गैर कांग्रेस विपक्ष की मुख्य समस्या problem of the non-Congress opposition
Is the main problem of the non-Congress opposition to save its vote bank from the Congress - Arvind Sisodia
क्या गैर कांग्रेस विपक्ष की मुख्य समस्या, कांग्रेस से अपना वोट बैंक बचानें की है - अरविन्द सिसोदिया
एक समय दिल्ली में कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं, लगातार तीसरी बार उनकी सरकार थी। दिल्ली में मनमोहनसिंह सरकार थी । चुनाव में भाजपा की जीत को देखते हुये कांग्रेस नें अंतिम दिन अपना वोट आम आदमी पार्टी को दिलवाया । फिर आम आदमी पार्टी व कांग्रेस नें मिल कर सरकार बनाई और नतीजा यह हुआ कि अब कांग्रेस वहां शून्य की स्थिती में है। आम आदमी पार्टी कितना भी अलग मानें मगर उसका जन्म कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक से हुआ तथा उसनें कांग्रेस से पहले दिल्ली और बाद में पंजाब छीन लिया। कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक से ही देश में बहुत से दलों का जीवन चल रहा है, जैसे बंगाल में ममजा बनर्जी की टीएमसी, उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, बिहार में लालूप्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल, वहीं बिहार में नितिश कुमार भी कांग्रेस कल्चर के वोट बैंक पर ही आश्रित हें। उडीसा में बीजू जनता दल, महराष्ट्र में शरद पंवार की एन सी पी , आंध्र प्रदेश में वाई एस आर रेड्डी.... कर्नाटक में कुमारस्वामी का जनता दल सेक्यूलर इस तरह से कांग्रेस के वोट बैंक को छीन कर अपना अस्तित्व कायम करने वाले अनेकों दल इस समय एनडीए के विपक्ष में हैं।
अब 23 जून को इन विपक्षी दलों की एकता बैठक बिहार के मुख्यमंत्री नितिश कुमार के तीसरी बार आमंत्रण पर होनें जा रही है। सवाल यही है कि क्या कोई भी विपक्षी दल अपना वोट बैंक खोना चाहेगा। क्यों कि जो विपक्ष का नेता होगा वोट बैंक उसकी पार्टी में ही घुवीकृत होगा । जैसे कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को वोट दिलवाया वह वोट फिर कांग्रेस में नहीं लोटा....यदि विपक्षी एकता के नाम पर आम आदमी पार्टी कांग्रेस को अपना वोट दिलवाती है तो वह वोट फिर कांग्रेस में ही शिफट हो जायेगा और आम आदमी पार्टी बगला चुनाव हार जायेगी। यदि अखिलेश यादव अपना वोट कांग्रेस को दिलवाते है। तो उनको अगले चुनाव में भी बाहर होना पडेगा । यही टीएमसी का होगा , यही आरजेडी का होगा । इसलिये विपक्षी बैठकें तो होंगी मगर एकता बहुत मुस्किल है। क्यों कि कांग्रेस यदि इन क्षैत्रीय दलों को सीटें दे ती है तो उसको जो फायदा मिलने वाला है , उसे अन्य दल हडप जायेगे और बाद में ब्लेकमेलिंग करेंगे। यह निश्चित है कि अभी कांग्रेस ऊर्जा से भरी हुई है और उसकी नीती भी यही है कि गैर भाजपा दलों के वोट को खाया जाये। विपक्षी एकता को फडफडा रहे दलों की भी यही समस्या है कि भाजपा और कांग्रेस उन्हे निगल न पायें। क्यों कि लाल की पाटर्भ् के जीरो सीटें लोकसभा में है। अब यही नितिश का होना है। मोदी लहर और राहुल कहर से अपनी रक्षा कैसे करें यही विपक्ष की चिन्ता है। क्यों कि ज्यादातर विपक्ष का वोट बैंक मुस्लिम बेसड है। जो भाजपा को तो नहीं मिलना मगर कांग्रेस को मिल ही सकता है। जैसे कर्नाटक में देवगौडा कुमारस्वामी का वोट कांग्रेस खागई । भाजपा का वोट तो यथावत ही रहा है। गैर कांग्रेस विपक्ष की मुख्य समस्या अपना वोट बचाये रखनें की है। क्यों कि कर्नाटक में जेडीएस के पतन से हडकंप मचा है।
आम चुनाव 2024 से पहले 23 जून 2023 को पटना में विपक्षी दलों की बैठक होगी , जिसमे कांग्रेस नेता खड़गे, राहुल गांधी के अलावा इस बैठक के लिए एन सी पी नेता शरद पवार, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, स्टालिन, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वामपंथी दलों के नेताओं में डी राजा, सीताराम येचुरी और दीपांकर भट्टाचार्य ने अपनी सहमति दे दी है।
गैर कांग्रेस विपक्ष का मतलब ममता बेनर्जी, नितिश कुमार, अरविन्द केजरीवाल, के चन्द्रशेखर राव , अखिलेश यादव, लालूप्रसाद यादव, शरद पँवार जैसे उन नेताओं से है जो कांग्रेस कल्चरल वोट बैंक पर डिपेन्ड होकर, कांग्रेस के वोट बैंक को खा चुके हैं। इन दलों की खुशी कांग्रेस की पराजय में होती है, इनका दुख कांग्रेस की जीत में होता है। कनार्टक में कांग्रेस की जीत के बाद इन दलों के मन मुरझाये हुये है। बाहर ये बहुत उत्साहित अपने आपको प्रदर्शित कर रहे है। वहीं कांग्रेस भी जानती है कि वह 51 सीटों से 100 तक भी पहुंच जाये तो भविष्य के लिये अच्छा होगा । क्यों कि 2024 का आम चुनाव मोदी के लिये नई ऊंचाई देनें वाला है । कांग्रेस भी 2029 में अपनी सरकार बना पाये इसी मकसद से काम कर रही है। येशे में अपने आपको बचाना और बडाना ही मुख्य चेलेन्ज है। कांग्रेस के उत्साह का नुकसान मुख्यतौर कांग्रेस जैसे वोट बैंक पर आधारित दलों को ही है। जैसा कि कर्नाटक में जनता दल सेक्यूलर नें भुगता । अब समस्या कांग्रेस से ज्यादा कांग्रेस के साथ खडे विपक्षी अन्य दलों को है कि वे अस्तित्व कैसे बचाये रखें।
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