महंगाई की मार से नहीं मिली राहत


कांग्रेस भयानक महंगाई और मोदी के तूफान में अभी बुरी तरह चुनाव हारी है ,कांगेस शाषित दिल्ली और राजस्थान में वह एक बटा 10 के पास पहुच गई , कांग्रेस  मोदी को तो नहीं रोक सकती मगर महंगाई तो रोक सकती है ! मगर देश की जनता को वो अब भी महंगाई की चक्की में पीसे जा रही है ।
जिसका परिणाम उसे लोकसभा चुनावों में भुगतना होगा ।

महंगाई की मार से नहीं मिली राहत
रणविजय प्रताप सिंह First Published:27-12-2013
http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-387862.html
बढ़ती महंगाई ने इस साल उपभोक्ताओं की जेब हल्की करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। डॉलर के मुकाबले रुपये में आई रिकॉर्ड गिरावट और आर्थिक वृद्धि दर में लगातार आती कमी पूरे साल परेशानी का सबब बनी रही। हालांकि इस साल आर्थिक जगत में कुछ अच्छे संकेत भी मिले। देश में पहले महिला बैंक की शुरुआत हुई और भारतीय स्टेट बैंक  (एसबीआई) की कमान पहली बार किसी महिला के हाथ में आई। साल 2013 की प्रमुख आर्थिक गतिविधियों पर रणविजय प्रताप सिंह की रिपोर्ट

महंगाई से उपभोक्ता और सरकार परेशान
खाने-पीने के सामान की कीमतें इस साल आसमान पर रहीं। उपभोक्ताओं को इस साल प्याज 100 रुपये प्रति किलो, जबकि टमाटर 80 रुपये प्रति किलो के भाव पर खरीदना पड़ा। खुदरा महंगाई साल की शुरुआत में 10.79 फीसदी थी, लेकिन यह नवंबर में बढ़ कर 11.24 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। वहीं थोक महंगाई दर, जो जनवरी 2013 में 6.62 फीसदी थी, वह नवंबर में करीब एक फीसदी बढ़ कर 7.52 फीसदी दर्ज की गई, जो पिछले 14 महीने का उच्चतम स्तर है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी बढ़ती खुदरा महंगाई के सामने लाचार नजर आए। चिदंबरम को यह कहना पड़ा कि खाद्य मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने का कोई आसान तरीका नहीं है।

एफडी ने रिटर्न में शेयरों को पछाड़ा
रिटर्न के लिहाज से शेयर बाजार आकर्षक माना जाता है, लेकिन इस साल निवेशकों को इसमें ज्यादा फायदा नहीं हुआ। यहां तक कि सुरक्षित लेकिन कम रिटर्न वाला निवेश माना जाने वाला सावधि जमा (एफडी) ने कमाई के मामले में शेयरों को पीछे छोड़ दिया। साल की शुरुआत में सेंसेक्स 19,581 के स्तर पर था, जबकि यह 09 दिसंबर को कारोबार के दौरान अब तक के सर्वोच्च स्तर 21,483.74 के स्तर पर पहुंच गया था। इसके बावजूद निवेशकों को करीब 8% रिटर्न मिला, जबकि पिछले साल रिटर्न 26% था। वहीं एफडी में निवेशकों को इस साल करीब 9% रिटर्न मिला है।

सोने ने निवेशकों को किया निराश
इस बार इसमें निवेश करने वालों को नुकसान उठाना पड़ा। साल की शुरुआत में सोने की कीमत 31,145 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, जो मौजूदा समय में घट कर करीब 30 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम रह गई है। ऐसे में सोने में निवेश करने वाले उपभोक्ताओं को तीन फीसदी से अधिक का नुकसान हुआ है। वहीं चांदी में यह नुकसान 24 फीसदी का रहा।

महंगाई से ज्यादा रिटर्न देने वाला इंफ्लेशन बॉन्ड
रिजर्व बैंक ने छोटे निवेशकों की कमाई को महंगाई से बचाने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित बचत योजना नेशनल सेविंग सिक्यूरिटी-कम्यूलेटिव (आईआईएनएसएस-सी) बॉन्ड लाने की घोषणा की है। इस पर ब्याज दर की गणना उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर के मुताबिक होगी। इस पर खुदरा महंगाई की तुलना में सालाना 1.5 फीसदी ज्यादा ब्याज मिलेगा। इसमें आपको न्यूनतम 5,000 निवेश करना होगा, जबकि एक वित्त वर्ष के दौरान अधिकतम 5 लाख रुपये तक का निवेश किया जा सकता है। निवेश पर ब्याज की गणना छमाही और चक्रवृद्धि आधार पर होगी, जबकि इसकी परिपक्वता अवधि 10 साल रखी गई है।

महंगे कर्ज की पड़ी मार
साल की शुरुआत से सितंबर तक रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर (रेपो) में 0.75 तक की कटौती की, जिससे यह घट कर 7.25 % रह गई थी, लेकिन बैंकों ने इस कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया। वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के दबाव के बाद बैंकों ने महज 0.25 तक कर्ज सस्ता किया। हालांकि महंगाई पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा अक्तूबर और नवंबर में मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर लगातार चौथाई फीसदी बढ़ाने के बाद बैंकों ने कर्ज दोबारा महंगा कर दिया। इसके बावजूद साल की शुरुआत में जो रेपो दर आठ फीसदी थी वह नवंबर तक घट कर 7.75% पर आ गई है। रेपो दर पर बैंक रिजर्व बैंक से कम समय के लिए उधार लेते हैं।

डॉलर के मुकाबले धरातल पर रुपया
एक जनवरी को एक डॉलर 54.83 रुपये का था, जो 28 अगस्त को कारोबार के दौरान 68.85 रुपये पर पहुंच गया था। यह भारतीय मुद्रा का अब तक का सबसे निचला स्तर है। रघुराम राजन ने सितंबर में रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभालने के बाद रुपये में मजबूती के लिए अदला-बदली (स्वैप) स्कीम शुरू करने और तेल कंपनियों के लिए विशेष व्यवस्था करने जैसे उपाय किए, जिसके बाद मौजूदा समय में एक डॉलर की कीमत घट कर 62 रुपये के करीब पहुंच गई है। एक अनुमान के मुताबिक डॉलर की कीमत एक रुपये बढ़ने पर तेल कंपनियों पर आठ हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है।

आर्थिक विकास दर पांच फीसदी से नीचे
सरकार की ओर से निवेश बढ़ाने और अटकी परियोजनाओं को जल्द मंजूरी देने की पहल के बावजूद देश की आर्थिक वृद्धि दर (जीडीपी) ने रफ्तार नहीं पकड़ी। पिछले साल जीडीपी दर पांच फीसदी रही, जो एक दशक का निचला स्तर है। पिछली चार तिमाहियों से देश की जीडीपी पांच फीसदी से नीचे रही है, जो चिंताजनक है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने इस साल भारत की जीडीपी का अनुमान घटा कर 3.8 फीसदी कर दिया है, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने इसके 4.8 फीसदी और विश्व बैंक तथा एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने इसके 4.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।

कार खरीदने के मिले ज्यादा विकल्प
देश का वाहन उद्योग दो सालों से सुस्ती के दौर से गुजर रहा है, इसके बावजूद कंपनियों ने इस साल नई कारें पेश कीं। साल के मध्य में निसान ने डटसन गो प्रदर्शित की, जो अगले साल बाजार में आएगी। इसकी कीमत चार लाख रुपये से कम रहने की उम्मीद है। वहीं मारुति स्विफ्ट की टक्कर में हुंडई ने आई 10 ग्रांड को डीजल और पेट्रोल, दोनों में पेश किया। इसी तरह होंडा ने कॉम्पैक्ट सेडान (चार मीटर से छोटी) वर्ग में अमेज पेश करने के साथ ही भारत में अपनी पहली डीजल कार उतारी। फोर्ड ने छह लाख रुपये से कम कीमत में कॉम्पैक्ट स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (एसयूवी) इको स्पोर्ट उतार बाजार विशेषज्ञों को चौंका दिया। उपभोक्ता इसे काफी पसंद कर रहे हैं। वहीं टाटा मोटर्स ने लखटकिया कार के रूप में मशहूर नैनो और लोकप्रिय मॉडल इंडिका का सीएनजी मॉडल पेश किया।
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