6 दिस्मबर 1992 : शौर्य दिवस क्यों .....?





शौर्य दिवस क्यों .....?
भारत भूमि तीन हजार साल से विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण से जूझते हुये विजय
को प्राप्त हुई है।
उसके हजारों मंदिर महल ओर शिल्प कौशल को हिंसा और बर्बरता से जमीन में मिलाया गया ,
खंड खंड किया गया , नष्ट किया गया, उन्हे अपने नामों से बदल लिया गया !!
आजादी के बाद सबसे पहले इन सभी स्थानों को आजाद किया जाना चाहिये था,
सोमनाथ मंदिर परिसर की तरह, नव निर्माण होना चाहिये था,
दुनिया के तमाम गुलाम देशें में आजाद होते ही यह हुआ है। मगर कांग्रेस के नेहरू और उनके वंशजों ने इसे अपना गुलाम देश मान लिया और
साम्प्रदायिकता के द्वेष को
पुनः जाग्रत करने वाले अवशेषों को यथावत रखा ताकि आपस में वैमन्स्य बना रहे ।

6 दिस्मबर 1992 वह दिन है जिसमें जनशक्ति ने अपना न्याय स्वंय हांसिल कर लिया,
बाद में 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ न्यायालय ने भी यह मानलिया कि वह स्थान श्रीराम जन्मभूमि ही है।

६ दिसम्बर १९९२ , कोंग्रेस की फूट डाला राज करो नीति पर भारत की जनशक्ती की विजय थी।  यह दिन सत्य की जीत इसलिए हे कि यह देश अनगिनित सदियों से हिन्दू भूमि हे और यहाँ के राज प्रसाद हिंदुत्व के अधिस्थान हें , कोई भी सरकार या व्यक्ति उन्हें स्वार्थी मानसिकता से नकार नही सकता !

आज ही केंद्र सरकार और अन्य सभी पक्षकरों को इस भूमि पर तत्काल श्रीराम लला का नव भव्य मंदिर बनाने में जुटना चाहिए यही इस देश की  मांग है ।  
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रामजन्मभूमि पर अदालत का ऐतिहासिक फैसला
General Knowledge Category: घटनाचक्र , भारत 2010
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30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या के विवादित स्थल को रामजन्मभूमि घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने बहुमत से फैसला दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदुओं के रामजन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए। वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा।
तीन जजों की खंडपीठ ने मुसलमानों के सुन्नी वफ्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया।
संतुलित रहा फैसला
इसके साथ ही अदालत ने यह भी फैसला दिया कि कुछ हिस्सों पर, जिसमें सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल हैं, पर निर्मोही अखाड़े का कब्जा रहा है, इसलिए यह हिस्सा निर्मोही अखाड़े के पास ही रहेगा।
अदालत के दो न्यायधीशों ने यह भी फैसला दिया कि इस विवादित परिसर के कुछ स्थान पर मुसलमान नमाज अदा करते रहे हैं, इसलिए जमीन का एक-तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दे दिया जाए।
अयोध्या खंडपीठ में कुल तीन जज शामिल थे जिन्होंने कुल दस हजार पन्नों का अपना फैसला सुनाया। हालांकि जजों ने यह भी माना कि विवादित परिसर के अंदर भगवान राम की मूर्तियां 22 या 23 दिसंबर 1949 को रखी गई थी। अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर अथवा उसके आदेश पर उसके सिपहसालार मीर बकी ने उसी स्थल पर किया था, जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थल मानते रहे हैं।
अदालत ने यह भी माना कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में वहां एक विशाल प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं, जिसके खंडहर पर मस्जिद बनी। यद्यपि तीनों जजों में इस बात को लेकर मतभेद थे कि मस्जिद बनाते समय पुराना मंदिर तोड़ा गया था।
अदालत के फैसले के अनुसार जमीन बंटवारे में सहूलियत के लिए केेंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहित 70 एकड़ जमीन को शामिल किया जाएगा।
लंबे समय तक खिंचा मुकदमा
अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक के चार मामलों की सुनवाई करने वाली हाईकोर्ट की विशेष पीठ पिछले 21 वर्र्षों में 13 बार बदली गई। खंडपीठ में यह बदलाव जजों के रिटायर होने, पदोन्नति या तबादले की वजह से करने पड़े।
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का यह मामला शुरू में फैजाबाद के सिविल कोर्ट में चल रहा था। यह मामला स्थानीय स्तर पर ही चल रहा था। शुरुआती दौर में देश के कम ही लोगों को इसके बारे में जानकारी थी।
लेकिन वर्ष 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आंदोलन और 1986 में विवादित परिसर का ताला खुलने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा। फिर 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विश्व हिंदू परिषद ने विवादित जमीन पर राम मंदिर के शिलान्यास की घोषणा करके मामले को काफी गर्मा दिया। इसके बाद राज्य सरकार के अनुरोध पर हाईकोर्ट ने एक जुलाई, 1989 को मामले को फैजाबाद की अदालत से हटाकर अपने पास ले लिया। इसके बाद से ही यह मामला हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में लंबित चल रहा था।
विवाद की सुनवाई के लिए 21 जुलाई, 1989 को तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस के.सी. अग्रवाल, जस्टिस यू.सी. श्रीवास्तव और जस्टिस सैयद अब्बास रजा की पहली विशेष पूर्ण पीठ बनी। विवादित मस्जिद गिरने के बाद केद्र सरकार ने जनवरी 1993 में अध्यादेश लाकर मालिकाना हक के चारों मामले समाप्त करके सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी कि क्या वहां कोई पुराना मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। वर्ष 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपनी राय देने से इंकार कर दिया और हाईकोर्ट को फैसला देने को कहा। इसके बाद जजों के हटने का सिलसिला जारी रहा। अंत में इस फैसले को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस यू. सी. खान व जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने सुनाया।
अयोध्या विवाद: इतिहास के आइने में
अयोध्या विवाद देश में लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बहुत बड़ा कारण रहा है। इसने देश की राजनीति को एक लंबे समय तक प्रभावित रखा।
हिंदू संगठनों का दावा रहा है कि बाबरी मस्जिद भगवान राम के मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। यह वही स्थल है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इस विवाद में सबसे बड़ा मोड़ उस वक्त आया जब 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया। अयोध्या विवाद का इतिहास काफी पुराना है जिसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
1528: अयोध्या में एक ऐसे स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थल मानते थे। ऐसा माना जाता है कि मुगल सम्राट बाबर के सिपाहसालार मीर बकी ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे बाबरी मस्जिद का नाम दिया गया था।
1853: पहली बार इस स्थल को लेकर अयोध्या में सांप्रदायिक दंगे हुए।
1859: ब्रिटिश शासन ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।
1949: भगवान राम की मूर्तियां विवादित स्थल पर रखी पाई गईं। मुसलमानों ने इसका विरोध किया और दोनों पक्षों की ओर से अदालत में मुकदमा कायम करवाया गया। सरकार ने इस स्थल को विवादित करार देते हुए ताला लगा दिया।
1984: विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में भगवान राम के जन्मस्थल को मुक्त कराने और वहां राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया गया। बाद में इसका नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के पास आ गया।
1986: जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को पूजा-पाठ करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने इस फैसले का विरोध करते हुए बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया।
1989: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया और विवादित स्थल के नजदीक राम मंदिर का शिलान्यास किया।
1990: विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुँचाया। वार्ता के द्वारा विवाद को सुलझाने के प्रयास तेज हुए।
1992: हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसमें 2000 से अधिक लोग मारे गए।
जनवरी 2002: अयोध्या विवाद के हल के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया।
फरवरी 2002: विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा की। सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठा हुए। अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, उसे गोधरा में जला दिया गया जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई।
13 मार्च, 2002: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी और किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिलापूजन करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। केद्र सरकार ने भी कहा कि अदालत के फैसले का पालन किया जाएगा। बाद में विश्व हिंदू परिषद व केद्र सरकार के बीच समझौता हो गया।
जनवरी 2003: रेडियो तरंगों के द्वारा यह पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष हैं। कोई स्पष्ट नतीजा नहीं निकला।
अप्रैल 2003: इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की। खुदाई करने पर रिपोर्ट में मंदिर के अवशेष दबे होने की बात कही गई।
जून 2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की जिसका कोई फल नहीं निकला।
30 जून, 2009: बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्र्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौपी।
24 नवंबर, 2009: लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश। आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया और नरसिंह राव को क्लीन चिट दी।
20 मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में खारिज की गई।

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 देश ने दिया परिपक्वता का परिचय
1992 में अयोध्या में विवादित ढ़ांचे के विध्वंस के बाद से गंगा में काफी पानी बह चुका है और देश के मिजाज में काफी परिवर्तन आ चुका है। 1992 में काफी बड़े पैमाने पर देश भर में दंगे हुए थे। लेकिन इस बार अयोध्या मामले में फैसला आने के बाद किसी तरह की हिंसा न होना इस बात को दर्शाता है कि देश अब राजनीतिक व सामाजिक रूप से काफी परिपक्व हो चुका है। हिंदू-मुस्लिम समुदायों दोनों ने ही जिस तरह से फैसले को लिया और किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की वह दर्शाता है कि देश ने अपने पुराने इतिहास से काफी कुछ सीखा है। फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष के याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी का यह कहना कि वे इस फैसले का स्वागत करते हैं और इस फैसले से बाबरी मस्जिद के नाम पर चल रहा राजनीतिक अखाड़ा बंद होगा- इस बात का सूचक है कि दोनों ही समुदाय अब शांति के पक्षदार हं। हालांकि दोनों ही पक्ष अब इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं लेकिन एक बात शीशे की तरह साफ है कि देश में अब इसके नाम से की जाने वाली राजनीति का समय समाप्त हो चुका है।

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