श्रीराधारानी की राधाष्टमी
राधाष्टमी
- अभिनव शर्मा "वासिष्ठ"
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राधाष्टमी
भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को कृष्ण प्रिया राधाजी का जन्म हुआ था, अत: यह दिन राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है. राधाष्टमी के अवसर पर उत्तर प्रदेश के बरसाना में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं. बरसाना को राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है. बरसाना मथुरा से 50 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिम में और गोवर्धन से 21 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है. यह एक पर्वत के ढ़लाऊ हिस्से में बसा हुआ है जिसे ब्रह्मा पर्वत के नाम से जाना जाता है.
राधाभाव
श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रेम और रस की त्रिवेणी जब हृदय में प्रवाहित होती है, तब मन तीर्थ बन जाता है। 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' का यह महाभाव ही 'राधाभाव' कहलाता है. श्रीकृष्ण वैष्णवों के लिए परम आराध्य हैं, वैष्णव श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानते हैं, आनंद ही उनका स्वरूप है. भगवान श्रीकृष्ण की उपासना मात्र वैष्णवों के लिए ही नहीं, वरन समस्त प्राणियों के लिए आनंददायक है. श्रीकृष्ण ही आनंद का मूर्तिमान स्वरूप हैं और कृष्ण प्रेम की सर्वोच्च अवस्था ही 'राधाभाव' है.उपनिषद और पुराणों से
जिस प्रकार श्रीकृष्ण आनंद का विग्रह हैं, उसी प्रकार राधा प्रेम की मूर्ति हैं. अत: जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं राधा हैं और जहां राधा हैं, वहीं श्रीकृष्ण हैं. कृष्ण के बिना राधा या राधा के बिना कृष्ण की कल्पना के संभव नहीं हैं. इसी से राधा 'महाशक्ति' कहलाती हैं
* राधोपनिषद् में राधा का परिचय देते हुए कहा गया है-
कृष्ण इनकी आराधना करते हैं, इसलिए ये राधा हैं और ये सदा कृष्ण की आराधना करती हैं, इसीलिए राधिका कहलाती हैं. ब्रज की गोपियां और द्वारका की रानियां इन्हीं श्री राधा की अंशरूपा हैं. ये राधा और ये आनंद सागर श्रीकृष्ण एक होते हुए भी क्रीडा के लिए दो हो गए हैं. राधिका कृष्ण की प्राण हैं. इन राधा रानी की अवहेलना करके जो कृष्ण की भक्ति करना चाहता है, वह उन्हें कभी पा नहीं सकता.'
* स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं. इसी कारण भक्तजन सीधी-साधी भाषा में उन्हें 'राधारमण' कहकर पुकारते हैं.
* पद्म पुराण में 'परमानंद' रस को ही राधा-कृष्ण का युगल-स्वरूप माना गया है. इनकी आराधना के बिना जीव परमानंद का अनुभव नहीं कर सकता.
* भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन महाराज वृषभानु की पत्नी कीर्ति के यहां भगवती राधा अवतरित हुईं. तब से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी 'राधाष्टमी' के नाम से विख्यात हो गई.
* नारद पुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है.
* पद्म पुराण में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है. राधा और कृष्ण को 'युगल सरकार' की संज्ञा तो कई जगह दी गई है.
* शिव पुराण में श्रीकृष्ण सखा विप्र सुदामा से भिन्न एक सुदामा गोप को राधाजी द्वारा श्राप दिए जाने का उल्लेख है, जिसके कारण वह् सुदामा गोप भी राधाजी को श्राप देता है और इसी श्राप के कारण राधाजी और कृष्णजी का 100 वर्ष का वियोग पृथ्वी पर होता है. (श्रीकृष्ण के गोकुल छोडने से लेकर कुरुक्षेत्र में राधाजी से दुबारा हुई भेंट तक)
निष्काम प्रेम और समर्पण
राधा का प्रेम निष्काम और नि:स्वार्थ है. वह श्रीकृष्ण को समर्पित हैं, राधा श्रीकृष्ण से कोई कामना की पूर्ति नहीं चाहतीं. वह सदैव श्रीकृष्ण के आनंद के लिए उद्यत रहती हैं. इसी प्रकार जब मनुष्य सर्वस्व समर्पण की भावना के साथ कृष्ण प्रेम में लीन होता है, तभी वह राधाभाव ग्रहण कर पाता है. कृष्ण प्रेम का शिखर राधाभाव है. तभी तो श्रीकृष्ण को पाने के लिए हर कोई राधारानी का आश्रय लेता है.
महाभावस्वरूपात्वंकृष्णप्रियावरीयसी।
प्रेमभक्तिप्रदेदेवि राधिकेत्वांनमाम्यहम्॥
राधा जी की सखियाँ
कथाओं में राधा जी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम हैं-
1. ललिता,
2. विशाखा,
3. चित्रा,
4. इन्दुलेखा,
5. चम्पकलता,
6. रंगदेवी,
7. तुंगविद्या
8. सुदेवी।
वृंदावन में इन सखियों को समर्पित प्रसिद्ध अष्टसखी मंदिर भी है.
भागवत में राधा
भागवत में भी राधा का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है लेकिन परोक्ष रूप से राधा नाम छिपा हुआ है. भागवत में कहा गया है - 'गोपियाँ आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्रिय श्याम ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकान्त में ले गए हैं. यह गोपी और कोई नहीं बल्कि राधा ही थीं. श्लोक के 'आराधितो' शब्द में राधा का नाम भी छिपा हुआ है.
भागवत में महारास के प्रसंग में इस श्लोक में वर्णन है-
'तत्रारभत गोविन्दो रासक्रीड़ामनुव्रतै।
स्त्रीरत्नैरन्वितः प्रीतैरन्योन्याबद्ध बाहुभिः।।'
राधा जी के पिता वृषभानु प्रमुख गोप थे. वे वृंदावन के निकट बरसाना के रहने वाले थे. अनेक भागवत के बाद के ग्रंथों में तो राधा नाम का उल्लेख हुआ है. जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं के 'कवच' पाठ होते हैं उसी प्रकार राधा जी का भी कवच उपलब्ध है. यह कवच प्राचीन 'श्री नारदपंचरात्र' में है, जो यह सिद्ध करता है कि राधा नाम भक्तिकालीन कवियों से बहुत पहले भी था.
श्री नारदपंचरात्र में शिव पार्वती संवाद के रूप में प्रस्तुत 'श्री राधा कवचम्' के प्रारंभ में 'श्री राधिकायै नम:' लिखा हुआ है. पहले श्लोक में देवी पार्वती भगवान शंकर से अनुरोध करती हैं-
कैलास वासिन् भगवान् भक्तानुग्रहकारक।
राधिका कवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो।।
****** विशेष *******
शुकदेव मुनि द्वारा राजा परीक्षित को सुनाई गई कथा पर आधारित श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र से संबंधित प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ 'श्रीमद्भागवत पुराण' में राधा नाम का उल्लेख नहीं है. महापुरूषों ने इसके दो कारण बताए हैं, एक तो यह कि राधा नाम सुनते ही शुकदेव जी को समाधि लग जाती थी इसलिए भगवान वेदव्यास ने इन्हें जब कथा सुनाई तो इस बात को ध्यान रखते हुए राधा नाम का उच्चारण ही नहीं किया और दूसरा कुछ लोग बताते हैं कि राधाजी ने महामुनि वेदव्यासजी से अनुरोध किया था कि वे इस ग्रंथ में उनका नामोल्लेख कहीं न करें और यह पूर्णत: श्रीकृष्ण को समर्पित हो.
एक मान्यता यह भी है कि वृंदावन के 'इमली तला' में उनका इस रूप में विधिवत अभिषेक भी हुआ था. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वृंदावन में यमुना पार 'भांडीर वन' में स्वयं ब्रह्मा जी के पुरोहितत्व में श्रीकृष्ण-राधा विवाह भी संपन्न हुआ था.
पूजा
राधाष्टमी को राधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करनी चाहिये. सर्वप्रथम राधाजी को पंचामृत से स्नान कराकर उनका श्रृंगार करना चाहिये. इसके बाद मध्याह्न के समय श्रद्धा, भक्तिपूर्वक राधाजी की पूजा करनी चाहिए, तत्पश्चात फल-फूल चढ़ाकर धूप-दीप इत्यादि से आरती करने के उपरांत भोग लगाना चाहिये. [कुछ मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों, 27 कुओं के जल, सवा मन दूध, दही, घृत एवं बूरा और औषधियों से मूल शांति होती है और उसके बाद में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रों के साथ 'श्यामाश्याम' का अभिषेक किया जाता है]. गहवर वन की परिक्रमा की भी मान्यता है. यदि संभव हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए. फिर दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर और दान करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए. इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति करें. इस प्रकार विधिपूर्वक व श्रद्धा से यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है व इस लोक और परलोक के सुख भोगता है. मनुष्य ब्रज का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों में (परिवार के सदस्य की तरह) निवास करता है.
राधा जी की आरती
(एक भक्त ने कृष्णआरती से प्रेरित हो राधाजी के लिए भी आरती की रचना की है, आप चाहें तो इसका प्रयोग भी कर सकते हैं)
आरती राधा जी की कीजै,
आरति वृषभानु लली की कीजै।
कृष्ण संग जो करे निवासा, कृष्ण करें जिन पर विश्वासा, आरति वृषभानु लली की कीजै।
कृष्ण चन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई, उसी शक्ति की आरती कीजै।
नन्द पुत्र से प्रीति बढाई, जमुना तट पर रास रचाई, आरती रास रचाई की कीजै।
प्रेम राह जिसने बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई, आरती राधा जी की कीजै।
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती, आरती दु:ख हरणी की कीजै।
कृष्ण चन्द्र ने प्रेम बढाया, विपिन बीच में रास रचाया, आरती कृष्ण प्रिया की कीजै।
दुनिया की जो जननि कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे, आरती जगत मात की कीजै।
निज पुत्रों के काज संवारे, आरती गायक के कष्ट निवारे, आरती विश्वमात की कीजै।
बोलिये श्रीराधारानी की..... जय.
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