मोदी सरकार ने देश के अंदर आतंकवाद पर लगाई लगाम

 

 

 कांग्रेस के भी किसी नेता पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले नहीं हुये है।
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुये आतंकी हमले

नरेंद्र मोदी vs मनमोहन सिंह: किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुए सबसे ज्यादा आतंकी हमले

बात अगर मोदी बनाम मनमोहन सरकार की करें, तो गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2014-18 के बीच कश्मीर में आतंकी हमले काफी हद तक कम हुए हैं।
पुलवामा में 14 फरवरी को आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे। कश्मीर में इस तरह की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं, हालांकि भारत के तेवर देख पड़ोसी मुल्क की हिम्मत जरूर कम हुई है। साल 2016 में मोदी सरकार में सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान को करारा जवाब दिया था। इस दौरान उरी हमले में शहीद 19 सैनिकों का बदला लेते हुए भारत ने पाकिस्तान में घुसकर 40 आतंकियों सहित 9 जवानों को भी मौत के घाट उतार दिया।
2004-13 बनाम 2014-18:साल 2004 से 2018 के बीच कश्मीर में कुल 11,447 आतंकी हमले हुए, जिसमें 1,394 जवानों ने देश के नाम अपनी कुर्बानी दे दी। बात अगर 2004-2013 की करें, तो इस दौरान 9,739 आतंकी हमलों में 1,055 सैनिक शहीद हुए।
यूपीए-1 बनाम यूपीए-2:साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को मात देकर कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई।मनमोहन सिंहको देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। यूपीए-1 में 8,022 बार आतंकी हमलों को अंजाम दिया गया, जिसमें कुल 806 सैनिक शहीद हुए। वहीं यूपीए-2 की सरकार में 1,717 आतंकी हमलों में 249 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई।

यूपीए-1 बनाम मोदी सरकार:गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2004-08 की तुलना में 2014-18 के बीच कश्मीर में आतंकी हमलों में लगभग पांच गुना कमी आई। वहीं सैनिकों की क्षति भी लगभग ढाई गुना कम रही।

यूपीए-2 बनाम मोदी सरकार: 2009-13 की तुलना में 2014-18 तक देखा जाए तो इसमें कुछ ज्यादा इज़ाफ़ा हुआ। इस दौरान भले ही आतंकी हमले कम हुए हो लेकिन सैनिकों की शहादत ज्यादा हुई।


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मोदी सरकार ने देश के अंदर इस्लामी आतंकवादी घटनाओं पर लगाई लगाम! मनमोहन और मोदी सरकार के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन!

किसी सरकार की अगर सफलता या उपलब्धि देखनी हो या फिर उसे आंकना हो तो आंकड़े इकट्ठे कीजिए, इसलिए तो अब Data journalism का क्रेज बढ़ने लगा है। और शायद इसलिए कांग्रेस अभी से ही डाटा जर्नलिज्म से डरने भी लगी है। आंकड़े और तथ्य कभी झूठ नहीं बोलते। आप उसका विश्लेषण अपनी सुविधानुसार कर सकते है। ऐसा ही एक तथ्य मोदी सरकार की सफलता के साथ ही उनकी उपलब्धि को भी दर्शाता है।

जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभाली है तब से पूरे देश में इस्लामिक आतंकी घटनाओं को याद करिए और फिर उससे पहले डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के 10 साल को याद करिए! अंदाजा सहज लग जाएगा! वैसे तुलना के लिए आधिकारिक आंकड़े यहां आपके सामने हैं।

सोनिया गांधी के मनमोहन सरकार के 10 साल के शासन में बड़ी संख्या में आम नागरिक इस्लामी आतंकवाद के शिकार होकर मौत को प्राप्त हुए। जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी बॉर्डर वाले राज्यों को यदि छोड़ दें तो कांग्रेस के 10 साल के शासन में दिल्ली, मुंबई, बनारस, अजमेर, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों पर हुए इस्लामी आतंकवादी हमले में 750 आम नागरिक मारे गये। वहीं मोदी सरकार का चार साल पूरा हो चुका है, लेकिन इस दौरान बॉर्डर के राज्यों से आगे आतंकवाद बढ़ ही नहीं पाया है। पाकिस्तानी आतंकियों और जेहादियों का भारत के शहरों में प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग गया है। यही वजह है कि इस सरकार के चार साल के शासन में केवल 4 आम नागरिक इस्लामी आतंकवाद का शिकार हुए हैं।

मुख्य बिंदु

* यूपीए सरकार के 10 सालों के कार्यकाल के दौरान आतंकी घटनाओं में 750 लोगों की गई थी जान

* देश का कोई भी शहर ऐसा नहीं बचा था जो इस्लामिक आतंकियों की जद में न आया हो

* मोदी सरकार के कार्यकाल में इस्लामिक आतंकी घटनाओं में महज 4 लोग मरे हैं

इस्लामिक आतंकी घटनाओं में ये उल्लेखनीय गिरावट केंद्र सरकार की कठोर कार्रवाई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत इरादों की बदौलत ही आई है। इस संदर्भ में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा कि “इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध कठोर कार्यवाही से देश में आतंकी घटनाओं में मारे जाने वाले नागरिकों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, जहाँ UPA सरकार के शासनकाल में 750 नागरिक आतंकवाद का शिकार बनें, वहीं अब यह संख्या घटकर 4 रह गयी है।” आतंकवाद के प्रति मोदी सरकार की जीरा टॉलरेंस नीति के कारण ही इतना बड़ा फर्क पैदा हुआ है।


निश्चित रूप से मोदी सरकार की यह उल्लेखनीय उपलब्धि ही कही जाएगी। मोदी सरकार को चार साल हो गए, लेकिन इस दौरान शायद ही कोई इस्लामिक आतंकियों द्वारा बम विस्फोट की घटना आपको याद हो। जबकि यूपीए सरकार के दौरान अक्सर पूरे देश में कहीं न कहीं बम विस्फोट होने और उससे हुए जानमाल के नुकसान की खबर आती ही रहती थी। वो चाहे पटना की घटना हो या गया, मुंबई की हो या दिल्ली की।

यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए इस्लामिक आतंकी घटनाएं

* दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट: 29 अक्टूबर 2005 में दीवाली से 2 दिन पहले आतंकियों ने 3 बम धमाके किए। 2 धमाके सरोजनी नगर और पहाड़गंज जैसे मुख्य बाजारों में हुए। तीसरा धमाका गोविंदपुरी में एक बस में हुआ। इसमें कुल 63 लोग मारे गए जबकि 210 लोग घायल हुए थे।

* मुंबई ट्रेन धमाका : 11 जुलाई 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में अलग-अलग 7 बम विस्फोट हुए। सभी विस्फोटक फर्स्ट क्लास कोच में बम रखे गए थे। इन धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ था। इसमें कुल 210 लोग मारे गए थे और 715 लोग जख्मी हुए थे।

* महाराष्ट्र के मालेगांव में 8 सितंबर, 2006 को हुए तीन धमाकों में 32 लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हुए।

* 5 अक्टूबर 2006 श्रीनगर में हुए हमले 7 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए।

* भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 19 फरवरी, 2007 को हुए बम धमाके में 66 यात्री मारे गए।

* आंध्रप्रदेश के हैदराबाद में 25 अगस्त, 2007 को हुए धमाके में 35 मारे गए और कई अन्य लोग घायल हो गए। हैदराबाद में ही 18 मई, 2007 को मक्का मस्जिद धमाके में 13 लोगों की मौत हो गई।

* उत्तर प्रदेश में 1 जनवरी, 2008 को रामपुर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कैंप पर हुए हमले में आठ लोग मारे गए।

* गुलाबी नगरी जयपुर में 13 मई 2008 में 15 मिनट के अंदर 9 बम धमाके हुए। इन धमाकों में कुल 63 लोग मारे गए थे जबकि 210 लोग घायल हुए थे।

* अहमदाबाद में 26 जुलाई, 2008 के दिन दो घंटे के भीतर 20 बम धमाके होने से 50 से अधिक लोग मारे गए। इस दौरान सूरत और बड़ौदा से भी बम बरामद हुए थे।

* 26/11 मुंबई आतंकी हमला, 26 नवंबर, 2008 को पाकिस्तान से आए 10 आत्मघाती हमलावरों ने सीरियल बम धमाकों के अलावा कई जगहों पर अंधाधुंध फायरिंग की। इस हमले में करीब 180 लोग मारे गए थे और करीब 300 लोग घायल हुए थे।

* पुणे की जर्मन बेकरी में 10 फरवरी, 2010 को हुए बम धमाके में नौ लोग मारे गए और 45 घायल हुए।

* बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 17 अप्रैल, 2010 में हुए दो बम धमाकों में 15 लोगों की मौत हो गई।

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26/11 के बाद ही मिट जाता बालाकोट, मनमोहन सरकार ने नहीं दी थी इजाजत

सार
मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सेना ने तैयार की थी व्यापक योजना

2008 में अमेरिका के साथ ऐतिहासिक परमाणु करार पर वार्ता के चलते तत्कालीन यूपीए सरकार हट गई थी सैन्य कार्रवाई से पीछे

विस्तार

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट के जिस आतंकी शिविर पर कहर बरपाया था, उसका नामोनिशान 10 साल पहले ही मिट सकता था। मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के बाद ही भारतीय सेना के तीनों अंगों ने मिलकर पाकिस्तान को सबक सिखाने की व्यापक योजना भी बना ली थी, जिसमें बालाकोट को लड़ाकू विमान से उड़ाना भी शामिल था। लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने सेना को इस कार्रवाई की इजाजत ही नहीं दी थी।


सेना के उच्च पदस्थ सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि पुलवामा के बाद करीब दस साल पहले बनी तकरीबन यही योजना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार के सामने रखी गई थी, जिसे पूरा करने की इजाजत देकर मोदी सरकार ने आतंक के खिलाफ लड़ाई का नया मापदंड तैयार कर दिया है। सेना की खुफिया इकाई के मुताबिक, दस साल पहले मुंबई हमले के समय भी बालाकोट का आतंकी ठिकाना पाकिस्तानी एजेंसियों की सरपरस्ती में पूरी तरह सक्रिय था।


हालांकि मुंबई हमले में लश्कर-ए-ताइबा का हाथ था और बालाकोट का यह ठिकाना जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा है। लेकिन सेना ने उस समय पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए बनाई व्यापक योजना के तहत उसकी सरपरस्ती वाले सभी आतंकी संगठनों के खिलाफ एक साथ मोर्चा खोलने का निर्णय लिया था। इस योजना को परवान चढ़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) एमके नारायणन के साथ तीनों तत्कालीन सेना प्रमुखों की कई बैठकें भी हुईं।  

इन बैठकों में हमले का अंतिम खाका भी तैयार कर लिया गया था। लेकिन उस दौरान भारत और अमेरिका के बीच परवान चढ़ रही ऐतिहासिक सिविल परमाणु करार की कवायद आड़े आ गई। तत्काीन यूपीए सरकार ने देश को ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाने के मकसद से अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ यह कवायद शुरू की थी। अमेरिका ने भी भारत को परमाणु ईंधन व तकनीक मुहैया कराने के लिए अपनी संसद में कई बिलों में संशोधन किया था।  

माना जा रहा है कि संभवत: अमेरिका ने ही भारत को इस कूटनीतिक प्रगति के दौरान युद्ध से दूर रहने की सलाह दी थी। इसी वजह से लंबी मंत्रणा के बाद तत्कालीन सरकार ने कूटनीतिक नजरिया अपनाकर बड़ी सैन्य कार्रवाई से हाथ खींच लिए थे और पाकिस्तान को दूसरे तरीके से घेरे में लेने का निर्णय लिया था।


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