हिन्दू राष्ट्र : अमर राष्ट्र हैं - सरसंघचालक माननीय डॉ. मोहन भागवत जी






संगठन गढ़े चलो सुपंथ पर बढे चलो,
भला हो जिसमे देश का वो काम सब किये चलो!
5 जनवरी को महाकोशल प्रान्त के संकल्प महाशिविर का समापन था. इस समापन कार्यक्रम में निवर्तमान शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी विशेष रूप में उपस्थित थे. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आपने कहा की, “हिन्दू समाज की यह विशेषता हैं, की हम किसी के प्रति विद्वेष की भावना नहीं रखते.” आपने आगे कहा की, “राजनैतिक चिन्तन को छोडकर राष्ट्रप्रेम निर्माण का कार्य करने की आवश्यकता हैं. जब प्रजातंत्र की परीक्षा का समय आता हैं, तब हम समुदायों में, जाती में बट जाते हैं. यह अब बदलना होगा.” प्रारंभ में संघ के महाकोशल प्रान्त कार्यवाह डॉ. भरतशरण सिंह ने संकल्प शिविर का निवेदन प्रस्तुत किया तथा कार्यक्रम का संचालन किया. श्री दिग्विजय सिंह ने संकल्प महाशिविर के सभी सहयोगियों का आभार प्रदर्शित किया. डॉ. मोहन भागवत जी के उद्बोधन के पहले ‘आओ हम बदले वर्तमान..’ यह एकल गीत प्रस्तुत हुआ. कार्यक्रम में गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने सूर्यनमस्कार लगाये तथा घोष की धुन पर दंड के साथ व्यायामयोग प्रस्तुत किये. ‘पूर्ण विजय संकल्प हमारा, अनथक अविरल साधना..’ यह गीत सभी स्वयंसेवकों ने सामूहिक रूप से प्रस्तुत किया. प्रारंभ में सरसंघचालक जी ने जीप से स्वयंसेवकों की वाहिनियों में बनी रचना का निरिक्षण किया. “हमारी पहचान हिन्दू हैं. हम सब को जोडनेवाला तत्व हिंदुत्व हैं. हिंदुत्व हमारी राष्ट्रीयता हैं. विनाश की कगार पर पहुची आधुनिक दुनिया के समस्याओं के निराकरण का मार्ग हिंदुत्व हैं. प्रत्येक राष्ट्र के जीवन का प्रयोजन होता हैं. रोम और यूनान जैसे देशों का प्रयोजन तात्कालिक था इसलिए वह नष्ट हुए. किन्तु हिन्दू राष्ट्र यह अमर राष्ट्र हैं. यह कभी समाप्त नहीं होगा.” उक्ताशय के उदगार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने ‘संकल्प महाशिविर’ के समापन के अवसर पर व्यक्त किये. आपने आगे कहा की “संघ का मानना हैं की व्यक्ति के जीवन परिवर्तन से समाज के वातावरण में परिवर्तन होगा और इस परिवर्तन से राष्ट्र का पुनर्निर्माण होगा. सदाचरणी, सच्छील, निर्भय ऐसे गुणोंसे समाज में अच्छा वातावरण बनता हैं. और ऐसा वातावरण ही समाज में परिवर्तन लाता हैं. देश में परिवर्तन सामान्य जनता ही लाएगी. किन्तु उसके लिए जनता का मात्र सामान्य होना पूर्ण नहीं हैं. उसका गुणवान होना, सतचारित्र्य होना, संगठित होना अनिवार्य हैं.” आपने कहा की “रोज निष्काम और निरपेक्ष भाव से देश की सेवा करने से ही हम बलशाली राष्ट्र, समर्थ राष्ट्र बन सकेंगे.” इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुध्दजन, आम नागरिक, महिला आदि उपस्थित थे. इस कार्यक्रम का इन्टरनेट से सीधा प्रसारण किया गया, जिसे पूरी दुनिया से हजारो लोगों ने देखा.

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