परमेश्वर का हमारे रोम रोम पर अपना नियंत्रण है
परमेश्वर का हमारे रोम रोम पर अपना नियंत्रण है
God has control over every pore of our being
ईश्वर - अरविन्द सिसोदिया 9414180151
हम पृथ्वी पर रहने वाले समस्त मानवों को संपूर्ण ब्रह्माण्ड का जो भी उपलब्ध ज्ञान है , वह पूर्ण नहीं है, जितना हम जान समझ पाये उससे बहुत अधिक इस तरह का है जिसका न तो हमें ज्ञान है न हम उसके वास्तविक स्वरूप की कल्पना कर सकते हैं। फिर भी जिस अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के हम निवासी हैं, हिस्सा है और उसमें समाहित हैं। उसका जो भी स्वामी है, जिसके महाशक्ति के अधिपत्य में इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सृजन संचालित है, वही परमशक्ति , वही परम अधिनायक, हमारा ईश्वर है।
God - Arvind Sisodia 9414180151
Whatever knowledge we humans living on earth have about the entire universe is not complete, it is much more than we can understand, such that neither we have knowledge nor we can imagine its real nature. . Still, we are part of the infinite universe in which we live and are included in it. Whoever is its master, under whose superpower the creation of this entire universe is governed, he is the supreme power, he is the supreme ruler, our God.
ईश्वर को अलग - अलग मत के लोग अलग - अलग नाम और स्वरूप से जानने की कोशिश करते हैँ। परन्तु वह न अलग - अलग है, न अलग - अलग स्वरूपों में है, वह जो स्वरूप धारण किए है, वही “सत्य” है। उस महा प्रभु की वही वास्तविक स्वरूप है , उसे शास्त्र “सत्य” कह कर पुकारते हैं। उसका एक ही वास्तविक स्वरूप है कि वह जगत का स्वामी है। और उस महान जगत पिता का एकसा ही व्यवहार, समस्त बृहमाण्ड में व्याप्त प्राणियों के प्रति रहता है। उसके सामनें हमारी अलग अलग मान्यताओं का कोई भी मान्यता नहीं है। वह हमारे भावों का समझता है किन्तु कर्ता वह वही है जो उसकी नियम कानून और मान्यता में सही है। वह स्वयं सर्व शक्तिमान है। उसके पास अपनी नियमावली है। उसके प्रकाश को कोई धर्म पंथ नहीं देखना, उसकी रात्री सभी के लिए एक जैसी है। अर्थात हमारे बनाये हुए भेद भाव हमें ही कष्ट देते हैं, ईश्वर के लिए सबको तौलनें की एक ही तुला है। इसके सामनें सभी पंथों , मान्यताओं का अतिरिक्त कोई अर्थ नहीं है। वह सबमें समान रूप से है, उसके लिए सभी समान हैं।
People of different religions try to know God by different names and forms. But He is neither separate nor in different forms, the form He has assumed is the “Truth”. That is the real form of that great Lord, the scriptures call it “Truth”. His only real form is that He is the master of the world. And that great Father of the Universe has the same behavior towards all the living beings present in the entire universe. Our different beliefs have no validity in front of him. He understands our feelings but he is the one who does what is right according to his rules and beliefs. He himself is omnipotent. He has his own rules. No religion or sect sees its light, its night is the same for everyone. That is, the discrimination created by us hurts us only, for God there is only one balance to weigh everyone. In front of this, all the sects and beliefs have no additional meaning. He is equal in all, for him all are equal.
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ी चले, एक बँधे जात जंजीर।।
हम सभी भिन्न भिन्न मतों के लोग अपने अपने ज्ञान, अल्पज्ञान और अज्ञान के कारण उस परम शक्ति की व्याख्या अपनी अपनी समझ से करते हैँ, वास्तविक सत्य हमारी समझ से बहुत दूर है। उसने हमें जो शरीर दिया है वह परिश्रम करनें के लिए दिया है, परमार्थ करनें के लिए दिया है। अपने ज्ञान को उन्नत करनें के लिए दिया है। विश्व के कल्याण के लिए दिया है।
All of us people of different beliefs, due to our knowledge, little knowledge and ignorance, explain that supreme power in our own understanding, the real truth is far away from our understanding. The body that He has given us is to work hard, to do charity. Given to improve your knowledge. Given for the welfare of the world.
हम में कोई भी यह दावा नहीं कर सकता की ईश्वर के बारे में जो हमनें समझा वही सत्य है। सच तो यह है कि हम अपने शरीर मात्र के बारे में ही 99 प्रतिशत नहीं जानते कि यह कैसे चल रहा है। इस शरीर रचना की इतनी श्रैष्ठ इन्जीनियरिंग किसनें की ? हमारे शरीर में बैठा डाक्टर जो हमारी निरंतर चिन्ता करता है, इलाज करता है, सुधार कर्ती है , वह कहां से पढ़ कर आया ? सच यह है कि हम सभी ईश्वर के ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान के महान अनुदान को भोग रहे हें। जबकि हमारा ज्ञान अपूर्ण व भ्रमपूर्ण भी हो सकता है। में ही सच जानता हूं इस तरह का दावा हमेशा गलत है। किन्तु हम “सनातन” के रूप में इस पृथ्वी पर वर्तमान सभ्यता में सबसे पहले लोग हैं, जो खोज रहे हें कि हमें बनानें वाला कोई ओर है ? हम उसे ईश्वर कह कर खोज रहे हें। उस परमपिता के अस्तित्व को तलाश रहे है, इस तरह की खोज में संलग्न हैं। जप तप और ध्यान के माध्यम से भी उस तक पहुंचनें की कोशिश कर रहे हैं। हम यह समझ गये कि हमें बनाने वाली कोई महान परम शक्ति ही है और उसकी निरंतर खोज जारी हैँ। हमारी खोज एक पुत्र अपने पिता को खोजता है जैसी भी है। एक संतान अपनी जनम देनें वाली माता को खोजती है उस तरह की है। हम जानना चाहते हैं कि वह परम शक्ति कौन है और इस खोज में हमें हमारे पूर्वजों को जो प्राप्त हुआ वही ज्ञान “सनातन” आालेख हैं, शास्त्र हैं।
None of us can claim that what we understand about God is the truth. The truth is that we do not know 99 percent about our body itself and how it is running. Who did such excellent engineering of this body structure? The doctor sitting in our body who constantly cares for us, treats us and improves us, where did he study from? The truth is that we all are enjoying God's great gift of knowledge, science and research. Whereas our knowledge may also be incomplete and confusing. I know the truth, this kind of claim is always wrong. But we as “Sanatan” are the first people in the present civilization on this earth, who are searching whether there is someone else to create us? We are searching for Him by calling Him God. They are searching for the existence of the Supreme Father and are engaged in such a search. They are also trying to reach him through chanting, penance and meditation. We have understood that there is some great supreme power that has created us and we are continuously searching for it. Our search is like a son searching for his father. It is like a child searching for its birth mother. We want to know who is that supreme power and in this search, the knowledge that our ancestors received is the “Sanatan” scriptures and scriptures.
यह भी सत्य है कि वह परमपिता परमेश्वर सभी का सृजनकर्ता है, उसके लिए समस्त सृजन संतान की तरह प्रिय भी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी ज्ञान शक्ति या ज्ञान क्षमता इतनी नहीं कि हम उनके परमपूर्ण बृहम स्वरूप के अंश मात्र तक को देख सके या समझ सकें। फिर भी जो समझते हैँ उसे ही बताते हैँ, जताते हैँ । भिन्न भिन्न लोगों ने जो महसूस किया वह बताया है। रामायण में कहा गया है ईश्वर इतना विराट है कि उसकी रोम रोम में असंख्य बृह्माण्ड समा जाएँ। महाभारत में ईश्वर के विराट स्वरूप के दर्शन भी हैं। कुल मिला कर समस्त बृह्माण्ड के मूल मस्तिष्क को हम ईश्वर की संज्ञा दे सकते हैँ। हम भले ही उसकी विराट स्थिति से अनिभिज्ञ हों, उसको जानने समझने की क्षमता नहीं रखते हों, मगर परम पिता परमेश्वर का हमारे रोम रोम पर अपना नियंत्रण है और उनकी अपनी व्यवस्था क़ायम है।
It is also true that God the Supreme Father is the creator of all, for Him the entire creation is as dear as a child. The most important thing is that our knowledge power or knowledge capacity is not so much that we can see or understand even a part of His Supreme Brahman form. Still, we tell and express only what we understand. Different people have expressed what they felt. It is said in Ramayana that God is so vast that innumerable universes can be contained in every pore of him. There are also visions of the great form of God in the Mahabharata. Overall, we can call the original mind of the entire universe as God. We may be unaware of His vast condition and may not have the ability to know and understand Him, but God the Father has control over every inch of us and His own arrangement is in place.
ईश्वर की संपत्ती -
यह समस्त बृह्माण्ड , इसमें व्याप्त चर - अचर, दृश्य - अदृश्य जगत जो भी है वह ईश्वर की संपत्ती है, वह ईश्वर की संपदा है। जिसमें ऊर्जा, चुम्बकत्व, गुरुत्वकर्षण, विद्युत, इलेक्ट्रान, न्यूट्रॉन और प्रोट्रान, परमाणु, अणु, तत्व, यौगिक और मिश्रण, द्रव, ठोस, गैस, प्रकाश, गति, लय, समय, तापमान और आकार जैसी आधारभूत संरचनाओं को उत्पन्न कर्ता वही ईश्वर है। उसका पूरा वाई फाई इन्टरनेट सिस्टम है, जो कम्प्यूटराईज है और समस्त बृहमांण्ड पर लागू है और कामयावी के साथ काम कर रहा है। इनमें जो गुण दोष और विशेषताएं होती हैँ, उनका कर्ता धर्ता भी वही है। हम सिर्फ उसकी व्यवस्था के एक अल्प अंश मात्र हैं।
God's property -
This entire universe, whatever is present in it, the variable-immovable, the visible-invisible world, is the property of God, it is the property of God. In which the same God is the creator of basic structures like energy, magnetism, gravity, electricity, electron, neutron and proton, atom, molecule, element, compound and mixture, liquid, solid, gas, light, motion, rhythm, time, temperature and shape. Is. It has a complete Wi-Fi internet system, which is computerized and is applicable to the entire universe and is working successfully. He is also the creator of the qualities, defects and characteristics that exist in them. We are only a small part of His system.
हम स्तुति के लिए, उस ईश्वर के अपनी कल्पना से तय किए पूज्य स्वरूप में आस्था रखते हैँ , विश्वास रखते हैँ और कर्मकांड के द्वारा आराधना करते हैँ। कृतज्ञयता ज्ञज्ञपित करते हैं। किन्तु वह तो सर्वोच्च और महान वैज्ञानिक है, भौतकी , रसायन शास्त्र, वनस्पती शास्त्र और प्राणी शास्त्र में जो कुछ हम अध्ययन करते हैं, ईश्वर ही तो उसका निर्माता है, निर्देशक है, उससे निरंतर नवीन सृजन का अनुसंधानकर्ता है, वही तो प्रथम इंजीनियर है, प्रथम डॉक्टर है, प्रथम कम्प्यूटरीकृत है, वह एक साथ करोड़ों - करोड़ों कार्यों को कर रहा है। देवी देवताओं का उसका मंत्रीमण्डल है। हम अज्ञानी हैँ इसलिए उस परमपिता परमेश्वर के मात्र आस्था स्वरूप तक सीमित रहते हैं। जबकि वह तो अनंतशक्ति वैज्ञानिक है, ज्ञान विज्ञान और अनुसन्धान का निर्माता है,उसकी इच्छा तो यही है की उसकी संताने भी उसी की तरह महान वैज्ञानिक हों... उपलब्ध संपदा से सृजन करें, प्राणी जगत का कल्याण करें।
For the sake of praise, we have faith in the worshipable form of God determined by our imagination, we believe in it and worship it through rituals. Express gratitude. But He is the supreme and great scientist, whatever we study in Physics, Chemistry, Botany and Zoology, God is its creator, its director, He is the constant researcher of new creations, He is the first engineer. , is the first doctor, is the first computerized, he is doing millions and millions of tasks simultaneously. He has a cabinet of gods and goddesses. We are ignorant and hence remain limited to the mere form of faith in that Supreme Father God. While he is a scientist with infinite power, the creator of knowledge, science and research, his wish is that his children should also be great scientists like him... create with the available wealth, do welfare of the living world.
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
इस कविता जो बातें कहीं हैँ उन सबका उत्पादन कर्ता शक्ति ही ईश्वर है -
कविता -
कण कण में रहस्य समाया है
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है,
ये धरती और ये नीलगगन,
बरखा और ये अनल पवन,
समझ से परे हर साया है,
अद्भुत ईश्वर की माया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है।।
ये कीच बीच खिले पुष्पकमल,
ये विष से मुक्त जो वृक्ष चंदन,
इस रहस्य में ज्ञान समाया है,
सोना होना समझाया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है।।
जाना है किधर और जाते किधर,
खुद की रहती ना कुछ भी खबर,
मन सोच -सोच भरमाया है,
होनी का रहस्य बताया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है।।
ये कूप, नहर ,नदिया गहरे,
जाकर जो सागर में मिले,
लहरों-सी उमड़ती माया है,
मन चंचल समझ ना पाया है
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है।।
ये बगिया ये बसंती पवन,
फूलों के संग काँटों की चुभन,
जीवन सुख-दुख की छाया है,
ब्रह्मा ने खेल रचाया है,
कण-कण रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है।।
ये रूप-रंग ये गंध-स्पर्श,
कर लेते जीव स्वीकार सहर्ष,
मन गागर ना भर पाया है,
सागर भी कम पड़ आया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी क्या है।
हर एक घड़ा है हर इक से जुदा,
कोई किसपे मिटा कोई किसपे फिदा,
चाहत ने बड़ा भरमाया है,
जो मोह में फँसती काया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी क्या है।।
ये भूख -प्यास ये व्रत-उपवास,
है रहस्य मन का एहसास,
इस भूख की गजब ही माया है,
तन क्या -क्या कर पछताया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है ।।
ममता की उमड़ रिश्तों की जकड़,
पाये न मुक्ति ये तन पिंजर,
जनम-मरण जब जाया है,
ये रहस्य का रचा रचाया है,
कण-कण में रहस्य समाया है,
कई रहस्य में लिपटी काया है-2।।
- श्वेता कुमारी नई दिल्ली
----
यह भजन भी यही बताता है कि परमपिता परमात्मा का विराट साम्राज्य क्या है -
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने - भजन
Racha Hai Srishti Ko Jis Prabhu Ne
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
इसी धरा से शरीर पाए,
इसी धरा में फिर सब समाए,
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
जिन्होने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही तो वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
बैठे है जो धान की बालियो में,
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
-------
* धर्म धारण किए हुए विभिन्न कर्त्तव्यों दायित्वों का जबावदेहियों का एक समूह है यह कर्तव्यों का एक महासागर है।
* ईश्वर की सरकार गॉड गवर्मेँट
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें