Brother Demanded Half Body Of Father





संपादकीय / राजस्थान पत्रिका 
शव के अवशेष की मांग नैतिक पतन की पराकाष्ठा
05/02/2025
 
विभिन्न सामाजिक परिवेश में रिश्तों को तार-तार करती खबरें दिन-दिन सामने आती रहती हैं। ऐसा इसलिए भी है कि भौतिकवादी दौर में व्यक्ति स्वार्थी होता जा रहा है। लेकिन मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में उनके पिता के शव का आधा हिस्सा मांग लेने की घटना समूची मानवता को झकझोरने वाली है। ऐसी खबर जो किसी के इंसान होने पर भी सवाल उठाती है। ख़ून के रिश्ते में ऐसे 'कड़वाहट' की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। टीकमगढ़ में पिता की मृत्यु पर दो भाइयों ने ऐसा नजारा पेश किया कि गमी में आए बुजुर्गों तक के चेहरे से हवाईयां उड़ गईं । दोनों में पिता के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद इस हद तक पहुंच गया कि बड़े ने शव के दो हिस्से करने की मांग उठा दी।

परिवार विवादों की वजहें आम तौर पर एक जैसी होती हैं। कहीं संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद तो कहीं ईर्ष्या का भाव । आपस की ये लड़ाईयाँ किसी भी घर की दीवारों को तोड़ने के लिए काफी है। पुलिस के दखल से शव का बंटवारा बिना अंतिम संस्कार तो हो गया , लेकिन इस घटना नें सेंकड़ों सवालों को पीछे गई ।

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि संस्कारों में गिरावट का दौर कौन सा है? क्या कोई अपने जन्मदाता को लेकर ऐसी सोच रख सकता है? ख़ून के रिश्ते में आख़िर कैसे हो सकता है आख़िर? कोई भी बेटा अपने पिता के शव के दो टुकड़े करने की बात कैसे कह सकता है? पिता की मृत देह के सामने हक की मांग का ऐसा तांडव तो बेहद शर्मसार करने वाला है। नैतिक नैतिकता में आई गिरावट का दौर किसी से छिपा नहीं है। सांप्रदायिक विवाद में खून के रिश्ते भी एक दूसरे के खून के प्यासे होने लगे हैं। संस्कारों में अति जा रही गिरावट इसकी सबसे बड़ी वजह है। पिछले वर्षों में हमारी यहां संयुक्त परिवार जैसी संस्था को जिस तरह से नुकसान हुआ है वह भी सार्वजनिक रूप से सामने आया है। बार-बार ऐसा कहा जाता है कि भारतीयों की सबसे बड़ी ताकत संयुक्त परिवार है। संयुक्त परिवार, आपदा के हर मौके पर केवल परिवार के सदस्य नहीं बल्कि उनके अन्य साथी भी शामिल होकर सामने आ रहे हैं। लेकिन एकल परिवार ने रिश्ते में कटुता आने का काम भी बहुत अच्छा किया है, इसमें संशय नहीं है।

माता-पिता का तिरस्कार, उन्हें वृद्धाश्रम की बात यहां तक ​​कि उनके आश्रमों के मामले में नैतिक नैतिकता में अति जा रही गिरावट के प्रतीक हैं। लेकिन टीकमगढ़ की यह घटना तो आदिवासी की तरह भाषा बोलने वाली है। ये गंभीर साध्य का विषय भी है। परिवार के लिए सबसे बड़ी सीख यही है कि घर की दहलीज पर आपसी विवाद को खत्म करना जरूरी है।

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पिता के शव के दो टुकड़े करने की जिद:टीकमगढ़ में अंतिम संस्कार को लेकर भाइयों में विवाद; 5 घंटे जमीन पर पड़ा रहा शव

- टीकमगढ़

टीकमगढ़ में पिता के अंतिम संस्कार को लेकर दो बेटों में विवाद हो गया।

पिता की मौत के बाद दो बेटों के बीच उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हो गया। अंतिम यात्रा में शामिल होने आए नाते-रिश्तेदार और गांव के लोग उस वक्त हैरान रह गए, जब बड़े बेटे ने पिता के शव के दो टुकड़े कर अलग-अलग अंतिम संस्कार की बात कह दी।

लोगों ने उन्हें समझाया कि ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन वह जिद पर अड़ गया। इस विवाद के बीच पिता का शव करीब 5 घंटे तक घर के बाहर जमीन पर पड़ा रहा। आखिरकार पुलिस बुलाना पड़ी। पुलिस ने जैसे तैसे समझाइश देकर शव का अंतिम संस्कार कराया।

ये मामला टीकमगढ़ जिले के जतारा थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत ताल लिधौरा का है। जहां रविवार को 85 वर्षीय ध्यानी सिंह घोष का निधन हो गया था।

दोनों भाइयों में विवाद के बीच शव घर के बाहर जमीन पर ही पड़ा रहा।

बीमारी में छोटे बेटे ने की देखभाल ध्यानी सिंह के दो बेटे हैं। छोटा बेटा दामोदर सिंह और बड़ा बेटा किशन सिंह। छोटे बेटे दामोदर ने पिता की देखभाल की थी। पिता की मौत के बाद वह उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा था। तभी बड़ा बेटा किशन सिंह अपने परिवार के साथ वहां पहुंच गया और पिता के अंतिम संस्कार करने की जिद करने लगा।

दामोदर ने इसका विरोध किया, क्योंकि किशन और उनके परिवार ने पिता की बीमारी के दौरान उनकी देखभाल नहीं की थी।

स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब किशन ने पिता के शव के दो टुकड़े करने की बात कह दी। उसने भाई से कहा कि एक टुकड़े का अंतिम संस्कार तुम कर दो, एक टुकड़े का मैं कर दूंगा। परिजनों और रिश्तेदारों की समझाइश का कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद ग्रामीणों ने पुलिस को विवाद की सूचना दी।

पुलिस ने समझाइश देकर शव का अंतिम संस्कार कराया। 

पुलिस ने समझाइश देकर शव का अंतिम संस्कार कराया।
पुलिस ने समझाया, फिर हुआ अंतिम संस्कार पुलिस ने मौके पर पहुंचकर दोनों पक्षों से बात की। इसके बाद ग्रामीणों और परिजनों की राय के अनुसार छोटे बेटे दामोदर को अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी। पुलिस की मध्यस्थता के बाद मामला शांत हुआ। पुलिस की मौजूदगी में छोटे बेटे दामोदर ने रविवार दोपहर 2 बजे के बाद पिता का अंतिम संस्कार किया। इस दौरान पुलिस के कहने पर बड़ा बेटा किशन और उसका परिवार भी वहां मौजूद रहा।

जतारा थाना प्रभारी अरविंद सिंह दांगी ने बताया कि

पिता के अंतिम संस्कार को लेकर दोनों बेटों के बीच विवाद हो गया था। मौके पर पहुंच कर रिश्तेदारों और परिजनों से पूरी जानकारी लेने के बाद छोटे बेटे दामोदर से अंतिम संस्कार कराया गया है। बड़े बेटे को सलाह दी गई है कि वह भी पिता के अंतिम संस्कार में सहयोग करें।

अंतिम संस्कार में शामिल होने आए नाते-रिश्तेदार बड़े बेटे की मांग सुनकर हैरान रह गए। 

मृतक के छोटे बेटे दामोदर घोष ने बताया कि अंतिम समय में पिता उनके पास थे। पिछले कई दिनों से वह उनका इलाज करा रहे थे। रविवार सुबह उनकी मृत्यु के बाद जब अंतिम संस्कार की तैयारी करने लगे तो किशन, रिंकू, वृंदावन और महिलाएं घर आ गए। गाली गलौज कर पिता का शव घर से बाहर सड़क पर रखने को कहा। किशन ने कहा की खेत पर मैं जलाऊंगा। न तो खुद पिता का अंतिम संस्कार कर रहे और न मुझे करने दे रहे थे।

मृतक के नाती धर्मेंद्र सिंह घोष ने बताया कि दादा के अंतिम संस्कार के लिए ट्रैक्टर से लकड़ी लेकर खेत पर जा रहा था। इसी दौरान उसके चाचा और उनके बेटों ने मारपीट की। रिश्तेदारों ने बीच बचाव कराया। उसने बताया कि चाचा की मांग है कि दादा को काटकर दो हिस्से किए जाए।

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Brother Demanded Half Body Of Father For Last Rites In Tikamgarh Is An Ultimatum For Alone Elders Of Society
OPINION: 

अंत्येष्टि के लिए बाप की आधी बॉडी मांग ली...बेटे-बेटियों की बेरहम जिद से हाशिये पर हैं बुजुर्ग

देश में बुजुर्ग लगातार अकेले हो रहे हैं। गांव हो या शहर हालत में ज्यादा अंतर नहीं है। हालांकि हर घर में ऐसा नहीं है मगर यह सच है। टीकमगढ़ में एक बुजुर्ग के साथ हुई घटना ने चिंता जरूर बढ़ा दी है। ज्यादातर घरों में बुजुर्ग अपनी संतानों की जिद, उनकी बदली जीवन शैली और सम्मान कम होने के कारण हाशिये पर हैं।

Authored byविश्वनाथ सुमन | नवभारतटाइम्स.कॉम
 4 Feb 2025,

टीकमगढ: मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में एक बुजुर्ग ध्यानी सिंह घोष की मौत हो गई और उनके घर में बेटों के बीच अजब विवाद शुरू हुआ। पिता के अंतिम संस्कार को लेकर दोनों बेटे भिड़ गए। विवाद इतना बढ़ा कि बड़े भाई ने पिता की लाश को हिस्सों में काटने की डिमांड रख दी। यह सुनकर सभी हैरत में पड़ गए। मामला पुलिस थाने तक पहुंचा और हस्तक्षेप के बाद 85 साल के बुजुर्ग का अंतिम संस्कार हो पाया। बुजुर्ग पंचतत्व में विलीन हो गए मगर कई सवाल पीछे छोड़ गए। श्रद्धा और कर्तव्य निभाने का यह कौन तरीका है कि जिसमें पिता के शव को दो टुकड़े करने की नौबत आए। ऐसी जिद को मानसिक कमजोरी मान लेना सही नहीं है, क्योंकि समाज में बुजुर्गों के साथ जुल्म हो रहा है।

नवभारतटाइम्स.कॉम

लगातार खराब हो रही है बुजुर्गों की हालत
पिछले दिनों प्रयागराज के महाकुंभ में दो बुजुर्ग लावारिस हालत में मिले, उन्हें उनके बेटे धर्म के सबसे बड़े मेले में छोड़कर भाग गए थे। ऐसी ही एक वृद्धा भी अस्पताल में जीवन और मौत से जूझती मिली, जिसे कोरे कागज पर अंगूठा लगवाकर भटकने के लिए छोड़ दिया गया। संभव है कि ये सब कम पढ़े लिखे या जाहिल बेटे-बेटियों के लालच का शिकार हो गई हों। मगर आपने ऐसे भी कहानी पढ़ी होगी, जहां बड़े-बड़े शहरों के आसमान छूती इमारतों में बुजुर्ग की लाश सड़ता हुआ पाया गया।

शहरों में अकेलेपन से जूझ रहे बड़े-बूढे
अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्गों के बच्चे उम्दा तालीम के बाद विदेश या बड़े शहरों में रहते हैं और उनके फ्लैट में मां-बाप के लिए जगह नहीं है। देखभाल के लिए वक्त होना तो दूर की बात हैं। अब हर शहर में अनाथालय के साथ वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है। देश में करीब 2.5 लाख बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में बुढापा खपा रहे हैं। आप मथुरा-वृंदावन जाएं, खुद को ईश्वर की दासी कहने वाली विधवा बुजुर्गों की बड़ी टोली भीख मांगती दिखाई देगी। एक बार आपको तरस भी आएगा, मगर तादाद देखकर खीझ भी होगी।

परिवार में कमजोर हो रही बुजुर्गों की धमक
ये कुछ कहानियां बड़े शहरों की है। बुजुर्गों की हालत गांवों में खास अच्छी नहीं है। गनीमत यह है कि गांवों में एक बच्चा नालायक निकलता है तो दूसरा हाथ लेता है। कई बार समाज और रिश्तेदार हाथ लेते हैं। समाज का दबाव भी कई बार आंखों का पानी सूखने नहीं देता है। इस दुर्दशा का सामान्यीकरण करना भी उचित नहीं है। आज भी ऐसे बच्चे हैं जो अपने माता-पिता और परिवार के बुजुर्गों का सम्मान सर्वोपरि रखते हैं। मगर परिवार में बड़े-बूढ़ों की धमक लगातार कमजोर हो रही है, जिसे जेनरेशन के बदलाव की दलील के साथ खारिज नहीं किया जा सकता है।


सेवा करने वाले को अंत्येष्टि का हक
टीकमगढ़ के विवाद को देखिए। 85 साल के ध्यानी सिंह घोष के दो बेटे थे। वह अपने छोटे बेटे दामोदर के साथ रहते थे और उसने ही पिता की बुढापे में सेवा की थी। जब मौत हुई तो बड़ा बेटा किशन सिंह अपने बेटों और परिजनों के साथ अंत्येष्टि का हक मांगने सामने आ गया। जीते जी भले ही उसने सेवा कम की मगर सामाजिक ताने-बाने ने उसे हक की याद दिला दी। मगर ऐसी स्थिति में उसने पिता के शव के टुकड़े करने की बात कर दी। फिर याद दिला दें कि यह शहर नहीं, एक गांव की कहानी है। फिलहाल ध्यानी सिंह मौत के बाद बेटे की जिद के कारण टुकड़े-टुकड़े होने से बाल-बाल बच गए।


बच्चा और महिलाओं की कहानी याद है
इस घटना को एक छोटी से कहानी से जोड़ते हैं ताकि पता चले कि रिश्तों से प्रेम किसे कहते हैं? पुरानी कहानी है, सुनी जरूर होगी। एक नवजात बच्चों पर दो महिलाओं ने अपना हक जता दिया। विवाद राजा के पास पहुंचा। राजा भी हैरत में पड़ गए। उन्होंने महिलाओं से कहा कि दोनों बच्चे के एक-एक हाथ-पैर पकड़े और अपनी ओर खींचे। जो बच्चा खींच लेगी, बच्चा उसी का हो जाएगा। एक महिला बच्चे को खींचने को राजी हो गई, जबकि दूसरी ने मना कर दिया। यह उस महिला का प्रेम ही था, जिस कारण वह बच्चे का दर्द नहीं देख सकती थी। दूसरी महिला ने सरेंडर कर दिया। तब राजा ने फैसला दिया और ममता दिखाने वाली महिला को बच्चा सौंप दिया। काश! ध्यानी सिंह के बेटे में पिता के लिए ऐसी ममता होती।
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शव को 2 टुकड़ों में काटकर करना चाहते थे अंतिम संस्कार, पिता की लाश के बंटवारे पर 2 पुत्रों के बीच विवाद
शव को 2 टुकड़ों में काटकर करना चाहते थे अंतिम संस्कार, पिता की लाश के बंटवारे पर 2 पुत्रों के बीच विवाद

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