काम का मिलेगा इनाम वरना 'राम-राम'
मोदी मंत्रीमण्डल 2.2 के बाद बहुत प्रकार की प्रतिक्रियायें आईं हैं । एक फिल्मी गीत था “ कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ” यह हमेशा की ही रीत हे। कुछ प्रतिक्रियायें यहां यथावत संलग्न हैं , ताकि आप को ध्यान में आ जाये की भिन्न भिन्न मत किय प्रकार से हैं। - ये मत मेरे कदापी नहीं हैं। अपने मतों को अलग से व्यक्त करूगा । - अरविन्द सिसौदिया 94141 80151
काम का मिलेगा इनाम वरना 'राम-राम' : PM मोदी
Updated on 8 Jul, 2021
BY NEWS4INDIATV.COM
नई दिल्ली| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेत का विस्तार और फेरबदल कर कई सियासी संदेश दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल कर मंत्रियों को जवाबदेह बनाने और और केंद्र सरकार के कामकाज को दुरुस्त करने का स्पष्ट संकेत दिया है। जिस प्रकार से छह कैबिनेट मंत्रियों समेत 12 मंत्रियों को हटाया गया है और सात राज्य मंत्रियों को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। उसके पीछे साफ संदेश है कि अच्छा काम करने वालों के बहुत मौके हैं, लेकिन यदि प्रदर्शन पर खरे नहीं उतरे तो फिर कैबिनेट में ज्यादा समय तक बने नहीं रह सकते।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इस फेरबदल के पीछे कई कारण जुड़े हो सकते हैं। यदि हालात सामान्य रहे होते तो बहुत पहले ही एक फेरबदल हो चुका होता। अब पूरे दो साल के बाद हो रहा है, इसलिए स्वभावित रूप से फेरबदल बड़ा करना पड़ा। इस फेरबदल में पश्चिम बंगाल के चुनाव के नतीजों, कोरोना महामारी से प्रभावित हुई सरकार की छवि तथा उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में आने वाले चुनावों का भी काफी प्रभाव पड़ा है।
मोदी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार और इस सरकार के कामकाज की तुलना करें तो यह लगातार यह संदेश जा रहा था कि केंद्र सरकार पहले की भांति काम नहीं कर रही है। कई मंत्रालयों के ढीले-ढाले रवैये से यह चुनौती बढ़ती हुई दिख रही थी। यह भी कहा जा रहा था कि जो कार्य केंद्र में हो रहे हैं, वे उस रूप में जनता तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, जिस प्रकार पहुंचाए जाने चाहिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यों के चुनावों में स्थानीय मुद्दों के अलावा केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को भी एक प्रमुख आधार बनाए जाने के पक्षधर रहे हैं।
यह माना जा रहा है कि बंगाल चुनावों में हार के बाद कोरोना की दूसरी लहर से सरकार के प्रति नकारात्मक माहौल में बढ़ोत्तरी हुई है। इसे दूर करने के लिए हालांकि आने वाले दिनों में कई और कदम भी उठाने होंगे, लेकिन मंत्रिमंडल में बड़े बदलाव करने को एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। फेरबदल में पूर्व नौकरशाहों, युवाओं एवं अनुभवी मंत्रियों को तरजीह देकर पहले से बेहतर टीम बनाने की कोशिश की गई है।
जानकारों के अनुसार, जिस प्रकार से कई दिग्गज कैबिनेट मंत्रियों को हटाया गया है, उसमें साफ संकेत है कि सिर्फ वरिष्ठता के कारण कोई मंत्री बने नहीं रह सकता है। ऐसा लगातार दिख रहा था कि कई वरिष्ठ मंत्रियों में जवाबदेही की भावना घट रही है, इसलिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया।
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नई दिल्ली
मोदी सरकार में नए मंत्रियों की एंट्री से ज्यादा मंत्रियों की छुट्टी ज्यादा चर्चा का विषय रही। हेल्थ मिनिस्टर से लेकर एजुकेशन मिनिस्टर और आईटी मिनिस्टर से लेकर आईएनबी मिनिस्टर और लेबर मिनिस्टर की छुट्टी की गई है। कुल मिलाकर 12 मंत्रियों को मोदी मंत्रिमंडल से बाहर किया गया है। कानून और आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद को मंत्रिमंडल से बाहर किया गया है। प्रसाद ट्विटर बनाम सरकार की लड़ाई में सरकार का चेहरा थे और इस मामले में यह आरोप लगे कि सरकार सोशल मीडिया को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है। ट्विटर ने जब कुछ घंटे के लिए रविशंकर प्रसाद का अकाउंट लॉक किया तो प्रसाद के रिएक्शन को लेकर भी सोशल मीडिया में काफी खिंचाई हुई।
क्या ट्विटर विवाद के कारण बाहर हुए प्रसाद
प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही अपने मंत्रियों और सांसदों को सोशल मीडिया के बेहतर इस्तेमाल और इसके जरिए लोगों तक पहुंच बढ़ाने के लिए कहते रहे हैं। माना जा रहा है कि प्रसाद ने ट्विटर विवाद को सही से हैंडल नहीं किया, जिसकी वजह से सरकार और पीएम पर भी सवाल उठे, जो उनकी छुट्टी की एक वजह बना। प्रसाद के पास कानून मंत्रालय भी था। पिछले महीने ही दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में सख्त टिप्पणी की थी। पिंजरा तोड़ ग्रुप की सदस्य नताशा समेत तीन आरोपियों को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य ने संवैधानिक रूप से मिले विरोध के अधिकार और आतंकी गतिविधियों के बीच की लाइन को धुंधला कर दिया है। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में भी कई मामलों में कानून मंत्रालय सरकार का पक्ष मजबूती से नहीं रख पाया।
जानें जावडेकर के इस्तीफे की वजह
सूचना- प्रसारण मंत्री और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी इस्तीफा ले लिया गया। सरकार के प्रवक्ता होने के नाते जावड़ेकर और उनके मंत्रालय की जिम्मेदारी थी कि वह कोरोना काल में सरकार की इमेज सही करने के लिए कदम उठाएं लेकिन उनका मंत्रालय इसमें असफल रहा। देसी मीडिया के अलावा विदेशी मीडिया में भी सरकार की बहुत किरकिरी हुई और सीधे पीएम मोदी की इमेज पर असर पड़ा। जावडेकर की उम्र भी उनके हटने की एक वजह बताई जा रही है। वह 70 साल के हैं।
क्या कोविड मिसमैनेजमेंट के कारण हटे हैं हर्षवर्धन
हेल्थ मिनिस्टर डॉ हर्षवर्धन को भी मोदी मंत्रिमंडल से हटाया गया है। इसकी चर्चा काफी दिनों से चल रही थी और कोरोना की दूसरी लहर में मिसमैनेजमेंट को लेकर हेल्थ मिनिस्टर लगातार विपक्ष के निशाने पर भी थे। हॉस्पिटल बेड की कमी, ऑक्सिजन की कमी और दिक्कतों से निपटने में हेल्थ मिनिस्टर का एक्टिव ना दिखना उनके जाने की वजह बना। कोरोना की दूसरी लहर में सरकार पर भी कई सवाल उठे और हेल्थ मिनिस्ट्री हालात से निपटने के अलावा सरकार के खिलाफ लगातार नेगेटिव बन रहे परसेप्शन से डील करने में असफल रही। पिछली सरकार में भी हर्षवर्धन से हेल्थ मिनिस्ट्री वापस ली गई थी।
स्वास्थ्य कारणों से शिक्षा मंत्री के पद से हटे निशंक
एजुकेशन मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक का भी इस्तीफा लिया गया है। उनका खराब स्वास्थ्य इसकी वजह बताई जा रही है। कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें काफी दिक्कत आ गई थी। कोरोना से रिकवर होने के बाद उन्हें कई तरह की दिक्कत हुई और 15 दिन तक आईसीयू में रहना पड़ा। हालांकि उनकी क्वॉलिफिकेशन को लेकर भी बीच बीच में विपक्ष सवाल उठाता रहा है।
गंगवार को इस वजह से मंत्रिमंडल से हटाया गया
लेबर मिनिस्टर संतोष गंगवार को भी मोदी मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया गया है। कोरोनाकाल में प्रवासी मजदूरों की दिक्कतों को सही से डील न करने को लेकर लेबर मिनिस्ट्री सवालों के घेरे पर थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले पर मिनिस्ट्री पर सख्त टिप्पणी की थी। प्रवासी मजदूरों की खराब हालत को लेकर सरकार पर देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब सवाल उठे।
कोरोना काल में किस मंत्री का परफॉरमेंस कैसा रहा, यह उनके मंत्रिमंडल में रहने या जाने का एक बड़ा फैक्टर रहा। पिछले एक महीने से पीएम मोदी पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ मिलकर हर मंत्री की परफॉरमेंस का रिव्यू कर रहे थे और सबका रिपोर्ट कार्ड भी तैयार किया गया।
केमिकल और फर्टिलाइजर मिनिस्टर सदानंद गौड़ा को भी हटाया गया है और इसके पीछे कर्नाटक में सरकार के भीतर चल रही उथल पुथल भी एक वजह बताई जा रही है। कर्नाटक से अब चार नए लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है।
बाबुल सुप्रियो को मिली बंगाल में बीजेपी की हार की सजा
पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी के परफॉरमेंस की वजह से राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो और देबाश्री चौधरी की मंत्रिमंडल से छुट्टी हुई। मंत्री होने के बावजूद बाबुल सुप्रियो विधानसभा सीट भी नहीं जीत पाए। उनके कुछ बयानों ने भी पार्टी की किरकिरी की। देबाश्री चौधरी भी बंगाल चुनाव में असरदार साबित नहीं हुई।
थावरचंद गहलोत को मंत्री पद से हटाकर कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है और इसके पीछे उनकी उम्र को वजह बताया गया। राज्यमंत्री संजय धोत्रे को स्वास्थ्य वजह से इस्तीफा देना पड़ा। इसके अलावा रतनलाल कटारिया, प्रताप सारंगी को भी मंत्रिमंडल से हटाया गया। उनके रिपोर्ट कार्ड को इसका आधार बनाया गया।
थावरचंद गहलोत को मंत्री पद से हटाकर कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है और इसके पीछे उनकी उम्र को वजह बताया गया। राज्यमंत्री संजय धोत्रे को स्वास्थ्य वजह से इस्तीफा देना पड़ा। इसके अलावा रतनलाल कटारिया, प्रताप सारंगी को भी मंत्रिमंडल से हटाया गया। उनके रिपोर्ट कार्ड को इसका आधार बनाया गया।
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राष्ट्रपति भवन में बुधवार को आयोजित समारोह में मंत्रिमंडल विस्तार के तहत 43 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। इनमें 15 कैबिनेट और 28 राज्य मंत्री शामिल हैं। स्वतंत्र प्रभार वाले तीन मंत्रियों और चार राज्य मंत्रियों को अब कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। मंत्रिमंडल में पहली बार त्रिपुरा को प्रतिनिधित्व दिया गया है, जबकि सात महिलाएं टीम मोदी में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई हैं।
चुनावी राज्यों का रखा खास ख्याल
विस्तार के दौरान नए चेहरों और पदोन्नति के मामले में चुनावी राज्यों का विशेष ख्याल रखा गया है। जिन 36 नए चेहरों को टीम मोदी में जगह मिली है, उनमें से करीब 40 फीसदी यानी 15 मंत्री चुनावी राज्यों से हैं। इसके अलावा पदोन्नति में भी करीब साठ फीसदी हिस्सेदारी चुनावी राज्यों को दी गई है। विस्तार में सात मंत्रियों को तरक्की मिली है, जिनमें चार चुनावी राज्यों से हैं। गौरतलब है कि अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा, पंजाब, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं।
पूर्वोत्तर के मजबूत किले का ध्यान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दशकों तक पूर्वोत्तर में प्रभाव जमाने के लिए संघर्ष करता रहा है। वर्तमान में पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा की पकड़ मजबूत हुई है। भविष्य में किसी तरह की ढिलाई न हो, इसके मद्देनजर विस्तार में पूर्वोत्तर के राज्यों को खास अहमियत दी गई है। पूर्वोत्तर से जुड़े स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री किरेन रिजिजू को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, जबकि असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। त्रिपुरा की प्रतिमा भौमिक के जरिए पहली बार इस राज्य को केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया गया है, जबकि मणिपुर से राजकुमार रंजन सिंह को जगह मिली है। यह पहला अवसर है, जब पूर्वोत्तर के राज्यों से एक ही समय में चार-चार मंत्रियों को केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व का अवसर मिला है।
पश्चिम बंगाल पर मजबूत संदेश
विस्तार के जरिए मोदी सरकार ने पश्चिम बंगाल में लंबी लड़ाई लड़ने का संदेश दिया है। विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन न करने के कारण दो मंत्रियों बाबुल सुप्रियो और देबश्री चौधरी को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया है। इसके बदले में पश्चिम बंगाल से चार मंत्री बनाए गए हैं। नए मंत्रियों में शांतनु ठाकुर मतुआ तो निशिथ प्रमाणिक राजवंशी बिरादरी से हैं। दो मंत्री हटाकर और चार नए मंत्री बनाकर भाजपा और मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि राज्य में वह मजबूती से राजनीतिक लड़ाई लड़ेगी।
क्षेत्रीय संतुलन, असंतोष और विस्तार की संभावना का ध्यान
विस्तार के जरिए क्षेत्रीय संतुलन साधने के साथ ही असंतोष वाले राज्यों का भी ध्यान रखा गया है। मसलन असंतोष से जूझ रहे कर्नाटक से तीन, त्रिपुरा से एक मंत्री बनाया गया है। विस्तार की संभावना वाले राज्यों में शामिल तमिलनाडु को भी टीम मोदी में प्रतिनिधित्व दिया गया है, जबकि ओडिशा से दो मंत्रियों को जगह मिली है। पंजाब से जुड़े हरदीप पुरी और तेलंगाना के जी. किशन रेड्डी को पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।
नहीं बढ़ी सहयोगियों की संख्या
पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि विस्तार में सहयोगियों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। जब सरकार का गठन हुआ था, तब सहयोगी दल के तौर पर शिवसेना, अकाली दल, लोजपा और आरपीआई को प्रतिनिधित्व मिला था। बाद में शिवसेना और अकाली दल ने राजग से नाता तोड़ लिया। विस्तार के बाद अब जदयू और अपना दल को प्रतिनिधित्व मिला है, जबकि लोजपा कोटे से रामविलास पासवान की जगह पशुपति पारस मंत्री बने हैं। इस प्रकार अब भी सरकार में सहयोगी दलों की संख्या पहले की तरह चार ही है।
काम करने वालों को ही जगह
विस्तार के जरिए पीएम ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि उनकी टीम में काम करने वालों की ही जगह पक्की है। इस आशय का सख्त संदेश देने के लिए छह कैबिनेट मंत्रियों, एक स्वतंत्र प्रभार और पांच राज्य मंत्रियों की छुट्टी की। जिन मंत्रियों की छुट्टी हुई है, उनमें रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, डीवी सदानंद गौड़ा, डॉ. हर्षवर्धन, रमेश पोखरियाल निशंक और संतोष गंगवार अब तक सरकार के कद्दावर चेहरे थे।
डॉ. वीरेंद्र कुमार होंगे नया दलित चेहरा
विस्तार के जरिए सरकार ने दलित चेहरे का विकल्प भी ढूंढ लिया है। रामविलास पासवान के निधन के बाद दलित चेहरे का चयन यक्ष प्रश्न था। हालांकि मध्यप्रदेश से डॉ वीरेंद्र कुमार को कैबिनेट मंत्री बनाकर सरकार ने इसका जवाब दे दिया है। लगातार सात लोकसभा चुनाव जीतने वाले डॉ. कुमार मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में राज्य मंत्री थे। रामविलास की जगह गठबंधन के दलित चेहरे के रूप में पीएम ने उनके भाई पशुपति पारस पर भरोसा जताया है।
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इसे कहते हैं सुशासन, चाहे कितना भी बड़ा नाम हो पर कार्य मे तनिक भी गड़बड़ हुई तो पत्ता साफ । एक चमचा ब्रिगेड है जो 70 साल से एक ही खानदान को ढोते चले आ रहे हैं ।
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मोदी मंत्रीमण्डल 2.2
https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2021/07/22.html
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मोदी मंत्रिमंडल से क्यों हटाए गए मंत्रीवरों पर बी बी सी का विश्लेषण
रविशंकर प्रसाद, हर्षवर्धन और कई बड़े मंत्री दिलनवाज़ पाशा
बीबीसी संवाददाता 7 जुलाई 2021
नरेंद्र मोदी सरकार के 43 मंत्रियों ने शपथ ले ली है. ये किसी सरकार का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल विस्तार है.
शपथ ग्रहण से कुछ घंटे पहले ही देश के स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और सूचना एवं प्राद्योगिकी मंत्रियों ने इस्तीफ़े दे दिए. मोदी सरकार के कुल 12 मंत्रियों को पद से हटाया गया है.
'मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस' का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार में 36 नए मंत्री शामिल किए गए हैं.
राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे दो बड़े कारण मानते हैं- एक तो व्यावहारिक राजनीतिक मजबूरियाँ और दूसरा महामारी के बाद जनता को ज़मीनी काम दिखाने की ज़रूरत.
मंत्रिमंडल विस्तार में बड़ी संख्या में मंत्रियों को शामिल करने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, "ये पॉलिटिकल प्रैगमेटिज्म यानी राजनीतिक व्यवहारिकता है. सरकार की राजनीतिक मजबूरियाँ भी होती हैं. ये बात सही है कि पहले प्रधानमंत्री ने कई मंत्रालयों को समेटा था, कई मंत्रालय को एक किया था, इस बार भी लगता है ऐसी कोशिश होगी कि एक तरह के मंत्रालय एक जगह रहें."
प्रदीप सिंह कहते हैं, "आपने क्या नारा दिया, क्या सिद्धांत बनाए या फिर आपकी नीयत क्या थी, ये मायने नहीं रखता है, अंत में नतीजे ही देखे जाते हैं. जनता वोट इसी बात पर देगी कि आपने प्रदर्शन कैसा किया है. सरकार ने ये प्राथमिकता ज़ाहिर की है कि ज़मीनी स्तर पर काम दिखना चाहिए. और मंत्रिमंडल विस्तार का मक़सद भी यही है."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का यह पहला मंत्रिमंडल विस्तार है. इसमें कुल 43 मंत्री शामिल किए गए हैं, जिनमें से 15 को कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है.
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने जून में सभी मंत्रालयों की समीक्षा की थी. सभी के कामकाज़ का 360 डिग्री रिव्यू किया गया था. जानकार बताते हैं कि इस दौरान पीएम मोदी ने तय किया कि किस-किस मंत्री को हटाना है. सबसे पहले जानते हैं उन पाँच बड़े मंत्रियों के बारे में, जिन्हें पद से हटाया गया है.
1. हर्षवर्धन
कोविड महामारी के दौरान भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे हर्षवर्धन को इस्तीफ़ा देना पड़ा है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, "ज़ाहिर है प्रधानमंत्री उनके काम से ख़ुश नहीं थे."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून में सभी मंत्रालयों के कामकाज़ की समीक्षा की थी.
वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस कहती हैं, "स्वास्थ्य मंत्रालय को पूरी तरह बदल दिया गया है. सरकार दिखाना चाहती है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को जो भी दिक़्क़तें आई हैं, या नुक़सान हुआ है, अब नहीं होने दिया जाएगा."
स्वास्थ्य मंत्री को हटाने से सरकार पर ये सवाल भी उठेगा कि उसने महामारी के दौरान ठीक से प्रबंधन नहीं किया और लोगों की जान बचाने में नाकाम रही. विश्लेषकों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी को विपक्ष की आलोचना की बहुत परवाह नहीं है.
प्रदीप सिंह कहते हैं, "स्वास्थ्य मंत्री को हटाने का मतलब है कि सरकार ने विपक्ष को आलोचना करने का मौक़ा दे दिया है. उनको हटाते ही ये सवाल उठेगा कि सरकार कोरोना महामारी के प्रबंधन में विफल रही है. ये बात प्रधानमंत्री भी जानते हैं, लेकिन उनके काम करने का तरीक़ा यही है, वो विपक्ष की आलोचना की बहुत परवाह नहीं करते हैं."
वहीं अदिति फडनीस कहती हैं, "कोविड प्रबंधन का एक दौर ये था कि लोगों से ताली-थाली बजाने के लिए कहा गया, फिर एक दौर वो आया कि मोदी जी टीवी चैनल पर आकर रोने लगे और अब एक दौर ये है जब ये संकेत दिया जा रहा है कि अब रोना-धोना बंद, अब काम करने का समय है."
2. रमेश पोखरियाल निशंक
नए कैबिनेट विस्तार के दौरान शिक्षा मंत्री को भी पद से हटा दिया गया है. उत्तराखंड से आने वाले रमेश पोखरियाल निशंक केंद्रीय मंत्रिमंडल में पहाड़ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. भारत की नई शिक्षा नीति उन्हीं के कार्यकाल में लागू की गई है.
प्रदीप सिंह मानते हैं कि नई शिक्षा नीति लागू करने में निशंक की विफलता ही उन्हें हटाए जाने का कारण है.
प्रदीप सिंह कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई शिक्षा नीति पर निशंक के काम से नाराज़ थे. शिक्षा में इतना बड़ा बदलाव सरकार ने किया लेकिन इस पर चर्चा ही नहीं हुई. ये ख़बर ही नहीं बन पाई कि नई शिक्षा नीति क्या है, इससे क्या बदलेगा. निशंक जन-जन तक शिक्षा नीति को पहुँचाने में नाकाम रहे, शायद इस बात को लेकर भी प्रधानमंत्री नाराज़ थे."
कोविड महामारी के दौरान केंद्रीय बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएँ भी रद्द करनी पड़ीं.
अदिति कहती हैं, "नई शिक्षा नीति इन्हीं मंत्री ने बनाई थी. सीबीएसई की 12वीं और 10वीं की परीक्षा को लेकर जो अफ़रा-तफ़री मची, उससे लोग बहुत परेशान हुए. एक महीना रह गया था और छात्रों को पता नहीं था कि इम्तेहान होगा या नहीं होगा. सरकार क्या करना चाह रही है, लोगों को ये समझ नहीं आ रहा था."
3. रविशंकर प्रसाद
ट्विटर से दो-दो हाथ कर रहे रविशंकर प्रसाद को भी त्यागपत्र देना पड़ा है. अदिति फडनीस मानती हैं कि रविशंकर प्रसाद को पद से हटाने की वजह ये विवाद भी हो सकता है.
फडनीस कहती हैं, "रविशंकर प्रसाद के इस्तीफ़े को ट्विटर विवाद से जोड़कर भी देखा जा रहा है. रविशंकर प्रसाद ने जिस तरह से दुनिया की बड़ी तकनीक कंपनियों कौ चुनौती दी, उससे भारत एक अजीब स्थिति में फँस गया. जहाँ अमेरिका को भी कहना पड़ा कि भारत ग़लत कर रहा है. मुझे लगता है कि भारत का आशय किसी वैश्विक विवाद में फँसना नहीं था. इससे भी भारत को बहुत दिक़्क़त हुई है."
भारत लोगों की निजी जानकारियों को लेकर डेटा प्रोटेक्शन लॉ भी ला रहा है. इस पर संयुक्त संसदीय समिति रिपोर्ट तैयार कर रही है. लेकिन रविशंकर प्रसाद ने रिपोर्ट के पेश होने से पहले ही ट्वीट कर दिया था कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं.
अदिति फडनीस कहती हैं कि इससे सरकार की बहुत फ़जीहत हुई थी. भारत सरकार नया डेटा प्रोटेक्शन लॉ तैयार कर रही है, जिसे संयुक्त संसदीय समिति देख रही है, इसकी रिपोर्ट अभी आनी है, लेकिन रविशंकर प्रसाद को ये मालूम ही नहीं था कि रिपोर्ट अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है और उन्होंने ट्वीट कर दिया कि वो इस रिपोर्ट से बहुत ख़ुश हैं.
फडनीस कहती हैं, "डेटा पॉलिसी पर बहुत गंभीरता से काम किया जा रहा है. जिस गंभीरता से भारत का संविधान लिखा गया था, उसी गंभीरता से इस पर काम चल रहा है."
4. प्रकाश जावड़ेकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है. इसके दो कारण समझ में आते हैं, एक तो पर्यावरण मंत्रालय में बहुत कुछ काम नहीं हुआ है और दूसरा प्रकाश जावड़ेकर का पार्टी के भीतर समर्थन भी कम हुआ है.
अदिति कहती हैं, "पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट देखेंगे तो लगेगा कि सरकार और पर्यवारण मंत्रालय ने 2020 के बाद से कोई भी नया इनिशिएटिव नहीं लिया है. ऐसा लगता है कि जैसे पर्यावरण मंत्रालय ने 2020 के बाद कोई काम नहीं किया है. जो भी काम नज़र आता है, वो 2019 तक का ही आता है."
भारत के सामने इस समय कई पर्यावरण चुनौतियाँ हैं, दिसंबर में कैनबरा में कोप-26 की बैठक होनी हैं, उसमें पर्यावरण को लेकर कई बड़े निर्णय लिए जाने हैं. अदिति कहती हैं कि बावजूद इसके पर्यावरण मंत्रालय ने इस दिशा में
कोई ख़ास काम नहीं किया है.
अदिति कहती हैं, "प्रधानमंत्री ने नारा दिया है कि भारत अगले साल तक सिंगल यूज प्लास्टिक फ्री हो जाएगा, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट या काम को देखकर ये नहीं लग रहा है कोई इतनी बड़ी चीज़ होने जा रही है. शायद इससे भी प्रधानमंत्री नाराज़ हों."
5. संतोष गंगवार
कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की खुली आलोचना करने वाले संतोष गंगवार को भी पद से हटा दिया गया है. भारत में जब कोरोना की पहली लहर आई थी, तो बड़ी तादाद में प्रवासियों ने बेहद मुश्किल हालात में शहरों से गाँवों की तरफ पलायन किया था.
प्रवासी संकट की वजह से केंद्र सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था और वैश्विक स्तर पर भारत की ब्रैंड इमेज को भी धक्का लगा था.
अदिति फडनीस कहती हैं, "संतोष गंगवार को हटाने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि वो प्रवासी संकट से सही से नहीं निबटे. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आपस में बात करके एक नीति बनानी थी और इसमें श्रम मंत्री की बहुत बड़ी भूमिका नहीं थी. लेकिन फिर भी उन्हें पद से हटा दिया गया है."
अदिति मानती हैं कि गंगवार को पद से हटाने की एक और वजह योगी आदित्याथ के नाम लिखी उनकी चिट्ठी हो सकती है.
अदिति कहती हैं, "मुझे लगता है कि संतोष गंगवार को हटाने की असल वजह उनकी योगी आदित्यनाथ को लिखी चिट्ठी है, जिसमें उन्होंने कोविड की दूसरी लहर के दौरान सरकार के कामकाज की खुले दिल से आलोचना की थी. संतोष गंगवार ने अहम सवाल उठाए थे, लेकिन शायद सरकार ने ये संकेत दिया है कि योगी आदित्यनाथ की आलोचना स्वीकार नहीं की जाएगी. बीजेपी सरकार इस बात को लेकर सजग है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ के कामकाज की आलोचना का असर आगामी चुनावों पर हो सकता है."
इस्तीफा देने वाले अन्य मंत्री
इन मंत्रियों के अलावा पश्चिम बंगाल से आने वाले बाबुल सुप्रियो को भी मंत्री पद से हटा दिया गया है. माना जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन की वजह से उन्हें हटाया गया है.
प्रदीप सिंह कहते हैं, "बाबुल सुप्रियो को पश्चिम बंगाल के नतीजों की क़ीमत चुकानी पड़ी है. साथ ही वो एक स्टार की तरह व्यवहार करते थे, मंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है."
इनके अलावा थावरचंद गहलोत (सामाजिक न्याय मंत्री), देबोश्री चौधरी (महिला बाल विकास मंत्री), सदानंद गौड़ा (उर्वरक और रसायन मंत्री) संजय धोत्रे (शिक्षा राज्य मंत्री), प्रताप सारंगी और रतन लाल कटारिया को भी पद से हटा दिया गया है.
इतनी बड़ी ताताद में मंत्रियों को हटाने की एक वजह तो ये है कि सरकार में नए मंत्रियों के लिए जगह बनानी है. वहीं प्रदीप सिंह कहते हैं, "सरकार का सिद्धांत स्पष्ट है कि आप परफ़ॉर्म करिए या पेरिश हो जाइए, यानी या तो काम कीजिए या घर जाइए."
प्रदीप सिंह कहते हैं, "प्रधानमंत्री ने हर मंत्रालय के काम की समीक्षा की है. इस सरकार में एक समस्या ये भी है, आप इसे अच्छी स्थिति भी कह सकते हैं, कि प्रधानमंत्री टॉस्क मास्टर हैं. बाक़ी लोग उनके साथ क़दम मिलाकर चल नहीं पाते हैं. जो उनकी रफ़्तार से नहीं चल पाते हैं, वो धीरे-धीरे बाहर होने लगते हैं. जो मंत्री हटाए गए हैं, उनके साथ यही हुआ है."
प्रधानमंत्री मोदी का काम करने का स्टाइल ऐसा है कि मंत्रालय में उनका सीधा दखल भी रहता है. प्रदीप सिंह कहते हैं, "कई मंत्रियों को ऐसा लगता होगा कि प्रधानमंत्री ही हमारा मंत्रालय चला रहे हैं. मंत्रियों को हर सप्ताह प्रधानमंत्री को वॉट्सऐप पर रिपोर्ट देनी होती है."
इस्तीफा देने वाले अन्य मंत्री
इन मंत्रियों के अलावा पश्चिम बंगाल से आने वाले बाबुल सुप्रियो को भी मंत्री पद से हटा दिया गया है. माना जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन की वजह से उन्हें हटाया गया है.
प्रदीप सिंह कहते हैं, "बाबुल सुप्रियो को पश्चिम बंगाल के नतीजों की क़ीमत चुकानी पड़ी है. साथ ही वो एक स्टार की तरह व्यवहार करते थे, मंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है."
इनके अलावा थावरचंद गहलोत (सामाजिक न्याय मंत्री),
देबोश्री चौधरी (महिला बाल विकास मंत्री),
सदानंद गौड़ा (उर्वरक और रसायन मंत्री)
संजय धोत्रे (शिक्षा राज्य मंत्री),
प्रताप सारंगी और
रतन लाल कटारिया को भी पद से हटा दिया गया है.
इतनी बड़ी ताताद में मंत्रियों को हटाने की एक वजह तो ये है कि सरकार में नए मंत्रियों के लिए जगह बनानी है. वहीं प्रदीप सिंह कहते हैं, "सरकार का सिद्धांत स्पष्ट है कि आप परफ़ॉर्म करिए या पेरिश हो जाइए, यानी या तो काम कीजिए या घर जाइए."
प्रदीप सिंह कहते हैं, "प्रधानमंत्री ने हर मंत्रालय के काम की समीक्षा की है. इस सरकार में एक समस्या ये भी है, आप इसे अच्छी स्थिति भी कह सकते हैं, कि प्रधानमंत्री टॉस्क मास्टर हैं. बाक़ी लोग उनके साथ क़दम मिलाकर चल नहीं पाते हैं. जो उनकी रफ़्तार से नहीं चल पाते हैं, वो धीरे-धीरे बाहर होने लगते हैं. जो मंत्री हटाए गए हैं, उनके साथ यही हुआ है."
प्रधानमंत्री मोदी का काम करने का स्टाइल ऐसा है कि मंत्रालय में उनका सीधा दखल भी रहता है. प्रदीप सिंह कहते हैं, "कई मंत्रियों को ऐसा लगता होगा कि प्रधानमंत्री ही हमारा मंत्रालय चला रहे हैं. मंत्रियों को हर सप्ताह प्रधानमंत्री को वॉट्सऐप पर रिपोर्ट देनी होती है."
नए मंत्री जिनकी हो रही है चर्चा
कांग्रेस से बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली है. असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल को भी मंत्री बनाया गया है.
इसके अलावा अनुप्रिया पटेल को फिर से केंद्रीय मंत्रीमंडल में जगह दी गई है. मोदी सरकार के आठवें साल में पहली बार सबसे ज़्यादा महिला मंत्रियों को जगह दी गई है. अब मोदी सरकार में 11 महिला मंत्री होंगी.
बुधवार शाम को 15 कैबिनेट मंत्रियों और 28 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली है. इसमें लोकजनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस और जदयू के आरसीपी सिंह भी शामिल हैं.
नज़र यूपी चुनावों पर भी?
उत्तर प्रदेश से मंत्रिमंडल विस्तार में सात लोगों को शामिल किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश की महाराजगंज सीट से भाजपा सांसद पंकज चौधरी को मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है. वहीं अपना दल की अनुप्रिया सिंह पटेल को भी राज्य मंत्री बनाया गया है. अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी मंत्री बनाई गई थीं.
इनके अलावा भाजपा के आगरा से सांसद एसपी सिंह बघेल को मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री के तौर पर शामिल किया गया है. बघेल भाजपा में आने से पहले सपा और बसपा में भी रह चुके हैं.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी सभी जातियों को साधने की कोशिश कर रही है.
अदिति फडनीस कहती हैं, "अधिकतर नए मंत्री जो आ रहे हैं, वो यूपी के ही हैं, इससे ही स्पष्ट है कि सरकार यूपी के चुनावों को लेकर गंभीर हैं. उदाहरण के तौर पर अनुप्रिया पटेल ने पहले कार्यकाल में कोई बहुत ख़ास काम नहीं किया था, लेकिन उनकी फिर से केंद्रीय मंत्रीमंडल में वापसी हो रही है, उनकी वापसी की वजह राजनीतिक ही ज़्यादा लगती हैं."
वहीं प्रदीप सिंह कहते हैं, ''इसका राजनीतिक अर्थ बिलकुल स्पष्ट है. साल 2014 में बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का जो प्रोजेक्ट शुरू किया था, उसे और मज़बूत किया जा रहा है. पहले 2014 फिर यूपी 2017 और फिर लोकसभा 2019, इन चुनावों में बीजेपी को जिन जातिगत समीकरणों ने सत्ता सौंपी उन्हें और मज़बूत करने का काम किया जा रहा है."
प्रदीप सिंह कहते हैं, "बीजेपी ग़ैर जाटव दलितों और ग़ैर यादव ओबीसी को सत्ता में अधिक हिस्सा देना चाहती है. पार्टी का साल 2014 के बाद से इन जातियों पर ही फ़ोकस है, अब इन जातियों को और मज़बूत करने की कोशिश की जा रही है. सरकार ये संदेश देना चाहती है कि पिछड़ों के नाम पर राजनीति करने वाले दलों या नेताओं ने जो इन जातियों को नहीं दिया है, वो उन्हें दिया जा रहा है.''
प्रधानमंत्री मोदी के नए मंत्रिमंडल में चार पूर्व ब्यूरोक्रेट भी हैं. अदिति मानती हैं कि ये प्रधानमंत्री मोदी की ही नीति में एक बदलाव है, अब वो सरकार को लेकर अधिक व्यावहारिक हो गए हैं.
अदिति फडनीस कहती हैं, "प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ऐसे ब्यूरोक्रेट्स को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था, जो सिविल सेवा के बाद राजनीति में आए थे और चुनाव जीत गए थे. तब मोदी ने कहा था कि इन लोगों ने सारी ज़िंदगी सरकार की मिठाई खाई है, मैं अब और नहीं खिलाउंगा. लेकिन अब इस बार उन्होंने चार पूर्व नौकरशाहों को सरकार में शामिल किया है. यानी मोदी 360 डिग्री का टर्न लेकर वहीं आ गए हैं, जहाँ से उन्होंने शुरू किया था. इस बार एक तरह से हर तीसरा व्यक्ति या तो प्रोफ़ेशनल है, या उद्यमी है या फिर ब्यूरोक्रेट है."
मंत्रिमंडल विस्तार और पुराने मंत्रियों को हटाए जाने को लेकर विपक्ष ने सरकार की आलोचना शुरू कर दी है. लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इससे मोदी सरकार को बहुत फ़र्क नहीं पड़ेगा.
जैसा कि अदिति कहती हैं कि ये एक साहसिक फ़ैसला है, विपक्ष तो कहेगा ही कि आपने इतने लोगों को हटाया है, ये काम नहीं कर रहे थे, इसका जवाब दीजिए, लेकिन मोदीजी को मालूम है कि आज की तारीख़ में जो विपक्ष कह रहा है, उसके बहुत ज़्यादा मायने नहीं हैं.
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