उम्मीदें समझिए : विजयसिंह चौहान



उम्मीदें समझिए, नहीं तो बन सकता है और बड़ा रिकॉर्ड
विजयसिंह चौहान { दैनिक भास्कर के कोटा संस्करण के संपादक }
चुनाव परिणाम विश्लेषण
http://epaper.bhaskar.com/kota/16/10122013/0/1/
कोटा की सबसे बुजुर्ग दादी सूरजा देवी (११३ वर्ष) ने वोटिंग से एक दिन पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वे वोट डालने जरूर जाएंगी। अगले दिन हुआ भी यही। ११.३० बजे वे बेटे की गोद में वोट डालने पहुंची। इस बात ने साफ संकेत दे दिया था कि इस बार वोटिंग का जरूर रिकॉर्ड टूटेगा। शाम तक हुआ भी यही। कोटा की जागरूक जनता ने वोटिंग का प्रतिशत १३.२८ अंक बढ़ाकर जिले को राजस्थान में सिरमौर बना दिया। डाकमतों को छोड़ शहर की तीन सीटों पर ७६.१७%वोट पड़े। इनमें से भाजपा को ५३.८५% तो कांग्रेस को ३७.६५% वोट मिले। १६.२०% के इस अंतर ने काग्रेंस को घर बैठा दिया। जिले की शेष ३ सीटों पर भी यही हाल रहा और पार्टी सफाचट हो गई। वह भी तब जब उसके पास दो कद्दावर मंत्री और एक विधायक था। ऐसा वाकया ३६ साल पहले १९७७ में जनता लहर के समय हुआ था। तब कांग्रेस अपना वजूद नहीं बचा पाई थी। वोटिंग का यह प्रतिशत बढऩे की वजह सोनिया व मोदी की सभाएं भी रहीं। मोदी बार-बार भाषण में युवाओं को कर रहे थे, वोट डालने जरूर जाना। वोट डालने गए नए मतदाताओं में कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें पार्टी के सिंबल की जानकारी नहीं थी, लेकिन वोट किसे डालना है, पता था।

देश-प्रदेश के साथ कोटा शहर के नगर निगम में भी कांग्रेस काबिज है। यानी, यहां लगभग हर मुद्दा, कमी या गुस्सा था, जिससे कांग्रेस के विपक्ष में वोट जा सकता था। पुराने शहर या नदी पार क्षेत्रों में काफी काम हुए तो काफी नहीं भी। यहां का कामकाजी तबका स्थानीय मुद्दों, विकास के नजरिए और व्यवहार को लेकर भी वोट डालने निकला। राष्टीय मुद्दे छोड़ दें तो भाजपा इन्हीं मुद्दों को लेकर लड़ी और जीती भी। नए कोटा में कोचिंग की वजह से पढ़ा-लिखा और नौकरीपेशा तबका ज्यादा है। यहां नेशनल फैक्टर भी हावी रहे। इस क्षेत्र के लोगों ने रिकॉर्ड अंतर से जीत दिलाकर भाजपा को अपेक्षाएं बता दीं कि वह महंगाई से कितनी नाराज है। लाडपुरा में भाजपा पिछली बार कम मतों से आई थी, लेकिन इस बार एक ठोस अंतर है। यहां शहरी और ग्रामीण दोनों तरह के वोटर हैं। इन्होंने विकास में भेदभाव, महंगाई, भ्रष्टाचार और रीति-नीति तक को देखकर वोट डाला।

पिछले ५ साल में विकास के कामों की कांग्रेस के पास लंबी लिस्ट है, लेकिन शहर में आज भी ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें उसने छुआ ही नहीं या छुआ तो बेमन से। बंद एयरपोर्ट, अधूरा लटका हैंगिंगब्रिज, मथने वाला कोटा-झालावाड़ हाइवे, ठंडी होती कारखानों की भट्टियां और लड़ाई का अखाड़ा बने हुए नगर निगम से जनता पक चुकी है।
       भाजपा सौंदर्यीकरण में फिजूलखर्ची, सबको साथ लेकर न चलना, भेदभाव, लचर शासन, सुनवाई नहीं होने जैसी बातों की दुहाई देकर वोट मांग रही थी। अब जनता ने उन्हें जिस तीव्रता (भारी मतों) से चुना है, उससे अपेक्षाएं पता चलती हैं कि ये कितनी ज्यादा हैं। इस चुनाव में यह भी साबित हो गया है कि कोटा की जनता कितनी जागरूक है। अगर काम नहीं हुए तो वह और बड़ा तथा नया रिकॉर्ड भी बना सकती है।

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