अरदास में जिनकी शहीदी को सम्मान मिला : शहीद ‘भाई तारू सिंह’

 

 

 Saakhi Shaheed Bhai Taru Singh Ji (Hindi) - Dhansikhi

 

 शहीद भाई तारू सिंह जी के जीवन प्रसंग संकलित-रविन्द्र सिंह भाटिया

Shahidi Divas – Bhai Taru Singh Ji
भाई तारु सिंघ जी गांव पुहले (श्री अमृतसर) के निवासी थे। भाई साहिब जी रोजाना सुबह नितनेम करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे। वे यहां खेती बाड़ी का काम करते थे। गांव में आने जाने वाले प्रत्येक गुरुसिक्ख के रहने की व्यवस्था करना और जंगलों में रहने वाले सिंघों के लिए लंगर तैयार कर उन तक पहुंचाने की सेवा उनकी दिनचर्या थी।


भाई तारू सिंह

गुरुगोविंद जी ने कहा था कि सिख की पहली पहचान उसके केश होते हैं। इसलिए सिखों को अपने केश नहीं कटवाने चाहिए। गुरुगोविंद जी की इस बात का अनुसरण लंबे समय से हर सिख करता आ रहा है। मगर, भाई तारू सिंह इतिहास के पन्नों में दर्ज वो नाम हैं जिन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथी व सिखों पर अत्याचार करने वाले लाहौर गवर्नर जकारिया खान बहादुर के कहने पर भी अपने केश नहीं उतारे बल्कि जब दबाव बनाया गया तो केश उतरवाने की जगह पूरी खोपड़ी ही उसके हवाले कर दी और कहा, “ज्यादा खुश मत हो मैं तुझे जूतियों से मारकर पहले नरक में भेजूँगा और फिर दरगाह जाऊँगा।”

आज ‘भाई तारू सिंह’ सिखों के बीच वो नाम है जिसे सिख धर्म के इतिहास में गर्व से लिया जाता है। उनकी शहीदी को कोई भी सिख भूल नहीं सकता, यही कारण है कि उनके नाम तारू सिंह के सामने सिख उन्हें भाई लगाकर सम्मान देते हैं और उन्हें भाई साहिब भी कहा जाता है।

भाई तारू सिंह का किस्सा उस समय का है जब पंजाब के अमृतसर में मुगलों का राज शुरू हो चुका था और लाहौर का गवर्नर जकारिया खान था। मुगल ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस्लाम कबूल करवाकर अपनी ताकत बढ़ाना चाहते थे। मगर भाई तारू सिंह को यह अत्याचार मंजूर नहीं था। वह अपनी माता के साथ पहूला गाँव में रहते थे और सिख धर्म ही उनके लिए सब कुछ था।

भाई तारू सिंह अपने धर्म के प्रति इतने ईमानदार थे कि रोजाना सुबह 21 बार जपुजी साहिब का पाठ करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे और गाँव में आने जाने वाले प्रत्येक गुरुसिक्ख के रहने की व्यवस्था करना और जंगलों में रहने वाले सिंखों के लिए लंगर तैयार कर उन तक पहुँचाने की सेवा उनकी दिनचर्या थी।

एक बार की बात है कि अपने इसी स्वभाव के कारण उन्होंने एक रहीम बख्स नाम के मछुआरे की मदद की। पहले विश्राम की जगह ढूँढते हुए भाई साहिब के पास आए रहीम बख्स को भाई साहिब ने विश्राम करवाया और फिर रात का भोजन। रहीम ने इसी दौरान तारू सिंह से अपना दुख साझा किया और कहा कि पट्टे जिले से कुछ मुगल उनकी बेटी को अगवा कर ले गए है इसलिए वह नजर चुराते घूम रहे है। रहीम ने कहा कि उसने इस बारे में कई लोगों से शिकायत की है। लेकिन कहीं उसकी सुनवाई नहीं हुई।

रहीम बख्स की सारी बातें सुनकर भाई साहिब मुस्कुरा दिए और कहा गुरु के दरबार में तुम्हारी पुकार पहुँच गई है। अब तुम्हें बेटी मिल जाएगी। रहीम के वहाँ से जाने के बाद भाई तारू सिंह ने ये बात सिंखों के गुट को बताई और उस गुट के सभी सिखों ने मिलकर रहीम की बेटी को छुड़वा लिया।

रहीम की बेटी की रिहाई पर तारू सिंह बहुत खुश थे। लेकिन लाहौर का गवर्नर जकारिया खान इस खबर को सुनकर भीतर ही भीतर झुलस चुका था। दरअसल, एक ओर तो वो लोगों को इस्लाम कबूल करवाकर मुस्लिम बनाना चाह रहा था और दूसरी ओर मुस्लिमों को सिखों के एक गुट ने मार दिया। ये बात उसे किसी कीमत पर गँवारा नहीं थी। उसने तारू सिंह को अपने पास गिरफ्तार करके लाने को कहा।

बस फिर क्या, मुगल सैनिक पहुँचे तारू सिंह के घर और जकारिया खान का आदेश सुनाया। इसके बाद भाई तारू घबराए नहीं। बल्कि उन्होंने उन लोगों को खाना खाने का आग्रह किया। पहले तो सैनिकों ने मना किया। लेकिन बाद में वह भी मान गए। सबने भाई तारू के घर भोजन किया और फिर उन्हें गिरफ्तार करके जकारिया खान के पास ले आए।

भाई तारू सिंह को कैदी के रूप में देखकर जकारिया खान बहुत खुश हुआ। उसने सिखों की बहादुरी के किस्से सुने ही हुए थे बस उसने अपने चालाक दिमाग में तारू सिंह को इस्लाम कबूल करवाने की युक्तियाँ जुटानी शुरू कर दी। उसका सोचना था कि अगर आज तारू सिंह मान गया तो कल को और सिख भी मानेंगे। मगर अफसोस, उसकी कोई जुगत काम न आई।

ज़कारिया खान ने तारू सिंह से कहा, “तारू सिंह… तुमने जो किया वह माफी के लायक बिलकुल नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें एक शर्त पर छोड़ सकता हूँ। तुम इस्लाम कबूल कर लो, हमारे मित्र बन जाओ मैं तुम्हारी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर दूँगा।“

मौत के सामने कोई जिंदगी के लिए सौदा कर रहा था। लेकिन तारू सिंह का जवाब बेहद निर्भीक था। वे जकारिया खान की ओर देखकर मुस्कुराए और कहा चाहे जान चली जाए लेकिन वह अपने गुरुओं के साथ गद्दारी कभी नहीं करेंगे।

इसके बाद तारू सिंह ने ज़कारिया खान की मानसिकता को समझते हुए उन्हें बिना किसी डर के ललकारा और जकारिया खान ने उन्हें कैदखाने में बंद करवा दिया। कैदखाने से गुजरते लोग उन्हें हर रोज इस्लाम कबूल करने का लालच देते। लेकिन भाई तारू सिंह हमेशा अपना जवाब तैयार रखते।

देखते ही देखते जकारिया खान परेशान हो गया। उसने तंग आकर उन्हें सजा देने का फैसला किया। लेकिन जब प्रताड़नाएँ झेल कर भी भाई तारू सिंह ने उफ्फ नहीं किया तो उनके केश काटने का फैसला हुआ। लेकिन सवाल ये था कि केश काटता कौन? क्योंकि कोई नाई उनके बाल काटने की हिम्मत न जुटा सका।

इसे देखते हुए जकारिया खान ने एक नई जुगत लगाई। (सिख साहित्य में मौजूद जानकारी के अनुसार) उसने चालाकी दिखाते हुए भाई तारू सिंह से कहा, “मैंने सुना है कि आपके गुरु और गुरु के सिक्खों से अगर कुछ माँगा जाए तो वो जरूर मिलता है। मैं भी आपसे एक चीज की माँग करता हूँ, मुझे आपके केश चाहिए।” भाई तारू सिंह ने इस बात को सुनकर दो टूक जवाब दिया, “केश दूँगा, जरूर दूँगा लेकिन काट कर नहीं, खोपड़ी सहित दूँगा।”

इसके बाद जल्लाद को बुलवाकर उनकी खोपड़ी काटनी शुरू हुई और इस अत्याचार को अपनी जीत समझकर जकारिया खान बहुत खुश हुआ। जिसे देख भाई तारू सिंह जी के मुख से सहज ही निकल गया, “ज्यादा खुश मत हो जकारिया खान, मैं तुम्हें जूतियाँ मारते हुए नरक में पहले भेजूँगा और खुद दरगाह बाद में जाऊँगा।”

इसके बाद उनकी खोपड़ी उतार ली गई और उन्हें खाई में फेंक दिया गया। कहते हैं कि जब तारू सिंह पर यह दर्दनाक प्रहार किया जा रहा था तब भी वे चुप थे और मन ही मन सिख धर्म के पहले गुरु नानक देवजी द्वारा रचा गया ‘जपुजी साहिब’ का पाठ कर रहे थे।

जब उनके साथ हुई इस घटना की सूचना खालसा पंथ के कुछ लोगों तक पहुँची तो वे फटाफट जाकर खाई में से तारू सिंह को बाहर निकालकर ले आए। फिर उन्हें एक धर्मशाला में लाया गया जहाँ उनकी मरहम-पट्टी की गई, लेकिन कुछ संभव इलाज के बाद तारू सिंह ने आगे का इलाज कराने से मना कर दिया और अपना ध्यान ‘गुरु को याद’ करने में लगा दिया।

दूसरी ओर उनकी वो बात सच हो गई जहाँ उन्होंने जकरियाँ खाँ को कहा था कि वे उसे जूतियाँ मारकर नरक भेजेंगे फिर कहीं जाएँगे।

दरअसल कहा जाता है कि तारू सिंह के साथ ये अत्याचार करने के बाद जकारिया खान को अचानक पेशाब आना बंद हो गया और पेट में असहनीय दर्द होने लगा। उसे याद आया कि ये सब उसी का परिणाम है जो उसे भाई तारू सिंह के साथ किया। उसने जल्द से जल्द खालसा पंथ के अनुयाई के पास क्षमा पत्र भिजवाया और तकलीफ का उपाय भी पूछा। जिसपर उन्होंने बताया कि उसकी समस्या का हल भी स्वयं तारू सिंह ही है।

उन्होंने कहा, तारू सिंह द्वारा पहने गए जूते को यदि ज़करिया खान अपने सिर पर मारेगा तो उसे पेशाब आ जाएगा, लेकिन फिर भी वह जल्द ही मर जाएगा।

हुआ भी यही… ज़कारिया खान ने तारू सिंह का जूता मँगवाया और जैसे ही उसे अपने सिर पर मारा तो उसे पेशाब आया और कुछ राहत मिली। कुल 21 दिनों तक यही सब चला लेकिन 22वें दिन 1 जुलाई 1745 ई को वह मर गया। उसकी मौत की खबर सुनने के बाद भाई तारू सिंह ने भी अपने प्राण त्यागे।

आज तारू सिंह की शूरता को पूरा सिख समुदाय नमन करता है। उन्हें भाई तारू सिंह का दर्जा दिया जाता है। उनके त्याग को सिख धर्म में इतनी महत्ता दी जाती है कि सिखों की अरदास में भी उनकी शहीदी को दर्जा मिला है। आज उनके शहीदी दिवस पर सोशल मीडिया पर उनकी कहानी को साझा करके उन्हें याद किया जा रहा है। इसलिए हमने भी भाई तारू सिंह पर जानकारी जुटाकर उनसे जुड़ी कहानी आपतक साझा करने का प्रयास किया है।

शिक्षा : सिक्ख केशों को जान से भी ज्यादा प्यार करता है और हमें भी भाई तारू सिंह जी की तरह अपने केशों से प्यार करना चाहिए, गुरबाणी के धारनी होना चाहिए और हमेशा सच के साथ खडा होना चाहिए, चाहे उसके लिए जान भी कयो ना देनी पडे
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Bhai Taru Singh

 
Bhai Taru Singh, (6 October 1720 - 1st July 1745), a Sikh martyr the son of Shaheed Bhai Jodh Singh and Bibi Dharam Kaur a Sandhu Jatt family of Poohla village, in Amritsar district of the Punjab. He had a younger sister named Bibi Tar Kaur. He was a pious Sikh who following the teachings of the Sikh Gurus, worked hard tilling his land diligently and lived frugally; although not a rich man, he was always happy and did much for his Sikh brothers and sisters.
Whatever he saved went to his Sikh brethren forced into exile by government persecution. He was spied upon by Akil Das (also known as Harbhagat Niranjania) of Jandiala, a government informer and subsequently, Taru Singh was hauled before Zakariya Khan, the governor of Punjab who was based at Lahore.
Born in Punjab during the reign of the Mughal Empire, Bhai Taru Singh was raised as a Sikh by his widowed mother, Bibi Dharam Kaur as his father, Bhai Jodh Singh had died in battle. During this time, Sikh revolutionaries were plotting the overthrow of the Khan and had taken refuge in the jungle. Bhai Taru Singh and his sister, Tar kaur (Taro) Kaur gave food and other aid to these Sikh fighters. Akil Das, having informed the authorities about both of them to Zakaria Khan, the two of them were arrested for treason. Though his sister's freedom was bought by the villagers, Bhai Taru Singh refused to seek a pardon.
Zakariya Khan's mission against Sikhs

As the Prachin Panth Prakash narrates the story, Zakariya Khan once asked his men, "From where do the Sikhs obtain their nourishment? I have debarred them from all occupations. They realize no taxes. They do not farm, nor are they allowed to do business or join public employment. I have stopped all offerings to their gurdwaras, their places of worship. No provisions or supplies are accessible to them. Why do they not die of sheer starvation?"
Harbhagat, a sworn foe of the Sikhs, remarked, "There are Sikhs in this world who would not eat until they have fed their brethren. They may themselves go without food and clothing but cannot bear their comrades' distress. They would pass the winter by fireside and send them their own clothes. They would sweat to grind corn and have it sent to them. They would do the roughest chore to earn a small wage for their sake. They migrate to distant places to eke out money for their brothers in exile."
"In the village of Puhia in Majha," continued Harbhagat, "lives one Taru Singh. He tills his land and pays the revenue to the officials. He eats but little and sends what he saves to his brothers in the jungle. His mother and sister both toil and grind to make a living. They eat sparingly and wear the coarsest homespun. Whatever they save, they pass on to their fellow Sikhs."


Bhai Taru Singh arrested
Following the report by Akil Das, Bhai Taru Singh was arrested, imprisoned and tortured. Eventually, when presented before the governor, he defiantly greeted him with the Sikh salutation: Vahiguru ji ka Khalsa, Vahiguru ji ki Fateh. When charged with sedition, he stated :
"If we till your land, we pay the revenue. If we engage in commerce, we pay taxes. What is left after our payments to you is for our bellies. What we save from our mouths, we give to our brethren. We take nothing from you. Why then do you punish us?"
The governor was in a rage and pronounced the usual alternatives, Islam or death. To quote again from the Prachin Panth Prakash, Taru Singh calmly asked, "Why must I become a Mussalman (a Muslim person)? Do not the Mussalmans ever die?"
The exact method of his execution is somewhat ambiguous. However, it is believed that after a short period of imprisonment and torture, Singh was brought before the Khan and given the choice of converting to Islam or being executed. As a symbol of his conversion, Singh would have to cut off his Kesh and present it as an offering to the Khan. Upon his refusal, and in a public display, Bhai Taru Singh's scalp was cut away from his skull with a sharp knife to prevent his hair from ever growing back. This torturous act is believed to be carried out on 9th June 1745.
Bhai sahib left to bleed to his death

Sikhs believe that once Bhai sahib had been returned to prison to await a slow death, Zakaria Khan was stricken with unbearable pain and the inability to urinate. He consulted his advisers about this sudden illness and he was told that this illness was due to his maltreatment of the Sikhs. Due to the unbearable pain and as a last resort, he sent an apology to the Khalsa Panth for his persecution of the Sikhs and begged for their forgiveness.
It was suggested by his advisers that if Zakaria Khan had his own scalp hit with Bhai Taru Singh's shoes, his condition might be lifted. Although the shoe cured the Khan's condition, he died 22 days later. Upon hearing that he had miraculously outlived the Khan, Bhai Taru Singh left for sachkhand on 1st of July 1745.
Taru Singh was then barely 25 years of age. His dead body was cremated outside Delhi Gate at Lahore, where a "Shahidganj", or martyrs' memorial, was later constructed. It became a place of pilgrimage for the Sikhs.

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पाकिस्‍तान में सिखों पर सितम, अराजक तत्‍वों ने अब भाई तारू सिंह के गुरुद्वारे को बताया मस्जिद
टाइम्स नाउ डिजिटल Updated Jul 26, 2020
दिल्‍ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने पाकिस्‍तान में सिख समुदाय के लोगों के साथ अन्‍याय का मुद्दा उठाया है।

इस्‍लामाबाद : पाकिस्‍तान हिन्‍दू, सिख, ईसाई सहित तमाम अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोग किस हालात में रह रहे हैं और वे किस तरह खौफ के साये में जीते हैं, इसकी कई रिपोर्ट सामने आ चुकी है। अब एक बार फिर यहां ऐसा ही मामला सामने आया है, जो यहां रह रहे सिखों के साथ अन्‍याय को दर्शाता है। अब  यहां भाई तारू सिंह के शहीद स्‍थान के मजिस्‍द शहीद गंज होने का दावा किया जा रहा है।

सिखों में रोष
भाई तारू सिंह, सिखों के बीच वह नाम हैं, जिसे इस समुदाय के लोग गर्व से लेते हैं। सिख धर्म के इतिहास में उनका नाम काफी सम्‍मान से लिया जाता है। यही वजह है कि पाकिस्‍तान में रह रहे सिखों के बीच उनका यह गुरुद्वारा पूजनीय रहा है। लेकिन अब कुछ अराजक तत्‍वों ने यहां उत्‍पात मचाते हुए दावा किया है कि यह स्‍थान मस्जिद का है। उन्‍होंने यहां सिखों को नहीं आने की चेतावनी भी दी, जिस पर सिख समुदाय में रोष है।

सिरसा ने किया ट्वीट
दिल्‍ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने ट्वीट कर इस संबंध में अपनी बात रखी। उन्‍होंने पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को टैग करते हुए यह भी कहा कि अगर भाई तारू सिंह के गुरुद्वारे के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ की जाती है और दुनियाभर में सिख समुदाय के लोग इसे बर्दाश्‍त नहीं करेंगे और इसका जोरदार विरोध करेंगे।

उन्‍होंने भारत सरकार से भी आग्रह किया कि वह इस मसले को पाकिस्‍तान के साथ उठाए। सिरसा ने कहा कि भाई तारू सिंह के गुरुद्वारे पर जाकर सिख समुदाय को धमकाने वालों ने उन्‍हें अपशब्‍द भी कहा। उन्‍होंने वीडियो भी ट्वीट किया, जिसमें एक शख्‍स को धमकियों के बारे में बात करते देखा और सुना जा सकता है।

यहां उल्‍लेखनीय है कि सिख धर्म में भाई तारू सिंह का नाम मुगलकाल के दौरान इस्‍लामिक कट्टरपंथ के आगे घुटने नहीं टेकने वाले सूरमा के तौर पर लिया जाता है। बताया जाता है कि उस समय जब मुगल अधिक से अधिक लोगों को इस्‍लाम कबूल करने पर मजबूर कर रहे थे, भाई तारू सिंह ने इस अत्‍याचार को मंजूर नहीं किया।

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मोदी ने सिख शहीद भाई तारू सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की

नयी दिल्ली, नौ अक्टूबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को सिख शहीद भाई तारू सिंह को उनकी 300वीं
जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने अपने धार्मिक विश्वासों के

नयी दिल्ली, नौ अक्टूबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को सिख शहीद भाई तारू सिंह को उनकी 300वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने अपने धार्मिक विश्वासों के साथ समझौता करने के बजाय अपने जीवन का बलिदान कर दिया। तारू सिंह ने 1745 में शहादत दी। मोदी ने कहा कि सिंह का नाम हमेशा साहस और निडरता का पर्याय रहेगा। मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘मैं महान भाई तारू सिंह जी को उनकी 300वीं जयंती के विशेष अवसर पर नमन करता हूं। उनका नाम हमेशा साहस और निडरता का पर्याय रहेगा। अपनी संस्कृति के साथ-साथ लोकाचार पर हमेशा गर्व करते हुए, वह कभी भी अन्याय के आगे नहीं झुके। वह लाखों लोगों को प्रेरित करते रहेंगे।’’

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