ईश्वर की भक्ति, प्रार्थना और विविध प्रकार आराधना, जाने अनजाने अपराधों से मुक्ति की ही युक्ति है - अरविन्द सिसोदिया Ishwar
Arvind Sisodia: 9414180151 विचार - ईश्वर की भक्ति, प्रार्थना, दर्शन के रूप में पाप मुक्ति के लिए किया गया अपरोक्ष प्राश्चित ही है, जो एक प्रकार से क्षमा मांगना और दंड से राहत पाने जैसा ही है। यही भाव गंगा स्नान से पाप मुक्ति का भी है। व्याख्या - यह विचार बहुत ही अर्थपूर्ण है। ईश्वर की भक्ति, प्रार्थना, दर्शन के माध्यम से पाप मुक्ति की प्राप्ति करना एक प्रकार का अपरोक्ष प्राश्चित ही है, जिसमें हम अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं और दंड से राहत पाने की कामना करते हैं। यही तथ्य ईश्वर के प्रति समर्पित किये जानें वाले सभी कृत्यों में होता है। वशर्ते उसमें स्वार्थ भाव न हो। जहां भी लाभ की कामना से कोई कार्य किया जाता है, वह एक प्रकार से कर्ज होता है, जो आत्मा के खाते पर लिख जाता है और उसे जन्मजन्मान्तर तक आत्मा भिन्न भिन्न शरीरों में जन्म लेकर चुकाती रहती है। यह विचार हिंदू धर्म में गंगा स्नान एवं अन्य स्नान, व्रत, पूजन आदि से भी जुड़े हैँ। गंगा स्नान को पाप मुक्ति का एक साधन माना जाता है, जिसमें हम अपने पापों को धोकर पवित्र होते हैं। आपके विचार से यह भी स्पष्ट होता है कि ईश्वर की भक्...