झूठे फ्री - लॉलीपॉप से वोट ठगी के विरुद्ध प्रभावी उपाय हों - अरविन्द सिसोदिया free free free

फ्री - लॉलीपॉप ठगी के विरुद्ध प्रभावी उपाय हों - अरविन्द सिसोदिया 

2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ में किसानों का कर्ज माफ के नाम पर वोट कांग्रेस नें ठगे मगर किसानों की कर्ज माफ़ी आज तक नहीं हुई उलटे किसानों की भूमियाँ नीलाम हो गईं।
यही हाल ही में हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में देखने को मिल रहा है, प्रचण्ड बहूमत से कर्नाटक जीतने वाली कांग्रेस कर्नाटक में ही जबरदस्त संकट में है, वहाँ बिजली की छूट मिली न मिली मगर बिजली 35 प्रतिशत मंहगी हो गईं। वहाँ अभी चुनाव दुवारा हो जाएँ तो कांग्रेस गिनती की सीटों पर सिमट जायेगी। यही मुसीबत हिमाचल प्रदेश में है। राजस्थान के मुख्यमंत्री फ्री फ्री की नौटंकी गत छै महीनेँ से कर रहे हैं मगर दे कुछ नहीं पाये और कुछ दे पाएंगे तो कितने दिन तक दे पाएंगे।

फ्री फ्री फ्री.........अब कुर्सी हथियानेँ के हथियार बन गये हैं। दिल्ली, पंजाब, हिमाचल और कर्नाटक चुनाव का अध्ययन इसी नतीजे की घोषणा करते हैं कि जनता के बीच फ्री का प्रलोभन चल रहा है। मगर इसका अंत क्या होता है ..... पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी आर्थिक बर्वादी। मगर फिर भी चल रहा है।....

यूँ तो प्रलोभन के आधार पर चुनाव लड़ना ही अपराध है।किन्तु चुनाव घोषणा पत्र के नाम पर खुले आम प्रलोभन की राजनीति हो रही है। असंवेधानिक कृत्य खुले आम फ्री फ्री के नाम पर हो रहे हैं। 

गत 2018 के विधानसभा चुनावों में राहुल गाँधी  नें 1 से 10 तक गिनती गिन के सभी किसानों का पूरा कर्ज माफ किया। चुनाव घोषणा पत्र में भी सब कुछ गोलमाल लिख कर ये वायदे किये। इस तरह की घोषणा करने में राहुल गाँधी के साथ राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलेट साथ में हाथ खड़ा कर रहे थे। यही मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ कर रहे थे। यही छतीसगढ़ में हो रहा था। इसके साथ ही पांच साल तक बिजली के बिल नहीं बड़ाने की भी घोषणा की गईं। इसी तरह युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्ते की बात कही गई। इन लॉलीपॉप घोषणाओं के बल पर चुनाव भी जीता गया। राज्यों में सरकारें बनाई गईं। मगर ये लॉलीपॉप योजनाएँ जमीन पर कभी भी ईमानदारी से पूरी नहीं की गई। किन्तु - परन्तु के आधार पर नाम मात्र पूर्तियां की गईं। बहुत मामूली लाभ प्रदेशों में जनता को दिये गये।  इस वायदा खिलाफ़ी का असर मध्यप्रदेश में तब देखा गया जब कॉंग्रेस के 20 से अधिक विधायकों नें मुख्यमंत्री कमलनाथ का साथ छोड़ कर त्यागपत्र देकर, भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा और अधिकांश जीते।

सवाल यही है कि प्रलोभन के सहारे प्रलोभन रहित लोकतंत्र कि हत्या कैसे की जा सकती है। लॉलीपॉप योजनाओं के रेवड़ी कल्चर को अनुमति कैसे दी जा सकती है। जनता के सामनें लालच का टुकड़ा कैसे फेंका जा सकता है।

इसके लिए कुछ अच्छे किस्म के कानून बनने चाहिए, जैसे मुफ्त की योजनाओं के लिए गारंटी राशि दल के द्वारा जमा कराई जाये, वह फैल होतो गारंटी राशि जप्त और विधानसभा भंग.... नये चुनाव का खर्च भी जिम्मेवार दल से वसूला जाये और इस तरह की विफलता वाले दल को 10 वर्ष तक की चुनावी राजनीति से अयोग्य घोषित किया जाये।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह की पद्धति से नागरिकों की कार्यकरने की क्षमता पर सबसे विपरीत प्रभाव पड़ेगा वे आलसी हो जायेंगे और देश अपनी उत्पादन क्षमता खो देगा, जिससे वस्तु आभाव उत्पन्न होकर, आपूर्ति के लिए गंभीर संकट उत्पन्न कर सकता है। जैसा पाकिस्तान व श्रीलंका में देखा जा रहा है।

चुनाव आयुक्त शेषन इस समय याद आते हैं, वे होते तो इस तरह की लोभ लालच की खिचड़ी नहीं पकती।

क्यों कि मूल सवाल प्रलोभन के आधार पर राजनीति को प्रभावी विधि से रोकना है। इसके लिए निर्वाचन आयोग सक्षम है।



कर्नाटक विद्युत नियामक आयोग (केईआरसी) ने 12 मई को बिजली दरों में संशोधन किया. केईआरसी के आदेश के अनुसार, राज्य में सभी घरेलू कनेक्शनों के लिए बिजली शुल्क को संशोधित कर औसतन 70 पैसे प्रति यूनिट  वृद्धि कर दिया गया था और आदेश को अप्रैल 2023 की खपत से पूर्वव्यापी असर दिया गया था.

बेंगलुरु इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी (बेस्कॉम) के व्यवस्था निदेशक महंतेश बिलागी ने बोला कि टैरिफ में संशोधन के कारण जून के बिलों में औसतन 70 पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि की जाएगी. उन्होंने बोला कि हमें इस आदेश को लागू करने के लिए विवश किया गया है.

चूंकि यह आदेश 1 अप्रैल 2023 से पूर्वव्यापी आधार पर पारित किया गया था, इसलिए जून के बिल में बकाया वसूल किया जाएगा. केईआरसी ने टैरिफ को दो स्लैब में तय करने का भी आदेश दिया. आदेश के मुताबिक प्रथम 100 यूनिट की खपत के लिए संशोधित ऊर्जा शुल्क 4.75 रुपये प्रति यूनिट है और यदि खपत 100 यूनिट से अधिक हो जाती है तो ऊर्जा शुल्क 7 रुपये प्रति यूनिट है. यदि खपत 100 यूनिट से अधिक हो जाती है तो उपभोक्ता को 7 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से पैसा देना होगा.

बिलागी ने बोला कि टैरिफ संशोधन से पहले, ऊर्जा शुल्क तीन स्लैब में तय किए गए थे. पहले के ऊर्जा शुल्क के अनुसार, पहले 50 यूनिट की खपत के लिए ऊर्जा शुल्क 4.15 रुपये प्रति यूनिट था, अन्य 50 यूनिट की खपत के लिए ऊर्जा शुल्क 5.6 रुपये प्रति यूनिट था और 100 यूनिट से अधिक खपत के लिए ऊर्जा शुल्क 7.15 रुपये प्रति यूनिट निर्धारित किया गया था.

केईआरसी ने निर्धारित शुल्कों में भी संशोधन किया. 1 से 50 किलोवाट स्वीकृत लोड के लिए फिक्स चार्ज 110 रुपये और 50 किलोवाट से अधिक स्वीकृत लोड के लिए फिक्स चार्ज 210 रुपये होगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बिजली दरों में वृद्धि से नाराज राज्य भर में कई लोग ऑफिसरों को चुनौती दे रहे हैं कि वे बिजली बिल का भुगतान नहीं करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए.

जिन लोगों को 800 रुपये का बिल मिलता था उन्हें अब 2400 रुपये तक चुकाने होंगे. यह स्थिति कांग्रेस पार्टी गवर्नमेंट के लिए एक रोड़ा साबित हो रही है, जो गृह ज्योति योजना से अधिकतम फायदा प्राप्त करना चाहती है, जिसके अनुसार वह सभी घरों को 200 यूनिट बिजली निःशुल्क प्रदान कर रही है.


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