क्या चीन को खुश रखने, न्याय यात्रा में अरुणाचल नहीं है ? - अरविन्द सिसोदिया
क्या चीन को खुश रखने के लिए,कांग्रेस की न्याय यात्रा में अरुणाचल प्रदेश नहीं है - अरविन्द सिसोदिया
कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी , अपनी दूसरी राजनैतिक यात्रा भारत न्याय यात्रा पर 14 जनवरी 2024 से निकलने वाले हैं। इससे पहले वे भारत जोडो यात्रा निकाल चुके हैं। जिसमें उन्हें, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा जम्मू और कश्मीर को धारा 370 से मुक्त कर पूरी तरह भारत से जोड़ देने के बाद बर्फबारी का आनन्द लेते हुए भी देखा गया। जबकि यही सब कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार में राहुल - प्रियंका को असंभव था। हालांकि यात्रा के दौरान न भारत को जोड़ा गया न मुहब्बत की दुकान से कोई मुहब्बत उपलब्ध करवाई गई थी, बल्कि सम्बोधन दर सम्बोधन भारत में घृणा परोसी गई । इससे स्पष्ट है कि न्याय यात्रा के नाम पर भी इसी तरीके से अन्याय, अधर्म, अनैतिकता , अपराध और अराजकता आदि सब कुछ वह परोसा जायेगा । जिससे कांग्रेस और कांग्रेस कार्यकर्ता प्रतिदिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अनाप शनाप गालियां दे सके,अपमानित कर सकें। देश उनकी बातों को ध्यान देता भी नहीं है। अर्थात यह यात्रा भी निकल जायेगी।
मुख्य सवाल यह है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में दूसरी यात्रा निकलने की चर्चा लम्बे समय से थी, लगभग तब से ही जब पहली यात्रा चल रही थी। तब इस यात्रा को अरुणाचल से गुजरात तक बताया जा रहा था, लगातार यह भी आ रहा था ! यात्रा का रूट घोषित होनें से पहले तक भी यह यात्रा अरुणाचल प्रदेश से प्रारम्भ होनी थी। किन्तु जब यात्रा का रूट घोषित हुआ तो उसमें अरुणाचल प्रदेश गायब हो गया हैं।
यह सवाल पूरे देश विदेश में अचानक प्रगट हुआ कि कांग्रेस के युवराज राहुल अरूणाचल नहीं जा रहे हैं ? जबकि राहुल व कांग्रेस पार्टी के लोग चीन की सीमा , चीन के नक्से और चीन के सैनिको और चीन के माल आयात पर लगातार प्रश्न उठा कर अपने आपको कथित देशभक्त घोषित करने की कोशिश करते रहे हैं, अलबत्ता यह दूसरी बात है कि वे वही सब कुछ कहते रहे जो चीन की इच्छापूर्ती के लिए कहा जाना चाहिये था। वे लद्दाख पहुंच कर भी चीन की मदद कर रहे थे । चीन की कूटनीतिक मदद करने वाली बातों को राहुल गांधी अक्सर कहते रहे हैं। इसलिए यह सहज था कि उनकी यात्री अरूणाचल प्रदेश से प्रारम्भ होगी, देश को लगता था कि वे अरूणाचल जरूर जायेंगे। हलांकी वे उस स्थिती में भी चीन की ही मदद करते, मगर एक भारतीय नागरिक अरूणाचल प्रदेश के किसी भी क्षेत्र से यात्रा करता तो यह प्रमाणित हो ही जाता कि अरूणाचल प्रदेश भारत के कब्जे में ही है, उसके नागरिक वहां घूंम फिर रहे हैं। उसे चीन के नक्से में दिखानें से कुछ नहीं बदला वह अरूणाचल भारत का है और भारत में ही रहेगा। यदि राहुल गांधी अरूणाचल से यात्रा करते तो इससे देश को लाभ ही होता, चीन को जबाव भी मिलता ... किन्तु कांग्रेस राजकुमार राहुल गांधी ऐन वक्त पर अरूणाचल को छोड भागे। हो सकता है उन्होनें व उनकी पार्टी ने चीन के साथ जो एम ओ यू साईन किया हुआ है, उसकी किसी संधि के कारण वे चीन को साथ देनें विवश हों और चीन को खुश रखनें अरूणाचल नहीं जा रहे हों।
अरुणाचल भारत का है और भारत में ही रहेगा। यदि राहुल गांधी अरुणाचल से यात्रा करते तो इससे देश को लाभ ही होता, चीन का कथित झूठा नक्शा, झूठा साबित होता, किन्तु कांग्रेस राजकुमार राहुल गांधी ऐन वक्त पर अरुणाचल को यात्रा रूट से अलग कर दिया या यों कहे कि नहीं रखा ! हो सकता है उन्होनें व उनकी पार्टी ने चीन के साथ जो एम ओ यू साइन किया हुआ है, उसकी किसी संधि के कारण वे चीन को साथ देने विवश हों और चीन को खुश रखने अरुणाचल नहीं जा रहे हों। यूं राहुल के वहां जाने न जानें से कोई फर्क नहीं पडता पूरा देश लगातार अरुणाचल प्रदेश में बना रहता है, भारत की फौजें वहां हैं, भारत तिब्बत सहयोग मंच प्रतिवर्ष तवांग यात्रा करता है। अरुणाचल एक शानदार पर्यटन क्षेत्र भी है। इसलिये वह 24 घंटे, 365 दिन भारत में ही है। भारत का अभिन्न अंग है। सवाल राहुल गांधी और कांग्रेस से ही है कि क्या वे चीन से डरते हैं या वे चीन के साथ मिले हुए हैं ?
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कॉन्ग्रेस ने ‘महत्वपूर्ण मुद्दों’ पर परामर्श के लिए CCP के साथ एक समझौते पर किए थे हस्ताक्षर
7 अगस्त 2008 को सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच एक समझौता हुआ था। शायद आज वही वजह है कि कांग्रेस चीन की नापाक हरकतों पर भी चुप्पी साधे हुए है। यूपीए के अपने पहले कार्यकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने उच्च स्तरीय सूचनाओं और उनके बीच सहयोग करने के लिए बीजिंग में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
इस समझौता ज्ञापन ने दोनों पक्षों को महत्वपूर्ण द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर एक-दूसरे से परामर्श करने का अवसर प्रदान किया। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि 2008 में CCP और कांग्रेस के बीच समझौता ज्ञापन उस समय आया जब भारत में वामपंथी दलों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA-1 सरकार में विश्वास की कमी व्यक्त की थी।
खास बात यह है कि इस समझौता ज्ञापन को तत्कालीन कॉन्ग्रेस पार्टी के मुख्य सचिव राहुल गाँधी ने सोनिया गाँधी की उपस्थिति में साइन किया था। जबकि चीन की ओर से इसे स्वयं वहाँ के वर्तमान प्रधानमंत्री शी जिनपिंग ने हस्ताक्षर किया था। उस समय जिनपिंग पार्टी के उपाध्यक्ष थे।
इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से पहले सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी की शी जिंनपिंग के साथ आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए लंबी बैठक हुई थी।
साल 2008 में सोनिया गाँधी अपने बेटे राहुल, बेटी प्रियंका, दामाद रॉबर्ट वाड्रा और दोनों के बच्चों को साथ लेकर ओलंपिक खेल देखने पहुँची थीं। इसके अलावा उन्होंने और राहुल गाँधी ने चीन में कॉन्ग्रेस पार्टी के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया था।
राहुल गाँधी और चीन के संबंध
बात सिर्फ़ इस समझौते ज्ञापन की नहीं है। राहुल के संबंध चीन के साथ कुछ समय पहले डोकलाम विवाद पर भी उजागर हुए थे। जब उन्होंने चीन के साथ एक नहीं दो बार गुप्त बैठकें की थी।
पहली मीटिंग 2017 में हुई थी, जब उन्होंने चीनी राजदूत लुओ झाओहुई के साथ उस समय बैठक की थी, जब भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद छिड़ा था।
इस बैठक के संबंध में पहले तो कॉन्ग्रेस ने साफ इंकार कर दिया था। लेकिन जब चीन की एंबेसी ने खुद इसका खुलासा किया, तो कॉन्ग्रेस को इस मुद्दे पर काफी जिल्लत झेलनी पड़ी थी। यह बैठक विशेष रूप से संदिग्ध इसलिए भी थी, क्योंकि उस समय कॉन्ग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी, चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध पर अपने रुख पर कायम रहते हुए भारत सरकार पर तीखे हमले कर रहे थे।
इसके बाद कैलाश मानसरोवर मामले पर चीन के नेताओं से हुई गुप्त बैठक के बारे में तो राहुल गाँधी ने खुद ही खुलासा कर दिया था। राहुल उस समय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। जिसके कारण उनका इस तरह चीन अधिकारियों व नेताओं से बैठक करने ने कई सवाल खड़े कर दिए थे।
एक अन्य दिलचस्प कोण कॉन्ग्रेस और चीन के बीच का और देखिए। LAC पर भारतीय सेना पर आक्रमक रवैया रखने के कारण पार्टी नेता अधीर रंजन चौधरी ने चीन को लेकर लोकसभा में अपना गुस्सा जाहिर किया था। साथ ही भारतीय नेताओं को सराहते हुए चीन को चुनौती भी दी थी।
मगर, कुछ समय बाद अधीर रंजन चौधरी को चीन के ख़िलाफ़ अपने रवैया हल्का करना पड़ा और चीन पर किया अपना ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा। ये शायद इसलिए हुआ क्योंकि चीन के ख़िलाफ़ अपने नेता के बोल कॉन्ग्रेस पार्टी को ही नहीं पसंद आए। जिसके मद्देनजर राज्य सभा सदस्य और वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता आनंद शर्मा ने सोशल मीडिया पर यह सफाई तक दी।
उन्होंने लिखा, “भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस भारत और चीन के बीच विशेष रणनीतिक साझेदारी को मान्यता और महत्व देती है। दुनिया की दो प्राचीन सभ्यताओं और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, दोनों देशों को 21 वीं शताब्दी में एक महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए नियत किया गया है।”
कॉन्ग्रेस नेता ने आगे सफाई में लिखा, “चीन के बारे में कॉन्ग्रेस के लोकसभा नेता अधीर रंजन चौधरी के विचार उनके अपने हैं और पार्टी की स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं।”
राहुल गांधी के चीन सम्बंधी बयान
1- जयशंकर ने कहा . “चीन ने पहले भी ऐसे नक्शे जारी किए हैं जिनमें उन क्षेत्रों पर दावा किया गया है जो चीन के नहीं हैं, जो अन्य देशों के हैं। यह उनकी पुरानी आदत है,यह कोई नई बात नहीं है। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी. इसलिए केवल उन क्षेत्रों का दावा करने वाला एक नक्शा पेश करने से जिनमें से कुछ भारत का हिस्सा हैं, मुझे लगता है कि इससे (कुछ भी) नहीं बदलता है। ये भारत का हिस्सा हैं।”
2- इससे पहले अप्रैल में, भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों का नाम बदलने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और कहा था कि राज्य भारत का अभिन्न अंग है और “आविष्कृत“ नाम निर्दिष्ट करने से इस वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आता है। यह चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी अरुणाचल प्रदेश के लिए मानकीकृत भौगोलिक नामों का तीसरा बैच था। अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानों के मानकीकृत नामों का पहला बैच 2017 में जारी किया गया था, जबकि 15 स्थानों का दूसरा बैच 2021 में जारी किया गया था।
3- अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सैनिकों के साथ झड़प को लेकर कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के बयान से विवाद पैदा हो गया है। राहुल गाँधी ने कहा था कि चीन युद्ध की तैयारी कर रहा है और केंद्र की मोदी सरकार सो रही है। इतना ही नहीं, राहुल गाँधी ने यह भी कहा कि चीन भारतीय जवानों के पीट रहा है और देश के 2,000 किलोमीटर वर्ग स्क्वॉयर पर कब्जा कर लिया है।
- इस बयान पर भाजपा के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने राहुल गाँधी को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना को लेकर राहुल गाँधी का दिया गया बयान बेहद घटिया है। इसके घटिया बयान कुछ और नहीं हो सकता। मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, “राहुल गांधी कह रहे हैं कि हमारे देश के बहादुर सैनिक चीनी सैनिकों के हाथों अरुणाचल प्रदेश में पिट रहे हैं। उनके इस बयान को सुनकर मेरा खून खौल रहा है। राजनीति में ये सबसे निचले स्तर की भाषा और स्टेटमेंट है।”
उन्होंने आगे कहा, “ऐसी देश विरोधी बातें करने के लिए सोनिया गाँधी और प्रियंका गाँधी को राहुल गाँधी की पिटाई करनी चाहिए, ताकि उनके परिवार के चश्मे-चिराग को कुछ अकल आए और देश के लिये थोड़ी वफ़ादारी आए।” उन्होंने कहा कि एक माँ-बहन का फर्ज होता है अपने बेटे और भाई को देशभक्ति का पाठ पढ़ाना।
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तवांग तीर्थ यात्रा, भारत तिब्बत सहयोग मंच
तवांग तीर्थ यात्रा, भारत तिब्बत सहयोग मंच के प्रमुख वार्षिक आयोजनों में से एक है । जिसका उद्देश्य कम्युनिस्ट चीन को यह याद दिलाना है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और कम्युनिस्ट चीन द्वारा तिब्बत पर अवैध कब्जे को उजागर करना है। इसका नारा है तिब्बत की आजादी, कैलाश मानसरोवर की मुक्ति और भारत की सुरक्षा।
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मुख्य सवाल यह है कि राहल गांधी के नेतृत्व में दूसरी यात्रा निकलने की चर्चा लम्बे समय से है, लगभग तब से ही जब पहली यात्रा चल रही थी। तब इस यात्रा को अरूणाचल से गुजरात तक बताया जा रहा था, लगातार यह आ भी रहा था, यात्रा का रूट घोषित होनें से पहले तक भी यह यात्रा अरूणाचल प्रदेश से प्रारम्भ होनी थी। किन्तु जब यात्रा का रूट घोषित हुआ तो उसमें अरूणाचल प्रदेश गायब हो गया हैं।
यह सवाल पूरे देश विदेश में अचानक प्रगट हुआ कि कांग्रेस के युवराज व कांग्रेस पार्टी के लोग चीन की सीमा , चीन के नक्से और चीन के सैनिको और चीन के माल आयात पर लगातार प्रश्न उठा कर अपने आपको देशभक्त घोषित करने की कोशिश करते रहे हैं, यह दूसरी बात है कि वे वही सब कुछ कहते रहे जो चीन की इच्छापूर्ती के लिए कहा जाना चाहिये था। चीन की कूटनीतिक मदद करने वाली बातों को राहुल गांधी बक्सर कहते रहे हैं। वे लद्दाख पहुच कर भी चीन की मदद कर रहे थे । इसलिए यह सहज था कि उनकी यात्री अरूणाचल प्रदेश से प्रारम्भ होती, हलांकी वे उस स्थिती में भी चीन की ही मदद करते मगर एक भारतीय नागरिक अरूणाचल प्रदेश के किसी भी क्षेत्र से यात्रा करता तो यह प्रमाणित हो ही जाता कि अरूणाचल प्रदेश भारत के कब्जे में ही है,उसे चीन के नक्से में दिखानें से कुछ नहीं बदला ।अरूणाचल भारत का है और भारत में ही रहेगा। यदि राहुल गांधी अरूणाचल से यात्रा करते तो इससे देश को लाभ ही होता, किन्तु कांग्रेस राजकुमार राहुल गांधी ऐन वक्त पर अरूणाचल को छोड भागे। हो सकता है उन्होनें व उनकी पार्टी ने चीन के साथ जो एम ओ यू साईन किया हुआ है, उसकी किसी संधि के कारण वे चीन को साथ दनें विवश हों और चीन को खुश रखनें अरूणाचल नहीं जा रहे हों।
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LAC and China: 108 साल पुराने समझौते को भी क्यों नहीं मानता चीन ? जानें अरुणाचल को लेकर ड्रैगन का प्रोपेगेंडा
15 Dec 2022
विवाद कितना पुराना है? LAC क्या है? क्यों LAC के बाद भी दोनों पक्षों में विवाद होता है? पूर्वी सीमा पर मैकमोहन लाइन की भी बात होती है क्या उसे लेकर भी विवाद है? चीन अरुणाचल को लेकर क्या दावा करता है? आइये जानते हैं….
LAC and China: Why does China not accept even the 108 year old agreement?
भारत चीन सीमा विवाद
पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा है कि चीन इस मुगालते में न रहे कि भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर उसे मुंहतोड़ जवाब नहीं देगा। तवांग में हुई झड़प के बाद उन्होंने कहा कि भारत चीन की हर गलत नीति का करारा जवाब देगा। इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनों सदनों में कहा कि चीन की सेना (पीएलए) ने 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र के यांग्त्से में LAC पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की थी। इस कोशिश को हमारी मुस्तैद सेना ने बहादुरी से नाकाम कर दिया।
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LAC पर चीनी घुसपैठ की कोशिश जब भी होती है तब सीमा के निर्धारण नहीं होने का जिक्र होता है। कहा जाता है कि कुछ ऐसे इलाके हैं जिसे लेकर दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं। तवांग में भी 2006 से ही दोनों पक्ष अपने दावे के मुताबिक उन इलाकों में गस्त करते हैं। इसके बाद भी अक्सर विवाद सामने आते हैं।
आखिर सीमा का ये विवाद कितना पुराना है? LAC क्या है? क्यों LAC होने के बाद भी दोनों पक्षों में विवाद होता रहता है? पूर्वी सीमा पर मैकमोहन लाइन की भी बात होती है क्या उसे लेकर भी विवाद है? चीन अरुणाचल को लेकर क्या दावा करता है और इसका क्या आधार बताता है? आइये जानते हैं….
सीमा विवाद कितना पुराना है?
चीन की सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्ट सरकार ने चीन ने पूर्व में हुई सभी अंतरराष्ट्रीय संधियों से खुद को अलग कर लिया। कम्युनिस्ट सरकार ने इन संधियों को गैर-बराबरी की बताया और कहा कि इन्हें चीन पर थोपा गया है। इसके साथ ही चीन ने सभी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के निर्धारण के लिए नए सिरे से बातचीत की मांग की।
कम्युनिस्ट सरकार से पहले भारत और चीन के बीच कभी भी सीमाओं का रेखांकन नहीं हुआ था। जनवरी 1960 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने भारत के सीमा को लेकर बातचीत शुरू करने का फैसला किया। दोनों देशों में आपसी सहमति से सीमा रेखांकन का फैसला हुआ। उसी साल अप्रैल में चीनी प्रमुख जो एनलाई और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस मामले को लेकर मिले। अगले दो साल तक दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावों के हिसाब से सीमा पर सेना की तैनाती शुरू की। 1962 में हुए युद्ध के दौरान चीनी सेना ने भारत के दावे वाले कई इलाकों में कब्जा कर लिया।
LAC and China: Why does China not accept even the 108 year old agreement?
LAC क्या है?
भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। यह सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। यह सीमा तीन सेक्टरों में बंटी हुई है। पश्चिमी (लद्दाख), मध्य (हिमाचल और उत्तराखंड) और पूर्वी (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश)। हालांकि, चीन इस सीमा की लंबाई केवल 2,000 किलोमीटर के करीब मानता है। पश्चिम में चीन अक्साई चीन पर अपना दावा करता है। जो इस वक्त उसके नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा किया था।
वहीं, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश के काफी हिस्से को चीन अपना बताता रहा है। चीन कहता है कि यह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है। वह अक्साई चीन पर भारत के दावे को भी खारिज करता है। मध्य सेक्टर में दोनों देशों के बीच सबसे कम विवाद है।
इन विवादों की वजह से दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सका। हालांकि यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि अभी ये भी स्पष्ट नहीं है। दोनों देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं। एलएसी के साथ लगने वाले कई ऐसे इलाके हैं जहां अक्सर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव की खबरें आती रहती हैं।
मैकमोहन लाइन क्या है और चीन इसे क्यों नहीं मानता?
1914 में उत्तर पूर्वी भारत और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण करने के लिए शिमला में एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में तिब्बत, चीन और भारत (ब्रिटिश इंडिया) के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बातचीत के बाद हुए समझौते पर भारत और तिब्बत ने हस्ताक्षर किए। लेकिन, चीनी अधिकारियों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर के इनकार कर दिया। 1914 में हुए शिमला समझौते के बाद भारत के विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन ने भारत तिब्बत सीमा के रूप में 890 किलोमीटर की सीमा का रेखांकन किया। उनके नाम पर ही इस सीमा को मैकमोहन लाइन नाम रखा गया। हालांकि, चीन ने इस सीमा को खारिज कर दिया। चीन तिब्बत को संप्रभु राष्ट्र नहीं मानता है। उसका कहना है कि तिब्बत संप्रभु राष्ट्र नहीं है ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमा को लेकर समझौता करने का उसके पास कोई अधिकार नहीं है।
LAC and China: Why does China not accept even the 108 year old agreement?
भारत चीन सीमा विवाद
चीन अरुणाचल को लेकर क्या दावा करता है और इसका क्या आधार बताता है?
पूरे अरुणाचल प्रदेश समेत करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर के इलाके पर चीन अपना दावा करता है। इस इलाके को वह जेंगनैन कहता है और इसे दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है। अपने मैप में भी वह अरुणाचल प्रदेश को चीन के हिस्से के रूप में दिखाता है। कभी-कभी चीनी मैप में इसे तथाकथित अरुणाचल प्रदेश के रूप में भी दर्शाया जाता है।
इस भारतीय इलाके पर अपना दावा जताने के लिए चीन समय-समय पर कई तरह की हरकतें करता रहा है। 2017 में अपने इन्हीं मंसूबो के तहत अरुणाचल के छह इलाकों के चीनी नाम प्रकाशित किए। 2021 में इसे और बढ़ाते हुए ऐसे 15 नाम और प्रकाशित किए गए।
चीन के इन नामों को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया। पिछले साल विदेश मंत्रालय ने इस पर कहा था कि अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और आगे भी रहेगा। अरुणाचल प्रदेश के इलाकों को इस तरह का नाम देने से सच्चाई नहीं बदलेगी।
आखिर कुल कितने वर्ग किलोमीटर भूक्षेत्र को लेकर भारत-चीन में विवाद है?
मार्च 2020 में विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने संसद में बताया था कि पूर्वी क्षेत्र में चीन अरुणाचल प्रदेश राज्य में लगभग 90 हजार वर्ग किलोमीटर के भारतीय भूक्षेत्र पर अपना दावा करता है। इसी तरह पश्चिमी क्षेत्र के लद्दाख में लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर का भारतीय भूक्षेत्र चीन के कब्जे में है। इसके अलावा 2 मार्च 1963 को चीन और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित तथाकथित चीन-पाकिस्तान 'सीमा करार' के तहत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के 5 हजार 180 वर्ग किलोमीटर के भारतीय भूक्षेत्र को अवैध रूप से चीन को सौंप दिया था। ये सभी इलाके भारत का अभिन्न अंग हैं। इस तथ्य को भारत की ओर से कई मौकों पर चीन को भी स्पष्ट रूप से बताया जा चुका है।
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