महंगाई : नतीजा चारों राज्यों में कांग्रेस की भारी हार हो गई



जब अटलबिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे , तब प्याज और आलू मामले महंगे क्या हुए थे कि भाजपा की तीन राज्यों  की सरकारें चली गईं थी । उन्होंने फिर मंहगाई पर येसी नकेल कसी की उनके राज में फिर मंहगाई नही हुई । कांग्रेस लगातार ९ साल से मंहगाई की अनदेखी कर रही हे । अब तो हद यह हो गई की खुद कांग्रेस सरकार ने मंहगाई बड़बाई , नतीजा चारों राज्यों में भारी  हार हो गई , जनता का असली दंड तो लोकसभा में आनेवाला हे 

-----------------
प्रभात मत : महंगाई के मोरचे पर चेतने का वक्त
http://www.prabhatkhabar.com/news/72377-story.html?google_editors_picks=true
महंगाई के मोरचे से आ रही खबरों को देखते हुए लगता नहीं कि निकट भविष्य में इसकी मार से छुटकारा मिलेगा. ताजा आंकड़ों के मुताबिक खाद्य-पदार्थो, विशेषकर सब्जियों, की कीमतों में खासी तेजी आयी है. इससे थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति नवंबर में बीते 14 माह की रिकॉर्ड ऊंचाई पर रही. सब्जियों की महंगाई का आलम यह है कि अक्तूबर से नवंबर के बीच कीमतों में तकरीबन 17 फीसदी का इजाफा हो गया है.

पिछले साल के नवंबर महीने की तुलना में इस साल नवंबर में आलू की कीमतें 26 फीसदी ऊंची रहीं, तो प्याज की कीमतें 190 प्रतिशत. मांस-मछली, दूध, अंडे आदि की कीमतों में इतनी विकराल तेजी भले न आयी हो, पर इनकी कीमतों में भी पिछले एक साल में 6 से 15 फीसदी का इजाफा हुआ है. फिर एक साल ही क्यों, बीते चार सालों में महंगाई लगातार बढ़ी है, परंतु यूपीए सरकार ने सिर्फ लाचारी का ही इजहार किया है, यह कह कर कि वैश्वीकरण के दौर में अगर वैश्विक बाजारों में चीजों के दाम बढ़ रहे हैं तो भारत में भी बढ़ेंगे.

पेट्रोलियम पदार्थो के मामले में यह बात एक हद तक सच है, लेकिन खाद्य-पदार्थो के मामले में नहीं. वैश्विक संस्था फूड एंड एग्रीकल्चरल एसोसिएशन का हालिया आकलन बताता है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य-पदार्थो की कीमतें कम हुई हैं. यूपीए सरकार यह बहाना भी बनाती रही है कि जैसे-जैसे घरेलू स्तर पर खाद्य-पदार्थो की आपूर्ति बढ़ेगी, इनकी कीमतें गिरेंगी, परंतु उत्पादन अच्छा रहने के बावजूद इनकी कीमतों की बढ़वार थमने का नाम नहीं ले रही है. दरअसल सरकार की प्राथमिकताओं में महंगाई रोकना शामिल ही नहीं है.

उल्टे यूपीए सरकार वित्तीय घाटा कम करने के नाम पर सामाजिक कल्याण की योजनाओं के मद में स्वीकृत बजट राशि में भी कमी करने जा रही है. सरकार का उद्देश्य मात्र इतना है कि बाजार से कर्ज लेना इतना महंगा न हो जाये कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां भारत को निवेश के लिए अलाभकर या जोखिम भरा देश करार दे दें. महंगाई की मार सबसे ज्यादा आम लोगों पर पड़ती है. हाल के चुनावी नतीजों में महंगाई का भी असर दिखा है और संभव है 2014 के आम चुनाव में भी यह मतदाताओं का रुझान तय करे. इसलिए यूपीए सरकार के लिए यह समय रहते चेत जाने का वक्त है.

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

‘फ्रीडम टु पब्लिश’ : सत्य पथ के बलिदानी महाशय राजपाल

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

कांग्रेस के पास एक भी बड़ा काम गिनाने को नहीं है - अरविन्द सिसोदिया

माँ बाण माता : सिसोदिया वंश की कुलदेवी

“Truth is one — whether witnessed in a laboratory or realized in the depths of meditation.” – Arvind Sisodia

सत्य एक ही है,वह चाहे प्रयोगशाला में देखा जाए या ध्यान में अनुभव किया जाए - अरविन्द सिसोदिया Truth is one

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे....