पृथ्वी ईश्वर की प्रयोगशाला और जीवन प्रयोग से निकला उत्पादन jeevn or ishwar

Arvind Sisodia:9414180151

विचार - यह पृथ्वी ईश्वर की प्रयोगशाला है और जीवन प्रयोग से निकला उत्पादन है। विज्ञान ईश्वर से निर्मित है और सृष्टि और प्रकृति उससे उतपन्न हैँ।

व्याख्या - बहुत ही गहरा और अर्थपूर्ण विचार है! यह विचार विज्ञान और अध्यात्म के बीच के संबंध को दर्शाता है।

इस विचार के अनुसार, पृथ्वी ईश्वर की प्रयोगशाला है, जहां जीवन और सृष्टि का निर्माण हुआ है। यह विचार यह भी दर्शाता है कि विज्ञान ईश्वर से निर्मित है, और सृष्टि और प्रकृति विज्ञान के नियमों के अनुसार कार्य करती हैं।

यह विचार हमें यह समझने में मदद करता है कि विज्ञान और अध्यात्म दो अलग-अलग चीजें नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के पूरक हैं। विज्ञान हमें सृष्टि और प्रकृति के बारे में जानने में मदद करता है, जबकि अध्यात्म हमें सृष्टि और प्रकृति के पीछे के उद्देश्य और अर्थ को समझने में मदद करता है।

यह विचार हमें यह भी समझने में मदद करता है कि हमारा जीवन और सृष्टि एक बड़े उद्देश्य का हिस्सा है, और हमें अपने जीवन को उस उद्देश्य के अनुसार जीना चाहिए।

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पृथ्वी और विज्ञान का संबंध 

विज्ञान मूलतः ईश्वर के द्वारा लागू किये गये नियमों सिद्धांतों और उत्पादों की व्यवस्थापन का शुद्ध ज्ञान है यह ज्ञान ईश्वर के प्रति ही जबाबदेह होता है, उनकी ही आज्ञा का पालनकर्ता है । विज्ञान से ही  प्राकृतिक घटनाओं का घटना, भिन्न भिन्न क्रियाओं का होना संभव होता है।  विज्ञान इन सिद्धांत, प्रयोग और विश्लेषण पर आधारित है। पृथ्वी जो प्राकृतिक  रचना है, जीवन है, शरीर है, यह करोड़ों करोड़ों पिंडों में जाकर एकाध में मिलता है। हमारी आकाशगंगा में इस तरह ज्ञात जीवनधारी पिंड पृथ्वी ही है। इसलिए इसे ईश्वर की प्रयोगशाला माना जाता है।

ईश्वर की प्रयोगशाला पृथ्वी 

जब हम कहते हैं कि "यह पृथ्वी ईश्वर की प्रयोगशाला है," तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि पृथ्वी पर जीवन और उसके विभिन्न सिद्धांतों का जीवंत अस्तित्व है और उसका अध्ययन करना, उसे और उन्नत करना एक प्रकार से प्रयोग ही है। इस दृष्टिकोण से, पृथ्वी को एक ऐसी जगह माना जा सकता है जहाँ ईश्वर ने अपना निर्माण कार्य शुरू किया है। यहां जीवन की विविधता, अलौकिक तंत्र और जैविक प्रक्रियाएं मौजूद है, जो ईश्वर की शक्तियों के व सामर्थ्य का प्रमाण हैं।

जीवन और उद्देश्य

जीवन को ईश्वर के एक प्रयोग के रूप में देखना भी महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, जीवन की उत्पत्ति और विकास पर कई सिद्धांत हैं, जैसे विकासवाद (इवोल्यूशन) का सिद्धांत। यह सिद्धांत कहता है कि जीवन धीरे-धीरे विकसित हुआ है, लेकिन इसे ईश्वर विकसित करने वाली तमाम सामग्री व कर्ता ईश्वर ही है। द्उसकी ही क्षमताओं नें इसे स्थापित किया है। इस प्रकार, जीवन को एक उत्पाद माना जा सकता है जो ईश्वर के ही प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से उत्पन्न हुआ है। इसका मूलतः उद्देश्य ईश्वर ही जानता है। किन्तु यह माना जा सकता है कि समय अनंत है उसे व्यतीत कैसे करें... समय को व्यतीत करने की ही सारी रचना सृष्टि, प्रकृति जीवन शरीर हैँ।

विज्ञान और सृष्टि

विज्ञान को ईश्वर द्वारा निर्मित शास्त्र का विचार अत्यंत महत्वपूर्ण है। अपने कार्य में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि ब्रह्मांड में एक विशेष सामंजस्य मौजूद है जो ईश्वर की रचना का संकेत देता है। इसी तरह, अन्य गैजेट्स ने भी अपने शोध में आध्यात्म और विज्ञान के बीच संबंध को स्थापित किया। संपूर्ण हिन्दू सनातन साहित्य ईश्वर की सत्ता है यह घोषणा करती है।

सारांश :- इस प्रकार, पृथ्वी में वास्तव में एक प्रयोगशाला है जहां जीवन विभिन्न प्राकृतिक संरचनाओं के माध्यम से विकसित जीवन की उच्चतम अवस्था को उत्पन्न किया गया है।

विज्ञान और उस प्रक्रिया को समझने का एक साधन हो सकता है जो हमें ईश्वर की व्यवस्था नें उपलब्ध करवाया हुआ है।

- अरविन्द सिसोदिया 9414180151

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