देवउठनी एकादशी : तुलसी विवाह
जिस तरह हम 24 घंटे के पूरे दिवस में लगभग एक तिहाई 8 घंटे निद्रा लेते है। उसी तरह भगवान भी वर्ष में एक तिहाई अर्थात 4 माह की निद्रा लेते हैं। तर्क विर्तक और कुतर्क कितने भी हों। मगर सच यही है कि शरीर को अपनी ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने हेतु निद्रा लेनी ही पढ़ती है और फिर जागरण भी होता है। यही वैज्ञानिक नियम ईश्वरीय व्यवस्था पर भी लागू होता है।
देवउठनी एकादशी
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन से कोई भी मंगल कार्य शुरू किया जा सकता है। इसके अलावा इस दिन अगर विधिवत पूजा अर्चना की जाए तो पूजा करने वाले व्यक्ति को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन विश्राम से जागकर सृष्टि का कार्य-भार संभालते हैं। देवउठनी एकादशी से सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते है।
ऐसे में आइए जानते हैं इस शुभ दिन क्या करने से व्यक्ति को 1 हजार अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त हो सकता है।
लक्ष्मी पूजन –
देवउठनी एकादशी के दिन स्नान करने के बाद भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा जरूर होता है।
याद रखें ऐसा करने पर ही आपकी पूजा पूर्ण मानी जाती है और व्यक्ति को मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पीपल के वृक्ष में दीपक जलाएं –
ऐसा माना जाता है कि पीपल के वृक्ष में देवताओं का वास होता है। यही वजह है कि देवउठनी एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष के पास सुबह गाय के घी का दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
तुलसी विवाह-
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ तुलसी का विवाह करने की परंपरा है। इस दिन हर सुहागन महिला को यह विवाह जरूर करना चाहिए।
ऐसा करने से उसे अंखड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां तुलसी की पूजा करते समय उन्हें लाल चुनरी जरूर चढ़ाएं।
शाम को घर में दीपक जलाएं-
इस दिन शाम को घर के हर कोने में एक दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा जरूर करनी चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहती है।
लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें-
देव दीपावली के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सूक्त पाठ जरूर करें। ऐसा करने से आपके सारे आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे।
शंख में गाय के दूध डालकर करें अभिषेक-
देव उठनी एकादशी के दिन दक्षिणवर्ती शंख में गाय का दूध डालकर भगवान विष्णु का अभिषेक करना चाहिए। इसके अलावा आज के दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी पूजन के साथ तुलसी विवाह भी अवश्य करे।
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देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालीग्राम का विवाह कराया जाता है। यह विवाह एक आम विवाह की तरह होता है जिसमें शादी की सारी रस्में निभाई जाती हैं। बारात से लेकर विदाई तक सभी रस्में होती हैं। आइए आपको बताते हैं तुलसी विवाह के शुभ मुहुर्त और पूजा विधि के बारे में।
तुलसी विवाह पूजा विधि:
सबसे पहले तुलसी के पौधे को आंगन के बीचों-बीच में रखें और इसके ऊपर भव्य मंडप सजाएं। इसके बाद माता तुलसी पर सुहाग की सभी चीजें जैसे बिंदी, बिछिया,लाल चुनरी आदि चढ़ाएं।
इसके बाद विष्णु स्वरुप शालिग्राम को रखें और उन पर तिल चढ़ाए क्योंकि शालिग्राम में चावल नही चढ़ाए जाते है। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं। साथ ही गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें। अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें। इसके बाद दोनों की घी के दीपक और कपूर से आरती करें। और प्रसाद चढ़ाएं।
तुलसी विवाह की कथा
बहुत समय पहले जलंधर नामक एक राक्षस हुआ करता था। जिसने सभी जगह बहुत तबाही मचाई हुई थी। वह बहुत वीर और पराक्रमी था। उसकी वीरता का राज उसकी पत्नी वृंदा का परिव्रता धर्म था। जिसकी वजह से वह हमेशा विजयी हुआ करता था। जलंधर से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा की गुहार लगाई। देवगणों की प्रार्थना सुनने के बाद भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का फैसला लिया।
उन्होंने जलंधर का रुप धरकर छल से वृंदा को स्पर्श किया। जिससे वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जंलधर का सिर उनके घर में आकर गिर गया। इससे वृंदा बहुत क्रोधित हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि तुम पत्थर के बनोगे। तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। विष्णु भगवान का पत्थर रुप शालिग्राम कहलाया। इसके बाद विष्णु जी ने कहा- हे वृंदा मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक की एकादशी पर मेरा तुमसे विवाह करवाएगा उसकी सारी मनोकामना पूरी होगी।
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देवउठनी ग्यारस
देव उठनी एकादशी की कहानी व्रत के समय कही और सुनी जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी देव उठनी एकादशी होती है। कहानी इस प्रकार है –
देव उठनी एकादशी की कहानी
Dev Uthani Gyaras ki kahani
एक राजा था। वह , उसकी रानी , बेटा तथा प्रजा बहुत धार्मिक प्रवृति के थे। एकादशी के दिन राज्य में कोई अनाज नहीं खाता था। अनाज की सभी दुकाने बंद रखी जाती थी। राजा सहित सभी लोग फलाहार करते थे या निराहार रहते थे।
एक बार भगवान विष्णु के मन में राजा की परीक्षा लेने का विचार आया। वे अत्यंत सुन्दर स्त्री के रूप में राजमार्ग पर उपस्थित हो गए। राजा का रथ वहां से निकला तो राजा उन्हें देखकर मुग्ध हो गए और उनके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया।
स्त्री बने भगवान विष्णु ने कहा – यदि उन्हें पूरे राज्य पर अधिकार दिया जाये और जो खाना वे परोसें उसे ही खाया जाये तो शादी का प्रस्ताव मंजूर हो सकता है। राजा ने इसे स्वीकार कर लिया और शादी करके उन्हें राजभवन ले आये।
दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। नई रानी ने आदेश निकलवाया कि रोजाना की तरह अनाज की सभी दुकाने खोली जायें। उन्होंने मांसाहारी सहित कई प्रकार के व्यंजन बनाये और राजा को परोस दिए। राजा ने कहा आज एकादशी है अतः वे सिर्फ फलाहार ले सकते हैं।
रानी ने उन्हें शादी की शर्त याद दिलाई और कहा कि या तो शर्त पूरी करके व्यंजन खायें या फिर राजकुमार का सिर काट कर लायें।
राजा धर्म संकट में पड़ गया। अपनी पुरानी रानी से विचार विमर्श किया तो रानी ने कहा कि आपको धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। अनाज या मांस नहीं खाना चाहिए।
राजा ने राजकुमार को बुलवाया और सारी बात बताई तो राजकुमार धर्म की रक्षा के लिए तुरंत सिर कटवाने को तैयार हो गया।
राजा ने जैसे ही तलवार उठाई , विष्णु भगवान प्रकट हो गए और राजा का हाथ पकड़ लिया। उन्होंने सारी बात बताई और प्रसन्न होकर राजा से वर मांगने के लिए कहा। राजा ने आशीर्वाद के सिवा कुछ नहीं माँगा।
लम्बे समय तक राजा ने सुखपूर्व राज किया फिर बेटे को राज पाट सौंप दिया।
धर्म की पालना करने से परिणाम हमेशा अच्छा मिलता है। कहानी कहने और सुनने वाले सभी लोगों का कल्याण हो।
बोलो विष्णु भगवान की …… जय !!!
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