कविता : निः शब्द के शब्द
- अरविन्द सिसोदिया
कविता : निः शब्द के शब्द
बहुत शांत , इतना शांत ..,
कि........,
मौत का सन्नाटा भी शौर लगे !
दूर किसी पार्क के कौनें में ,
गाँव से दूर नदी के किनारे ,
घनघोर वन में..,
सडक किनारे की पुलिया पर,
या.., घर के अँधेरे कोनें में ..!
आँखे डबडबा जाती हैं ,
मन बार बार कांपता है ,
पशतावे में ..
होंठ सहज बुद बुदा उठते हैं ..!
यही है समाज ..?
मानव समाज..?
माता - पिता
भाई-बहन
मित्र-बंधु
रिश्ते - नाते
धर्म - नीति - सिद्धांत
गाँव - चौवारे
गली- मौहल्ले
दल - संगठन
विधान - संविधान
हर ओर घोर विश्वास घात..!
घनघोर छल - कपट
वह भी हलाल की तरह..!!
और उसका नाम समाज है ..???
----१----
कांपते होंठ .., डबडवाई आँखें ,
पीछे भागता मन मष्तिस्क ,
प्रश्नों की बौछार में अनुतरित ..
निः शब्द ............................,
मगर घोर शांती के आवास में उमड़ता तूफान ..
न्याय - नैतिकता ,
मानवता - मर्यादा,
दया - करूणा,
मातृत्व - भ्रातत्व
लाड - दुलार - प्यार
कब - क्यों - कहाँ हैं ..?
किधर और किसके पास ....?
नहीं नहीं ये तो है ही नहीं ...!
क्रूर स्वार्थ के हाथों..,
ये तो कबके पराजित होकर..,
नष्ट हो चुके हैं ..!
एक और आत्म ग्लानी ..!!!
------ २------
थका हुआ शरीर,
हजारों बोझों से लदा मष्तिस्क,
मुरझाये सपनें ,
अट्टहाट से मुस्कुराता शैतान ,
रावण - कंस - दुर्योधन ..
सब एक साथ ..!!!
पराजित और स्तब्ध मन ..,
राम - कृष्ण - हनुमान ..;
सब सर नीचे किये
आँखें जमीन में गडाए
पराजित भाव में खड़े ..!!
क्या मौत तक .. गुलामी
अपरोछ - परोछ - गुलामी ..!
मन कांप उठा
नहीं नही ... ये स्वीकार नहीं ..!
----- ३----
मगर एक प्रश्न फिरसे ..
कौन बचा है जो साथ देगा ..?
सब के सब परखे जा चुके हैं ..,
स्वार्थ की सिद्धी और कूड़ेदान ,
आई एम् ए डिस्पोजल ....!! ( माफ़ करें यही अंग्रेजी शब्द अभिव्यक्ती कर पा रहा है | )
अचानक निः शब्द में से..
शब्द गूंजा जैसे नाद ब्रम्ह ..!
में हूँ ना ...
तेरा ही अन्तः करण
तेरी मन बुध्दि आत्मा हूँ में ..!
संकल्प ले मन में तुझे करना क्या है ?
कि........,
मौत का सन्नाटा भी शौर लगे !
दूर किसी पार्क के कौनें में ,
गाँव से दूर नदी के किनारे ,
घनघोर वन में..,
सडक किनारे की पुलिया पर,
या.., घर के अँधेरे कोनें में ..!
आँखे डबडबा जाती हैं ,
मन बार बार कांपता है ,
पशतावे में ..
होंठ सहज बुद बुदा उठते हैं ..!
यही है समाज ..?
मानव समाज..?
माता - पिता
भाई-बहन
मित्र-बंधु
रिश्ते - नाते
धर्म - नीति - सिद्धांत
गाँव - चौवारे
गली- मौहल्ले
दल - संगठन
विधान - संविधान
हर ओर घोर विश्वास घात..!
घनघोर छल - कपट
वह भी हलाल की तरह..!!
और उसका नाम समाज है ..???
----१----
कांपते होंठ .., डबडवाई आँखें ,
पीछे भागता मन मष्तिस्क ,
प्रश्नों की बौछार में अनुतरित ..
निः शब्द ............................,
मगर घोर शांती के आवास में उमड़ता तूफान ..
न्याय - नैतिकता ,
मानवता - मर्यादा,
दया - करूणा,
मातृत्व - भ्रातत्व
लाड - दुलार - प्यार
कब - क्यों - कहाँ हैं ..?
किधर और किसके पास ....?
नहीं नहीं ये तो है ही नहीं ...!
क्रूर स्वार्थ के हाथों..,
ये तो कबके पराजित होकर..,
नष्ट हो चुके हैं ..!
एक और आत्म ग्लानी ..!!!
------ २------
थका हुआ शरीर,
हजारों बोझों से लदा मष्तिस्क,
मुरझाये सपनें ,
अट्टहाट से मुस्कुराता शैतान ,
रावण - कंस - दुर्योधन ..
सब एक साथ ..!!!
पराजित और स्तब्ध मन ..,
राम - कृष्ण - हनुमान ..;
सब सर नीचे किये
आँखें जमीन में गडाए
पराजित भाव में खड़े ..!!
क्या मौत तक .. गुलामी
अपरोछ - परोछ - गुलामी ..!
मन कांप उठा
नहीं नही ... ये स्वीकार नहीं ..!
----- ३----
मगर एक प्रश्न फिरसे ..
कौन बचा है जो साथ देगा ..?
सब के सब परखे जा चुके हैं ..,
स्वार्थ की सिद्धी और कूड़ेदान ,
आई एम् ए डिस्पोजल ....!! ( माफ़ करें यही अंग्रेजी शब्द अभिव्यक्ती कर पा रहा है | )
अचानक निः शब्द में से..
शब्द गूंजा जैसे नाद ब्रम्ह ..!
में हूँ ना ...
तेरा ही अन्तः करण
तेरी मन बुध्दि आत्मा हूँ में ..!
संकल्प ले मन में तुझे करना क्या है ?
तेरा दूसरा कोई नहीं ..,
वस् में ही हूँ , में ही हूँ ..!
अब उठ अपने लिए ..
हक़ और न्याय के लिए
जीवन तो युद्ध है ..,
बिना प्रतिकार के क्या कोई जिया है ..!
बिना लडे विजय नहीं ..,
विजय के लिए ..युद्ध है ..!
अब अपनें लिए भी तो लड़ ..!!!
- राधाकृष्ण मंदिर रोड , डडवाडा
कोटा जंक्शन . , राजस्थान |
०९४१४१८०१५१
वस् में ही हूँ , में ही हूँ ..!
अब उठ अपने लिए ..
हक़ और न्याय के लिए
जीवन तो युद्ध है ..,
बिना प्रतिकार के क्या कोई जिया है ..!
बिना लडे विजय नहीं ..,
विजय के लिए ..युद्ध है ..!
अब अपनें लिए भी तो लड़ ..!!!
- राधाकृष्ण मंदिर रोड , डडवाडा
कोटा जंक्शन . , राजस्थान |
०९४१४१८०१५१
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