पाप किसी के लिए भी करो दंड सिर्फ स्वयं भुगतना पड़ेगा - अरविन्द सिसोदिया krm vidhan
पाप किसी के लिए भी करो दंड सिर्फ स्वयं भुगतना पड़ेगा - अरविन्द सिसोदिया
कभी बहुत गरीब रहा व्यक्ति अमीर अमीर और अमीर हो गया। नगर एक सेठ बन गया , दान पुण्य में भी बहुत आगे रहता था, धर्मात्मा कहलाता था। वह बीमार हो गया.... बड़े बड़े चिकित्सक आये, झाडे फुकेन वाले भी आये.... मगर ठीक नहीं हुआ... ग्रह नक्षत्र दिखाए.... कोई फायदा नहीं हुआ.... सेठ जी से सभी मिलते जुलते संवेदना प्रगट करते और अंततः दुःखी मन से चले जाते...।
चर्चा होनें लगी कि सेठ तो बड़े धर्मात्मा हैं फिर ईश्वर उन्हें दंड किस बात का दे रहा है।
सेठजी न जाने किस मोह में फंसे थे उनके प्राण भी नहीं निकल रहे थे। बच्चों नें कुछ जानकर बुलाये..... सेठ जी की समकक्ष आयु के एक व्यक्ति नें स्व को कक्ष से बाहर कर सेठ जी से कान में पूछा क्या है? मन कहां फंसा है? जो कहना हो कहदो....!
सेठ जी नें बहुत धीमी आवाज में अपने उस समकक्ष को बताया कि में बहुत गरीब था... मैनें मेरे बचपन के सखा के साथ मिल कर व्यवसाय किया, उसका हिस्सा भी हड़प लिया और उसे अलग कर भगा दिया, वह इस धोके को सहन नहीं कर सका और निराशा में मर गया। उसके मरने का भार मुझे बहुत सालता है। में उसके परिवार कि मदद करना चाहता हूँ।
सेठ जी का पाप सामने आ गया, सेठजी के बेटों नें उस परिवार को बुलाया...सेठ जी मदद करबाई..... कुछ दिनों बाद.....सेठजी की मृत्यु हो गईं...! शरीर कष्ट से वे मुक्त हुए।
मृत्यु के बाद यमराज के कार्यालय में सेठ जी कि आत्मा का लेखा जोखा हुआ, सेठ जी को एक नर्क विशेष की सजा सुना दी गईं...!
सेठ जी नें विनीत भाव से कहा मैंने दान पुण्य में कोई कसर नहीं रखी, जो पाप कर्म हुआ उसकी भी भर पाई कि गईं...तब भी मुझे यह दंड क्यों...?
यमराज नें कहा सेठ जी तुम्हारा जो मस्तिष्क है, जिसमें तुम्हारे सारे अच्छे बुरे कर्म वीडियो रूप में सुरक्षित हैं अर्थात तुम्हारी आत्मा का डाटा सुरक्षित है। तुम्हारे अच्छे बुरे कर्म और कर्मफल संचित। इसी से ईश्वर का कर्म विधान कम्प्यूटर आपका भविष्य तय करता है। आप चाहें तो देख लीजिए....।
सेठ जी को यमराज नें ईश्वर के कम्प्यूटर पर बिठा दिया, सेठ जी को जन्म से लेकर मृत्यु तक के कर्म उनको दिखा दिये गए।
फिर यमराज नें कहा ईश्वर का कर्मविधान कम्प्यूटर सुपर कम्प्यूटर है, आपने जो जो पाप किये हैं उक्के कारण जो निमित्त निर्माण हो रहा है, वह भी आप देख सकते हैं। जैसे आपने अपने जिस मित्र का हक हड़पा और वह मर गया... वही मित्र अब आपका पुत्र रूप में जन्म लेकर उस हड़पु गईं संपत्ती का भोग करेगा।
यमराज नें सेठ को समझाया पाप कर्म तो भुगतना ही होता है। मगर यह भी ध्यान रखो कि जो छिना गया वह उसे जरूर मिलेगा। जीने छीना है उसे ही देना होगा। कोई भी ईश्वर के न्याय से बच नहीं सकता।
सेठ जी पहले स्वयं को सुखी रखने के लिए अवैध तरीके से धन बनाते रहे, फिर संतानों को सुखी रखने के लिए और अंत में सातों पीढ़ियों को सुखी रखने के लिए, मिलावट, मुनाफाखोरी और टेक्सचोरी करते थे। सेठ जी नें तर्क दिया की यह तो मैंने संसार धर्म में किया। किन्तु सबसे बड़ी बात यही है कि पाप किसी के लिए भी किया ईश्वर दंड अकेले ही भुगतना होगा।
यमराज नें सेठ जी से कहा पाप और पुण्य का लेखा जोखा कभी समाप्त नहीं होता, जीवात्मा के साथ निरंतर रहता है। कर्म फल भुगतना ही पड़ता है। जान बूझ कर किया गया पाप अधिक दुःख दायी होता है।
कुल मिला कर आत्मा की हार्ड डिस्क में सब कुछ सेव होता रहता है, ईश्वर के इंरनेट और वाईफाई से ईश्वर को सब कुछ ज्ञात होता रहता है। ईश्वर की व्यवस्था अत्यंत विकसित और पूर्ण प्रभावशाली है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें