बंदा बैरागी : हिन्दू शौर्य की पराकाष्ठा
बंदा बैरागी : हिन्दू शौर्य की पराकाष्ठा
9 जून- बलिदान दिवस बंदा बैरागी..
बेटे को मार कर कलेजा मुँह में ठूस दिया, फिर हाथी से कुचलवा डाला.. लेकिन नहीं बने “मुसलमान”
Link - warrior-banda-bairagi-ji
इनकी चर्चा करते तो खतरे में पड़ जाते उनके स्वघोषित धर्मनिरपेक्षता के नकली सिद्धांत .. इनके बारे में बताते तो उनके आका हो जाते नाराज जिनकी चाटुकारिता के उन्हें पैसे मिलते थे .. इनका सच दिखाते तो इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता .. इनका जिक्र करते तो समाज मे न तो लव जिहाद होता और न ही धर्मांतरण .. और ये सब न होता तो उनकी दुकानदारी न चलती .. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकारो के किये पाप का नतीजा है कि धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बंदा बैरागी का आज बलिदान दिवस है जिसे बहुत कम भारतीय जानते हैं ..
*9 जून बन्दा बैरागी का बलिदान दिवस*
----
बन्दा सिंह बहादुर
बन्दा सिंह बहादुर सेनानायक थे। उन्हें बन्दा बहादुर, लक्ष्मण देव भारद्वाज, माधो दास बैरागी और वीर बन्दा बैरागी भी कहते हैं। उनका मूल नाम लक्ष्मण देव भारद्वाज था। वे पहले ऐसे व्यक्तिव हुए, जिन्होंने मुगलों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा, छोटे साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्ता सम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में स्वराज की नींव रखी। यही नहीं, उन्होंने गुरु नानक देव और गुरू गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरें जारी करके, निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और हल वाहक किसान-मज़दूरों को ज़मीन का मालिक बनाया।
आरम्भिक जीवन
बाबा बन्दा सिंह बैरागी का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के तहसील राजौरी क्षेत्र में विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 (1670 ई.) को हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था, उनका जन्म हिंदू राजपूत परिवार में हुआ था। और वे भारद्वाज गोत्र के थे। लेकिन छोटी सी उम्र में पहाड़ी जवानों की भांति कुश्ती शिकार आदि का बहुत शौक़ था। वह अभी 15 वर्ष की उम्र के ही थे कि एक गर्भवती हिरणी के उनके हाथों हुए शिकार ने उने अत्यंत शोक में डाल दिया। इस घटना का उनके मन में गहरा प्रभाव पड़ा। वह अपना घर-बार छोड़कर बैरागी बन गये। वह जानकी दास नाम बैरागी साधु के शिष्य हो गए और उनका नाम माधोदास बैरागी पड़ा। तदन्तर उन्होंने एक अन्य बाबा रामदास बैरागी का शिष्यत्व ग्रहण किया और कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहे। वहाँ एक औघड़नाथ से योग की शिक्षा प्राप्त कर वह पूर्व की ओर दक्षिण के नान्देड क्षेत्र को चले गए जहाँ गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।
मोहाली में बन्दा सिंह बहादुर' का स्मारक
गुरु गोबिन्द सिंह से प्रेरणा
3 सितम्बर 1708 ई. को नान्देड में सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने इस आश्रम में पहुंचकर माधोदास को उपदेेेेेेश दिया और तभी से इनका नाम माध दास से बन्दा बैरागी हो गया। पंजाब और शेष अन्य राज्यों के हिन्दुओं के प्रति दारुण यातना झेल रहे तथा गुरु गोबिन्द सिंह के सात और नौ वर्ष के उन महान बच्चों की सरहिंद के नवाब वज़ीर ख़ान के द्ववारा निर्मम हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए रवाना किया। गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश से ही वे पंजाब आये और सिक्खों के सहयोग से मुग़ल अधिकारियों को पराजित करने में सफल हुए। मई, 1710 में उन्होंने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उन्होंने ख़ालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये।
राज्य-स्थापना हेतु आत्मबलिदान
सिख शौर्य का परिचय देते हुए बन्दा सिंह बहादुर ने अपने राज्य के एक बड़े भाग पर फिर से अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया। 1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फ़र्रुख़सियर की शाही फ़ौज ने अब्दुल समद ख़ाँ के नेतृत्व में उन्हें गुरुदासपुर ज़िले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन्होंने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। फ़रवरी 1716 को 794 सिक्खों के साथ वह दिल्ली लाये गए जहाँ 5 मार्च से 12 मार्च तक सात दिनों में 100 की संख्या में सिक्खों की बलि दी जाती रही । 16 जून को बादशाह फ़ार्रुख़शियार के आदेश से बन्दा सिंह तथा उनके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये।
सुशासन
मरने से पूर्व बन्दा सिंह बहादुर जी ने अति प्राचीन ज़मींदारी प्रथा का अन्त कर दिया था तथा कृषकों को बड़े-बड़े जागीरदारों और ज़मींदारों की दासता से मुक्त कर दिया था। वह साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से परे थे। मुसलमानों को राज्य में पूर्ण धार्मिक स्वातन्त्र्य दिया गया था। पाँच हज़ार मुसलमान भी उनकी सेना में थे। बन्दा सिंह ने पूरे राज्य में यह घोषणा कर दी थी कि वह किसी प्रकार भी मुसलमानों को क्षति नहीं पहुँचायेगे और वे सिक्ख सेना में अपनी नमाज़ पढ़ने और खुतवा करवाने में स्वतन्त्र होंगे।
युद्ध स्मारक
बाबा बन्दा सिंह के 300वें शहीदी दिवस के अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल
सिख सैनिकों की वीरता और नायकत्व को याद रखने के उद्देश्य से एक युद्ध स्मारक बनाया गया है। यह उसी स्थान पर बना है जहाँ छप्पर चीरी का युद्ध हुआ था। इस परियोजना का आरम्भ 30 नवम्बर 2011 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने किया था।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें