प्रथम गुरू मां ही होती हैं

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 माँ प्रथम गुरु | नौ महीने गर्भ में | संस्कारों की शिक्षा | माँ जीजाबाई |  जननी और जन्मभूमि | स्वर्ग से महान | ज्ञान के प्रकाश | अज्ञान रूपी ...

 महर्षि दयानंद ने कहा था- जिस तरह माता संतानों को प्रेम देती है और उनका हित करना चाहती है, उस तरह और कोई नहीं करता।

 बच्चे के प्रति माता का यह स्नेह परमात्मा का प्रकाश है। मातृत्व को इस धरती पर देवत्व का रूप हासिल है। माता त्याग की प्रतिमूर्ति है। अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, सुख-सुविधाओं तथा आकांक्षाओं का त्याग कर वह अपने परिवार को प्रधानता देती है। हमारी जन्मभूमि भी हमारी माँ है, जो सब कुछ देकर भी हमारी प्रगति से प्रसन्न होती है।


 

 प्रथम गुरू मां
"अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।"
अर्थात्, जब तीन उत्तम शिक्षक, एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।

      बच्चा जन्म लेने के बाद जब बोलना सीखता है तब वह सबसे पहले जो शब्द बोलता है वो शब्द होता है "मां"। एक मां ही बच्चे को बोलना, खाना-पीना, चलना-फिरना आदि सिखाती है इसलिए एक मां ही हर मनुष्य की प्रथम गुरु होती है।
      माता से ही बच्चा संस्कार ग्रहण करता है। माता के उच्चारण व उसकी भाषा से ही वह भाषा-ज्ञान प्राप्त करता है। यही भाषा-ज्ञान उसके संपूर्ण जीवन का आधार होता है।
 

कई पौराणिक कथाओं में माता की महानता का वर्णन है।

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमा त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।

अर्थात्, माता के समान छाया नहीं है और न ही माता के समान कोई गति है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और न ही माता के समान कोई प्रिय है।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।
अर्थात्, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।

है पिता से मान्य माता दशगुनी, इस मर्म को,
जानते हैं वे सुधी जो जानते हैं धर्म को।
अर्थात् जो बुद्धिमान लोग धर्म को मानते हैं, वे जानते हैं कि माता पिता से दस गुनी मान्य होती है।

माता गुरुतरा भूमेरू।
अर्थात्, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।

       मातृत्व को इस धरती पर देवत्व का रूप हासिल है। माता त्याग की प्रतिमूर्ति है। अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, सुख-सुविधाओं तथा आकांक्षाओं का त्याग कर वह अपने परिवार को प्रधानता देती है। हमारी जन्मभूमि भी हमारी माँ है, जो सब कुछ देकर भी हमारी प्रगति से प्रसन्न होती है।
      समय-समय पर माता द्वारा बालक को सुनाई गई कथा-कहानियाँ, उपदेश व दिया गया ज्ञान, बच्चे के जीवन पर अमिट छाप छोड़ता है। बचपन में दिया गया ज्ञान ही संपूर्ण जीवन उसका मार्गदर्शन करता है।


      आध्यात्म में दो तरह के लोग होते हैं। कुछ लोग परम सत्ता को पिता की तरह देखते हैं, कुछ लोग परम सत्ता को माँ की तरह देखते हैं। लेकिन जो लोग आध्यात्म की बहुत गहराई में उतरे हैं, उन्होंने परम सत्ता को माँ की तरह देखा है।
 

        मां  बच्चे का बहुत ही ममता और प्यार से पालन पोषण करती है। स्वयं गीले में सो जाती है परन्तु बच्चे को सदा सूखे में सुलाती है। अपना सारा सुख और आराम बच्चे के लिए कुर्बान कर देती है। उसकी ममता के समक्ष दुनिया के सभी सुख फीके पड़ जाते हैं।


        उसके चरणों में ही मनीषियों ने स्वर्ग की अवधारणा की है। इसीलिए वे कहते हैं कि मनुष्य आयुपर्यन्त उसकी सेवा करने के उपरान्त भी उसके ऋण से उऋण नहीं हो सकता। जब वह अशक्त हो जाए तब बच्चे की तरह उसकी देखभाल करनी चाहिए। उसके खान-पान और स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए।

 
मां बचपन की पाठशाला की पहली गुरु होती है, जो बच्चों में संस्कार के बीज बोती है। हम भले ही मां का ऋण चुका न सकें, लेकिन तन-मन से उसकी सेवा तो कर ही सकते हैं. महर्षि दयानंद ने कहा था- जिस तरह माता संतानों को प्रेम देती है और उनका हित करना चाहती है, उस तरह और कोई नहीं करता।

प्रत्येक लोगों के जीवन में ‘माँ’ सबसे महत्वपूर्ण होती है | यदि माँ नहीं होती तो हमारे जीवन का अस्तित्व नहीं होता इस दुनियाँ में माँ शब्द सबसे आसान है |

भगवान हर किसी के साथ नहीं रह सकते इसलिए उन्होंने माँ जैसी अनमोल रिश्ते को बनाया है | पिता और माता इस दुनियाँ में भगवान के वो रूप हैं जो बिना किसी स्वार्थ के हमें पालते हैं |

माँ का महत्व :
माँ अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है | माँ के बिना जीवन का अस्तित्व ही नहीं है | मेरी माँ मेरे लिए भगवान की एक रूप है, मेरे लिए भगवान और माँ में कोई फर्क नहीं है |माँ हमारे लिए माँ एक अनमोल रुप है जिसके बारे में शब्दों में बयाँ नहीं कर सकते है | माँ मेरे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है | हम सभी के जीवन में माँ बहुत ही अनमोल होती है |

मेरी माँ दुनियाँ की सबसे अच्छी माँ है, जिन्होनें मुझे जन्म दिया है | मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती है | मेरी माँ घर में सुबह सबसे पहले उठती है, और मेरे लिए खाना पकाती है |

माँ मेरी मुझे रोज स्कूल जानें के लिए तैयार करती है | मेरी माँ मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है | माँ संसार की जननी है, क्योंकि माँ के बिना संसार होता ही नहीं है |माँ के बिना हम अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं | माँ इस धरती पर पहली गुरु होती है जब हम पैदा होते हैं तो हम कुछ नहीं जानते हैं माँ ही हमें कुछ सोंचने समझने के काबिल बनाती है | मेरे जीवन की प्रथम गुरु मेरी माँ है |
 
माँ प्रेम की प्रतिक होती है, जो अपने बच्चों के लिए कोई भी त्याग कर सकती है | माँ शब्द इतना सरल है की इस दुनियाँ में छोटा बच्चा सबसे पहले अपने मुँह से माँ शब्द ही बोलता है | इस शब्द की कोई परिभाषा नहीं होती है, यह शब्द अपने आप ही पूरा होता है |किसी के भी जीवन में एक माँ पहली, सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण होती है | माँ जैसा कोई भी सच्चा और वास्तविक नहीं हो सकता | हमारी माँ एकमात्र ऐसी है जो हमारे अच्छे और बुरे समय में हमारे साथ रहती है |

 

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