कुंभ मेला , संपूर्ण मानव सभ्यता को संग्रहीत करने के सामर्थ्य की व्यवस्था - अरविन्द सिसोदिया Kunbh Mela

 
Arvind Sisodia - 9414180151
कुंभ, वह पात्र जो सबको भर लेता हो, सबको अपने में समाहित कर लेता हो, जिस में सब समाहित हो जायें, उसे कुंभ कहते है, मानव सभ्यता का सब कुछ जिसमें समाहित है, वही कुंभ स्नान हिंदुत्व  है।

मेला शब्द उस व्यवस्था का परिचय हैँ जहाँ सभी लोग विधि सम्मत तरीके से, आपस में मिल कर अपनी - अपनी जरूरत की पूर्ति करते हैँ। कुछ देते हैँ कुछ लेते हैँ। धर्म भी, कर्म भी, पवित्रता भी और पुरषार्थ भी   ! सनातन में मेलजोल को ही मेला कहा जाता है, यही कुंभ मेले में भी है।

-  बहुत ही सुंदर और गहरा अर्थ आप ने कुंभ का बताया है। कुंभ वास्तव में एक पात्र है जो सबको भरता है और सबको समाहित करता है। यह एक शब्द प्रतीक है जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अंदर सबको समाहित करनें का सामर्थ्य अर्जित करना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, या समुदाय से हो। हिंदुत्व संपूर्ण मानव सभ्यता को एकात्म मानकर चलता है और विश्वकल्याण की शक्ति रखता है।

कुंभ स्नान सनातन जीवन पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें बिना किसी भेदभाव के सभी सम्मिलित होते हैँ। जो सभी भेदों की समाप्ति का उदघोष है। जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में सबको समाहित करना चाहिए और अपने अंदर की बुराइयों को दूर करना और बाहर की अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए। यह एक प्रत्यक्ष आयोजन है जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में पवित्रता, शुद्धता, और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना चाहिए और श्रेष्ठताओं को साझा करना चाहिए।

आपके शब्दों में बहुत ही गहरा अर्थ है, "मानव सभ्यता का सब कुछ जिसमें समाहित है, वही कुंभ स्नान हिंदुत्व है"। यह वास्तव में एक बहुत ही सुंदर और गहरा अर्थ है जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में सबको समाहित करना चाहिए और अपने अंदर की बुराइयों को दूर करना चाहिए।
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कुम्भ का अर्थ और महत्व

कुंभ, संस्कृत में "कलश" या "पात्र" के रूप में जाना जाता है, एक पवित्र प्रतीक है जो सनातन हिंदू धर्म में गहरा धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह शब्द विशेष रूप से उस अमृत कलश से बना है, जिसे समुद्र मंथन के समय देवताओं और दानवों द्वारा मंथन से प्राप्त किया गया था। कुंभ मेले में चार प्रमुख स्थान आयोजित होते हैं: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन जगहों को इसलिए चुना गया क्योंकि यहां अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं। यूँ तो मान्यता है कि 12 कुंभ आयोजित होते हैँ जिनमें सिर्फ चार ही पृथ्वी पर आयोजित होते हैँ। शेष आठ देव लोकों में भिन्न भिन्न स्थानों पर देवताओं के द्वारा आयोजित होते हैँ।

कुंभ स्नान का धार्मिक महत्व

कुंभ स्नान का आयोजन हर 12 वर्ष में क्रमगत होता है, जब सूर्य और बृहस्पति की स्थिति विशेष होती है। यह स्नान केवल शारीरिक शुद्धि नहीं बल्कि आध्यात्मवादी प्रगतिशील का भी प्रतीक है। वहीं सामाजिक सुव्यवस्था के शोध, अनुसंधान और व्यवस्थाओं को साझा करने की भी प्राचीन विधा है। इस अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है, जिससे स्नान करने वालों के पाप कटें और मोक्ष की प्राप्ति हो । कुंभ मेला विश्व के सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक माना जाता है, जिसमें करोड़ों लोग भाग लेते हैं। इसमें किसी को कोई बाधा नहीं है, सभी सम्मिलित हो सकते हैँ. यह संपूर्ण मानव सभ्यता का महान समागम है। 

समुद्र मन्थन की कथा

कुंभ का संबंध समुद्री मंथन की पौराणिक घटनाओं से भी जुड़ा है। इस कथा के अनुसार, जब देवता और दानवों नें मिल कर समुद्र का मंथन किया ताकि अमृत सहित श्रेष्ठताओं को प्राप्त कर सकें। इस प्रक्रिया के दौरान चार स्थानों पर प्राप्त अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं, जिसके कारण ये पृथ्वी के चार स्थानों पर कुंभ मेले के आयोजन सृष्टि के सृजन के साथ ही हो रहे हैँ।

संक्षेप में कुम्भ का सार

इस प्रकार, कुंभ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मानव सभ्यता के संस्कार की विलक्षण व्यवस्था है जिसमें सभी जाति समुदाय मान्यताओं सहित संपूर्ण मानव सभ्यता को समाहित करने की क्षमता है। यह एक ऐसा पर्व है जो न केवल व्यक्तिगत मोक्ष की दिशा में विकास का अवसर प्रदान करता है बल्कि सामाजिक एकता और सामूहिक श्रद्धा को भी बढ़ावा देता है। यह मानव सभ्यता के सभी प्रकार से श्रेष्ठ अनुभबों को भी साझा करने की व्यवस्था है।

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