कांग्रेस की हर हिन्दू घर में निंदा हो रही है - अरविन्द सिसोदिया GITA PRESS GORAKHPUR

भारत में लगभग हर हिंदू घर में गीता प्रेस गोरखपुर की अत्यंत सुंदर हिंदू धर्म की पुस्तकें मिल जाती हैं। ईश्वर जितना ही आदर इस संस्थान का भारत में है। सबसे बड़ी बात यह है  कि इस संस्थान नें हिंदुत्व में कभी घालमेल नहीं करने दिया, उसकी शुद्ध साश्वत संस्कृति को पूरी क्षमता से शुद्ध बनाये रखा। शुद्धता क़ायम रखने को लेकर कि वार इस संस्थान पर परोक्ष अपरोक्ष आक्रमण भी हुए, जिन्हे सहन करते हुए यह निरंतर सेवा रत है। इसकी स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। अब डिजिटल युग आ गया है, इसलिए गीता प्रेस को अपने आपको डिजिटईलैंजेशन करना होगा। इसकी महान सेवाओं के बदले इन्हे बहुत पहले सम्मनित किया जाना चाहिए था, किन्तु अब सम्मनित किया जा रहा तब भी कांग्रेस के पेट में दर्द होना अनुचित है। उनका विरोध मात्र हिंदू विरोधी दिखने की नौटंकी है, कर्नाटक विजय के बाद कांग्रेस में हिंदू विरोधी निर्णयों की होड़ लग गईं है, जो कांग्रेस का असली चेहरा भी उजागर कर रही है।

कांग्रेस एक बार फिर बेनक़ाब हुई है, उनके बड़े नेता जयराम रमेश नें मोदी सरकार द्वारा गीता प्रेस गोरखपुर को अंतर्राष्ट्रीय गाँधी शान्ति पुरस्कार दिये जानें पर घोर आपत्तिजनक टिप्पड़ी की है, जिससे वे स्वयं और कांग्रेस अधिकतम निंदा के पात्र बन गये हैं । पूरे विश्व के हिंदू घरों में कांग्रेस की जम कर फजीहत हो रही है। यूँ भी कहा जा सकता है कि थू - थू हो रही है, क्योंकि भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म की प्रमाणित, सुंदर, सरल और बेहद सस्ती पुस्तकें प्रकाशित कर प्रेषित करने का काम ,एक शताब्दी से यह गीता प्रेस गोरखपुर ट्रस्ट कर रहा है। लगभग प्रत्येक हिंदू घर में पाई जानें वाली गीता, रामायण, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा विभिन्न आकार -  प्रकार में बहुत कम मूल्य पर हिन्दू धर्म की धार्मिक पुस्तकें यह ट्रस्ट उपलब्ध करवाता है। कांग्रेस का बयान और उसकी प्रस्तुति ही न केवल निंदनीय है, बल्कि अशोभनीय भी है।कांग्रेस का हिंदू विरोधी चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है। उसका मुस्लिम लीग प्रेम उसे लगातार हिंदू विरोधी बनाये हुए है। यी मनोवृति कांग्रेस को अब मुस्लिम लीग में तबदील कर रही है। 

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'...तो भरपाई करने में सदियां गुजर जाएं', गीता प्रेस विवाद पर आचार्य प्रमोद ने कांग्रेसी नेताओं को लताड़ा

गीता प्रेस की स्‍थापना साल 1923 में हुई थी. 

गीता प्रेस को गांधी पीस प्राइज दिए जाने के बाद यह पूरा विवाद शुरू हुआ. जयराम रमेश ने इसका विरोध किया. 

गीता प्रेस पर जयराम रमेश के बयान पर कांग्रेस में घमासान, खड़गे से हुई शिकायत

गीता प्रेस को साल 2021 के लिए गांधी पीस प्राइज दिए जाने के सरकार के फैसले के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई. इस मामले में अब कांग्रेस के अंदर से ही जयराम रमेश के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने नाम लिए बिना जयराम रमेश को आड़े हाथों लिया. उन्‍होंने कहा कि बीजेपी की मंशा है कि कांग्रेस पार्टी को हिन्‍दू विरोधी साबित किया जाए. पार्टी के कुछ नेता बीजेपी के काम को आसान बनाने में लगे हुए हैं. नेता जो पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं उसकी भरपाई करने में सदियां गुजर जाएंगी.

न्‍यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत के दौरान आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा, ‘बीजेपी चाहती है कि कि कांग्रेस एक हिन्‍दू विरोधी पार्टी घोषित हो जाए. कांग्रेस पार्टी में कुछ ऐसे नेता आ गए हैं जो वही काम कर रहे हैं जो बीजेपी चाहती है. गीता प्रेस का विरोध करना हिन्‍दू विरोधी मानसिकता की पराकाष्‍ठा है. गीता प्रेस कोई भाजपा थोड़ी है. गीता प्रेस की स्‍थापना 1923 में हुई. लगभग 100 साल हो गए हैं. तब तो बीजेपी का जन्‍म भी नहीं हुआ था. उसने 100 करोड़ से ज्‍यादा पुस्‍तकें छापी हैं.’

आचार्य  प्रमोद ने कहा, ‘हर एक हिन्‍दू के घर में गीता प्रेस की किताब है. ऐसे में गीता प्रेस के खिलाफ कुछ भी कहना हिन्‍दुओं की भावनाओं को आहत करने जैसा है. ये ठीक नहीं है. मुझे नहीं लगता कि जिम्‍मेदार पदों पर बैठे लोगों को ऐसा करना चाहिए. मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्‍व इस तरह के बयानों के साथ सहमत नहीं हो सकता है.’

कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद ने इसे लेकर एक ट्वीट भी किया है. उन्‍होंने कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को टैग करते हुए कहा, ‘गीता प्रेस का विरोध हिन्‍दू विरोधी मानसिकता की पराकाष्‍ठा है. राजनैतिक पार्टी के जिम्‍मेदारी पदों पर बैठे लोगों को इस तरह के धर्म विरोधी बयान नहीं देने चाहिए. जिसके नुकसान की भरपाई करने में सदियों लग जाएं.’

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गीता प्रेस गोरखपुर 
गीता प्रेस गोरखपुर वही संस्था है जिसने हिंदू धर्म ग्रंथों को बचाने रखने के लिए निस्वार्थ काम किया है

मोदी सरकार 'गीता प्रेस' को गांधी शांति पुरस्कार दे रही, कांग्रेस बुरा मान गई  

गीता प्रेस गोरखपुर वही संस्था है जिसने हिंदू धर्म ग्रंथों को बचाने रखने के लिए निस्वार्थ काम किया है Gandhi Peace Prize to 'Gita Press: केंद्र सरकार ने गोरखपुर की संस्था 'गीता प्रेस' को गांधी शांति पुरस्कार देने का एलान किया है. गीता प्रेस वही संस्था है जिसने सनातन धर्म से जुडी किताबों को संरक्षित करने और उन्हें घर-घर पहुचांने के लिए निस्वार्थ काम किया है. जाहिर है गीता प्रेस एक हिन्दू संस्था है इसी लिए कांग्रेस को इससे आपत्ति होने लगी है. कांग्रेस का कहना है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना मतलब गोडसे-सावरकर को पुरस्कार देना है.

गांधी शांति अवार्ड की शुरुआत 1995 में हुई थी. केंद्र सराकर की तरफ से Gandhi Peace Prize उन लोगों का संस्थानों को दिया जाता है जिन्होंने 'अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में योगदान' दिया है. केंद्र सरकार ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा है कि गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 दिया जाएगा। 

गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार पीएम मोदी ने गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार मिलने के मौके पर कहा- ‘‘मैं गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 से सम्मानित किए जाने पर बधाई देता हूं. उन्होंने पिछले 100 सालों में लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में काफी सराहनीय कार्य किया है.''  

कांग्रेस को क्या दिक्क्त है? कांग्रेस ने गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार देने का विरोध किया है. कांग्रेस का कहना है कि इस संस्था को यह अवार्ड देना यानी गोडसे-सावरकर को सम्मान देने जैसा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए कहा- "साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर के गीता प्रेस को दिया जा रहा है, जो कि अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. अक्षय मुकुल की 2015 में आई एक बहुत अच्छी जीवनी है. इसमें उन्होंने इस संगठन के महात्मा के साथ तकरार भरे संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया गया है. यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और ये सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.'' मतलब अगर गीता प्रेस का महात्मा गांधी से वैचारिक तकरार थी तो उसे कांग्रेस के हिसाब से सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए। देखा जाए तो भीमराव आंबेडकर और नेता जी सुभासचन्द्र बोस से भी गांधी के मतभेद थे तो क्या इन्हे भी वो सम्मान नहीं मिलना चाहिए जो गांधी को मिलता है? 
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कांग्रेस की हर हिन्दू घर में निंदा हो रही है - अरविन्द सिसोदिया

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हम इस आलोचना का समर्थन नहीं करते फिर भी तथ्य को समझनें के लिये यह प्रस्तुत है -
गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार बापू के भगवाकरण की कोशिश, आम सहमति से नहीं पीएम की संस्तुति से लिया गया फैसला
गोरखपुर की गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने की घोषणाकी चौतरफा आलोचना हो रही है। लेखकों और शिक्षाविदों का कहना है कि यह बापू के भगवाकरण की कोशिश है और इस बारे में फैसला आम सहमति के बजाए पीएम की संस्तुति से लिया गया है ।

गोरखपुर स्थिति गीता प्रेस का कार्यालय (फोटो सौजन्य : https://www.gitapress.org)गोरखपुर स्थिति गीता प्रेस का कार्यालय (फोटो सौजन्य : https://www.gitapress.org)

Published: 20 Jun 2023, 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले निर्णायक मंडल ने 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर की गीता प्रेस को देने का फैसला लिया। रविवार को हुए इस फैसले पर शिक्षाविदों और गांधीवादियों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वहीं लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि उन्हें इस बैठक का निमंत्रण ही नही दिया गया जबकि नेता विपक्ष होने के नाते उन्हें निर्णायक मंडल में होना चाहिए था।

गीता प्रेस 100 साल पुरानी है और  हिंदू धार्मिक ग्रंथों की सबसे बड़ी प्रकाशक है। इसकी स्थापना जय दयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी। लेकिन आजादी के आंदोलन के बाद जब देश आजाद हुआ तो महात्मा गांधी की हत्या पर इसने खामोशी को चुना था। 1923 में स्थापना के बाद से ही गीता प्रेस कल्याण नाम से एक मासिक पत्रिका का 15 भाषाओं में प्रकाशन करती है। इसके अलावा गीता, रामायण, उपनिषद, पुराण आदि धार्मि ग्रंथों के अलावा चरित्र निर्माण की पुस्तकें और पत्रिकाएं भी छापती है। कल्याण पत्रिका की प्रसार संख्या करीब 2 लाख और इसके अंग्रेजी संस्करण कल्याण-कल्पतरु की प्रसार संख्या करीब एक लाख है।

मंत्रालय द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने का फैसला आम सहमति और एकमत से हुआ था, लेकिन अधीर रंजन चौधरी का खुलासा कि उन्हें इस फैसले के लिए होने वाली बैठक में बुलाया ही नहीं गया, पूरे मामले पर सवाल खड़े करता है। उनका कहना है कि पुरस्कार के ले बने कोड ऑफ प्रोसीजर में कहा गया है कि नेता विपक्ष को ज्यूरी में होना चाहिए। लेकिन मोदी सरकार ने चौधरी को सूचना तक नहीं दी। अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “उन्होंने पूरी तरह एकतरफा और अलोकतांत्रिक तरीके से फैसला लिया है।”

पुरस्कार के कोड ऑफ प्रोसीजर में कहा गया है कि पुरस्कार के विजेता का फैसला लेने के लिए ज्यूरी में पांच सदस्य होने चाहिए। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे, उनके अलावा देश के प्रधान न्यायाधीश, लोकसभा में विपक्ष के नेता (और अगर नेता विपक्ष न हो तो लोकसभा में सर्वाधिक संख्या वाले विपक्षी दल के नेता) और दो प्रतिष्ठित नागरिक इसका हिस्सा होंगे। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि दो प्रतिष्ठित नागरिक कौन थे जिनकी इस मामले में सहमति ली गई है, क्योंकि सरकार के प्रेस नोट में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही नाम है।

केंद्र के संस्कृति मंत्रालय ने कहा है कि पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने एकमत से गीता प्रेस को "अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में अपने उत्कृष्ट योगदान" के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है। इसमें यह भी कहा गया है कि गीता प्रेस ने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें 16.21 करोड़ श्रीमद्भगवद गीता भी शामिल है। 1992 में, पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा पोद्दार को उनकी छवि के साथ एक डाक टिकट के साथ सम्मानित किया गया था।

सरकारी बयान में कहा गया है कि  "गांधी शांति पुरस्कार 2021, मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने में गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो सच्चे अर्थों में गांधीवादी जीवन का प्रतीक है।"

इस बयान में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति और सामाजिक सद्भाव के गांधीवादी आदर्शों को बढ़ावा देने में गीता प्रेस के योगदान को रेखांकित किया है। उन्होंने कहा है कि गीता प्रेस को उसकी स्थापना के सौ साल पूरे होने पर गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाना संस्था द्वारा सामुदायिक सेवा में किए गए कार्यों की पहचान है।

गीता प्रेस एंड मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया  के लेखक अक्षय मुकुल का कहना है कि गांधी जिन आदर्शों के लिए खड़े थे, यह पब्लिशिंग हाउस पूरी तरह उसके खिलाफ है। उन्होंने कहा कि, "प्रकाशकों का कहना है कि वे राजनीति से दूर रहते हैं, लेकिन जब कल्याण  ने शुरुआत की तो उन्होंने हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाद में जनसंघ और फिर बीजेपी जैसे बड़े हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों का समर्थन किया।

महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह गांधीवादी आदर्शों का उपहास है। उन्होंने कहा कि, "यह बेहतर होता अगर वे पिछले कुछ सालों की तरह बिल्कुल भी किसी को पुरस्कार नहीं देते।"

तुषार गांधी ने समझाया कि गीता प्रेस द्वारा अपनाई गई धार्मिक कट्टरवाद की विचारधारा, बापू द्वारा प्रचलित सनातन धर्म के साथ पूर्ण रूप से भिन्न है। उन्होंने ने कहा, "लेकिन गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देकर सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से आरएसएस और कट्टरपंथी हिंदुत्व की उसकी विचारधारा को पुरस्कृत किया है और उस विचारधारा को पुरस्कृत किया है जो बापू की हत्या करती है और आज नफरत और निर्णायकता के सिद्धांत का अभ्यास कर रही है।"

मुकुल ने भी गीता प्रेस को गांधी के नाम पर पुरस्कार देने की विडंबना की ओर इशारा किया। गांधी की हत्या के बाद जिन 25,000 लोगों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, उनमें से गीता प्रेस के संस्थापक और संपादक को भी गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद जब सर बद्रीदास गोयनका ने जी डी बिड़ला से उनकी मदद करने की गुहार लगाई तो उन्होंने इनकार कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने कहा था कि दोनों सनातन धर्म नहीं बल्कि शैतान धर्म का प्रचार कर रहे थे, मुकुल ने कहा।

हालांकि यह एक तथ्य है कि गीता प्रेस के महात्मा गांधी के साथ घनिष्ठ संबंध थे, मुकुल ने कहा, लेकिन 1930 के दशक की शुरुआत में गांधी के मंदिर में प्रवेश पर जोर देने, पूना पैक्ट के बाद सहभोज और बाद में गांधी के हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम करने के कारण विभाजन से पहले ही संबंध पूरी तरह से बिगड़ गए थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के लिए गांधी को दोषी ठहराया। कल्याण के लेखों के माध्यम से, इसने न केवल निजी और सार्वजनिक रूप से गांधी की आलोचना करते हुए, हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बल दिया, बल्कि सांप्रदायिक नफरत को भी हवा दी।

मुकुल ने अपनी किताब में लिखा है कि गीता प्रेस और कल्याण के जिस पहलू का वर्तमान समय में सबसे ज्यादा महत्व है, वह है आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और कई अन्य सांप्रदायिक संगठनों को मंच प्रदान करना। स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में देखा गया है कि गीता प्रेस हिंदू कोड बिल के खिलाफ आंदोलन और गौ-रक्षा आंदोलन का एक माध्यम बन गया था।

मुकुल कहते हैं कि, “यह विडंबना भी है क्योंकि गीता प्रेस का आदर्श वाक्य "भक्ति, ज्ञान और त्याग" है, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत हैं।“ उनका कहना है कि इतिहास के सभी ज्वलंत बिंदुओं पर, गीता प्रेस ने आरएसएस और हिंदू महासभा का बचाव किया है। उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस का समर्थन करते हुए कहा कि जो गिराया गया वह मस्जिद नहीं, बल्कि एक मंदिर था क्योंकि वह रामजन्मभूमि पर था। वास्तव में राम मंदिर के निर्माण के लिए सबसे पहले कोष की शुरुआत गीता प्रेस ने 1949 में की थी।' उन्होंने राम राज्य परिषद और हिंदू महासभा जैसे रूढ़िवादी संगठनों का वोट भी मांगा था।

तुषार गांधी ने कहा कि वह इस बात से हैरान नहीं हैं कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक 'समिति' ने पुरस्कार दिया, क्योंकि यह फैसला प्रधानमंत्री का है जिस पर एक आज्ञाकारी समिति की मुहर लगी है। गांधी ने जोर देकर कहा, "यह गांधी के भगवाकरण का एक और प्रयास है।"

इससे पहले गांधी शांति पुरस्कार इसरो (2014), रामकृष्ण मिशन (1998), ग्रामीण बैंक ऑफ बांग्लादेश (2000), अक्षय पात्र फाउंडेशन (2016) जैसे संगठनों को दिया जा चुका है। आर्कबिशप डेसमंड टूटू (2005), डॉ. नेल्सन मंडेला (2000), सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद (2019) और शेख मुजीबुर रहमान (2020) को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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