एलियन्स : हिन्दू धर्म में कई लोकों के बारे में उल्लेख Aliens UFOs and Hindutv
By Arvind Sisodia ARVIND SISODIA अरविन्द सिसौदिया जून 06, 2023
एलियन्स : हिन्दू धर्म में कई लोकों के बारे में उल्लेख
एलियन्स : हिन्दू धर्म में कई लोकों के बारे में उल्लेख
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एलियंस के संबंध में 10 बातें जानकर चौंक जाएंगे आप
दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश विज्ञान के लिए बेहद चुनौतीभरा काम रहा है और हो सकता है कि यही काम दूसरे ग्रहों के वैज्ञानिक भी करते हों। ऐसे में वे अपने किसी यान द्वारा धरती पर आ जाते हों तो कोई आश्चर्य नहीं! हम भी तो चन्द्र ग्रह, मंगल ग्रह पर पहुंच गए हैं। हमने शनि पर भी एक यान भेज दिया है। अब किसी न किसी दिन मानव भी उन यानों में बैठकर जाने की हिम्मत करेंगे।
यह ब्रह्मांड कितना बड़ा है इसकी कल्पना करना मुश्किल है। बस यह समझ लीजिए कि इस ब्रह्मांड में हमारी धरती रेत के एक कण के बराबर भी नहीं है। इस धरती से कई गुना बड़े करोड़ों ग्रह हमारे ब्रह्मांड में मौजूद हैं। सबसे बड़ी बात यह कि हमारे इस ब्रह्मांड में लाखों गैलेक्सियां हैं। गैलेक्सी को 'आकाशगंगा' कहते हैं। हमारी आकाशगंगा को अंग्रेजी में मिल्कीवे कहते हैं जबकि हिन्दी में क्षीरमार्ग और मंदाकिनी कहते हैं जिसमें पृथ्वी, हमारा सौरमंडल और लाखों तारे स्थित हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि जब हमारी गैलेक्सी में ही धरती जैसे लाखों ग्रह होंगे तो निश्चित ही उनमें में कुछ पर तो जीवन होगा ही। वहां पर भी मनुष्य और पशु-पक्षी जैसे ही प्राणी रहते ही होंगे। हो सकता है कि उनमें से कुछ हमारी सोच से कमजोर हो और कुछ मनुष्य जाति से कई गुना बुद्धिमान और टेक्नोलॉजी में संपन्न हों। ऐसे ही लोगों को 'एलियन कहते हैं। 'एलियन' का अर्थ होता है- परग्रहवासी या दूसरे ग्रह का निवासी।
सन् 2009 में अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा ने हमारी आकाशगंगा के सर्वेक्षण के लिए केपलर मिशन-10 के नाम से एक परियोजना की शुरुआत की थी जिसका उद्देश्य था प्लेनेट हंटिंग यानी जीवनयोग्य ग्रहों का आखेट। यह अंतरिक्ष वेधशाला शक्तिशाली टेलीस्कोप से सज्जित है, जो पृथ्वी जैसे आकार और गुणों वाले ग्रहों की खोज कर रहा है। यह भी पता लगाने की कोशिशें हो रही हैं कि 400 अरब तारे और इतने ही ग्रहों वाली हमारी आकाशगंगा के कितने ग्रहों में जीवन संभव है? एक अध्ययन के अनुसार हमारी आकाशगंगा में 160 अरब ग्रह हैं, जहां एलियंस हो सकते हैं। आओ जानते हैं उन्हीं के बारे में 10 रोचक जानकारी...
1. वर्षों के वैज्ञानिक शोध से यह पता चला कि 10 हजार ईपू धरती पर एलियंस उतरे और उन्होंने पहले इंसानी कबीले के सरदारों को ज्ञान दिया और फिर बाद में उन्होंने राजाओं को अपना संदेशवाहक बनाया। वे अलग-अलग काल में अलग-अलग परंपरा-समाज की रचना कर धरती के देवता या कहें कि फरिश्ते बन बैठे। इजिप्ट (मिस्र), मेसोपोटामिया, सुमेरियन, इंका, बेबीलोनिया, सिन्धु घाटी, माया, मोहनजोदड़ो और दुनिया की तमाम सभ्यताओं के विकास में उन्हीं का योगदान रहा है। उन्होंने ही चीन, भारत, मिस्र, इसराइल, अमेरिका और रशिया में ऐसे स्मारक, पूजा स्थल या अजूबे बनाए जिन्हें बनाना मनुष्य के बस की बात ही नहीं लगती।
हिस्ट्री चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक प्राचीन सभ्यताओं के स्मारकों पर शोध करने वाले मशहूर लेखक एरिक वोन डेनीकेन की किताब 'चैरियोट्स ऑफ गॉड्स' ने दुनिया की सोच को बदलकर रख दिया है। उनके अनुसार प्राचीन मिस्र के निवासियों के पास गीजा के पिरामिडों को बनाने की कोई तकनीक ही नहीं थी। मिस्र के निवासियों के पास गीजा में पिरामिड बनाने के लिए न तो औजार थे, न ही इन्हें बनाने का ज्ञान था। इस तरह इन्हें अवश्य ही एलियंस ने बनाया होगा। यदि भारत के संदर्भ में बात करें, तो ऐसे कई मंदिर हैं जिन्हें आज की आधुनिक मानव तकनीक से भी नहीं बनाया जा सकता।
2. वैज्ञानिकों ने कई सालों के रिसर्च के बाद यह पता लगाया कि 'ओरायन' एक ऐसा नक्षत्र है जिसका हमारी धरती से कोई गहरा संबंध है। भारतीय, मिस्र, मेसोपोटामिया, माया, ग्रीक और इंका आदि सभ्यताओं की पौराणिक कथाओं और तराशे गए पत्थरों पर अंकित चित्रों में इस 'नक्षत्र' संबंधी जो जानकारी है, वह आश्चर्यजनक ढंग से एक समान है। वैज्ञानिक मानते हैं कि हमारे पूर्वज या कहें कि हमें दिशा-निर्देश देने वाले लोग 'ओरायन' नक्षत्र से आए थे। भारत में ओरायन नक्षत्र को कालपुरुष नक्षत्र कहते हैं, जो मृगशिरा से मिलता-जुलता है।
हमारी धरती से 1,500 प्रकाशवर्ष दूर 'ओरायन' तारामंडल में वैसे तो दर्जनों तारे हैं लेकिन प्रमुख 7 तारे हैं। इस तारामंडल में 3 तेजी से चमकने वाले तारे एक सीधी लकीर में हैं जिसे 'शिकारी का कमरबंद' (ओरायन की बेल्ट) कहा जाता है। 7 मुख्य तारे इस प्रकार हैं- आद्रा (बीटलजूस), राजन्य (राइजॅल), बॅलाट्रिक्स, मिन्ताक, ऍप्सिलन ओरायोनिस, जेटा ओरायोनिस, कापा ओरायोनिस। इनमें आद्रा, राजन्य और बॅलाट्रिक्स तारे सबसे कांतिमय और विशालकाय हैं, जो धरती से स्पष्ट दिखाई देते हैं।
3. सन् 2010 में खबर आई थी कि 1948 के बाद सुदूर अंतरिक्ष में रहने वाले एलियंस अमेरिका और ब्रिटेन के परमाणु मिसाइल वाले स्थलों पर कई बार मंडराए थे। अमेरिकी वायुसेना के पूर्व जवानों के एक दल का दावा है कि ब्रिटेन के सफोल्क परमाणु स्थल पर वे उतरे भी थे। इन अधिकारियों ने अज्ञात उड़नतश्तरियों (यूएफओ) से जुड़े अपने अनुभवों को सार्वजनिक करने की घोषणा भी की थी। अमेरिकी वायुसेना के पूर्व अधिकारी कैप्टन रॉबर्ट सलास ने बताया कि हम अनजान उड़नतश्तरियों के बारे में बातें कर रहे हैं। हम इन्हें अकसर यूएफओ के नाम से जानते हैं।
'डेली मेल' ने उनके हवाले से लिखा कि अमेरिकी वायुसेना अज्ञात उड़नतश्तरियों के परमाणु स्थलों पर मंडराने और इससे जुड़े राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर झूठ बोल रही हैं, लेकिन हम इसे साबित कर सकते हैं। इस पूर्व अधिकारी ने कहा कि उन्हें इन घटनाओं का सबसे पहला अनुभव 16 मार्च 1967 को मोंटाना के माल्मस्ट्रोम एयरफोर्स बेस पर हुआ।
उन्होंने कहा कि मैं उस वक्त ड्यूटी पर था, जब एक वस्तु स्थल के ऊपर आई और मंडराने लगी। मिसाइलों ने काम करना बंद कर दिया और ऐसा एक हफ्ते बाद एक अन्य परमाणु स्थल पर भी हुआ। एक और अधिकारी कर्नल चार्ल्स हाल्ट ने कहा कि उन्होंने इप्सविच के करीब आरएएफ बेंटवाटर्स में एक यूएफओ को देखा था। यह ब्रिटेन के उन चुनिंदा स्थलों में है, जहां परमाणु हथियार हैं।
नासा के एक वैज्ञानिक ने अनुमान जताया है कि हो सकता है कि एलियंस धरती पर आए हों लेकिन हमें पता न चला हो। नासा के कम्प्यूटर साइंटिस्ट और प्रोफेसर सिल्वानो पी. कोलंबो ने एक रिसर्च पेपर में ऐसा दावा किया है कि हो सकता है कि एलियंस की संरचना परंपरागत कार्बन संरचना पर आधारित न हो इसलिए हमें इनका पता न चल पाया हो। सिल्वानो ने कहा कि एलियंस संभवत: इंसानों की कल्पना से बिलकुल अलग दिखते हों।
4. छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक गुफा में 10 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं। नासा और भारतीय आर्कियोलॉजिकल की इस खोज ने भारत में एलियंस के रहने की बात पुख्ता कर दी है। यहां मिले शैलचित्रों में स्पष्ट रूप से एक उड़नतश्तरी बनी हुई है, साथ ही इस तश्तरी से निकलने वाले एलियंस का चित्र भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आम मानव को एक अजीब छड़ी द्वारा निर्देश दे रहा है। इस एलियंस ने अपने सिर पर हेलमेट जैसा भी कुछ पहन रखा है जिस पर कुछ एंटीना लगे हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि 10 हजार वर्ष पूर्व बनाए गए ये चित्र स्पष्ट करते हैं कि यहां एलियन आए थे, जो तकनीकी के मामले में हमसे कम से कम 10 हजार वर्ष आगे हैं ही। दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं के चित्रों में ऐसे चित्र भी मिलते हैं जिसमें एक अंतरिक्ष यान के साथ एक अजीब-सा मानव दर्शाया गया है।
5. इजिप्ट, मेसोपोटामिया, सुमेरियन, इंका, बेबीलोनिया, सिंधु घाटी, माया, मोहनजोदड़ो और दुनिया की तमाम सभ्यताओं के टैक्स में लिखा है कि जल्दी ही लौट आएंगे हमारे 'आकाशदेव' और फिर से वे धरती के मुखिया होंगे। इजिप्ट और माया सभ्यता के लोग मानते थे कि अंतरिक्ष से हमारे जन्मदाता एक निश्चित समय पर पुन: लौट आएंगे। ओसाइशिरा (मिस्र का देवता) जल्द ही हमें लेने के लिए लौट आएगा। तो क्या हम 'स्टार प्रॉडक्ट' हैं? और क्या इसीलिए गिजावासी मरने के बाद खुद का ममीकरण इसलिए करते थे कि उनका 'आकाशदेव' उन्हें अंतरिक्ष में ले जाकर उन्हें फिर से जीवित कर देगा?
6. विश्वभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन जगहों में से एक हिमालय है और दूसरा समुद्री सुरंगें और गुफाएं और तीसरी जगह हो सकती है वे जंगल, जहां मनुष्य कभी नहीं जाता। अंत में चौथी जगह यह कि वे हमारे बीच में ही रहते हों मनुष्य की तरह। विश्वभर में एलियंस या यूएफओ के देखे जाने की घटना का वर्णन हमें अखबारों या किताबों में मिलता है। हिमालय की एक घटना है कि 15 फरवरी की दोपहर तकरीबन 2.18 पर भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और 8 भारतीय कमांडो, 1 कुत्ते, 3 पहाड़ी बकरियों और 1 बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले जाने से पहले वह गायब हो गई।
हालांकि कुछ मानते हैं कि वह ले जाने में कामयाब नहीं हो पाई। कहा जाता है कि बाद में 6 कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल से बचाया गया। 2 लापता हैं। शेष बचे हुए लोगों को यह घटना याद ही नहीं। इस घटना का गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नजदीक भेड़ चरा रहा था। इस तरह के सैकड़ों किस्से हैं, जो समय-समय पर देश-दुनिया के अखबारों में छपते रहते हैं।
7. अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंच गए हैं कि पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रह पर प्राणियों (एलियंस) का अस्तित्व है। एलियंस तकनीकी विकास में मनुष्यों से कहीं आगे हैं और वे हमारी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। स्पेन के इंस्टीट्यूट एस्टोफिसिका डेल केनारियास और फ्लोरिडा विवि के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है। उनका मानना है कि दूसरे ग्रहों के प्राणी पृथ्वी पर मनुष्यों द्वारा विकसित तकनीकों के इस्तेमाल को संभवत: कौतूहलवश देख रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई अखबार 'डेली टेलीग्राफ' ने मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की वैज्ञानिक सुश्री सारा सीगेट के हवाले से कहा कि 'हो सकता है कोई हमें इस क्षण भी देख रहा हो और पृथ्वी की घूर्णन गति और दिन-रात के बारे में पूर्ण जानकारी रखता हो।'
8. एक सर्वेक्षण के मुताबिक विश्व में 20 प्रतिशत लोगों का मानना है कि एलियंस हमारे बीच इंसानों के भेष में घूमते हैं। समाचार एजेंसी रायटर्स ने एक सर्वेक्षण किया जिसमें 22 देशों के 23 हजार लोगों से सवाल पूछे गए। भारत और चीन में 40 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का मानना है कि एलियंस पृथ्वी पर मनुष्यों के भेष में घूमते हैं। वहीं नीदरलैंड्स, स्वीडन और बेल्जियम के ज्यादातर लोग ऐसा नहीं मानते। वहां केवल 8 प्रतिशत लोग ही एलियंस की उपस्थिति पर विश्वास करते हैं। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले लोगों में से 80 प्रतिशत को पक्का भरोसा है कि एलियंस हमारे बीच नहीं रहते हैं।
9. यह सही है कि आज का आधुनिक विज्ञान उन्हें एलियंस ही माने, लेकिन बाइबल में इन्हें 'नेफिलीम' कहा गया है जिन्हें स्वर्ग से बाहर कर दिया गया था और जो धरती के नहीं थे। ये स्वर्गदूतों के बच्चे थे। उनमें से एक शैतान था। परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को स्वर्ग में रहने के लिए बनाया था, न कि धरती पर रहने के लिए लेकिन वे सब धरती पर आ गए। धरती पर वे इंसानों की औरतों की ओर आकर्षित होने लगे और फिर वे अपनी मनपसंद औरतों के साथ रहने लगे। फिर उनके भी बच्चे हुए और धीरे-धीरे उन्होंने धरती पर अपना साम्राज्य फैलाना शुरू किया। सामान्य मानव उन्हें या तो देवदूत कहता या राक्षस। इस तरह धरती पर एक नए तरह का युग शुरू हुआ और नए तरह का संघर्ष भी बढ़ने लगा और सभी तरफ एलियंस का ही साम्राज्य हो गया। लोग रक्त शुद्धता पर जोर देने लगे।
भारतीय, मिस्र, ग्रीस, मैक्सिको, सुमेरू, बेबीलोनिया और माया सभ्यता के अनुसार वे कई प्रकार के थे, जैसे आधे मानव और आधे जानवर। इंसानी रूप में वे लंबे-पतले थे, उनका सिर पीछे से लंबा था। वे 8 से 10 फीट के थे। अर्द्धमानव रूप में वे सर्प, गरुड़ और वानर जैसे थे। आपने विष्णु के वाहन का चित्र देखा होगा। नागदेवता को कौन नहीं जानता? दूसरे वे थे जो राक्षस थे, जो बहुत ही खतरनाक और लंबे-चौड़े थे। कुछ तो उनमें से पक्षी जैसे दिखते थे और कुछ वानर जैसे। उनमें से कुछ उड़ सकते थे और समुद्र में भीतर तल पर चल सकते थे। जब वे समुद्र के भीतर चलते थे तो उनके सिर समुद्र के ऊपर दिखाई देते थे। उनमें ऐसी शक्तियां थीं, जो आम इंसानों में नहीं थीं, जैसे पानी पर चलना, उड़ना, गायब हो जाना आदि। शोधकर्ता मानते हैं कि उनमें से बचे कुछ 'एलियंस' आज भी धरती पर मौजूद हैं। वे हमें इसलिए दिखाई नहीं देते है, क्योंकि या तो वे हिमालय की अनजान जगहों पर रहते हैं या पाताल की गुप्त सुरंगों में।
10. अमेरिका में कुछ महिलाओं ने दावा किया है कि उन्होंने एलियन के साथ सेक्स किया है। इन महिलाओं का यह भी दावा है कि उनके बच्चों के पिता भी वही एलियन हैं। एलियन से शारीरिक संबंध बनाने के बाद महिलाओं ने कहा है कि यह उनका सबसे अच्छा अनुभव था। नीलसन और एलुना नाम की इन महिलाओं ने बताया कि उनके एलियन से कुल 13 बच्चे हैं।
इन महिलाओं ने दावा किया कि एलियन के साथ उनका संसर्ग बेहद शानदार रहा और उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है तथा यह उत्तेजना से भरा एक अनोखा और बार-बार किया जाने वाला अनुभव रहा। ब्रिगेट नीलसन अमेरिका के शहर एरिजोना और एलुना वर्स लॉस एंजिल्स की रहने वाली हैं, साथ ही दोनों हाईब्रीड बेबी समुदाय की सदस्य भी हैं। इस समुदाय की सदस्य होने की वजह से ही इन दोनों का मानना है कि उनके बच्चे अंतरिक्ष में एलियंस के साथ स्पेसशिप में रहते हैं !
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हिन्दू धर्म में कई लोकों के बारे में उल्लेख
हिंदू संस्कृति के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में मुख्यतः 14 भुवन या लोक हैं..
सप्तपाताल – हिंदू संस्कृति के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में मुख्यतः 14 भुवन या लोक हैं– 7 ऊर्ध्वलोक और 7 अधोलोक। इनमें अधोलोक को विलस्वर्ग भी कहा है। ये सब पृथ्वी के गर्भ में भूमि के नीचे हैं। इनका वैभव ऊर्ध्वलोकान्तर्गत स्वर्ग की अपेक्षा भी किंचित् अधिक वर्णित हुआ है। यहाँ दिन और रात का भेद नहीं है।
अतः सुखोपभोग में कोई प्रत्यवाय नहीं है। इन सप्तपाताल रूप विचारों में रहने वाले जीव सदा आनंद में रहते हैं। यहाँ के सुखोपभोग और सौन्दर्य विलास को असुरों की कपट विद्या और माया ने बहुत समृद्ध किया है। इन भूगर्भात सात स्तर में से ..
(1) अतल में मयासुर पुत्र वल स्वामी है,
(2) वितल में हाटकेश्वर शंकर भवानी के साथ युग्म भाव से रहते हैं,
(3) सुतल सुप्रसिद्ध बली राजा का स्थान है। ये तीनों स्तर आपोमय माने जाते हैं।
(4) तलातल में मयासुर का राज्य है,
(5) महातल में क्रोधवश नामक सर्प-समुदाय का निवास है,
(6) रसातल में दैत्य और दानव रहते हैं। ये तीन स्तर अग्निमय माने जाते हैं।
(7) पाताल प्राण अग्निमय है और यहाँ नागों के अधिपति रहते हैं।
सप्तस्वर्ग-सात ऊर्ध्वलोक में (1) भूर्लोक और (2) भुवर्लोक को भौम स्वर्ग कहते हैं। इन दोनों के भीतर सूर्य, चन्द्र, ध्रुव, नक्षत्र, पृथ्वी आदि सब स्थूल लोक आ जाते हैं ।
इनके ऊपर स्थित दिव्य स्वर्ग में से (3) तीसरे स्वर्लोक को माहेन्द्र स्वर्ग कहते हैं, (4) महर्लोक को प्राजापत्य स्वर्ग, (5) जनलोक, (6) तपोलोक और (7) सत्यलोक-इन तीनों लोकों को ब्रह्म स्वर्ग कहते हैं। इन पांच दिव्य स्वर्गों में सात्विक अंश की अधिकता है और वे एक-से-एक बढ़कर हैं|
जम्बूद्वीप:-
भू-लोक के अंतर्गत जो अनेक भाग या उपलोक हैं, वे हमारे इस स्थूल मृत्युलोक से सूक्ष्म और इस कारण सामान्यतः अदृश्य होने के कारण इहलोक से भिन्न परलोक माने गये हैं। उनमें उपरिनिर्दिष्ट सप्तद्वीप और सप्त समुद्र स्थूल नहीं, किंतु पृथ्वी के चारों ओर सूक्ष्म द्रव्य के विभाग हैं।
उनमें जम्बूद्वीप केन्द्र है और उसके गर्भ में पृथ्वी है। इस जम्बूद्वीप के (1) इलावृत, (2) भद्राश्व, (3) किंपुरुष, (4) भारत, (5) हरि, (6) केतुमाल, (7) रम्यक, (8) कुरु और (9) हिरण्यमय-ये नव वर्ष यानी विभाग हैं।
इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक और अन्य सब देवलोक हैं। इनमें इलावृत बीचो बीच है और उसके नाभिस्थान में मेरु पर्वत है। यह पर्वत स्थूल पाषाण मय नहीं, बल्कि एक शक्तिमय आधारस्तंभ है।
इन नौ वर्षों के उपास्यदेव यथाक्रम (1) श्री शंकर (2) श्री हयग्रीव (3) श्री मारुति (4) श्री नर-नारायण, (5) श्री नृसिंह, (6) श्री कामदेव, (7) श्री वैवस्वत मनु, (8) श्री कूर्मावतार और (9) श्री यज्ञ पुरुष वाराह हैं।
इसी जम्बूद्वीप में (1) नरक लोक (2) पितृलोक और (3) प्रेतलोक स्थित है। इस प्रकार हमारे ब्रह्मांड के 14 भुवनों, 7 द्वीपों, 9 वर्षों और 3 लोकों में मृत्युलोक यानी भारत वर्ष अखिल ब्रह्माण्ड का 1/1176 वाँ अंश है और इसके नौ विभागों में से एक|
नरक लोक:-
जम्बूद्वीप के नौ वर्ष निर्दिष्ट हुए। अब उसी के अन्तर्गत नरक लोक, प्रेतलोक और पितृलोक के विवरण आगे देते हैं। इस जम्बूद्वीप के चतुर्दिक इतना ही बड़ा वातावरण रूप लवण समुद्र है। उसी के साथ भारत वर्ष के नीचे मुख्य सात नरक लोक हैं। इन्हें आवरण लोक कहते हैं।
इनके सूर्य-नाड़ियों के हिसाब से 7, और 27 नक्षत्रों के हिसाब से 27 तथा अभिजित् मिलाकर 28 विभाग माने गये हैं। इनमें ये 21 मुख्य हैं-
(1) तामिस्र- इसमें परस्त्री-परधन-हरण का यम दण्ड भोगना पड़ता है, उससे जीव मूर्छित हो जाते हैं।
(2) अंधतामिस्र- इसमें धोखा देकर परस्त्री-परधन-हरण करने का यह दंड मिलता है कि बुद्धिनाश और दृष्टिनाश हो जाता है और विविध यातनाएं भोगनी पड़ती हैं।
(3) रौरव- इसमें देहाभिमान, परपीड़ा और अन्याय करने का यह दंड मिलता है कि उसे कृमियों का आहार बनना पड़ता है।
(4) महारौरव-इसमें परद्रोह के दंडस्वरूप जीव को क्रव्याद प्राणी खाते हैं।
(5) कुम्भीपाक-इसमें जीवित पशु-पक्षियों को उबालने के पाप का यह फल मिलता है कि जीव तेल में तले जाते हैं।
(6) कालसूत्र- इसमें वेद, ब्राह्मण और पिता का द्रोह करने के पाप में अग्निदाह, भूख और प्यास का दुःख दीर्घ काल तक भोगना पड़ता है।
(7) असिपत्रवन-इसमें पाखण्डी लोग तलवार की सी धार वाले ताड़पत्रों से काटे जाते हैं।
(8) सूकर मुख इसमें अन्यायी राजाओं को ऊख की तरह पेरा जाता है।
(9) अन्धकूप- इसमें अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुंचाने वाले उन-उन प्राणियों द्वारा पीड़ित किए जाते हैं।
(10) कृमि भोजन- इसमें पंचमहायज्ञ न करने वालों को कृमियों पर निर्वाह करना पड़ता है।
(11) संदंश- इसमें चोरी के अपराध र्मे लाल पलीतों से भूनते हैं|
(12) तप्तसूर्मि इसमें व्यभिचार के पाप में तप्त पुतले से बांधकर मारते हैं।
(13) वज्रकण्टक शाल्मलि- इसमें पश्वादिगमन के पाप में काँटों पर से खींचते हैं।
(14) वैतरणी-इसमें धर्म विरोधी राजाओं और राज सेवकों की विष्ठा-मूत्र-पीब आदि अमंगल प्रवाहों में डाल दिया जाता है।
(15) पयोद- इसमें कर्मभ्रष्ट और शूद्र-स्त्री- समागम करने वाले अमंगल विष्ठा-मूत्रादि में गिरकर वही भक्षण करते हैं।
(16) प्राणरोध- इसमें हिंसादि निषिद्ध कर्म करने वाले ब्राह्मणों की यमदूतों द्वारा हिंसा की जाती है।
(17) विशसन-इसमें मांसभक्षण के लोभ से यज्ञ-याग करने वाले ब्राह्मण यमदूत द्वारा काटे जाते हैं।
(18) लाला भक्ष- इसमें स्त्री पर बलात्कार करने के पाप में रेतः प्राशन करना पड़ता है।
(19) सारमेय दन- इसमें प्रजा पीड़न करने वाले राजा और राज सेवक कुत्तों द्वारा नोचे जाते हैं।
(20) अवीचि इसमें झूठ बोलने वालों को पत्थर पर पटक कर उनके टुकड़े किये जाते हैं।
(21) अय: पान- इसमें मद्यपान किये हुए ब्राह्मण के मुँह में लोहे का गरम पानी छोड़ा जाता है।
(22) क्षारकर्दम- इसमें विद्वानों का अपमान करने के अपराध में बहुत कठिन यातनाएं भोगनी पड़ती है।
(23) रक्षोगण भोजन- इसमें नर-मांस खाने वाले कुल्हाड़ी से तोड़े जाते हैं।
(24) शूलप्रोत- इसमें विश्वासघात करने वाले को शूली पर चढ़ाया जाता है।
(25) दन्दशूक- इसमें प्राणियों को पीड़ा पहुंचाने वालों को साँपों से पीड़ा पहुंचाई जाती है।
(26) अवटनिरोधन- प्राणियों को बंद करने के पाप में आग और धुएं से गला घोंटा जाता है।
(27) पर्यावर्तन- अतिथि की ओर क्रूर दृष्टि से देखने के पाप में पक्षियों से आंखें फोड़कर निकलवायी जाती हैं।
(28) सूचीमुख - इसमें कृतघ्नता, कृपणता, द्रव्य लोभ इत्यादि दोषों के फलस्वरूप नाना प्रकार की भयंकर यातनाएं भोगनी पड़ती है|
अन्य पुराणों में ऐसे ही सैकड़ों नरक बताये गये हैं। इनमें जो पाप और उनके फल गिनाये गये हैं, उन्हें उपलक्षण ही जानना होगा। सारोद्धार गरुड़पुराणमें चौरासी लाख नरक बतलाये हैं। इस छोटे-से लेख में इस कटु विषय का अधिक विस्तार उचित नहीं जँचता। लोग पाप कर्मों से निवृत्त हो यही इस वर्णन का अभिप्राय मालूम होता है।
पितृलोक:-
नरक लोक के समीप ही यम लोक है। उसे पितृलोक कहते हैं। भू-लोक में ही दक्षिण और पृथ्वी के नीचे और अतल लोक के ऊपर नित्य-नैमित्तिक पितृगण रहते हैं। नित्य पितर अमर होते हैं। मनुष्यों से ये भिन्न हैं। इनकी उत्पत्ति पृथक् और स्वतन्त्र रूप से हुई है | इन्हें देव भी कहा है। यहाँ से मृत होकर ऊपर गए हुए जो पितर हैं, वे नैमित्तिक हैं।
पितरों में यम प्रथम पितर माने गये हैं। मृत जीवात्माओं की यथायोग्य व्यवस्था करना इन्हीं का काम है। मृतकों के ये मार्गदर्शक हैं। नित्य-नैमित्तिक पितरों में इहलोक का नियमन करने की सामर्थ्य है, इसी से पितृ पूजन का विशेष महत्व है। ऋग्वेद से लेकर पुराणों तक पितृ पूजन का वर्णन स्थान-स्थान में आया है।
स्वर्गलोक का द्वार ईशान में है और पितृ लोक का द्वार आग्नेय दिशा मेंदेवों और पितरों के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। पितरों के अनेक वर्ग हैं। ये सब एक ही स्थान में हों, ऐसा नहीं मालूम होता। वेदों में इस आशय की प्रार्थनाएँ हैं कि जो पितर पृथ्वी पर हैं, वे उन्नत स्थान को प्राप्त हों; जो स्वर्ग में अर्थात उच्च स्थान में हैं, वे वहाँ से कभी च्युत न हों; और जो मध्यम स्थान का आश्रय लिये हुए हैं, वे उन्नत पद को प्राप्त हों | इस प्रकार श्राद्धादि कर्म-कर्ता और पितर दोनों का ही उपकार करने वाले होते हैं, यह श्राद्ध कर्म में की जाने वाली प्रार्थनाओं से स्पष्ट होता है।
प्रेतलोक:-
भारतवर्ष के चारों ओर निकट अंतरिक्ष में प्रेतलोक स्थित है। जो जीव मृत्यु के पश्चात् भूकर्षित होते हैं। और विभिन्न वासनाओं के वश नीचे आकर्षित होते हैं, वे कुछ काल प्रेतलोक में रहते हैं। प्रेत वायुरूप होते हैं। और श्मशान, कब्रिस्तान, अन्धकार, शून्य और उजड़े हुए स्थानों में रहते हैं।
मनुस्मृति अ०12 में मरणोत्तर प्रेतत्व प्राप्त होने के कारणों में कुछ उदाहरण दिए हैं। पर इनके सिवा और भी कारण हो सकते हैं। भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, ब्रह्मसम्बन्ध, जिंद, बेताल आदि प्रेत योनियां ही हैं। सूर्यप्रकाश में इनका बल कम होता है। इन्हें कुछ खाने-पीने को दिया जाय तो ये आघ्राणमात्र से तृप्त होते हैं। मानसिक रूप से भी कुछ दिया जाय तो इन्हें मिल जाता है।
अन्त्येष्टि, श्राद्ध, गया में पिंडदान, नारायण-नागबली आदि विधियों से प्रेतलोक से प्रेतों का उद्धार होता है। प्रेतयोनि क्लेशकारक ही मानी गयी है। प्रेत कभी आकार धारण किये देख पड़ते हैं। कभी दीया, ज्वाला, आवाज, उत्पाद, किसी के शरीर में संचार आदि रूपों में वे गोचर होते हैं।
शंख-घण्टा, ध्वनि, भगवान की आरती, मंत्र पाठ, नाम-स्मरण, शास्त्र चर्चा, पवित्र वातावरण, कुछ पवित्र धूप इत्यादि से प्रेत स्थान छोड़कर चले जाते हैं। प्रेतलोक के जीवों में बड़ी अशान्ति, तीव्र मनोविकार, प्रबल वासना और अज्ञानके होनेसे प्रेतयोनि बहुत कष्टदायक होती है।
सप्तद्वीप:-
यहाँ तक भूलोकान्तर्गत जम्बूद्वीप का वर्णन हुआ। इस जम्बूद्वीप के चतुर्दिक् वातावरण रूप लवण समुद्र है। उसके चतुर्दिक् उससे द्विगुण प्लक्षद्वीप है। जिस प्रकार जम्बूद्वीप नाम जामुन के वृक्ष के नाम पर है, वैसे ही प्लक्षद्वीप में प्लक्ष अर्थात पाकर का वृक्ष माना है।
यहाँ के उपास्य देव सूर्य हैं। इस द्वीप के चौतरफा उतना ही बड़ा इक्षुरस-समुद्र है। उसके चौतरफा से द्विगुण शाल्मलि द्वीप है। वहाँ चन्द्रमा की उपासना होती है। इसके चौतरफ सोमासमुद्र है। उसे घेरे हुए उससे द्विगुण कुशद्वीप है।
यहाँ के लोग अग्नि की आराधना करते हैं। इसके बाहर घृत समुद्र है और उसे घेरे हुए क्रौंचद्वीप है। यहाँ क्रौंच नामक पर्वत है। यहाँ के लोग जल-देवता के पूजक हैं। इसके चौतरफ क्षार समुद्र है और उसे घेरे हुए शाकद्वीप है। यहाँ वायु की उपासना होती है। इसके चौतरफ दधिमण्ड-समुद्र है और उसे घेरे हुए पुष्करद्वीप है।
पुष्करद्वीप के चौतरफ शुद्धोदक समुद्र है। यहाँ के लोग ब्रह्म प्राप्ति के पथ पर विचरते हैं। इस द्वीप के परे लोकालोक-पर्वत है। इन द्वीपों में से प्रत्येक के सात-सात विभाग हैं। यहाँ की नदियों, पर्वतों और लोक-समाजों का वर्णन पुराणों में है। यह सारा वर्णन लाक्षणिक है।
सप्तलोक:-
यहाँ तक सप्तलोक अंतर्गत भूलोक का वर्णन हुआ। इसके ऊपर दूसरा ऊर्ध्वलोक भुवर्लोक है। यह भू और सूर्य के बीच में है। इसमें सिद्ध और मुनि निवास करते हैं। सूर्य की परली तरफ ध्रुव पर्यंत चौदह लाख योजन विस्तार स्वर्गलोक है। ये पूर्वोक्त तीनो लोक कृतक अर्थात नाशवान् माने गये हैं। इनके ऊपर ध्रुव की परली तरफ एक कोटि योजन विस्तृत महर्लोक है।
यहाँ एक कल्प तक जीवित रहने वाले महात्मा रहते हैं। इसके ऊपर दो कोटि योजन जनलोक है। यहाँ शुद्धान्त:करण ब्रह्मकुमार सनन्दनादि महात्मा रहते हैं। इसके ऊपर इससे चतुर्गुण तपोलोक है। वहाँ देह रहित वैराज आदि देवता रहते हैं। तपोलोक के ऊपर उससे षड्गुण सत्यलोक है। वहाँ सिद्धादि मुनिजन निवास करते हैं।
ये जनन-मरण से मुक्त हैं। महर्लोक में मानसिक राज्य पर अधिकार, जनलोक में इन्द्रिय सुख से विराग, तपोलोक में बुद्धि राज्य पर और सतलोक में प्रकृति राज्य पर अधिकार होता है। ये इन चार लोकों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। ये लोक साधारण मनुष्यों को नहीं प्राप्त होते । प्रथम तीन लोक सबके आश्रय लेने योग्य हैं।
वैज्ञानिक पृथ्वी मंडल को भूर्लोक, चन्द्र लोक को भुवर्लोक, सूर्यमण्डल को स्वर्लोक, परमेष्ठी मंडल को महर्लोक और जनलोक तथा स्वयम्भू मंडल को तपोलोक और सतलोक मानते हैं। और खगोलीय त्रैलोक्य का इस प्रकार विभाग करते हैं- उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी में 24 अंश तक स्वर्ग, उसके आगे 42 अंश तक अन्तरिक्ष और उसके आगे 48 अंश पृथ्वी, उसके नीचे दक्षिण और ४२ अंश पितृलोक और उसके नीचे 24 अंश नरक लोक।
असंख्य लोक यहाँ तक हिंदू संस्कृति-सम्मत परलोकों का मुख्य विवरण अत्यंत संक्षेप से दिया गया। वस्तुतः परलोकों की पूरी गणना करना असम्भव है। शाक्त ग्रन्थों में शुद्धाशुद्ध तत्त्वों और शान्त्यतीतादि पंचकलाओंके 240 भुवन माने गये हैं|
पुराणों में इन्द्रसभा, वरुण सभा इत्यादि सभाओं के नामों से लोक वर्णन किये गये हैं। वायु, अग्नि, विद्युत आदि विभिन्न तत्त्वों के लोक, सूर्य, चन्द्र, इन्द्र वरुण, यम इत्यादि देवताओं के लोक, उसी प्रकार तंगणपुत्र - सृष्टि, विश्वामित्र-सृष्टि, सिद्ध-ऋषि-मुनियों की विविध सिद्ध संकल्प सृष्टि आदि|
असंख्य लोक-प्रकार पुराणों में वर्णित हैं। इनमें चतुर्दश भुवनों की उपपत्ति सुनिश्चित विवरण दिया गया। और मुख्य हिंदू-संस्कृति के पुराण ग्रन्थ परोक्ष, गूढ़, लाक्षणिक, होने से उन्हीं का अर्थवादात्मक और आलंकारिक भाषा में लिखे हुए हैं कहीं-कहीं लोकरंजनार्थ काल्पनिक वर्णन भी हैं इस कारण परलोक-जैसे अदृष्ट और गूढ़ विषय के वर्णनों में सन्दिग्धता और विसंगतता दिखाई दे तो आश्चर्य की बात नहीं।
इस दुर्जेय विषय का यथार्थ ज्ञान होने के लिये योगसाधना और तद्विद का समाश्रयण - ये ही दो मार्ग प्रशस्त हैं। पर ये भी दुस्साध्य ही हैं। मेरे लिये तो असाध्य ही हो गये। ऐसी अवस्था में मैंने इस विषय में अपनी अनेक शंकाओं के समाधान के लिये श्री शिव गुरु की अन्तःस्थ प्रेरणा का भरोसा करके आधुनिक परलोक विद्या प्रयोगों का अवलंबन किया और परलोक के स्वरूप, संख्या और स्थान के विषय में परलोक में स्थित स्वधर्मी तथा परधर्मी परलोक गत व्यक्तियों से आधुनिक परलोक विद्या साधनों के द्वारा बातचीत करके कुछ उद्बोधक तथ्य प्राप्त किये।
परंतु आधुनिक पद्धति से अदृष्ट व्यक्तियों के साथ किए हुए इन संवादों को हिंदू संस्कृति के वाङ्मय में समाविष्ट करने के लिये आज की हिंदू संस्कृतनिष्ठ जनता तैयार नहीं हो सकती। इनका प्रामाण्य कम-से-कम अभी तो विवादास्पद है।
- लेखक सदाशिव कृष्ण फड़के
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