ABVP अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

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 अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की विकास यात्रा - Rashtriya Chhatra Shakti

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
(ABVP या विद्यार्थी परिषद)
 विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन हैं। इसकी स्थापना छात्र हित और छात्रों को उचित दिशा देने के लिए की गयी है.

घोष वाक्य  : ज्ञान, शील और एकता

उद्देश्य : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है। विद्यार्थी परिषद के अनुसार, छात्रशक्ति ही राष्ट्रशक्ति होती है। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए छात्रों में राष्ट्रवादी चिंतन को जगाना ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का मूल उद्देश्य है। देश की युवा छात्र शक्ति का यह प्रतिनिधि संगठन है। इसकी मूल अवधारणा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है।
अ भा वि प का नारा है : छात्र शक्ति- राष्ट्रशक्ति। वैसे एवीवीपी का आधिकारिक स्लोगन – ज्ञान, शील, एकता – परिषद् की विशेषता है।

संगठन : राष्ट्रवादी छात्रों के इस संगठन की हर वर्ष देशव्यापी सदस्यता होती है। देश के सभी विश्वविद्यालयों और अधिकांश कॉलेजों में परिषद की इकाईयां हैं। अधिकांश छात्रसंघों पर परिषद का ही अधिकार है। संगठन का मानना है कि आज का छात्र कल का नागरिक है। हर वर्ष होने वाले प्रांतीय और राष्ट्रीय अधिवेशनों के द्वारा नई कार्यसमिति गठित होती हैं और वर्ष भर के कार्यक्रमों की घोषणा होती है। यह एकमात्र संगठन है जो शैक्षणिक परिवार की अवधारणा में विश्वास रखता है और इसी कारण परिषद के अध्यक्ष पद पर प्रोफेसर हीं चुने जाते हैं। इसकी चार स्तरीय इकाईयां होती है। पहली कॉलेज इकाई, दूसरी नगर इकाई, तीसरी प्रांत इकाई और चौथी राष्ट्रीय इकाई। अब कई स्थानों पर जिला इकाई भी बनने लगी है |

कार्य : स्थापना काल से हीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने छात्र हित और राष्ट्र हित से जुड़े प्रश्नों को प्रमुखता से उठाया है और देश व्यापी आंदोलनों का नेतृत्व किया है। आज इस संगठन से जुड़े रहे लोग समाज-जीवन के हर क्षेत्र में सक्रिय हैं और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ और कश्मीर से धारा ३७० को हटाने के लिए विद्यार्थी परिषद समय-समय पर आदोलन चलाते रहा है। बांग्ला देश को तीन बीघा भूमि देने के विरुद्ध परिषद ने ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था। विद्यार्थी परिषद् देशभर के अनेक राज्यों में प्रकल्प चलाती है। बिहार में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नाम सबसे ज्यादा रक्तदान करने का रिकॉर्ड है। इसके अतिरिक्त निर्धन मेधावी छात्र, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिय़े निजी कोचिंग संस्थानों में नहीं जा सकते उनके लिये स्वामी विवेकानंद नि:शुल्क शिक्षा शिविर का आयोजन किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर संगठन की ओर से हरेक साल Student exchange for inter-state living का आयोजन किया जाता है जिसके अंतर्गत दूसरे राज्य में रहने वाले छात्र अन्य राज्यों में प्रवास करते हैं और वहां की संस्कृति और रहन-सहन से परिचित होते हैं।

मुखपत्र : हिंदी में नई दिल्‍ली से प्रकाशित ‘राष्‍ट्रीय छात्रशक्ति’ अ.भा. विद्यार्थी परिषद् का मुखपत्र है। यह शिक्षा क्षेत्र की अग्रणी पत्रिका है।

वेबसाइट : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की वेबसाइट abvp.org है |


लोगो :  ABVP-logo

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विद्यार्थी परिषद् क्या है ?
अक्सर मन में यह प्रश्न उठता है कि - विद्यार्थी परिषद् क्या है ?
उत्तर कठिन नहीं है, परन्तु जिनसे भी पूछने या जानने की कोशिष की, सब ने आपने-अपने ढंग से (आपने-अपने तरीके से) बताने का प्रयास किया। सब के उत्तर अलग-अलग थे। जितने व्यक्ति, उतने उत्तर। 
कुछ लोगों का मानना है कि - विद्यार्थी परिषद् एक छात्र संगठन है।
यह अत्यंत सहज और सरल सा उत्तर है कि - विद्यार्थी परिषद् एक छात्र संगठन है। चलो कुछ छण के लिए मान लेते हैं कि - विद्यार्थी परिषद् एक छात्र संगठन है।
फिर प्रश्न उठता है कि - क्या विद्यार्थी परिषद् भी अन्य छात्र संगठनों की तरह ही एक छात्र संगठन है।
कुछ लोग मानते हैं कि  -  विद्यार्थी परिषद् अन्य छात्र संगठनों से भिन्न छात्र संगठन है। यह एक अलग, अपने आप में अनूठा छात्र संगठन है। 
फिर प्रश्न उठता है कि - यदि विद्यार्थी परिषद् अन्य छात्र संगठनों से भिन्न छात्र संगठन है तो कैसे यह भिन्न छात्र संगठन है ?
आइये जानने का प्रयास करते हैं कि - विद्यार्थी परिषद् क्या है और यह कैसे अन्य छात्र संगठनों से भिन्न है।
संगठन के रूप में परिषद् अन्य छात्र संगठनों से भिन्न छात्र संगठन है ; जैसा इसके नाम से ही उद्घोषित होता है - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् , यह अखिल भारतीय छात्र संगठन है। यह कोई स्थानीय या क्षेत्रीय छात्र संगठन नहीं है। यह अखिल भारतीय संगठन है। अगर परिषद के विभिन्न आयामों का संज्ञान लें, तो यह एक वैश्विक संगठन है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् भारत का ही नहीं, वरन पूरे विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है।
इस संगठन की हर वर्ष देशव्यापी सदस्यता होती है। देश के सभी विश्वविद्यालयों और अधिकांश कॉलेजों में परिषद की इकाईयां हैं। देश के अधिकांश छात्रसंघों में परिषद का नेतृत्व है। अधिकांश छात्रसंघों पर परिषद का ही अधिकार है।
कुछ लोग मानते हैं कि  - विद्यार्थी परिषद् अन्य छात्र संगठनों से भिन्न छात्र संगठन है, क्योंकि यह छात्रों से अभिन्न रहता है। परिषद् के कार्यकर्ता सदा छात्र हित के लिए प्रयासरत रहते हैं। संघर्ष करना, आन्दोलन करना, सब कुछ छात्र हित के लिए; व्यक्तिगत हित के लिए, संगठन के हित के लिए या किसी अन्य संगठन के हित के लिए नहीं। यही कारण है कि छात्र हितों के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों के बीच विद्यार्थी परिषद् अपनी एक अलग पहचान रखती है।  
संगठन की संरचना के रूप में भी विद्यार्थी परिषद् अन्य छात्र संगठनों से भिन्न छात्र संगठन है। विद्यार्थी परिषद के सदस्य आप भी हैं और मैं भी हूं, विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता आप भी हैं और मैं भी हूं, पर आप छात्र है और मैं शिक्षक हूं। विद्यार्थी परिषद शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत  एक प्रमुख संगठन है। यह एकमात्र संगठन है जो शैक्षणिक परिवार की अवधारणा में विश्वास रखता है और इसी कारण शिक्षक, शिक्षाविद और छात्र सभी परिषद के सदस्य होते हैं।
आइए जानने का प्रयास करते हैं कि - संगठन के प्रेरणा के सन्दर्भ में, संगठन के उद्देश्यों के सन्दर्भ में, संगठन के कार्यों और कार्यक्रमों के सन्दर्भ में विद्यार्थी परिषद् अन्य छात्र संगठनों से कैसे भिन्न है ?
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना 9 जुलाई, 1949 को हुई थी। तब से आज तक यह सतत सक्रिय है और अनंत कल तक यूं ही सक्रिय रहेगा, यह मेरा दृढ विश्वास है। इस लिए कहते हैं कि - अभियान निरंतर जारी है।
परिषद के सन्दर्भ में कहते हैं, यह प्रवाहमान छात्रों का एक स्थायी संगठन है। यह युवाओं की संवेदना  को सृजन एवं संघर्ष की प्रेरणा प्रदान करता है।
विद्यार्थी परिषद देश की युवा छात्र शक्ति का प्रतिनिधि संगठन है। विद्यार्थी परिषद ने अपने विविध रचनातम कार्यो अथवा छात्र आंदोलनों के द्वारा छात्रों की समस्याओं समाधान करने के कारण विद्यार्थी परिषद् की एक जिम्मेदार छवि समाज में बनी है। 
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की  मूल अवधारणा है - छात्र शक्ति - राष्ट्रशक्ति है। इसका नारा है - छात्र शक्ति - राष्ट्रशक्ति। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए छात्रों में राष्ट्रवादी चिंतन को जगाना ही विद्यार्थी परिषद का मूल उद्देश्य है। विद्यार्थी परिषद की स्थापना देश की छात्र शक्ति को उचित दिशा देने के लिए किया गया था। अपनी स्थापना के उद्देश्यों के अनुरूप परिषद युवाओं को स्वयं, समाज, राष्ट्र और मानवता के हितों की रक्षा के लिए प्रेरणा प्रदान करता है। आज इस संगठन से जुड़े रहे लोग समाज-जीवन के हर क्षेत्र में सक्रिय हैं और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए समर्पित हैं।
अपने स्थापना काल से हीं विद्यार्थी परिषद ने छात्र हित और राष्ट्र हित से जुड़े प्रश्नों को प्रमुखता से उठाया है और देशव्यापी आंदोलनों का नेतृत्व किया है। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठ और कश्मीर से धारा 370 को हटाने के लिए विद्यार्थी परिषद समय समय पर आदोलन चलाता रहा है। बांग्ला देश को तीन बीघा भूमि देने के विरुद्ध परिषद ने ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था।
हम सदा छात्र हित, समाज हित और राष्ट्र हित के लिए सदा प्रयासरत रहते हैं। विद्यार्थी परिषद् देशभर में प्रकल्प अपने विविध प्रकल्पों के माध्यम से कार्य कर रही है। निर्धन मेधावी छात्र, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए निजी कोचिंग संस्थानों में नहीं जा सकते, परिषद द्वारा उनके लिए नि:शुल्क शिक्षा शिविर का आयोजन किया जाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर संगठन की ओर से प्रतिवर्ष अन्तर्राज्य छात्र जीवन दर्शन (SEIL - students experience in inter-state living) का आयोजन किया जाता है जिसके अंतर्गत दूसरे राज्य में रहने वाले छात्र अन्य राज्यों में प्रवास करते हैं और वहां की संस्कृति और रहन-सहन से परिचित होते हैं।
बिहार में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नाम सबसे ज्यादा रक्तदान करने का रिकॉर्ड है।
विद्यार्थी परिषद् द्वारा संचालित गतिविधियों या कार्यक्रमों को देख कर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्यार्थी परिषद् अन्य छात्र संगठनों भिन्न है।


[ # विद्यार्थी परिषद विद्यार्थी परिषद के विषय में अक्सर लोग कहते हैं कि यह अमुक राजनैतिक संगठन का छात्र संगठन या युवा संगठन है। लेकिन यह तथ्य पूरी तरह आधारहीन और एक भ्रामक दुष्प्रचार का हिस्सा है।
इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त है कि - परिषद की स्थापना 1949 में हुई थी और तब भाजपा तो क्या जनसंघ (1951) का भी जन्म नहीं हुआ था।


विद्यार्थी परिषद की अपनी सदस्यता होती है, पदाधिकारियों का चुनाव होता है। किसी राजनैतिक संगठन से संबंधित कोई भी व्यक्ति इसका किसी प्रकार का सदस्य नहीं होता। 


वैचारिक स्तर किसी राजनैतिक संगठन से हमारी सहमति या समानता हो सकती है। परन्तु हम किसी राजनैतिक संगठन के छात्र संगठन या युवा संगठन नहीं हैं।


हां, हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक  (आर.एस.एस.) से अवश्य प्रेरणा ग्रहण करते हैं।

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), जो  लोकतांत्रिक विश्व का सबसे बड़ा छात्र संगठन है. 9 जुलाई 2021 को अपनी 73वीं वर्षगांठ मना रहा है. छात्र संगठन की एबीवीपी 4,500 से अधिक शहरों और कस्बों के कॉलेजों से लेकर जिला स्तर तक उपस्थिति है और उसके करीब 30 लाख से अधिक सदस्य हैं.
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_ अरुण आनंद 9 July, 2020
भारतीय राजनीति पर इसके प्रभाव का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि केंद्र और राज्यों में मंत्री पदों पर मौजूद भाजपा नेताओं में से लगभग दो तिहाई ने एबीवीपी कार्यकर्ताओं के रूप में सार्वजनिक जीवन में कदम रखा था.


इस सूची में उल्लेखनीय नाम हैं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह,   तथा केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, रविशंकर प्रसाद, गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे और पीयूष गोयल, मुख्यमंत्रियों में जयराम ठाकुर (हिमाचल प्रदेश), शिवराज सिंह चौहान (मध्य प्रदेश) और बिप्लब मोहन देव (त्रिपुरा), तथा बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी.

वर्तमान में एबीवीपी के करीब 30 लाख सदस्य हैं. इसकी सदस्यता 2014 के 22 लाख से बढ़कर 2015 में 32 लाख पहुंच गई थी. संभवत: इसमें लोकसभा में भाजपा को पहली बार पूर्ण बहुमत मिलने और नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने तथा इसके कई पूर्व नेताओं के मंत्री बनने की भूमिका थी. उसके बाद से एबीवीपी कार्यकर्ताओं की संख्या 30 लाख के स्तर पर स्थिर रही है.

उत्पत्ति

छात्रों और शिक्षकों के एक समूह ने 1948 में एबीवीपी का गठन किया था. हालांकि इसे आधिकारिक रूप से 9 जुलाई 1949 को पंजीकृत किया गया. संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य था, कॉलेज कैंपसों में राष्ट्रवादी आंदोलन खड़ा करना, जहां उन दिनों वामपंथ का बोलबाला था.

ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वैचारिक अनुगामी भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के गठन से भी तीन साल पहले की बात है. बीजेएस का 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया और फिर 1980 में भारतीय जनता पार्टी के रूप में उसका पुनरोदय हुआ.

आरएसएस के पूर्व प्रचारक यशवंत राव केलकर, जो मुंबई विश्वविद्यालय में शिक्षक थे, को एबीवीपी का मार्गदर्शक होने और 1950 के दशक में इसकी दिशा तय करने का श्रेय दिया जाता है.

एबीवीपी का गठन आरएसएस के समर्थन से हुआ था और शुरुआती वर्षों में संघ के प्रचारकों ने इसका मार्गदर्शन किया, लेकिन आगे चलकर बड़ी संख्या में आरएसएस से असंबद्ध छात्र भी इससे जुड़ने लगे. वर्तमान में एबीवीपी की 4,500 शहरों और कस्बों में उपस्थिति है, और संगठन का तेजी से विस्तार हो रहा है.

एबीवीपी का अनूठा मॉडल

एबीवीपी की कार्यप्रणाली भारत के अधिकांश अन्य छात्र संगठनों से अलग है, और इसका दायरा कॉलेज कैंपसों में अपनी इकाइयों की स्थापना से कहीं अधिक व्यापक है. इसने पूरे देश में जिला स्तर पर अपनी इकाइयां गठित की हैं, जिसके कारण इसकी पहुंच वैसे छात्रों तक भी है जोकि पत्राचार के जरिए पढ़ाई करते हैं.
ऊर्ध्वाधर विस्तार के साथ ही संगठन अपना क्षैतिज विस्तार भी कर रहा है- कुछ दशक पहले इस बात का एहसास होने पर कि छात्रों के विशिष्ट समूहों के अपने विशिष्ट मुद्दे होते हैं. एबीवीपी ने तकनीकी, चिकित्सा और प्रबंधन संस्थानों में विशेष मंचों की स्थापना का काम शुरू कर दिया.

इस प्रकार रिसर्च से जुड़े छात्रों के लिए इसका ‘शोध’ नामक मंच है, जबकि ‘थिंक इंडिया’ नामक एक अन्य फोरम के ज़रिए संगठन एनआईटी, आईआईटी और नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट के छात्रों से जुड़ा हुआ है. इसी तरह एबीवीपी ने मेडिकल एवं डेंटल छात्रों के लिए ‘मेडिविजन’ और कृषि विश्वविद्यालों एवं संस्थानों के लिए ‘एग्रीविजन’ नामक मंच बना रखे हैं. कला एवं संस्कृति के छात्रों के लिए इसने ‘राष्ट्रीय कला मंच’ बनाया है.

छात्रों को सामाजिक कार्य से जोड़ने के लिए एबीवीपी ने ‘स्टुडेंट्स फॉर सेवा’ कार्यक्रम संचालित कर रखा है, जिसके तहत छात्र समूहों को झुग्गियों और अन्य पिछड़े इलाकों को गोद लेने के लिए प्रेरित किया जाता है. इसके सदस्य छात्र ज़मीनी स्तर पर सक्रिय रहते हैं.

पूर्वोत्तर में पैठ जमाने और छात्रों को एकजुट करने में सहायक एबीवीपी के सबसे पुराने कार्यक्रमों में से एक है- ‘स्टुडेंट्स एक्सपीरियेंस इन इंटर-स्टेट लिविंग (एसईआईएल)’. इस कार्यक्रम की शुरुआत 1965-66 में की गई थी और इसमें पूर्वोत्तर के छात्रों की देश के दूसरे हिस्सों के राज्यों की यात्रा और साथ ही दूसरे राज्यों से पूर्वोत्तर की यात्रा को बढ़ावा दिया जाता है. इन यात्राओं के दौरान छात्रों को स्थानीय एबीवीपी कार्यकर्ताओं के यहां ठहराया जाता है, जहां उनसे मेहमान की तरह नहीं, बल्कि परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाता है. इस प्रमुख कार्यक्रम की संकल्पना में पीबी आचार्या की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो आगे चलकर नागालैंड के राज्यपाल (2014-19) बने.

ये बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि आपातकाल (1975-77) के दौरान एबीवीपी लोकतंत्र समर्थक आंदोलन में अग्रणी था और इसके 10,000 से अधिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया था, जैसा कि आरंभ में उल्लेख किया गया है, उनमें से कई आगे चलकर प्रमुख राजनीतिक नेता, मंत्री और मुख्यमंत्री बने.

लॉकडाउन के दौरान एबीवीपी की नई भूमिका

कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन किए जाने के बाद एबीवीपी ने खुद को नई भूमिका में ढालने का फैसला किया. शुरू में इसने राहत और पुनर्वास अभियान चलाए और फिर छात्रों से निरंतर फीडबैक लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय को उससे अवगत कराने का काम किया.

एबीवीपी ने पीएम केयर्स फंड के लिए 28.64 करोड़ रुपए एकत्रित किए, साथ ही इसने लोगों के बीच 58 लाख से अधिक मास्क, भोजन के 30 लाख पैकेट और 31.7 लाख राशन किट बांटने का काम किया. इसने 17,000 से अधिक छात्रों को उनके घर पहुंचवाने में भी मदद की, जिनमें से बड़ी संख्या पूर्वोत्तर और जनजातीय इलाकों के छात्रों की थी.

लॉकडाउन के दौरान करीब 59,000 एबीवीपी कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर सक्रिय रहे और संगठन ने 100 दिनों से भी अधिक समय तक 477 किचन संचालित किए, जिनमें से एक किचन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में फंसे 700 नेपाली मज़दूरों के लिए स्थापित किया गया था.

अपने तरह की एक अनूठी पहल के तहत 11-12 मई को 56,000 एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने देश के 8.86 लाख छात्रों को फोन कर शिक्षा से जुड़े विभिन्न विषयों पर सरकार से अपेक्षाओं पर उनकी राय ली, मसलन ये मुद्दा कि परीक्षाएं वैयक्तिक उपस्थिति वाली हों या फिर ऑनलाइन. फीडबैक आमतौर पर ऑनलाइन परीक्षा के समर्थन में नहीं था, जिससे प्रधानमंत्री कार्यालय को अवगत करा दिया गया.


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