पोजीसन नंबर टू को बरकरार रखने के लिए,राहुल की न्याय यात्रा - अरविन्द सिसोदिया rahul gandhi

पोजीसन नंबर टू को बरकरार रखने के लिए,राहुल की न्याय यात्रा - अरविन्द सिसोदिया
कांग्रेस समान्यतः जानती है कि उसकी सीटों में सत्ता पाने लायक बड़ोत्री नहीं होनें वाली.... किन्तु जो है वह घटे नहीं इसकी चिंता उसे सता रही है। क्योंकि भाजपा हालिया सेमी फाइनल बड़े मार्जिन से जीत कर कांग्रेस को बेकफुट पर डाल चुकी है। जहां कांग्रेस में निराशा है वहीं भाजपा में उत्साह है। इन परिस्थितियों में कांग्रेस को अपने गठबंधन के अंदर से उठ रहीं चुनौतीयों और गठबंधन में अग्रणी बने रहने की चिंता तो है ही, वहीं राहुल गाँधी को विपक्ष का एक मात्र सक्षम चेहरा बनाये रखने की चुनौती भी है। क्योंकि ममता और केजरीवाल मन से राहुल गाँधी को अपना नेता नहीं मानते। वहीं नितीश- लालू दोनों ही चमत्कार की प्रतीक्षा में कि अमृत की कोई बून्द आसमान से गिरे और उनके मुंह में आजाये। कुल मिलाकर कांग्रेस गठबंधन में एक अनार सो बीमार की स्थिति है।

वहीं कांग्रेस राजकुमार राहुल बेफिक्र हैँ क्योंकि वे जानते है गठबंधन उनका है वे मुखिया हैँ, उनके पीछे चलना अन्य विपक्षी दलों की मजबूरी है। जिसे चलना है चले, जिसे नहीं चलना वह नहीं चले.... वे सिर्फ अपनी चलाएंगे, जिसे स्वीकार हो वह आये अन्यथा जाये।

यात्रा कोई भी दल निकाले, जनता से जुड़ाव का लाभ तो होता ही है, राहुल की यात्रा का लाभ कांग्रेस को कर्नाटक, तेलंगाना में मिला माना जा सकता है। हलाँकि यात्रा के बिना भी इन प्रांतों के मुख्य परिणाम यही रहने वाले थे। किन्तु यात्रा का लाभ राहुल गाँधी को अपनी पापूलरटी बढ़ाने के रूप में मिला, यही उद्देश्य उनकी इस दूसरी यात्रा का भी है।

राहुल की दो यात्राएँ पहले ही दिन से योजना में हैँ। पहली यात्रा जो भारत जोड़ो यात्रा के नाम से थी वह राज्यों के चुनावों को देखते हुए थी और दूसरी यात्रा जिसका नाम भारत न्याय यात्रा दिया गया है यह आम चुनाव 2024 के निमित्त है।

दोनों का उद्देश्य राहुल गाँधी को देश की राजनीति में अग्रणी रखने का है। उन्हें इस बात की चिंता है कि कांग्रेस की सीटें बढ़ानी हैँ क्योंकि की लोकसभा के सदन में सबसे बड़े दलों में कोई दूसरा दल नंबर दो हो गया तो, कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा और यह चुनौती ममता बंगाल से उन्हें दे सकती है। वर्तमान में कांग्रेस मोदीजी या भाजपा से ज्यादा भयभीत ममता की तृण मूल कांग्रेस से है कि कहीं वह उनसे नेता प्रतिपक्ष या विपक्ष कि सबसे बड़ी पार्टी का मुकाम न छीन ले। यह यात्रा कांग्रेस अपनें अस्तित्व को बचानें के लिए कर रही है।

कांग्रेस में यूँ तो सोनिया गाँधी के चलते ही बिखराव प्रारंभ हो गया था और सोनिया गाँधी के बाद इसका व्यापक क्षरण राजनैतिक हलकों में महसूस किया जा रहा, क्योंकि कि संगठन को बांधे रखने की क्षमता राहुल में नहीं है। अर्थात कांग्रेस में पार्टी को बचाये रखने का अंतिम संघर्ष चल रहा है, इसी क्रम में खरगे का नेतृत्व भी स्वीकार किया गया और हाल ही में राहुल बनाम प्रियंका की स्थिति से कांग्रेस को बचानें प्रियंका से उत्तरप्रदेश ले लिया गया है। उन्हें कम महत्व का करने की कोशिश हुईं है। यह आने वाले समय के अंतरदवन्द को दर्शाता है।

अर्थात कांग्रेस हर हालत में आम चुनाव में अपनी पोजीसन नंबर टू के लिए सक्रिय है उसकी सोच व समझ में गठबंधन इसके बाद है।

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