! प्रधानमंत्री जी  स्वंय और उनका कार्यालय पाप का स्थापक रहा है | वे करें भी तो क्या ..? वे तो रिमोट प्रधान मंत्री हैं ..!!! लूट की हो या पी ए सी में हंगामें की बात हो .., असल कर्ता धर्ता तो कांग्रेस और यू पी ए का नेतृत्व है जिसके इशारे के बिना यह संभव ही नहीं !!!!! इस नेतृत्व को कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष सीताराम केसरी को लात मार कर हटाने का अनुभव है !!! यह फासिस्ट मानसिकता भी इटली में ही जन्मी है , फासिस्ट गतिविधियों का अनुभव भी वहीं से आया है !!!  यह इतिहास है जब जब कांग्रेस पर बात आती है तब तब वह आक्रमण पर उतर आती है , विपक्ष की आवाज बंद करने के लिए आपातकाल  लगा निर्दोषों को १८ - १८ महीनें जेल में दल चुकी है यह कांग्रेस ! इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हजारों सिखों का नरसंहार करने वालो यह कांग्रेस देश को अपनी लूट की जागीर समझती है !! 

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          नई दिल्ली। पब्लिक एकाउंट्स कमेटी (पीएसी) की बैठक में गुरुवार को हुए बवाल पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि ये बवाल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इशारे पर हुआ। गड़करी ने कहा कि चार मंत्रियों ने संसद में बैठकर पीएसी की बैठक में उपद्रव करवाया। जबकि कांग्रेस का कहना है कि सदस्यों का बहुमत मुरली मनोहर जोशी की रिपोर्ट के खिलाफ था।  मुरली मनोहर जोशी के पक्ष में मजबूती से उतरी बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गड़करी ने पीएसी में तख्ता पलट के मुद्दे पर आरोप लगाते हुए कहा कि सारा हंगामा प्रधानमंत्री की शह पर हुआ है। जब तक पीएसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय पर हाथ नहीं डाला था, तब तक सब ठीक था। लेकिन पीएमओ पर उंगली उठते ही कांग्रेस आलाकमान की बौखलाहट सामने आ गई।गड़करी का कहना था कि जेपीसी न बने इस कोशिश में कांग्रेस पीएसी की तारीफों के पुल बंधा रही थी। प्रधानमंत्री खुद जोशी को गुणी और अनुभवी बताकर उनके सामने पेशी को तैयार थे। लेकिन जब पीएसी ने सचमुच पीएमओ की पोल खोल दी तो कांग्रेस से लेकर प्रधानमंत्री तक को मिर्ची लग गई। हालांकि गड़करी के इन आरोपों के जवाब में कांग्रेस ने साफ कर दिया कि इस रिपोर्ट से ज्यादतर सदस्य सहमत नहीं थे।
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नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती भले ही कांग्रेस को पानी पी-पीकर कोसें लेकिन जब भी कांग्रेस संकट में फंसती है दोनों पार्टियां उसकी संकटमोचक बनकर सामने आ जाती हैं। गुरुवार को भी ऐसा ही हुआ जब पीएसी की बैठक में 2जी घोटाले में कांग्रेस और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भद्द पिटने से बच गई क्योंकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सांसद इस मसले पर ऐन वक्त पर केंद्र की यूपीए सरकार के समर्थन में आ गए।
गौरतलब है कि पीएसी ने 2जी घोटाले में न सिर्फ पीएमओ बल्कि तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका पर सवाल उठाए थे। पीएसी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में ये भी कहा कि पीएम को इस मामले में पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया। अगर ये रिपोर्ट पास हो जाती तो न सिर्फ कांग्रेस बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए काफी असहज स्थिति पैदा हो जाती। ऐसे मौके पर संकटमोचक बनकर सामने आए सपा और बसपा के पीएसी में मौजूद एक-एक सदस्य।
पीएसी में कुल 21 सदस्य हैं। इनमें से कांग्रेस के सात और डीएमके के 2 सदस्य तो पहले से ही पीएसी रिपोर्ट के विरोध में थे। गुरुवार को सपा और बसपा के एक-एक सदस्य भी रिपोर्ट के विरोध में आ गए। नतीजतन 21 सदस्यों में से बहुमत यानी 11 सदस्य रिपोर्ट के विरोध में आ गए। इन 11 सदस्यों ने पहले तो समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी पर अपनी भड़ास निकाली। जब जोशी बैठक छोड़कर चले गए तो इन सदस्यों ने बहुमत से सैफुद्दीन सोज को अपना नया अध्यक्ष चुन लिया। नए अध्यक्ष ने पीएसी की रिपोर्ट खारिज कर दी।हालांकि, पीएसी का नया अध्यक्ष चुना जाना वैधानिक रूप से कितना सही है इसपर विशेषज्ञों की राय अलग है क्योंकि पीएसी का चेयरमैन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है लेकिन फिलहाल रिपोर्ट पर विवाद पैदा कर कांग्रेस ने खुद पर लगे दाग धुंधले करने में तो कामयाबी पा ही ली है।
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नई दिल्ली | संसद व विधानसभाओं के बाद संसद की प्रतिष्ठित लोकलेखा समिति (पीएसी) में भी गुरुवार को संसदीय नियमों की धज्जियां उड़ती नजर आईं। यूपीए के सदस्यों ने 2-जी घोटाले की मसौदा रिपोर्ट को 11 मतों से खारिज कर दिया। रिपोर्ट में पीएम व उनके कार्यालय को 2-जी घोटाले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। कांग्रेस ने रिपोर्ट खारिज करने के लिए अलग से बैठक की। इसमें कांग्रेस नेता सैफुद्दीन सोज को तत्काल अध्यक्ष चुन लिया गया। तब मुरली मनोहर जोशी बैठक को स्थगित कर एनडीए व कुछ अन्य पार्टी सदस्यों समेत बैठक से बाहर जा चुके थे। कांग्रेस-द्रमुक की मुहिम में उनका साथ दिया मुलायम सिंह की पार्टी सपा और मायावती की बसपा ने।

गुरुवार के घटनाक्रम से 2-जी मामले की रिपोर्ट का भविष्य सवालों में है। हालांकि जोशी की चली तो वह लोकसभा स्पीकर को रिपोर्ट जरूर सौंपेंगे। उनके पास दो दिन का समय है, क्योंकि पीएसी का कार्यकाल 30 अप्रैल तक है। फिलहाल जोशी ने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक वह रिपोर्ट देने को अडिग हैं। इससे पहले पीएसी की बैठक में जमकर हो-हल्ला हुआ। सदस्य एक-दूसरे की ओर लपकते नजर आए। यूपीए सदस्यों का आरोप था कि पहले मसौदा रिपोर्ट लीक होने की जांच हो। उसके बाद रिपोर्ट पर मतदान कराया जाए, ताकि साबित हो सके कि बहुमत रिपोर्ट के खिलाफ है। उन्होंने रिपोर्ट आउटसोर्स कर लिखाने का भी आरोप लगाया। आरोप कांग्रेस के सात व दो द्रमुक सदस्यों द्वारा लगाए गए।

अब क्या कर सकते हैं जोशी ?

संसदीय नियमों व परंपरा पर गौर करें तो पीएसी प्रमुख जोशी के पास तीन विकल्प हैं। 
पहली - २-जी मामले पर सदस्यों का बहुमत मसौदा रिपोर्ट के खिलाफ होने के मद्देनजर यह रिपोर्ट खारिज मान ली जाए। 
दूसरा - विकल्प है कि रिपोर्ट का मसौदा यथावत रहे और
तीसरा - मौजूदा कार्यकाल के बाद नए सिरे से गौर किया जाए। 
 भाजपा आगामी कार्यकाल में भी जोशी को अध्यक्ष बनाए रखने की बात साफ कह चुकी है। मगर उस स्थिति में नई समिति में मुद्दे पर चर्चा का प्रस्ताव लाना होगा। 

तीसरा - विकल्प यह है कि जोशी अध्यक्ष के अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए तमाम घटनाक्रम को दरकिनार कर दें और रिपोर्ट स्पीकर को सौंप दें। फिलहाल, तीसरे विकल्प की संभावना मजबूत है।

 ये विरोध में

कांग्रेस (7), डीएमके (2), सपा (1), बसपा (1)

पक्ष में भाजपा (4), शिवसेना (1), जेडी-यू (1), माकपा (1), बीजेडी (1) एआईएडीएमके (2)।

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