ईश्वर की इच्छा है ........बुद्धिमान बनो, अनुसंधानकर्ता बनो, विकासशील बनो - अरविन्द सिसोदिया GOD

ईश्वर की इच्छा है ........बुद्धिमान बनो, अनुसंधानकर्ता बनो, विकासशील बनो - अरविन्द सिसोदिया 

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ईश्वर इस सृष्टि के सृजन कर्ता हैँ....
और उनके सृजन से हमको प्रेरणा लेना है कि हमें क्या करना, क्या बनना है ?

ईश्वर के बारे कई अलग अलग धारणाएं हैँ, मगर सत्य वही है जो सच लगे.... सच सिद्ध हो.... जो वास्तविकता में भी सच हो....।

जिस ईश्वर नें इस तमाम सृष्टि का प्रकृति का सृजन किया है वह पूरी की पूरी आकारवाली है। निराकार तो कहीं कुछ नहीं है। प्रकाश देनें वाला सूर्य आकरवान है, शीतल प्रकाश देनें वाला चन्द्र भी आकरवान है, प्यास बुझानें वाला पानी भी आकरवान है। ईश्वर नें जिस प्रकृति की रचना की है उसके सभी 84 लाख प्रकार के शरीर आकरवान है। इसलिए यह कल्पना ही असत्य है की आकारवान जगत को निराकार शक्ति संचालित करती है। आकार के अलग अलग स्वरूप हैँ यह माना जा सकता है, किन्तु भौतिक जगत हो या सूक्ष्म जगत हो आकार सभी का है। यह दूसरी बात है कि हम जिस शरीर में है उसकी क्षमतायें सीमित हैँ और वह महसूस करे या न कर पाये। उसी अज्ञान से हम निराकार की कल्पना भी करते हैँ।

ईश्वर से करोड़ों करोड़ गुना लघु हमारी आत्मा भी एक लघु आकार है, बहुत ही सूक्ष्म है, फिर उसमें बहुत सारे सॉफ्टवेयर, एप्स, ऊर्जा साधन आदि इनबिल्ट डलते हैँ तब वह सूक्ष्म शरीर बन जाता है, फिर इसे जन भौतिक शरीर प्राप्त होता है तब ही यह सामर्थ्यवान शरीर बनता है, स्थूल शरीर कहा जाता है। जन्म, मृत्यु और फिर जन्म स्थूल शरीर की होती है। आकार का दूसरा नाम स्पेस दिया जा सकता है,जिस तरह स्टोरेज के लिए स्पेस चाहिए, वह स्थान का आकार का ही स्वरूप है।इसलिए आकार के विभिन्न स्वरूपों में ही आत्मा, सूक्ष्म स्वरूप और स्थूल शरीर है।


यही जीवन है!

हम जब जन्मे हुए होते हैँ, बहुत छोटे होते हैँ तो देखते हैँ कि हमसे बड़े क्या कर रहे हैँ...!

उनसे सीखते हैँ उनका अनुसरण करते हैँ....!! फिर हम भी वही करने लगते और आगे चल कर कुछ विकास करते हुए उससे भी अच्छा करने लगते हैँ। यह क्रम है।

ईश्वर हमसे बड़े हैँ हम उनके बच्चे हैँ, हमें उनसे सीखना चाहिए की हमें क्या क्या करना है।

पूजा पाठ, हवन पूजन, भक्ति भजन यह सब ईश्वर को अपना स्वामी मानने, माता - पिता मानने, संरक्षक मानने और उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करने के साधन हैँ।

ईश्वर को प्रशन्नता तो तभी होती है जब उसकी संतान भी उसकी तरह इस सृष्टि के तमाम विकासों को जानें समझे और स्वयं भी उद्यम करे।

मनुष्य के इसी तरह के उद्यम, साहस, शोध और अनुसंधान का नाम है सनातन.... जो वर्तमान में हिन्दू कहलाता है।

सनातन नें ही खोजा की सत्य ही तथ्य है, क्योंकि ईश्वर का प्रशासन जो कर रहा है वही सत्य है। ईश्वर की हार्ड डिस्क में जो निरंतर दर्ज हो रहा है वही सत्य है। हम कितने भी छल कपट झूठ आजमाएँ किन्तु वह ईश्वर जो सबका दृष्टा है, उसकी वीडियो में कुछ छिपता नहीं जो सच है वही दर्ज होता है।

ईश्वर चाहता है कि उसकी संतानेँ भी उसी कि तरह तेजस्वी और ऊर्जावान हों, विकास, शोध और अनुसंधान से नित्य नूतन की सृजनकर्ता हों.... सदैव नवीनता की ओर अग्रसितकर्ता हों... सदा नूतन अर्थात सनातन हों....

जय श्रीराम।

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