अंगूठा चूसते रहो, भारत वालों-अमरीका
लाली पॉप जैसा वायदा है , सुरक्षा परिषद का..!
- अरविन्द सीसोदिया यह बात तो थी है कि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनें , मगर कैसे ..? स्थाई सदस्यता के लिए पांच देशों का समर्थन चाहिए..! उन पांच में एक चीन फिलाहल हमारा समर्थन नहीं करता..!! फिर इस लाइन में तो जर्मनी, जापान ,ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका पहले से ही है.........
अमरीकी लाली पॉपअमरीका ने तो दस साल पहले , जर्मनी और जापान को भी सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनाने की बात कही थी , मगर वे आज तक बाट जोह रहे हैं.., लगता है कि वे बाट जोहते ही रहेंगे..! यही भारत के साथ होना है...!!! क्यों कि दुनिया को प्रजातान्त्रिक होने का सन्देश देने वाला संयुक्त राष्ट्र संघ खुद लोकतान्त्रिक नहीं है..? वहां कुछ देशों के पास वीटो अधिकार है.., उनमें से एक का विरोध ही.. विषय को स्थगित कर देता है..!! यह अभी तक भी चलता रहा आगे भी चलाना है.., भारत के विरुद्ध कोई न कोई एक वीटो कर देगा ..! और भारत कभी भी इस परिषद् का स्थाई सदस्य नहीं बनेगा ....! मगर प्रयत्न और स्वप्न में क्या नुकसान ...! मगर वह राष्ट्रहित की कीमत पर ठीक नहीं.....!!
अमेरिकी राष्ट्रपति
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी यह किसी देश की सबसे लम्बी यात्रा है। ओबामा ने कहा कि वह और मिशेल भारत के मूल्यों से प्रभावित हैं। उनकी राय में 21वीं सदी के लिए दोनों देशों में दोस्ती जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सदस्यता की बात भी ओबामा ने कही। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के भारतीय दावे का स्वागत करते हुए ओबामा ने कहा कि वह भविष्य में सुरक्षा परिषद् में सुधार के हिमायती हैं।
नई दिल्ली में भारतीय संसद में दोनों सदनों के सांसदों को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा कि पाकिस्तान के अंदर आतंकवादियों के अड्डे मंजूर नहीं हैं। ओबामा ने कहा कि पाकिस्तान के साथ मिलकर अलकायदा का आतंकवाद खत्म करके रहेंगे। ओबामा ने स्थिर और विकसित पाकिस्तान और अफगानिस्तान को भारत के हित में बताया। अलकायदा और उसके साथियों को हराने के मकसद को एक बार फिर भारतीय संसद में ओबामा ने दोहराया। मुंबई हमले के दोषियों के सजा दिलाए जाने की बात संसद में ओबामा ने एक बार और कही। ओबामा ने कहा कि वह दक्षिण एशिया में सुरक्षा और शांति के लिए भारत-पाक के बीच बातचीत के पक्षधर हैं। भारत को एशिया में एक मजबूत सहयोगी के रूप में ओबामा देखते हैं।
इससे पहले नई दिल्ली में संसद भवन पहुंचने पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने स्वागत किया। ओबामा ने सेंट्रल हॉल में गोल्डन बुक में हस्ताक्षर किए। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सबसे पहले संबोधन प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र का स्वागत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कर रहा है। उनके ही देश में सहमती नही
वाशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के भारत के दावे का समर्थन किया है। लेकिन ओबामा के ही देश में राष्ट्रपति के इस फैसले पर सवाल खड़े हो गए हैं। स्थानीय मीडिया का कहना है कि ओबामा ने चीन से मुकाबले के लिए ऐसा किया है जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि ओबामा चाहे कुछ भी कहें, भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट मिलना इतना आसान नहीं है।
अखबार ‘क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर’ का कहना है कि ओबामा ने भारतीय संसद में अपने भाषण के दौरान सुरक्षा परिषद में भारत के दावे को समर्थन कर भले ही भारत का दिल जीत लिया है लेकिन भारत को जल्द ही इस परिषद का स्थायी सदस्य बनने का गौरव हासिल नहीं होने वाला है। अखबार ने संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अधिकारी माइकल डोएल के हवाले से लिखा है, ‘सुरक्षा परिषद के मौजूदा ढांचे में बदलाव करना व्यावहारिक और राजनीतिक वजहों से आसान काम नहीं है। डोएल फिलहाल न्यूयार्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हैं।
‘लॉस एंजिलिस टाइम्स’ ने ओबामा के इस समर्थन को ‘ड्रामा’ करार दिया है। अखबार के मुताबिक ओबामा को ऐसा लगता है कि भारत दुनियाभर में अमेरिकी हितों का समर्थन करेगा इसलिए राष्ट्रपति ने आदर के तौर पर भारत के प्रति यह रुख अपनाया है। अखबार कहता है कि ओबामा का यह समर्थन भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर दिखाने की दिशा में सिर्फ पहला कदम है। सुरक्षा परिषद में भारत को जल्द ही स्थायी सीट नहीं मिलने वाला है और परिषद के मूल ढांचे में सुधार करने में वर्षों लग जाएंगे।
अमरीका को बड़ा फायदा
भारत दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच होने वाले व्यापार से दोनों देशों में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच 10 अरब डॉलर के करीब 20 बड़े समझौते हुए हैं। ये समझौते ओबामा के भारत पहुंचने से पहले हो गए हैं। इससे करीब 50 हजार अमेरिकी लोगों को रोजगार मिलेगा।
भारत को फिलहाल कुछ नहीं
हर तरह के विश्लेष्ण यह कहते हैं कि भारत को अभी तो कुछ नहीं मिला.., आगे भी कुछ नहीं मिलेगा.., वे कमाने आये थे कमा कर ले गए.., उन्होंने वैसी ही बात भारत के साथ की.., जैसी वोट मांगते वक्त भारत के नेता भारत की जनता से करती है....!
चीन पर भी विशेष प्रभाव नहीं ...
ओबामा की इस यात्रा का कोई विशेष प्रभाव चीन और पाकिस्तान पर नहीं पढ़ा..!! ओबामा की स्थिति भी नहीं है कि वह कोई विशेष प्रभाव विश्व पर दाल सकें... क्यों कि उनकी राजनैतिक समझ अभी उअत्नी नही है..,अधिकारीयों ने जो दौरे का कार्यक्रम बनाया था .., वे उसी ट्रेक पर चलते रहे....
गजब की प्रस्तुति .
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